लैमार्कवाद और डार्विनवाद में अंतर || difference between Lamarckism and Darwinism

दोस्तों आज hindiamrit आपके लिए प्रमुख अंतरों की श्रृंखला में लैमार्कवाद और डार्विनवाद में अंतर लेकर आया है।

दोस्तों जब बात जीवों की उत्पत्ति की हो तो लैमार्क और डार्विन का नाम सामने आता है।

तो आज हम आपको लैमार्कवाद क्या है,डार्विनवाद क्या है,लैमार्कवाद की विशेषताएं,डार्विनवाद की विशेषताएं,laimarkvad aur darvinvad me antar, आदि की जानकारी प्रदान करेंगे।

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लैमार्कवाद और डार्विनवाद में अंतर || difference between Lamarckism and Darwinism

जैव विकास के प्रमाणों से यह स्पष्ट है कि प्रकृति में जन्तुओं तथा पौधों की नयी-नयी जातियाँ सदा ही पूर्व स्थित जातियों से क्रमिक परिवर्तनों द्वारा बनी।

और इसी के फलस्वरूप सरलतम जीवों से जटिल जीवों को विकास हुआ है।

इस सम्बन्ध में निम्नलिखित तीन सिद्धान्त उल्लेखनीय है :

  1. लैमार्कवाद
  2. डार्विनवाद
  3. उत्परिवर्तनवाद

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लैमार्कवाद क्या है || what is Lamarckism || meaning of Lamarckism

फ्रांस के प्रसिद्ध वैज्ञानिक लैमार्क ने सन् 1809 में सर्वप्रथम विकास की वैज्ञानिक व्याख्या दी, जिसे लैमार्कवाद कहते हैं।

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लैमार्कवाद की विशेषताएँ

(1) वातावरण का सीधा प्रभाव (Direct Effcct of Environment)

(2) अनुकूलन की प्रवृत्ति (Adaptability)
(3) अंगों का उपयोग और अनुपयोग (Use and Disuse of Organs)

(4) उपार्जित लक्षणों की वंशागति (Inheritance of Acquired Characters)

लैमार्कवाद के उदाहरण || लैमार्क के प्रयोग

(1) जिराफ की गर्दन

अपने वाद की व्याख्या करने के लिए लैमार्क ने अनेक उदाहरण प्रस्तुत किये हैं। जिनमें से मुख्य उदाहरण जिराफ का है।

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लैमार्क के मतानुसार जिराफ का विकास छोटी गर्दन वाले तथा छोटे कद के पूर्वजों से हुआ है।

जो अफ्रीका के घने जंगलों में रहते थे।और ज़मीन में उगी घास-फूस खाते थे। जलवायु के शुष्क होने पर मैदान में घास-फूस सूखने लगी।

अब उन्हें पेट भरने के लिए पेड़-पौधों की पत्तियों, पर निर्भर होना पड़ा। पत्तियों तक पहुंचने के लिए उन्हें अपनी टागों को ऊपर उचकाकर पत्तियों तक पहुँचने का प्रयत्न करना पड़ता था।

अतः गर्दन व अगली टागो के अधिकाधिक उपयोग से इनकी लम्बाई पीढ़ी-दर-पीढ़ी धीरे-धीरे बढ़ती गई।

आजकल अफ्रीका के मरुस्थल में लम्बी गर्दन और लम्बी टाँगों वाला जिराफ इन्हीं परिवर्तनों का फल है।

(2) सर्प (Snakes)

इसी प्रकार लैमार्क ने अंगों के निरुपयोग के उदाहरण प्रस्तुत किये।

उसके अनुसार साँप में टाँगों का विलोप वातावरण के प्रभाव के कारण है।

साँप के लम्बे शरीर को झाड़ियों में रेंगकर चलने तथा बिलों के अन्दर घुसने में टॉंगे बाधा उत्पन्न करती थीं।

अत: ये धीरे-धीरे छोटी होती गयीं और अन्त में हजारों पीढ़ियों बाद पूर्णत: लुप्त हो गयीं।

लैमार्कवाद की कमियाँ || लैमार्कवाद की आलोचना || लैमार्कवाद के प्रति आपत्तियां (Criticism of Lamarckism)

सन् 1809 में लैमार्कवाद के प्रकाश में आने के बाद वैज्ञानिकों ने अनेक ऐसे उदाहरण प्रस्तुत किये जिनसे लैमार्कवाद को काफी आधात पहुँचा।

लैमार्कवाद की आलोचना, लैमार्कवाद की कमियां निम्न प्रकार हैं।

(1) निरन्तर अभ्यास से पहलवानों की पेशियाँ सुविकसित हो जाती हैं, परन्तु पहलवान के पुत्र में पिता के समान बलिष्ठ पेशियों का अभाव होता है।

(2) इसी प्रकार अन्धे माता-पिता की सन्तान अन्धी नहीं होती।

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(3) यदि युद्ध में किसी सैनिक का कोई अंग नष्ट हो जाये तो वह सन्तान में अपने पूर्ण रूप में क्यों बन जाता है?

