दृष्टि बाधित बालकों की पहचान,विशेषताएं,प्रकार,कारण / दृष्टि बाधित बालकों की शिक्षा एवं शिक्षण सामग्री

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दृष्टि बाधित बालकों की पहचान,विशेषताएं,प्रकार,कारण / दृष्टि बाधित बालकों की शिक्षा एवं शिक्षण सामग्री

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(Visually Impaired) दृष्टि बाधित बालकों की पहचान,विशेषताएं,प्रकार,कारण

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दृष्टि बाधित बालक या दृष्टिक्षीणता वाले बालक  (Visually Impaired)

आँखों से अन्धे अर्थात् चक्षुहीन बालकों को विकलांग स्थिति में सर्वाधिक खराब स्थिति का माना जाता है। ऐसे बालक अन्य विकलांग बालकों की तुलना में अधिक पराश्रित एवं दया पर आश्रित माने जाते रहे हैं, परन्तु आज ऐसी स्थिति नहीं हैं उनके लिये सरकार ने एवं निजी संस्थाओं ने पर्याप्त सुविधाएँ उपलब्ध करायी हैं।

दृष्टि बाधित बालकों के प्रकार /  दृष्टिक्षीणता के प्रकार

प्रमुख रूप से ऐसे बालक दो प्रकार के होते हैं-

1. नेत्रहीन बालक-ऐसे बालक जो जन्म से या बाल्यावस्था में पूर्णतः अन्धे हो जाते हैं, नेत्रहीन कहलाते हैं। इन्हें बिल्कुल दिखायी नहीं देता।

2. दुर्बल दृष्टि वाले बालक-दूसरे दृष्टिहीन बालक वे होते हैं जिनकी दृष्टि दुर्बल होती है। इनमें से कुछ बालकों की पास की दृष्टि और कुछ की दूर की दृष्टि दुर्बल होती है। कुछ बालकों की निकट की दृष्टि तथा दूर की दृष्टि दोनों कमजोर होती हैं। चश्मे के प्रयोग द्वारा और विटामिन ‘ए’ की मात्रा अधिक देकर इन बालकों की दृष्टि को ठीक किया जा सकता है।

दृष्टि-दोष वाले बालक-बालिकाओं की पहचान

इस दोष वाले बालकों में नेत्रहीन बालकों को तो आसानी से ही पहचाना जा सकता है लेकिन दुर्बल दृष्टि वाले बालकों की पहचान हेतु उनकी चिकित्सा जाँच करायी जानी चाहिये। कुछ अभिभावक/ माता-पिता अपने, बालकों के दृष्टि-दोष को छिपाना चाहते हैं जो कि बालकों के साथ अन्याय है।

दृष्टि-दोष के कारण

इस दोष के प्रमुख रूप से निम्नलिखित कारण हो सकते हैं-(1) रक्त की कमी या विटामिन ‘ए’ की कमी से आँख की दृष्टि में दोष आ जाता है। (2) दुर्घटना,मारपीट या चोट लगने के कारण आँख की दृष्टि समाप्त हो जाती है या कम हो जाती है। (3) बालकों की आँखें संक्रामक रोग के समय सावधानी नहीं बरतने से भी खराब हो जाती हैं। (4) कुछ बालक माता-पिता की अन्धता के कारण भी नेत्रहीन हो जाते हैं। (5) आँख में रोग होने या दुखने पर उचित चिकित्सा नहीं कराने पर भी आँखों की दृष्टि कमजोर हो जाती है।

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दृष्टि-दोष वाले बालकों की स्थिति

इस दोष से पीड़ित बालकों की स्थिति प्रमुख रूप से निम्नलिखित प्रकार की होती है- (1) दृष्टि-दोष से पीड़ित बालक अपने भविष्य के प्रति बहुत चिन्तित होते हैं।(2) अन्य विकलांग बालकों की तरह इनमें भी हीनता की भावना आ जाती है।(3) ऐसे बालकों में गतिशीलता कम होती है क्योंकि ये नेत्रहीन होने की स्थिति में अधिक आने-जाने का कार्य अधिक नहीं कर पाते। (4) ऐसे बालकों में विकलांग बालकों की तरह ही आत्म-विश्वास का अभाव होता है। (5) एकाकीपन अनुभव करने के कारण इनमें समायोजन की क्षमता का भी अभाव होता है।

