पठन अक्षमता या अयोग्यता (डिस्लेक्सिया) / पठन अक्षमता या डिस्लेक्सिया के कारण एवं उपचार

बीटीसी एवं सुपरटेट की परीक्षा में शामिल शिक्षण कौशल के विषय समावेशी शिक्षा में सम्मिलित चैप्टर पठन अक्षमता या अयोग्यता (डिस्लेक्सिया) / पठन अक्षमता या डिस्लेक्सिया के कारण एवं उपचार आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com का टॉपिक हैं।

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पठन अक्षमता या अयोग्यता (डिस्लेक्सिया) / पठन अक्षमता या डिस्लेक्सिया के कारण एवं उपचार

पठन अक्षमता या अयोग्यता (डिस्लेक्सिया) / पठन अक्षमता या डिस्लेक्सिया के कारण एवं उपचार
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(डिस्लेक्सिया) / पठन अक्षमता या डिस्लेक्सिया के कारण एवं उपचार

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पठन अयोग्यता क्या है / डिस्लेक्सिया क्या है / mean of Dyslexia

पठन अयोग्यता बालकों में विभिन्न रूपों में दृष्टिगोचर होती है, इसके कारण बालक भाषायी दृष्टि से किसी भी विषयवस्तु के पठन में अर्थात् मौखिक अभिव्यक्ति में असफल हो जाते हैं जो कि उनके प्रस्तुतीकरण को प्रभावित करता है।

प्रो० एस. के. दुबे स्पष्ट करते हुए लिखते हैं, “पठन अयोग्यता का आशय उस भाषायी अकुशलता से है जो कि बालकों में अक्षर ज्ञान की अयोग्यता, उचित धारा प्रवाह की अयोग्यता एवं मौखिक अभिव्यक्ति की अयोग्यता से सम्बन्धित है तथा इसका प्रभाव उसके शैक्षिक उद्देश्यों को प्राप्त करने में कठिनाई उपस्थित करता है।”

इससे यह स्पष्ट होता है कि पठन अयोग्यता बालकों के मौखिक उच्चारण एवं मौन पठन से सम्बन्धित होता है तथा इस दोष के कारण बालक विषय की पाठ्यवस्तु को आत्मसात करने में कठिनाई का अनुभव करता है; जैसे- β (बीटा) को B (बी) समझने लगता है तथा d(डी) को b (बी) समझने लगता है। इससे अर्थ के अनर्थ होने की पूर्ण सम्भावना बनी रहती है।

पठन अयोग्यता के कारण / Causes of Dyslexia in hindi

शिक्षाशास्त्रियों एवं मनोवैज्ञानिकों द्वारा पठन अयोग्यता के अग्रलिखित कारण स्पष्ट किये गये हैं-

1. बोलने में कठिनाई (Difficulty in speaking)-पठन अयोग्यता बालकों के बोलने में कठिनाई के कारण होती है, जैसे अनेक बालकों में वाणी दोष पाया जाता है। तुतलाकर बोलने वाले एवं हकलाकर बोलने वाले बालकों में शब्दों का ज्ञान तो सही रूप में हो सकता है परन्तु वे अपने उच्चारण को सही रूप में प्रस्तुत नहीं कर पाते हैं।

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2. श्रवण दोष (Hearing default)-अनेक बालक श्रवण दोष के कारण भी इस प्रकार की त्रुटियाँ करते हैं क्योंकि बालक जिस प्रकार की स्थिति में श्रवण करता है उस शब्द को ठीक उसी रूप में पठन करता है; जैसे-‘कम्प्यूटर’ शब्द का उच्चारण किसी छात्र द्वारा श्रवण दोष के कारण कम्पूटर’ सुना जाता है तो वह इसका उच्चारण भी अपनी श्रवण स्थिति के अनुसार कम्पूटर’ के रूप में ही करेगा।

3. गति सम्बन्धी दोष (Motion related defaulty) -पठन अयोग्यता का कारण विभिन्न प्रकार की ज्ञानेन्द्रियों में उचित गति का अभाव भी होता है। जैसे अनेक बालकों की जीभ भारी होती है या उसमें ‘तुतना होता है जिसके कारण बालक सही प्रकार का उच्चारण नहीं कर पाता है अर्थात् जब जीभ की गति सामान्य रूप में नहीं होती है तथा उच्चारण सम्बन्धी अयोग्यता होने लगती है।

4. स्मृति दोष (Memory default)– बालक किसी एक शब्द को अच्छी प्रकार से पढ़ रहा है तथा उसमें वह किसी प्रकार की कठिनाई का अनुभव नहीं कर रहा है परन्तु उसी शब्द को बालक से दूसरे दिन पठन के लिये कहा जाता है तो वह उसको पढ़ पाने में सक्षम नहीं होता है अर्थात् वह उस शब्द को भूल जाता है। इस प्रकार पठन अयोग्यता का कारण स्मृति दोष को भी माना जाता है।

5. अंगों में समन्वय का अभाव (Lackofco-ordination inorgans)- पठन योग्यता के लिये जीभ तन्त्रिका तन्त्र एवं श्रवण इन्द्रियों का उचित समन्वयन होना आवश्यक होता है। जब यह समन्वयन उचित रूप में नहीं होता है तो बालकों में पठन अयोग्यता विकसित हो जाती है।

6. मन्दबुद्धिता (Mentally retiredness)-मन्दबुद्धिता के कारण भी बालकों को बार-बार वर्णाक्षर एवं शब्दों का ज्ञान कराने के बाद भी उनमें पठन अयोग्यता दृष्टिगोचर होती है। इस प्रकार इस अयोग्यता का कारण छात्रों में बुद्धिलब्धि का कम होना माना जाता है।

