लेखन अक्षमता या अयोग्यता (डिसग्राफिया) / लेखन अक्षमता या डिसग्राफिया के कारण एवं उपचार

बीटीसी एवं सुपरटेट की परीक्षा में शामिल शिक्षण कौशल के विषय समावेशी शिक्षा में सम्मिलित चैप्टर लेखन अक्षमता या अयोग्यता (डिसग्राफिया) / लेखन अक्षमता या डिसग्राफिया के कारण एवं उपचार आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com का टॉपिक हैं।

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लेखन अक्षमता या अयोग्यता (डिसग्राफिया) / लेखन अक्षमता या डिसग्राफिया के कारण एवं उपचार

लेखन अक्षमता या अयोग्यता (डिसग्राफिया) / लेखन अक्षमता या डिसग्राफिया के कारण एवं उपचार
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(डिसग्राफिया) / लेखन अक्षमता या डिसग्राफिया के कारण एवं उपचार

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लेखन अयोग्यता किसे कहते है / डिसग्राफिया क्या है / mean of Dysgraphia

लेखन सम्बन्धी अयोग्यता को डिसग्रेफिया के नाम से जाना जाता है। इस अयोग्यता के कारण छात्र निश्चित लेखन नियमों का पालन न करते हुए खराब लेखन करने लगता है। इसमें छात्रों द्वारा किया गया लेखन मापदण्डों के आधार पर खरा नहीं उतरता है इसलिये इसे एक दोष माना जाता है। इस प्रकार के दोष के कारण भाषायी विकास में अवरोध उत्पन्न होता है। लेखन सम्बन्धी अयोग्यता को स्पष्ट करते हुए प्रो, एस. के. दुबे लिखते “लेखन अयोग्यता का आशय उस अमानकीय लेखन की व्यवस्था से है जो अक्षरों की अनुचित बनावट, अनुचित शब्द दूरी एवं शिरो रेखा के अभाव को प्रदर्शित करता है तथा सुलेख की श्रेणी में नहीं आता है।”

इस प्रकार लेखन अयोग्यता बालकों में अनेक रूपों में देखने को मिलती है। सामान्य रूप से शिक्षक का प्रथम दायित्व यह होता है कि अपनी कक्षा के खराब लेखन को सुधारने के लिये वह पहचान करे कि उसकी कक्षा में कौन-कौन से छात्र खराब लेखन प्रक्रिया को सम्पन्न करते हैं। जो छात्र खराब लेखन करते हैं, उनकी पहचान करने के लिये शिक्षक को बालकों के लेखन का मूल्यांकन करना चाहिये तथा लक्षणों के आधार पर उनको श्रेणी में विभाजित करना चाहिये। यदि बाल्यावस्था में शिक्षक द्वारा छात्रों की लेखन अयोग्यता पर ध्यान नहीं दिया जाता है तो यह दोष स्थायी रूप धारण कर लेता है तथा इसको सुधारने कठिनाई का सामना करना पड़ता है।

लेखन अयोग्यता के कारण / Causes of Dysgraphia in hindi

लेखन अयोग्यता के प्रमुख कारणों को निम्नलिखित रूप में प्रदर्शित किया जा सकता है-

1. कलम की पकड़ (Catching of pen)-लेखन अयोग्यता का प्रमुख कारण  छात्रों को प्रारम्भ से ही पैन का पकड़ना न सिखाया जाना माना जाता है। यदि कोई भी बालक गलत विधि से कलम को पकड़ता है तो उसमें लेखन के खराब होने की पूर्ण सम्भावना होती है। अत: कलम को एक निश्चित नियम के अन्तर्गत ही छात्र को पकड़ना चाहिये अन्यथा उसके लेखन में दोष उत्पन्न होने की प्रबल सम्भावना बनी रहती है।

2. मेज पर सिर रखकर लिखना (Writing with head down on the table)- सामान्य रूप से विद्यालयों में पाया जाता है कि अनेक छात्र लिखते समय अपने सिर को मेज पर रखकर तथा उत्तर पुस्तिका को उसके समान्तर रखकर लेखन कार्य करते हैं। इस प्रकार का लेखन कार्य दोषयुक्त माना जाता है। इस प्रकार के लेखन में सुलेख के गुण होने की सम्भावना समाप्त हो जाती है तथा लेखन कार्य पूर्णत: दोषयुक्त हो जाता है। इससे छात्र लेखन अयोग्यता से ग्रसित हो जाता है।

