अभिप्रेरणा के सिद्धांत

दोस्तों आज आपको मनोविज्ञान का सबसे महत्वपूर्ण पाठ अभिप्रेरणा के सिद्धांत आदि की विस्तृत जानकारी प्रदान करेंगे।

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Contents

अभिप्रेरणा के सिद्धांत

अभिप्रेरणा के सिद्धांतप्रतिपादक
मूल प्रवृत्ति का सिद्धांतमैकडूगल,बर्ट,जेम्स
शरीर क्रिया सिद्धान्तमॉर्गन
मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांतफ्रायड
अंतर्नोद सिद्धान्तसी०एल०हल
मांग का सिद्धान्त / पदानुक्रमित सिद्धान्तमैस्लो
आवश्कयता सिद्धान्तहेनरी मरे
अभिप्रेरणा स्वास्थ्य सिद्धान्तफ्रेड्रिक हर्जवर्ग
सक्रिय सिद्धान्तमेम्लो,लिंडस्ले,सोलेसबरी
प्रोत्साहन सिद्धान्तबोल्स और कॉफमैन
चालक सिद्धान्तआर०एस० वुडवर्थ

अभिप्रेरणा के सिद्धांत एवं उनके प्रतिपादक

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मूल प्रवृत्ति का सिद्धांत

इस सिद्धांत का प्रतिपादन मनोवैज्ञानिक मैकडूगल ने किया है।

इस सिद्धांत के अनुसार मनुष्य का प्रत्येक व्यवहार उसकी मूल प्रवृत्तियों द्वारा संचालित होता है। उसकी मूल प्रवृत्तियों के पीछे संवेग छिपे होते हैं। जो किसी कार्य को करने के लिए प्रेरित करते हैं।

मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत

सिद्धांत का प्रतिपादन मनोवैज्ञानिक फ्रायड ने किया है।

इस सिद्धांत के अनुसार मनुष्य के व्यवहार को प्रभावित करने वाली अभिप्रेरणा का दो मूल कारक होते हैं–

(1) मूल प्रवृत्तियाँ

(2) अचेतन मन

फ्राइड के अनुसार मनुष्य में दो मूल प्रवृत्तियाँ होती हैं–

(1) जीवन मूल प्रवृत्ति (eros) – जीवन मूल प्रवृत्ति संरचनात्मक व्यवहार की ओर प्रवृत्त करती है।

(2) मृत्यु मूल प्रवृत्ति (thanatos) – मृत्यु मूल प्रवृत्ति विध्वंसात्मक व्यवहार की ओर प्रवृत्त करती है।

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अंतर्नोद का सिद्धान्त

इस सिद्धांत का प्रतिपादन सी०एल० हल ने किया।

इस सिद्धांत के अनुसार मनुष्य की शारीरिक आवश्यकताएं मनुष्य में तनाव पैदा करती है। जिसे मनोवैज्ञानिक भाषा में अंतर्नोद कहते हैं।

और यह अंतर्नोद ही मनुष्य को विशेष प्रकार के कार्य करने के लिए अभिप्रेरित करते हैं।

प्रोत्साहन सिद्धांत

इस सिद्धांत के प्रतिपादक बोल्स तथा का कॉफमैन है।

इस सिद्धांत के अनुसार मनुष्य अपने पर्यावरण में स्थित वस्तु अथवा क्रिया से प्रभावित होकर कोई क्रिया करता है। पर्यावरण के इन सभी तथ्यों को इन्होंने प्रोत्साहन माना है।

इनके अनुसार प्रोत्साहन दो प्रकार के होते हैं

(1) धनात्मक प्रोत्साहन – भोजन,पानी

(2) ऋणात्मक प्रोत्साहन – दंड,करेंट

शरीर क्रिया सिद्धांत

इस सिद्धांत के प्रतिपादक मॉर्गन हैं।

इनके अनुसार मनुष्य में अभिप्रेरणा किसी बाह्य उद्दीपक द्वारा उत्पन्न नहीं होती अपितु उसके शरीर के अंदर के तंत्रों में होने वाले परिवर्तनों के कारण उत्पन्न होती है।

मांग सिद्धांत / क्रमिक सिद्धांत / मैस्लो का पदानुक्रमित सिद्धान्त

इस सिद्धांत का प्रतिपादन मैस्लो ने किया है।

इस सिद्धांत के अनुसार मनुष्य का व्यवहार उसकी आवश्यकताओं से प्रेरित होता है।

मैस्लो ने आवश्यकताओं को एक विशेष क्रम (निम्न से उच्च की ओर) में प्रस्तुत किया। मनुष्य जब तक एक ही स्तर की आवश्यकता की पूर्ति नहीं कर लेता दूसरी आवश्यकता की पूर्ति की ओर नहीं बढ़ता।

मैस्लो ने कुल 5 प्रेरक(स्तर) बताए हैं।

व्यक्ति को सबसे निचले स्तर पर अपने प्राथमिक (शारीरिक) आवश्यकताओं को पूरा करने योग्य होना चाहिए। जब एक बार ये आवश्यकताएं पूरी हो जाती हैं तब सुरक्षा महत्वपूर्ण हो जाती है। तत्पश्चात सामाजिक आवश्यकताएं सम्मान की आवश्कयता और आत्मसिद्धि आदि आती हैं।

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मैस्लो के अनुसार 5 स्तर या प्रेरक इस प्रकार है जो निम्न से उच्च की ओर लिखे गए है–

(1) शरीरिक आवश्कयताएँ – भूख,प्यास

(2) सुरक्षा- रक्षा की आवश्कयता

(3) सामाजिक आवश्कयता- प्यार,स्नेह,जुड़े रहने की आवश्कयता

(4) सम्मान की आवश्कयता- आत्म सम्मान,पहचान,प्रस्थिति

(5) आत्म सिद्धि की आवश्कयता

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