7. ध्वनि सम्बन्धी ज्ञान का अभाव (Lack of phonetic related knowledge)- अनेक अवसरों पर छात्रों में ध्वनि सम्बन्धी वर्गीकरण एवं ज्ञान का अभाव पाया जाता है। वे स्वरों के विभाजन को उचित रूप में आत्मसात् नहीं कर पाते। इस कारण वे ‘शक्ति’ को ‘शक्ती’ तथा ‘स्त्रियों’ को ‘स्त्रीयों’ उच्चारण करते हैं।

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8. भाषायी ज्ञान का अभाव (Lack of language knowledge)-अनेक अवसरों पर बालकों में भाषायी ज्ञान का अभाव पाया जाता है। छात्रों को भाषा के उच्चारण सम्बन्धी नियम ज्ञात नहीं होते। इसके परिणामस्वरूप छात्रों में पठन अयोग्यता का विकास होता है। ‘शं’ एवं’शम्’ में अन्तर न करते हए छात्रों द्वारा इनका उच्चारण करना इसका उदाहरण है।

पठन अयोग्यता का उपचार / डिस्लेक्सिया के उपचार

पठन अयोग्यता से युक्त छात्रों के बारे में सर्वप्रथम शिक्षक को जानना चाहिये। इसके बाद इस अयोग्यता के कारणों का पता लगाना चाहिये तथा अन्तिम रूप में उन कारणों को समाप्त करने का प्रयास करना चाहिये। प्रारम्भिक रूप में इन कारणों को चिकित्सकीय उपचार मात्र से ही समाप्त किया जा सकता है जो कि शिक्षक का प्रथम दायित्व है। चिकित्सकीय उपायों के बारे में शिक्षक अपनी सलाह प्रदर्शित कर सकता है। इसके अतिरिक्त प्रारम्भिक रूप में पठन अयोग्यता के कारणों के निवारण हेतु शिक्षक को निम्नलिखित उपाय करने चाहिये-

(1) जो बालक बोलने में तुतलाता है या हकलाता है तो शिक्षक को बालक में आत्मविश्वास जागृत करना चाहिये क्योंकि अनेक अवसरों पर आत्मविश्वास के कारण भी बालकों में पठन अयोग्यता विकसित होती है जिसे पृष्ठपोषण के माध्यम से समाप्त किया जा सकता है।

(2) वर्तनीगत दोषों के कारण छात्रों को होने वाली असुविधा को शिक्षक द्वारा सर्वप्रथम पहचानना चाहिये तथा व्यक्तिगत रूप से छात्रों के लिये उसका समाधान प्रस्तुत करना चाहिये क्योंकि वर्तनीगत समस्याएँ विभिन्न छात्रों में व्यक्तिगत रूप से पायी जाती हैं।

(3) वर्णमाला के क्रम का ज्ञान भी शिक्षक को अनिवार्य रूप से छात्रों को कराना चाहिये क्योंकि भाषायी नियम इस क्रम के आधार पर ही निर्मित होते हैं; जैसे–हिन्दी भाषा के नियम क वर्ग, ट वर्ग एवं त वर्ग क्रम के आधार पर ही निश्चित होते हैं। अत: वर्णमाला क्रम का ज्ञान भी छात्रों को देना आवश्यक होता है।

(4) शिक्षक का यह प्रयास होना चाहिये कि वह बालकों को पठन के साथ-साथ शब्दों के अर्थ का भी ज्ञान कराये । जिससे छात्रों के पठन में उचित आरोह एवं अवरोह विकसित हो सके। जिससे छात्र पूर्ण मनोयोग से पठन कार्य को सम्पन्न कर सकें तथा उनकी पठन अयोग्यता दूर हो सके।

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(5) छात्रों की श्रवण अक्षमता को दूर करने के लिये शिक्षक द्वारा इस प्रकार के छात्रों को श्रवण यन्त्र उपलब्ध कराने चाहिये जिससे कि छात्रों को शब्द उचित रूप में सुनाई पड़ें तथा उनके द्वारा इन शब्दों का पठन भी शुद्ध रूप में हो।

(6) छात्रों की पठन क्षमता को उपयुक्त एवं शुद्ध बनाने के लिये शिक्षक को उचित गति से पठन का अभ्यास कराना चाहिये क्योंकि शीघ्र गति से पठन भी छात्रों में पठन सम्बन्धी दोष उत्पन्न करता है।

(7) छात्रों में यदि वाणी दोष की उचित चिकित्सा सम्भव है तो शिक्षक द्वारा अभिभावक एवं चिकित्सक के सहयोग से वाणी दोषों की उचित चिकित्सा करानी चाहिये जिससे वाणी दोष उत्पन्न न हो सके और यदि किसी छात्र में दोष है तो वह दूर हो सके।

(8) मन्दबुद्धि छात्रों में पठन योग्यता विकसित करने के लिये शिक्षक को उनकी रुचि एवं योग्यता के अनुसार उन्हें भाषायी नियमों का ज्ञान कराना चाहिये जिससे छात्रों में पठन अयोग्यता को समाप्त किया जा सके।

(9) शिक्षक को भाषायी शिक्षण को रुचिपूर्ण बनाने के लिये शिक्षण अधिगम सामग्री का प्रयोग उचित रूप में करना चाहिये जिससे रुचिपूर्ण शिक्षण का विकास सम्भव हो सके तथा छात्रों को पठन दोष से बचाया जा सके।

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