राष्ट्रीय विकास में विद्यार्थियों का योगदान पर निबंध | राष्ट्र निर्माण में युवा शक्ति का योगदान पर निबंध

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Contents

राष्ट्रीय विकास में विद्यार्थियों का योगदान पर निबंध | राष्ट्र निर्माण में युवा शक्ति का योगदान पर निबंध

इस निबंध के अन्य शीर्षक / नाम

(1) राष्ट्र की प्रगति में युवा पीढ़ी की भूमिका पर निबंध
(2) राष्ट्र निर्माण में युवाशक्ति का योगदान पर निबंध
(3) छात्र जीवन तथा राष्ट्रीय दायित्व पर निबंध
(4) राष्ट्र के विकास में छात्रों का योगदान पर निबंध

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राष्ट्रीय विकास में विद्यार्थियों का योगदान पर निबंध | राष्ट्र निर्माण में युवा शक्ति का योगदान पर निबंध

पहले जान लेते है राष्ट्रीय विकास में विद्यार्थियों का योगदान पर निबंध,राष्ट्र निर्माण में युवा शक्ति का योगदान पर निबंध की रूपरेखा

(1) प्रस्तावना

(2) देश के भावी कर्णधार

(3) विद्यार्थी के कर्तव्य

(4) आत्म संस्कार की आवश्यकता

(5) उपसंहार

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राष्ट्रीय विकास में विद्यार्थियों का योगदान पर निबंध | राष्ट्र निर्माण में युवा शक्ति का योगदान पर निबंध

प्रस्तावना

भारत एक महान् देश है। यह महापुरुषों का देश है, बीरांगनाओं की भूमि है। यह राम, कृष्ण, बुद्ध और गांधी की जन्मभूमि है। सीता, सावित्री और गार्गी की आवासस्थली है।

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यह ऋषि-मुनियों का,महामनीषियों, सतियों और पतिव्रताओं, बीरों और देशभक्तों और वीर-प्रसविनी वीरांगनाओं का देश है। भारतीय संस्कृति महान् और अजर-अमर है। इस देश का अतीत अत्यन्त गौरवमय है। उत्थान के बाद पतन और पतन के बाद उत्थान प्रकृति का नियम है।

एक विशाल गौरवमय उत्थान के बाद भारत पर भी आपत्तियों की घनघोर घटा छायी। देश का आंकाश अन्धकारमय हो गया। भारत माता परतन्त्रता के पाश में जकड़ी गयी किन्तु भारत के वीर सपूत मातृभूमि की इस दीन-हीन दशा को कब तक देखते ? वे उठ खड़े हुए।

देशप्रेम कीबलि-वेदी को अपने खून से रंगकर स्वतन्त्रिता-संग्राम के महान् यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति चढ़ाकर, उन्होंने अपनी वन्दनीय सर्वथा अभिनन्दनीय मातृभूमि के बन्धन काटे, और उसे पुनः स्वतन्त्र कर अपनी कर्तव्यनिष्ठा तथा देशप्रेम का परिचय दिया।


देश के भावी कर्णधार 

भारत एक प्रभुसत्ता सम्पन्न राष्ट्र है। देश की वर्तमान प्रगति को देखकर यह आशा की जा सकती है कि अचिर भविष्य में भारत अपने उस सुदूर अतीत के गौरव को पुनः प्राप्त कर लेगा और इसमें भी कहीं दो मत नहीं हैं कि देश के उस उज्ज्वल भविष्य का एकमात्र आशा-केन्द्र आज के विद्यार्थी हैं।

नवभारत के निर्माता मातृभूमि के भावी त्राता, देश के भाग्य विधाता वे छात्र हैं जो आज स्कूलों और कालेजों की चारदीवारी के अन्दर अपने सामाजिक जीवन के प्रासाद की नींव जमा रहे हैं। भारत माता निर्निमेष दृष्टि से उनकी ओर निहार रही है।

“ओ भारत केभावी जीवन की नैया के कर्णधार।
भारत के जन-गण उन्नायक! ओ भविष्य के शिलाधार।
ओ भारत के छात्र ! देश के प्राण ! मातृभूमि की सुयोग्य सन्तान सावधान विचलित मत होना, तुम्हें बनाना देश महान ।”




विद्यार्थी के कर्तव्य

इतना बड़ा उत्तरदायित्व जिनके कन्धों पर आने वाला है, उन विद्यार्थियों को कितना सबल, सशक्त और शिक्षित होना चाहिए, यह कहने की आवश्यकता नहीं है।

