अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक

दोस्तों आज आपको मनोविज्ञान का सबसे महत्वपूर्ण पाठ अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक की विस्तृत जानकारी प्रदान करेंगे।

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अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक || factors affecting to learning

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(1) शारीरिक स्वास्थ्य (physical health)

(2) मानसिक स्वास्थ्य (mental health)

(3) परिपक्वता (maturation)

(4) सीखने की इच्छा (desire of learning)

(5) प्रेरणा (motivation)

(6) वातावरण (environment)

(7) विषय सामग्री का स्वरूप (nature of subject or content)

(8) शिक्षण सहायक सामग्री ( teacher learning tools)

(9) अध्यापक की भूमिका ( role of teacher)

शारीरिक स्वास्थ्य (physical health)

शारीरिक स्वास्थ्य एवं सीखने का सामान्य रूप से प्रत्यक्ष एवं घनिष्ठ संबंध होता है।

इसलिए शिक्षार्थी के शारीरिक स्वास्थ्य का अध्ययन करना आवश्यक है।

विद्वानों ने भी कहा है कि स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है।

अतः शारीरिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति की मानसिक रूप से स्वस्थ होने की पूर्ण संभावना रहती है।

यदि बालक शारीरिक रूप से पूर्णतः स्वस्थ है तो उसे अधिगम में कोई कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ेगा।

वह किसी भी कार्य को बड़ी आसानी से कम समय में कर लेगा।

शारीरिक स्वास्थ्य ठीक होने पर बालक अध्ययन अधिक समय तक कर लेता है।

मानसिक स्वास्थ्य (mental health)

बालकों में मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित व्यवहार की अनेक समस्याएं देखी जाती हैं।

इससे परिवार तथा विद्यालय का वातावरण अव्यवस्थित हो जाता है।

जिस बालक का व्यवहार असामान्य है वह अवश्य की मानसिक रूप से रुग्ण होगा। स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है।

मानसिक स्वास्थ्य ठीक होने पर वह अपने अधिगम को अधिक स्थाई एवं सुचारु रुप से सरल बना सकता है।

वह कठिन से कठिन अधिगम को भी जल्द से जल्द सीख सकता है।

मानसिक स्वास्थ्य ठीक होने पर वह बड़े विषयों को भी अधिक समय देकर बड़ी सरलता के साथ अध्ययन कर सकता है।

अधिगम प्रक्रिया में बालक का मानसिक स्वास्थ्य अच्छा होना आवश्यक होता है।

परिपक्वता (maturation)

अधिगम की प्रक्रिया को बालक की शारीरिक एवं मानसिक परिपक्वता अधिक प्रभावी बनाती है।

छोटी कक्षा में बालक की मांसपेशियों को मजबूत बनाने की ओर ध्यान दिया जाता है।

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ताकि वह कलम किताब आदि को पकड़ना सीख जाए। उन्हें व्याकरण एवं पहाड़े आदि का ज्ञान भी इसी दृष्टि से बाद में कराया जाता है।

यदि शारीरिक मानसिक परिपक्वता ना हो तो सीखने में शक्ति का नाश होता है।

कॉलसैनिक के अनुसार, “परिपक्वता और सीखना प्रक्रियाएं नहीं है वरन एक दूसरे पर निर्भर है।”

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सीखने की इच्छा (desire of learning)

अधिगम प्रक्रिया में सबसे आवश्यक है सीखने की इच्छा।

यदि सीखने की इच्छा ही नहीं होगी तो फिर इस अधिगम का क्या प्रयोजन?

बालकों को नया ज्ञान देने से पूर्व यह आवश्यक है कि उनमें सीखने के प्रति तत्परता उत्पन्न की जाए।

क्योंकि ऐसा होने पर विद्यार्थी प्रतिकूल परिस्थितियों में भी किसी बात को सीखने में सफल हो जाता है।

किसी भी कार्य को कराने से या अध्ययन से पूर्व यह जानना आवश्यक होता है की बालक में सीखने की इच्छा है या नहीं। क्योंकि इच्छा होने पर अधिगम स्थाई एवं सरल हो जाता है।

प्रेरणा (motivation)

प्रेरक शब्द से तात्पर्य बालक में आंतरिक एवं बाह्य रूप से उत्साह या प्रेरणा देने वाली शक्ति से होता है।

बालक के सीखने में ही नहीं वरन सभी प्राणियों के सीखने में प्रेरक तत्वों को आवश्यक माना गया है।

शिक्षा के क्षेत्र में छोटे बालकों को पुरस्कार एवं दंड और बड़े बालकों को प्रशंसा एवं निंदा के द्वारा प्रेरणा देकर उन्हें नवीन ज्ञान को सिखाया जा सकता है।

इसलिए अधिगम की प्रक्रिया में सबसे आवश्यक तत्व प्रेरणा माना गया है।

क्योंकि यदि बालक किसी कार्य को करने के लिए प्रेरित रहेगा तो वह उस कार्य में जरूर सफल होगा।

वातावरण (environment)

सीखने की प्रक्रिया में वातावरण का भी विशेष प्रभाव पड़ता है।

हम हर चीज अपने वातावरण से ही सीखते हैं। या हम किसी कार्य को करते हैं। तो हमारे चारों ओर एक वातावरण उपलब्ध होता है।