दृष्टि-दोष से पीड़ित बालकों हेतु शिक्षा / दृष्टि बाधित बालकों की शिक्षा

इन बालकों की शिक्षा के सम्बन्ध में प्रमुख रूप से निम्नांकित बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिये-

(1) इनके शिक्षण हेतु विशिष्ट प्रशिक्षित अध्यापकों की व्यवस्था की जालीचाहिये। (2) कम दिखायी देने वाले बालकों की कक्षा में प्राकृतिक प्रकाश की पूरी व्यवस्था होनी चाहिये। कक्षा की दीवारों पर चमक नहीं होनी चाहिये। यदि इस प्रकार के बालकों की शिक्षा में व्यावसायिक निर्देशन प्रदान किया जाता है तो विशेष उपयोगी होगा। (3) अन्धे बालकों की शिक्षण व्यवस्था में सबसे प्रमुख भूमिका ब्रेललिपि की होती है। इस लिपि के द्वारा अन्धे बालक पढ़ एवं लिख सकते हैं। इनके लिये अब पर्याप्य मात्रा में ब्रेललिपि का साहित्य एवं पुस्तकें उपलब्ध हैं। ब्रेललिपि के साहित्य के द्वारा वे रिक्त काल का सदुपयोग कर सकते हैं और अध्ययन कर सकते हैं। साथ ही इस लिपि के द्वारा इनकी साहित्यिक प्रवृत्तियों का अच्छी प्रकार से विकास किया जा सकता है और ब्रेललिपि की सहायता से साहित्य की रचना भी कर सकते हैं।

(4) इनकी शिक्षा के लिये विशेष उपकरण एवं विशेष साधनों की आवश्यकता होती है। ब्रेललिपि के अतिरिक्त इनके शिक्षण में शृव्य सहायक साधनों का अधिक महत्त्व होता है; जैसे-रेडियो, टेपरिकॉर्डर तथा ऑडियो कैसेट आदि । ब्रेललिपि मशीन के अभाव में ये बालक स्टाइल्स एवं स्लेट से भी लिख सकते हैं। इनकी सहायता से इन्हें बीजगणित सिखाया जा सकता है। इम्पोण्ड डाइग्रामों द्वारा इन्हें ज्यामिति सिखायी जाती है। सामान्य गणित में इनकी मानसिक संख्या कार्य पर भी अधिक बल दिया जाता है। इन्हें सभी विषय पढ़ाये जा सकते हैं, केवल रचनात्मक कार्य नहीं कराये जा सकते। (5) इनके शिक्षण में निर्देशन दृढ़ता तथा उत्तेजना आदि सिद्धान्तों पर पर्याप्त बल दिया जाना चाहिये। (6) इनके लिये पृथक् पाठ्यक्रम, शिक्षालय अथवा कक्षाओं की व्यवस्था की जाय। इस प्रकार के शिक्षालयों को परीक्षण कक्षाएँ (Conservation classes) कहते हैं।

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(7) इनकी कक्षाओं में प्रकाश की समुचित व्यवस्था की जाय। (8) उन्हें पढ़ने का उचित आसन तथा ढंग सिखाया जाय। (9) वस्तुओं को ऐसे स्थान पर रखा जाये जहाँ से सभी बालक उसे ठीक-ठीक देख सकें। (10) इनके लिये ऐसी पुस्तकों की व्यवस्था की जाय जिनमें बड़े-बड़े अक्षर लिखे हों। पूर्णान्ध छात्रों के लिये यह व्यवस्था ब्रेललिपि में होती है। (11) जो बालक पूर्ण रूप में अन्धे हों उन्हें अन्ध विद्यालयों में भेजा जाय तथा उन्हें ब्रेललिपि से ही पढ़ाया जाय। (12) अन्धे बालकों को किसी दस्तकारी तथा गायन विद्या आदि को सिखाना चाहिये। (13) उन्हें टाइपरायटर द्वारा ‘स्पर्श विधि’ से पढ़ाया जाय जिससे उनकी आँखों पर अधिक बल न पड़े। (14) पढ़ाने में उनके साथ सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार किया जाय ताकि उन्हें पढ़ने-लिखने तथा उचित समायोजन की प्रेरणा मिले और वे अपने को हीन तथा असुरक्षित न समझें।