आधार जितना दृढ़ और विशाल होगा, उतना ही मजबूत और उत्तम प्रासाद बन सकेगा। उन्हें अपने जीवन का सर्वांगीण विकास करना होगा।

देश के प्रत्येक बालक और बालिका का यह कर्तव्य है कि व्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए उत्तम शिक्षा के द्वारा बौद्धिक तथा मानसिक विकास करने के लिए प्रयत्नशील हो; शारीरिक शिक्षा, व्यायाम तथा परिश्रम के द्वारा हृष्ट-पुष्ट व बलवान बने; महापुरुषों के जीवन-चरित्र से शिक्षा तथा प्रेरणा प्राप्त करे।

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पहले अपना निर्माण करके फिर देश और जाति का कल्याण करने में विद्यार्थी सफल हो सकता है। विद्यार्थी का लक्ष्य सदा ऊँचा होना चाहिए। कहना न होगा कि आदर्श नागरिक के निर्माण के कार्य में माता-पिता तथा शिक्षकों का भी महान् दायित्व है।

यदि वे उत्तम शिक्षा की व्यवस्था करें, बालक-बालिकाओं के सामने महान् आदर्श प्रस्तुत करें तो निःसन्देह इन्हीं छात्रों में से बुद्ध और गांधी जैसे महात्मा, व्यास, वाल्मीकि और तुलसी जैसे कवि, राणा प्रताप और शिवाजी जैसे वीर, नेताजी सुभाषचन्द्र और भगतसिंह जैसे देशभक्त और लक्ष्मीबाई जैसी वीरांगनाओं का उदय होगा।


आत्मसंस्कार की आवश्यकता

स्वतन्त्र भारत के विद्यार्थी को आत्मसंस्कार करना होगा। जो रोग
नए उत्पन्न हो गये हैं, उन्हें दूर करना होगा। आज का विद्यार्थी अनुशासनहीन होता जा रहा है। देश की संस्कृति और आदर्शों की रक्षा के लिए अनुशासन का होना आवश्यक है।

अनुशासन अभाव में स्वतन्त्रता की रक्षा सम्भव नहीं है। यदि आज का विद्यार्र्थी अनुशासनहीन होगा तो निःसन्देह कल सारे समाज से अनुशासन समाप्त हो जायेगा। तब क्या होगा इस देश का ? इस प्रकार की कल्पना भी दुःखद प्रतीत होती है।

इसके अतिरिक्त विद्यार्थी अपने कार्यक्षेत्र से आगे बढ़कर राजनीति में भाग लेने लगे हैं । यह विद्यार्थी और देश, दोनों लिए घातक सिद्ध होगा। संस्कार के इस कार्य में शिक्षकों और अभिभावको की भूमिका महत्त्वपूर्ण है।

विद्यार्थी को सुयोग्य मार्गदर्शकों की आवश्यकता है । देश की वर्तमान सरकार तथा प्रौढ़ समाज को चाहिए कि वे देश के इन भावी संरक्षकों के निर्माण पर पूरा ध्यान दें। इनकी शिक्षा-दीक्षा की समुचित व्यवस्था करें। तभी आदर्श समाज का निर्माण हो सकेगा|

देश का प्रत्येक विद्यार्थी भावी भारत के युवक समाज का एक महत्वपूर्ण अंग है। वह उसकी एक ठोस इकाई है।


उपसंहार

स्वतन्त्र भारत के प्रत्येक विद्यार्थी का यह परम पुनीत कर्तव्य है कि वह अनुशासनप्रिय व ज्ञान का जिज्ञासु बने। उसे इस बात का सतत ध्यान रखना चाहिए कि वह कुछ होने से पहले विद्यार्थी है।

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विद्या प्राप्त करना ही उसका एकमात्र प्रयोजन है। उसे अधिक से अधिक ज्ञान का अर्जन करना है। विद्या प्राप्ति, शारीरिक, मानसिक तथा बौद्धिक-शक्तियों का विकास एवं चरित्र-निर्माण करना ही उसका प्रथम कर्तव्य है। स्वतन्त्र भारत में अनुशासन के बल पर ही छात्र उन्नति करेगा तथा देश का भविष्य उज्ज्वल बनायेगा।

लोकनायक पं० जवाहरलाल नेहरू का विचार था-

“छात्रों की जो अतिरिक्त शक्ति है, उसे दूसरों साधनों की ओर मोड़ दिया जाये तो अनुशासनहीनता की सभ्यता ही समाप्त हो जायेगी।”

क्योंकि- “अनुशासन है जनक गुणों का मानव को विकसित करता।
सेवा त्याग साधना संयम से, नर-नर को नियमित करता।॥”


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