3. कलम की मजबूत पकड़ (Tight catching of pen)-अनेक छात्रों को देखा जाता है कि वह कलम को इतने मजबूत ढंग से पकड़ लेते हैं कि उसको लेखन के अनुसार अर्थात् शब्दों की बनावट के अनुसार हिलाने-डुलाने में कठिनाई होती है। इसके परिणामस्वरूप अक्षर अपने उचित आकार में नहीं बन पाते तथा छात्रों का लेखन खराब हो जाता है। इससे छात्रों में लेखन अयोग्यता का दोष उत्पन्न हो जाता है।

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4. कलम से लिखने का ढंग (Method of writing with pen)-पेन से लिखने का ढंग यदि गलत है तो यह भी लेखन अयोग्यता का कारण बनता है। सामान्य रूप से पेन को लिखते समय 50 से 60° तक कोण पर सुविधानुसार रखकर लिखना चाहिये। यह कोई निश्चित कोण नहीं है फिर भी 90° का कोण बनाते हुए पेन को पकड़कर नहीं लिखना चाहिये क्योंकि इससे छात्रों के लेखन के खराब होने की पूर्ण सम्भावना बनी रहती है। अत: पेन को उचित ढंग से पकड़ना तथा उसकी नोंक का उचित प्रयोग करना छात्रों को सिखाना चाहिये जिससे उनका लेखन खराब होने की सम्भावना न हो।

5. अनावश्यक चिह्न (U:.necessary seign)-अनेक अवसरों पर छात्रों में यह प्रवृत्ति भी पायी जाती है कि वे शब्द को आरम्भ करने पर चिह्नलगा देते हैं तथा शब्द के अन्त में भी चिह्न लगा देते हैं। इस प्रकार का कार्य जब उनकी आदत में आ जाता है तो यह उनके लेखन को खराब कर देता है जबकि छात्र द्वारा यह कार्य अपने लेखन को प्रभावी बनाने के लिये किया जाता है। ये चिह्न अनेक अवसरों पर अर्थ का अनर्थ कर देते हैं तथा पढ़ने में असुविधा उत्पन्न करते हैं।

6. दृष्टि दोष (Seight default)-ऐसे छात्र जो दृष्टि दोष से ग्रस्त होते हैं, वे अक्षरों के बनाने के क्रम को एवं शिरोरेखा को सीधी करने में असमर्थ होते हैं। इससे उनके लेखन में दोष उत्पन्न हो जाता है तथा वे लेखन अयोग्य बालकों की श्रेणी में सम्मिलित कर लिये जाते हैं। इन छात्रों को तो यह अनुभव होता है कि उनके द्वारा की जाने वाली लेखन क्रिया उचित रूप में प्रम्पन्न हो रही है परन्तु वास्तविक रूप में यह त्रुटिपूर्ण ढंग से सम्पन्न होती है।

7. श्यामपट्ट लेखन प्रक्रिया (black board writing process)-श्यामपट्ट लेखन प्रक्रिया के कारण भी छात्रों में लेखन अयोग्यता विकसित होती है; जैसे-छात्र जबश्यामपट्ट पर से किसी विषयवस्तु की नकल करते हैं या किताब से नकल करते हैं तो उनका सम्पूर्ण ध्यान किताब या श्यामपट्ट की ओर चला जाता है तथा उत्तर-पुस्तिका पर बनाये जाने वाले अक्षर एवं शब्दों का क्रम पूर्णत: परिवर्तित हो जाता है। अत: इससे छात्रों का लेखन खराब हो जाता है तथा धीरे-धीरे यह आदत उनमें विकसित हो जाती है।

8. मूल्यांकन का अभाव (Lack of evaluation)-यदि शिक्षक द्वारा छात्रों की लेखन प्रक्रिया का उचित रूप में मूल्यांकन नहीं किया जाता तथा उनको सुलेख सम्बन्धी उचित निर्देशन प्रदान नहीं किया जाता तो छात्र यह मान लेते हैं कि उनका लेखन कार्य अच्छा है। इस प्रकार उनमें खराब लेखन की आदत परिपक्व रूप धारण कर लेती है जिसे बाद में दूर करने में कठिनाई होती है।