(4) चीन में बालिकाओं को बचपन से ही लोहे के जूते पहनाकर पैर छोटे रखे जाते हैं। किन्तु सदियों बाद भी चीनी बालिकाओं के पैर जन्म के समय सामान्य बच्चों के पैरों जैसे ही होते हैं।

(5) भारत में बालिकाओं के कान व नाक छेदने की प्रथा बहुत पुरानी है, फिर भी जन्म के समय नाक व कान में छिद्र नहीं होते।

डार्विनवाद क्या है || what is Darwinism || meaning of Darwinism

डार्विन ने 1859 में ‘प्राकृतिक वरण द्वारा जाति का विकास’ नामक पुस्तक में बहुत-से तथ्यों की विस्तृत व्याख्या की है।

इस पुस्तक में उसने जैव विकास की क्रिया को सोदाहरण प्रस्तुत किया तथा समझाया कि किस प्रकार जीव अपने को वातावरण के अनुकूल बनाकर जीवित रहते हैं।

और संतान उत्पन्न करते हैं। इसके विपरीत जो जीव अपने को प्रकृति के अनुकूल नहीं बना पाते, वे कुछ समय बाद नष्ट हो जाते हैं।

अतः: प्रकृति में एक प्रकार की छटनी हुआ करती है। डार्वन के इस सिद्धान्त को प्राकृतिक वरणवाद (Theory of Natural Selection) कहते हैं।

डार्विनवाद की विशेषताएं

(1) जीवों में सन्तानोत्पत्ति की प्रचुर क्षमता

(2) जीवन संघर्ष

(3) समर्थ का जीवत्व या प्राकृतिक वरण

(4) विभिन्नताएं तथा आनुवंशिकता

(5)वातावरण के प्रति अनुकूलता

(6)नयी जातियों की उत्पत्ति

डार्विनवाद के उदाहरण || डार्विन के प्रयोग

(1) जिराफ

डार्विन के अनुसार छोटी गर्दन तथा लम्बी गर्दन वाली दोनों जिराफ जीवित थे। किंतु प्रकृति की परिस्थितियों में छोटी गर्दन वाले जिराफ अनुकूलन नहीं कर पाए।

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और वह धीरे-धीरे नष्ट हो गए जबकि लंबी गर्दन वाले अनुकूलन में सफल रहे और वह जीवित रहे।

(2) शेर, चीता तथा तेंदुआ

ये जीव आपस में स्वभाव एवं रचना में एक-दूसरे से काफी मिलते-जुलते हैं। ये सभी मांसाहारी है। और उनकी अंगूलियों पर नुकीले नाखून होते हैं।

अत: इनका विकास एक ही प्रकार के पूर्वजों से हुआ होगा। किन्तु वातावरण का अधिकतम लाभ उठाने के लिए इनमें परिवर्तन आते गये। और धीरे धीरे ये परिवर्तन इतने अधिक हो गये कि तीनों से अलग-अलग जातियाँ बनीं।

प्राकृतिक वरण के आधार पर नई जाति का बनना ही डार्विनवाद की मुख्य विशेषताएँ हैं।

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Difference between lamarckism and darwinism

लैमार्कवाद और डार्विनवाद में अंतर || difference between Lamarckism and Darwinism

लैमार्कवादडार्विनवाद
जिराफ के पूर्वजों की गर्दन छोटी थी। लेकिन ऊँचे वृक्षों की पत्तियों को खाने के लिए उन्हें गर्दन को लम्बा करना पड़ता था।जिराफ के पूर्वजों में गर्दन की लंबाई अलग अलग थी तथा ये अंतर वंशागत थे।
इन जिराफ की संतति में गर्दन की लंबाई पूर्वजों की गर्दन से अधिक लम्बी थी।
इनको भी अपनी गर्दन खींचनी पड़ती थी।
संघर्ष में लम्बी गर्दन वाले जिराफ अधिक उपयुक्त पाए गए और प्राकृतिक वरण के फलस्वरूप लम्बी गर्दन वाले जिराफों की संतति में वृद्धि होती हुई तथा छोटी गर्दन वाले जिराफ नष्ट हो गए।
धीरे धीरे इनकी नई संतति में गर्दन की लंबाई बढ़ती गयी।

और आधुनिक जिराफ की लम्बी गर्दन का विकास हुआ।
अतः लम्बी गर्दन वाले जिराफ ही जीवित रहे।
लैमार्क का सिद्धांत उपार्जित लक्षणों की वंशागति पर आधारित है।डार्विन का सिद्धांत प्राकृतिक वरणवाद पर आधारित है।

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