(15) यदि बालक की आँख में कोई रोग हो तथा उसे कम दिखायी देता हो तो उसका चिकित्सक से उपचार कराया जाय। (16) पर्याप्त प्रेरणा, उत्साह एवं आत्म-विश्वास की भावना विकसित करने में ऐसे बालकों को भी सहयोग देना चाहिये। इनके मन से निराशा, हीन भावना तथा उपेक्षा की भावना दूर की जानी चाहिये। (17) यदि ऐसे बालकों के लिये आवासीय विद्यालय हों तो एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने में कठिनाई नहीं होती। इनके विद्यालय एवं छात्रावासों में सभी सुविधाएँ होनी चाहिये। अच्छे भवन विशेषज्ञ से इनके लिये विद्यालय एवं छात्रावास निर्माण कराये जायें जिससे इनको अपने छात्रावास एवं विद्यालयों में दैनिक क्रिया करने में कठिनाई अनुभव न हो। (18) ऐसे बालकों के साथ अन्य साथियों, अध्यापकों, परिवार एवं समाज आदि का व्यवहार हँसी-मजाक का न होकर सहानुभूतिपूर्ण होना चाहिये।

दृष्टि बाधित बालकों के लिए शैक्षिक उपकरण

दृष्टि बाधित बालकों के शैक्षिक उपकरण-दृष्टि बाधित बालकों के लिये यह उपकरण उपयोग में लाये जा सकते हैं-(1) ब्रेल स्लेट, (2) ब्रेल पुस्तकें, (3) बुलेटिन बोर्ड,(4) समतल डैस्क, (5) टेलर फ्रेम, (6) ध्वनियुक्त कैसेट तथा बोलने वाली पुस्तकें, (7) ग्राफ सीट तथा टैक्सटाइल मानचित्र, (8) ठोस आकार में विभिन्न वजन, मोटाई की वस्तुएँ तथा अंक । आंशिक दृष्टि बाधित बालकों के लिये उत्तल लेंस, चश्मा, सुविधायुक्त प्रकाश लैम्प, श्वेत श्यामपट्ट, मोटी छपी पठन सामग्री उपयोगी रहती है।

इन छात्रों के लिये शिक्षण अधिगम सामग्री का आकार बड़ा होना चाहिये। इनके लिये चित्र, चार्ट एवं मॉडल बड़े आकार के प्रदर्शित किये जा सकते हैं। जो छात्र पूर्णत: अन्धे हैं उनके लिये आकृतियों का निर्माण करना चाहिये; जैसे-गणितीय आकृतियों का निर्माण करके उनको दिया जाय। ये आकृतियाँ गत्ते या लकड़ी की बनी होनी चाहिये जिससे उनको उनके आकार का ज्ञान हो जाये। इन छात्रों के लिये टेपरिकॉर्डर एवं वॉइस रिकॉर्डर का प्रयोग किया जा सकता है। इस प्रकार की शिक्षण अधिगम सामग्री से इनकी आवश्यकता पूर्ति हो सकेगी।

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दृष्टि अक्षम बालकों के लिए सहायक प्रविधियाँ

कुछ छात्रों में दृश्य अक्षमता पायी जाती है जिसके परिणामस्वरूप उनको इससे सम्बन्धित यन्त्र प्रदान किये जाते हैं; जैसे-उनको दृष्टिदोष के अनुसार चश्मा प्रदान किया जाय। यदि छात्र को बहुत ही कम दिखायी देता है तो उसके लिये वॉइस रिकॉर्डर, टेपरिकॉर्डर एवं स्क्रीन रीडर आदि उपायों से उसकी समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। अन्धे व्यक्तियों को हाथों के द्वारा छूकर विविध आकृतियों एवं अक्षरों का ज्ञान कराया जा सकता है। इस प्रकार दृष्टि अक्षमता वाले छात्रों की सहायता की जा सकती है। इसके अतिरिक्त उच्चारण सम्बन्धी छात्रों की विकलांगता के लिये टेपरिकॉर्डर एवं वीडियो रिकॉर्डिंग के द्वारा शिक्षण कार्य किया जा सकता है तथा उनको सहायता पहुँचायी जा सकती है। इस प्रकार अक्षमताओं को ध्यान में रखकर सहायक प्रविधियों का एवं यन्त्रों का प्रयोग किया जा सकता है।

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