भारतीय सिनेमा पर निबंध | essay on indian cinema in hindi | सिनेमा पर निबंध हिंदी में

समय समय पर हमें छोटी कक्षाओं में या बड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं में निबंध लिखने को दिए जाते हैं। निबंध हमारे जीवन के विचारों एवं क्रियाकलापों से जुड़े होते है। आज hindiamrit.com  आपको निबंध की श्रृंखला में  भारतीय सिनेमा पर निबंध | essay on indian cinema in hindi | सिनेमा पर निबंध हिंदी में प्रस्तुत करता है।

Contents

भारतीय सिनेमा पर निबंध | essay on indian cinema in hindi | सिनेमा पर निबंध हिंदी में

इस निबंध के अन्य शीर्षक / नाम

(1) चलचित्र का समाज पर प्रभाव पर निबंध
(2) सिनेमा : वरदान और अभिशाप पर निबंध
(3) चलचित्र : लाभ-हानि पर निबंध
(4) चलचित्र और युवा पीढ़ी पर निबंध


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पहले जान लेते है भारतीय सिनेमा पर निबंध | essay on indian cinema in hindi | सिनेमा पर निबंध हिंदी में की रूपरेखा ।

निबंध की रूपरेखा

(1) प्रस्तावना
(2) सिनेमा एक  मनोरंजन का साधन
(3) सिनेमा के सामाजिक लाभ
(4) सिनेमा की  सामाजिक आलोचना
(5) सिनेमा के दुष्प्रभाव
(6) सिनेमा से अन्य हानियाँ
(7) उपसंहार

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प्रस्तावना

चलचित्र का विचित्र आविष्यकार आधुनिक समाज के दैनिक उपयोग, विलास और उपभोग की वस्तु है।

हमारे सामाजिक जीवन में चलचित्र ने इतना महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर लिया है कि उसके बिना सामाजिक जीवन कुछ अधूरा-सा मालूम पड़ता है।

सिनेमा देखना जनता के जीवन की भोजन और पानी की तरह दैनिक क्रिया हो गयी है। प्रतिदिन शाम को चित्रपट गृहों के सामने एकत्रित जनसमुदाय, नर-नारियों को समवाय देख कर चित्रपट की जनप्रियता तथा उपयोगिता का अनुमान लगाया जा सकता है।

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मनोरंजन सिनेमा का मुख्य प्रयोजन है, परन्तु मनोरंजन के अतिरिक्त भी जीवन में इसका बहुत महत्त्व है। इसके अनेक लाभ हैं।

“आविष्कारों की धरती पर, मानव ने नव गौरव पाया।
सजग, सवाक, रंगीली झाँकी,चलचित्रों की अद्भुत छाया॥
आलोचक, निर्देशक भी औ,पथदर्शक चहुँदिशि यश फैला।
किन्तु पतन की अनल-लपट,औ नव-समाज के लिए विषैला।।”


सिनेमा एक मनोरंजन का साधन 

आधुनिक काल में मानव जीवन बहुत व्यस्त हो गया है। उसकी आवश्यकताएँ बहुत बढ़ गयी हैं। व्यस्तता के इस युग में मनुष्य के पास मनोरंजन का समय नहीं है।

यह सभी जानते हैं कि मनुष्य भोजन के बिना चाहे कुछ समय तक स्वस्थ रह जाये किन्तु मनोरंजन के बिना यह स्वस्थ नहीं रह सकता है।

चित्रपट मनुष्य की इस महती आवश्यकता की पूर्ति करता है। यह मानव जीवन की उदासीनता और खिन्नता को दूर कर ताजगी और नवजीवन प्रदान करता है।

दिनभर कार्य में व्यस्त, थके को सिनेमा हाल में बैठकर आनन्दमग्न हो जाते हैं और दिनभर की थकान को भूल जाते हैं। चित्रपट पर हम सिनेमा हाल में बैठे दिल्ली के जुलूस, हिमालय के हिमाच्छादित शिखर, समुद्र के अतल-गर्भ के दृश्य तथा हिंसक वन्य जन्तु आदि वे चीजें देख सकते हैं जिनको देखने की हम कल्पना भी नहीं कर सकते। इससे मनोरंजन तो होता ही है, हमारे ज्ञान में भी पर्याप्त वृद्धि होती है।






सिनेमा (चित्रपट) के सामाजिक लाभ

मनोरंजन के अतिरिक्त सिनेमा से समाज को और भी अनेक लाभ होते हैं। यह शिक्षा का अत्युत्तम साधन है। यह निम्न श्रेणी के लोगों का स्तर ऊँचा उठाता है और उच्च श्रेणी के लोगों को उचित स्तर पर लाकर विषमता की भावना को दूर करता है।

यह कल्पना को वास्तविकता का रूप देकर समाज को उन्नत करने का प्रयास करता है। इतिहास भूगोल विज्ञान तथा मनोविज्ञान आदि की शिक्षा का यह उत्तम साधन है ।

ऐतिहासिक-घटनाओं को पर्दे पर सजीव देखकर जैसे सरलता से थोड़े समय में जो ज्ञान हो सकता है वह ज्ञान पुस्तकों के पढ़ने से नहीं हो सकता।