यह वातावरण हमें सीखने के प्रति धनात्मक पूर्ण पुनर्बलन तथा ऋणात्मक पुनर्बलन दोनों प्रदान करता है।

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वातावरण अधिगम प्रक्रिया में क्या प्रभाव डालता है? इसको निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझ सकते हैं

परिवार के वातावरण का अधिगम पर प्रभाव

बालक की अधिगम प्रक्रिया पर उसके परिवार के वातावरण का पर्याप्त प्रभाव पड़ता है।

यदि परिवार में लड़ाई झगड़े होते रहते हैं तो ऐसे वातावरण का बालकों के मस्तिष्क पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है।

वे उदास तथा खिन्न रहने लगते हैं। घर का माहौल में उन्हें घुटन होने लगती है। वह अपने अध्ययन के लिए घर से दूर जाने लगते हैं।

कक्षा के भौतिक वातावरण का अधिगम पर प्रभाव

कक्षा का भौतिक वातावरण छात्रों के अधिगम को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है।

भौतिक वातावरण के अंतर्गत प्रकाश, वायु, कोलाहल आदि आते हैं।

यदि कक्षा में ढंग के बैठने की जगह नहीं है।

अंधेरा रहता है, रोशनी नहीं, हवा नहीं, फर्नीचर टूटा होता है तो अध्ययन मन नहीं लगता है।

मनोवैज्ञानिक वातावरण का अधिगम पर प्रभाव

यदि छात्रों में एक दूसरे के प्रति सहयोग और सहानुभूति की भावना है।

उनमें आपस में मधुर संबंध है। तो सीखने की प्रक्रिया सुचारू रूप से आगे बढ़ती रहती है।

और यदि कक्षा का वातावरण बोझिल, तनावमुक्त रहता है। तो छात्र घुटन का महसूस करता है। और अधिगम प्रक्रिया प्रभावित हो जाती है।

सामाजिक एवं सांस्कृतिक वातावरण

सांस्कृतिक वातावरण का असर व्यक्ति द्वारा निर्मित या प्रभावित उन समस्त नियम, विचार, विश्वास एवं भौतिक वस्तुओं से होता है।

सामाजिक वातावरण के अंतर्गत समाज में प्रचलित रीत रिवाज, मान्यताएं, आदर्श एवं मूल्य आदि आते हैं। यह सब भी अधिगम की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं।

विषय सामग्री का स्वरूप (nature of subject or content)

सीखी जाने वाली विषय वस्तु एवं सीखने की विधि का सीधा प्रभाव अधिगम पर पड़ता है।

विषय सार्थक, उपयोगी और यथार्थ होना चाहिए।

जिसे सीखने वाले तात्कालिक लाभ उठा सकें।

साथ ही सीखने की विधि खेल विधि, क्रिया विधि आदि का प्रयोग शिक्षक को प्रारंभिक कक्षाओं में करना चाहिए।

उच्च कक्षाओं में संपूर्ण विधि, सामूहिक विधि, सहयोगी विधि आदि का पालन करना चाहिए।

अतः शिक्षक को छात्र के आधार पर विषय का चयन एवं उपयुक्त विधि का प्रयोग करना चाहिए। जिससे अधिगम प्रक्रिया सरल एवं रुचिकर हो सके।

शिक्षण सहायक सामग्री ( teacher learning tools)

अधिगम को शिक्षण सहायक सामग्री की सहायता से और भी सरल एवं रुचिकर बनाया जा सकता है।

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शिक्षण सहायक सामग्री तीन प्रकार की होती हैं। दृश्य सामग्री, श्रव्य सामग्री, दृश्य श्रव्य सामग्री।

दृश्य सामग्री जैसे चित्र, पुस्तक, चार्ट, ग्लोब आदि की सहायता से पाठ को और बेहतर पढ़ाया जाता है। तथा बच्चों को इसमें रूचि आती है।

श्रव्य सामग्री के अंतर्गत रेडियो, फोन, टेप रिकॉर्डर की मदद से किसी कविता का पाठ या कोई कहानी सुनाई जाती है। जिससे बच्चे उसमें रुचि लेते हैं।

दृश्य श्रव्य सामग्री के अंतर्गत टेलीविजन, सिनेमा या किसी नाटक के द्वारा अधिगम के किसी कठिन प्रकरण को दिखाकर उसको आसान बनाने की कोशिश की जाती है।

जिससे बच्चे को कठिन पाठ उबाऊ न लगे और वह उसमें रुचि ले।

अध्यापक की भूमिका ( role of teacher)

अधिगम में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका है – अध्यापक।

अध्यापक ही अधिगम करने में सहायता प्रदान करता है।

यदि अध्यापक बालक से मित्र की तरह व्यवहार करता है। उसकी कठिनाइयों को समझता है। एवं उनको दूर करने का प्रयास करता है।

तो बच्चे अध्यापक पर विश्वास करते हैं। तथा उससे ज्यादा खुद पर भी विश्वास करते हैं कि अध्यापक उन्हें इस कठिन कार्य में सहायता करेंगे।

और वह कार्य को आसानी से हमें सिखाएंगे। और हम उसको सीख जाएंगे।

इस प्रकार अधिगम में अध्यापक की भूमिका सर्वोपरि है।

इसलिए अध्यापक को छात्रों के साथ प्रेम एवं स्नेह के साथ एक मित्र की तरह व्यवहार करना चाहिए।

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