9. वक्र लेखन (Curved writing)-अनेक अवसरों पर अंग्रेजी भाषा में छात्रों को शिक्षक द्वारा वक्र लेखन का कार्य सिखाया जाता है। इसके अभ्यास के कारण छात्र हिन्दी भाषा में भी वक्र लेखन प्रारम्भ कर देते हैं जो कि एक दोष के रूप में माना जाता है अर्थात् जो बक्र लेखन अंग्रेजी भाषा में उचित माना जाता है, वही लेखन हिन्दी भाषा में दोषपूर्ण माना जाता है। अत: वक्र लेखन भी हिन्दी भाषा की दृष्टि से छात्रों में लेखन अयोग्यता उत्पन्न करता है।

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10. तीव्र गति से लेखन (Writing with speed)-अनेक अवसरों पर छात्र तीव्र गति से लेखन कार्य प्रारम्भ कर देता है; जैसे-अध्यापक द्वारा तीव्र गति से श्रुत लेख बोलना, तीव्र गति लेखन के लिये शिक्षक द्वारा पृष्ठपोषण प्रदान करना एवं समय की बचत करने के लिये तीव्र लेखन करना आदि। इस शीघ्रता के कारण छात्रों द्वारा अधूरे शब्द लिखे जाते हैं तथा शिरोरेखा भी सीधी नहीं होती। अत: छात्रों द्वारा लिखे अक्षरों की बनावट विकृत हो जाती है। इस प्रकार तीव्र गति से लेखन भी इस समस्या को उत्पन्न करने का प्रमुख कारण है।

11. ध्यान का अभाव (Lackof attention)-अनेक अवसरों पर छात्रों का ध्यान या मन किसी अन्य स्थान पर होता है या वे किसी अन्य साथी से बात कर रहे होते हैं, ऐसी स्थितियों में किया गया लेखन कार्य सुलेख की श्रेणी में नहीं आता। इन स्थितियों में किये गये लेखन कार्य में अक्षरों की बनावट, शब्दगत दूरी एवं शिरोरेखा आदि पर कुप्रभाव पड़ता है और लेखन कार्य दोषयुक्त हो जाता है।

12. लेखन स्थिति (Writing situation)- यदि छात्र अशान्त वातावरण में तथा अनुपयुक्त स्थिति में लेखन कार्य करता है तथा उसको उचित निर्देशन नहीं मिलता है तो उसका लेखन दोषयुक्त हो जाता है। खराब मनोस्थिति के कारण भी छात्र अपने लेखन कोखराब कर लेता है। क्योंकि उसका सम्पूर्ण ध्यान लेखन व्यवस्था पर केन्द्रित नहीं हो पाता।

लेखन अयोग्यता का उपचार / Remedy of Dysgraphia in hindi

लेखन अयोग्यता को दूर करने सम्बन्धी उपचारों को निम्नलिखित रूप में स्पष्ट किया जा सकता है –

(1) छात्रों में उचित ढंग से कलम पकड़ने की आदत विकसित करनी चाहिये जिससे कि कोई भी छात्र कलम को अनुचित ढंग से पकड़ने के कारण लेखन अयोग्यता के दोष से ग्रसित न हो सके।

(2) छात्रों को अक्षरों के आकार से प्रारम्भिक रूप में ही परिचित करा देना चाहिये तथा उनके लिखने का ढंग भी छात्रों को बताना चाहिये जिससे वे प्रत्येक अक्षर के आकार से परिचित हो सकें तथा इस लेखन अयोग्यता के दोष से मुक्त रहें।

(3) समय-समय पर छात्रों को उचित दिशा निर्देशन मिलना चाहिये जिससे उनको अपनी त्रुटियों का ज्ञान हो सके तथा अपने लेखन में सुधार करते हुए लेखन अयोग्यता के दोष से दूर रह सकें।

(4) शिक्षक द्वारा छात्रों को वर्तनी सम्बन्धी ज्ञान उचित रूप से प्रारम्भ में ही प्रदान करना चाहिये जिससे कि वे शब्दगत दूरी, विराम चिह्न एवं मात्रा आदि का प्रयोगनिर्धारित मानदण्ड के अनुसार कर सकें।

(5) छात्रों को शिक्षक द्वारा संयमित रूप से सुलेख सम्बन्धी गतिविधियों का अभ्यास कराना चाहिये जिससे उनको अपनी त्रुटियों का ज्ञान हो सके तथा उनमें सुलेख लेखन की आदत विकसित हो सके।

(6) श्रुतलेख द्वारा भी लेखन प्रक्रिया को उचित बनाया जा सकता है क्योंकि इसमें छात्रों को उनकी त्रुटियों के आधार पर उचित सुझाव एवं निर्देशन प्राप्त होता है। इससे छात्र इस दोष से मुक्त हो जाते हैं।