भिन्न-भिन्न प्रदेशों के दृश्य सिनेमा पर साक्षात् देखकर बहाँ की प्राकृतिक रचना, जनता का रहन-सहन तथा उद्योगों आदि का जैसा ज्ञान हो सकता है वह भूगोल की पुस्तक पढ़ने से कदापि सम्भव नहीं है।

इसी प्रकार अन्य विषयों की शिक्षा भी सिनेमा द्वारा सरलता से दी जा सकती है।

सिनेमा के पर्दे पर भिन्न-भिन्न स्थानों, भिन्न-भिन्न जातियों तथा विविध विचारों की जनता के रहन-सहन, रीति-रिवाज आदि को देखकर हमारा ज्ञान बढ़ता है, सहानुभूति की भावना विस्तृत होती है तथा हमारा दृष्टिकोण विकसित होता है।

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इस प्रकार चित्रपट मनुष्यों को एक-दूसरे के निकट लाता है। इतना ही नहीं, जागृति के समान शिक्षाप्रद चित्रों से एक उच्च शिक्षा प्राप्त होती है।

अमर ज्योति,सन्त तुलसीदास, सन्त तुकाराम आदि कुछ ऐसे चित्र हैं जो समाज को पतन से उत्थान की ओर ले जाते हैं।



सिनेमा की सामाजिक-आलोचना | सिनेमा से सामाजिक हानियां


सिनेमा सामाजिक आलोचक के रूप में भी सेवा करता है। जब यह उत्तम तथा निकृष्ट घटनाओं अथवा व्यक्तियों के चरित्रों की तुलना करता है तब यह निश्चित ही जनता में उच्चता की भावना जाग्रत करता है।

सामाजिक कुप्रभावों तथा दोषों की जड़ उखाड़ने में चित्रपट महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकता है। यह समाज की कुप्रथाओं को पर्दे पर प्रस्तुत करता है और जनता के हृदय में उनके प्रति घृणा का
भाव पैदा करता है।

हम चित्रपट पर दहेज, बाल-विवाह, पद्दा प्रथा तथा मद्यपान से होने वाले दुष्परिणामों को देखते हैं तो हमारे मन में उनके प्रति घृपा की भावना पैदा हो जाती है।

हम उन प्रथाओं को समूल नष्ट करने की शपथ लेने को तैयार हो जाते हैं। इस प्रकार चित्रपट समाज की आलोचना करता है और एक हुए नर-नारी समाज सुधारक का काम भी करता है।






सिनेमा (चित्रपट) के दुष्परिणाम

प्रत्येक वस्तु गुणों के साथ-साथ दोष भी रखती है। सिनेमा में जहाँ अनेक गुण तथा लाभ देखने को मिलते हैं वहाँ उससे हानियाँ भी कम नहीं होती हैं।

आजकल जितने भी चित्र तैयार हो रहे हैं वे अधिकतर प्रेम और वासनामय हैं। इनमें वासनात्मक प्रेम एवं यौन सम्बन्धों का अश्लील चित्रण होता है जिनका देश के युवकों तथा युवतियों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है।

कालेज की लड़कियाँ तथा लड़के सिनेमा के भददे अश्लील गाने गाते हुए सड़को पर दिखाई पड़ते हैं।

इन गानों के दुष्प्रभाव से युवक समाज का मानसिक तथा आत्मिक पतन होता है। वे गन्धर्व विवाह जैसे कार्य करने को तत्पर होने लगते है।




सिनेमा से अन्य हानियाँ

इसके अतिरिक्त सिनेमा से और भी हानियाँ हो सकती हैं। जब यह व्यसन के रूप में देखा जाता है – धन, समय तथा शक्ति का अपव्यय होता है।

जनता के मास्तिष्क में विषैली भावना पैदा करने तथा गुमराह करने में भी सिनेमा का दुरुपयोग किया जा सकता है ।

हिटलर ने सिनेमा की इसी शक्ति का प्रयोग कर जर्मनों की जनता को भड़काया था ।






उपसंहार

हमे इस बात का स्मरण रखना चाहिए कि कोई भी वस्तु स्वय न अच्छी होती है, न बुरी। वस्तु का अच्छा या बुरा होना उसके उपयोग पर निर्भर करता है ।

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यदि चित्रपट का विचारपूर्वक सही प्रयोग किया जाये तो मानव जाति के लिए यह बहुत लाभदायक हो सकता है तथा इसके सब दोषों से बचा जा सकता है।

सेन्सर बोर्ड को चाहिए कि वह अच्छे, शिक्षाप्रद तथा आदर्श चित्र प्रस्तुत करने का प्रयत्न करे।


चित्रों में किसी महापुरुष को नायक होना चाहिए क्योंकि बच्चे स्वभाव से ही नायक का अनुसरण किया करते हैं। भद्दे, अश्लील तथा बुरा प्रभाव डालने वाले चित्रों पर कानूनी रोक लगायी जानी चाहिए।

इस प्रकार सिनेमा समाज के लिए तथा देश के लिए एक हितकारी और लाभदायक साधन हो सकता है।


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