(7) छात्रों को सुलेख लिखने पर उचित पृष्ठपोषण प्रदान करना लेखन अयोग्यता के दोष से मुक्त हो जाते हैं ।

(8) वर्तमान समय में कम्प्यूटर के माध्यम से छात्रों को कम्प्यूटर स्क्रीन पर उनके लेखन को प्रदर्शित करके उनकी त्रुटियों के बारे में समझाना चाहिये जिससे वे स्वयं अपने लेखन दोषों को समझ सकें और लेखन अयोग्यता के दोष से ग्रसित न हों।

(9) चित्रों के आधार पर छात्रों को लेखन कार्य प्रदान करना चाहिये इससे छात्रों में पूर्णत: मनोयोग से लेखन कार्य करने की आदत विकसित होती है। चित्रों के आधार पर लेखन करना छात्रों की रुचि के अनुरूप होता है। इससे छात्रों का ध्यान भंग नहीं होता और लेखन कला को विकसित करने पर उनका पूर्ण ध्यान केन्द्रित होता है।

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(10) छात्रों को सामूहिक रूप से लेखन कार्य प्रदान करना चाहिये। छात्रों में यह प्रवृत्ति पायी जाती है कि वे प्रत्येक कार्य को समूह के रूप में अधिक करना पसन्द करते हैं तथा एक-दूसरे के लेख को देखकर अपने लेखन कार्य में सुधार लाते हैं। इस कार्य में सामूहिक प्रतियोगिता का सहारा लिया जाये तो बहुत अच्छा रहेगा।

(11) पूर्व प्राथमिक स्तर पर छात्रों को प्रिण्ट अक्षरों पर बार-बार लिखना सिखाना चाहिये इससे उनको अक्षरों के आकार एवं प्रकार का ज्ञान सम्भव हो जाता है जिससे छात्रों में लेखन अयोग्यता विकसित नहीं होती।

(12) छात्रों को प्राथमिक स्तर पर जो उत्तर-पुस्तिकाएँ प्रदान की जाती हैं उनकी पंक्तियों की चौड़ाई सामान्य आकार की तुलना में अधिक होनी चाहिये जिससे कि छात्र अपने लेखन में अक्षरों एवं शब्दों को उचित स्थान प्रदान कर सकें। इससे उनमें लेखन अयोग्यता उत्पन्न नहीं होगी।

(13) छात्रों की उत्तर-पुस्तिका का कागज उच्च स्तर का होना चाहिये क्योंकि जब उत्तर-पुस्तिका का कागज खराब होता है तो लेखन भी खराब होने लगता है जिससे लेखन अयोग्यता विकसित हो जाती है। इसके विपरीत अच्छे कागज होने की स्थिति में छात्रों को लेखन में रुचि उत्पन्न होती है तथा वे अच्छा लेखन कार्य करते हैं।

(14) छात्रों के अधिक शीघ्रता एवं अधिक धीमी गति से लिखने पर रोक लगानी चाहिये क्योंकि दोनों ही प्रकार की स्थितियाँ छात्रों को खराब लेखन की ओर प्रेरित करती हैं। अत: छात्रों को सामान्य गति से लेखन कार्य करने के लिये प्रेरित करना चाहिये जिससे लेखन अयोग्यता को समाप्त किया जा सके।

(15) छात्रों को श्यामपट्ट से लेखन के बारे में बताना चाहिये कि वे एक शब्द को पढ़ने के बाद उसे उत्तर-पुस्तिका पर लिखें अर्थात् उनका ध्यान लेखन के समय उत्तर-पुस्तिका पर केन्द्रित होना चाहिये। इससे लेखन अयोग्यता को समाप्त किया जा सकता है।

(16) लेखन प्रक्रिया के समय कक्षा-कक्ष का वातावरण पूर्णत: उचित एवं उपयुक्त स्थिति में होना चाहिये;जैसे-कक्षा में शान्ति, बाहरी शोर का न होना एवं उचित प्रकाश आदि। इससे भी लेखन अयोग्यता समाप्त हो सकती है।

(17) छात्रों को विशेष प्रकार के रोगों से बचाने के लिये उन्हें चिकित्सकीय सलाह प्रदान करनी चाहिये क्योंकि निकट दृष्टि दोष एवं दूर दृष्टि दोष दोनों ही खराब लेखन को जन्म देते हैं। ऐसी स्थिति में चिकित्सकीय उपचार के अभाव में श्रेष्ठ लेखन सम्भव नहीं हो सकता।


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