भारतीय किसान पर निबंध हिंदी में | essay on indian farmer in hindi 

समय समय पर हमें छोटी कक्षाओं में या बड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं में निबंध लिखने को दिए जाते हैं। निबंध हमारे जीवन के विचारों एवं क्रियाकलापों से जुड़े होते है। आज hindiamrit.com  आपको निबंध की श्रृंखला में  भारतीय किसान पर निबंध हिंदी में | essay on indian farmer in hindi पर निबंध प्रस्तुत करता है।

Contents

भारतीय किसान पर निबंध हिंदी में | essay on indian farmer in hindi

इस निबंध के अन्य शीर्षक / नाम

(1) कृषक पर निबंध हिंदी में
(2) भारतीय किसान की समस्याएं और समाधान पर निबंध
(3) भारतीय किसान की समस्याएं पर निबंध
(4) भारत में किसान की वर्तमान स्थिति पर निबंध
(5) किसान एक अन्नदाता पर निबंध

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पहले जान लेते है भारतीय किसान पर निबंध हिंदी में,essay on indian farmer in hindi पर निबंध की रूपरेखा ।

निबंध की रूपरेखा

(1) प्रस्तावना

(2) भारत में कृषि का महत्व

(3) भारत में किसान की वर्तमान स्थिति

(4) किसान की कठिनाइयां

(5) किसान की कठिनाइयों का उपाय

(6) उपसंहार


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प्रस्तावना

कृषक (किसान) को अन्नदाता कहा जाता है। हमारे जीवन की मूलभूत आवश्यकता भोजन है। हम भोजन के बिना जीवित नही रह सकते हैं। इस भोजन को देने वाला किसान ही है।

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किसान ही अपने खेतों में दिन रात मेहनत करता है। वह किसी पौधे के बीज से लेकर पूरे उस पौधे के बड़े होने तक का इंतजार करता है और उससे अन्न प्राप्त करके हमारी मूल आवश्यकता को पूर्ण करता है।

हमारे जीवन में किसान का योगदान किसी ईश्वर से कम नहीं है।

किसान के लिए प्रस्तुत हैं 4 पंक्तियां

जिसके खेतों से उगता है, अन्न जीवनाधार।
जिसके त्याग तपस्या से हो जनगण का उद्घार ॥
जिसके श्रम से पलते हैं सब, बालक वृद्ध जवान ।
सबका वन्दनीय है जग में, निर्धन-नग्न-किसान ॥





भारत में कृषि का महत्त्व

खेती भारत का मुख्य उद्योग है। यहाँ की 80 प्रतिशत जनता खेती करती है। यह किसानों का देश है। यहाँ सभी उद्योग खेती पर ही निर्भर हैं।

खेती और किसान की दशा ही भारत की दशा है। पर यह खेद की बात है कि भारत में किसान की जैसी शोचनीय दशा है वैसी किसी और की नहीं। अँग्रेजी राज्य में किसानों और खेती के बारे में कभी सोचा ही नहीं गया, सोचने की उन्हें आवश्यकता भी नहीं थी।

15 अगस्त सन् 1947 को परतन्त्रता के काले बादलों को चीरता हुआ स्वतन्त्रता का सूर्य उदित हुआ, उसकी किरणों के प्रकाश में भारत के नेताओं ने भारत के किसानों को देखा और तब से निरन्तर भारत की सरकार किसान और खेत की उन्नति के लिए प्रयत्नशील है।




कृषक की वर्तमान स्थिति

आजतक किसानों के लिए हुआ क्या? एक लम्बा समय बीत जाने पर आज भी किसान की दशा सन्तोषजनक नहीं है। उसे भर-पेट अन्न और शरीर ढाँपने को पर्याप्त वस्त्र भी नहीं मिलता है। यह तो नहीं कहा जा सकता कि उसकी दशा में कुछ अन्तर नहीं हुआ किन्तु सुधार जितना होना चाहिए था, हुआ नही। सबका अन्नदाता किसान आज भी अन्न को तरसता है।

वह किसान, जिसके लिए कवि ने कहा है-

“कठिन जेठ की दोपहरी में एकचित्त हो मग्न।
कृषक-तपस्वी तप करता है श्रम से स्वेदित तन ॥’

जब कोई अपने दुधमुँहै बच्चे को आधा पेट खिलाकर और अपनी नवोढा प्रियतमा को चिथड़ों में लिपटा देखकर भी साँस लेता रहे तो क्या यह जीवन है ? स्वतन्त्र भारत के अन्दाता की यह दशा देखकर भला किसका हृदय टूक-टूक न हो जायेगा ?




कृषक की कठिनाइयाँ

पर दोष किसका है-स्वयं किसान अपनी दरशा सुधारना नहीं चाहता, यह कहा नहीं जा सकता। अपनी उन्नति भला कौन न चाहेगा ?

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सरकार लाखों रुपये प्रतिवर्ष खेती के विकास पर लगाती है। करोड़ों रुपये की योजनाएँ खेत और किसान के लिए चल रही हैं। फिर वही प्रश्न है कि दोषी कौन है? कौन-सी बाधा है जो किसान का रास्ता रोकती है और उसे तेजी से आगे नहीं बढ़ने देती ? यदि विचार कर देखें तो कठिनाइयाँ साफ दिखाई पड़ती हैं।

किसान अविद्या के अन्धकार में है, अभी तक भी हमारे देश के अधिकतर किसान अशिक्षित हैं। किसानों के जो बच्चे पढ़ भी गये है या पढ़ रहे है, वे खेती हैं और नौकरी खोजते हैं। वे पढ़-लिखकर खेती करना एक अपमान की बात समझते हैं। यह भावना देश के लिए बहुत ही घातक है।

इसका परिणाम यह है कि किसान अशिक्षित है इसीलिए वह खेती के नये तरीकों और साधनों से जानकार नहीं हो पाता है। सरकार किसानों को बहुत-सी सुविधाएँ देती है पर किसान जानकारी न होने के कारण उनसे लाभ नहीं उठा पाता है।

किसान की दूसरी कठिनाई उसकी आर्थिक स्थिति से सम्बन्ध रखती है। अब भी किसान को अच्छी ब्याज की दर तथा आसान किस्तों पर ऋण नहीं मिल पाता है। सरकार की ओर से सहकारी बैंकों की स्थापना करके उसकी इस कठिनाई को दूर करने का प्रयत्न हो रहा है पर एक तो ये बैंक अभी थोड़े हैं और फिर अशिक्षित होने के कारण किसान इनसे पूरा लाभ नहीं उठा पाते हैं। कुछ स्वार्थी कर्मचारियों की धाँधलेबाजी भी किसानो को लाभों से बंचित रहने को विवश करती है।

सिंचाई के साधनों के विकास पर सरकार रुपये पानी की तरह बहा रही है परन्तु अब भी बहुत-से जिसान ऐसे हैं जो सूखे से पीड़ित हैं। अतिवृष्टि की रोकथाम का भी अभी तक कोई उपाय नहीं हो पाया है।

अच्छी खाद और अच्छे बीज के अभाव से भी किसान की परेशानी बढ़ी हुई है। इसके अतिरिक्त किसान के सामने एक यह भी कठिनाई है कि सरकार की दी हुई सूविधाओं से उसे जितना लाभ हो रहा है उतना ही टैक्सों का उस पर भार बढ़ता जा रहा है।

ये ही सब कठिनाइयाँ है जिनके कारण किसान और खेती का विकास नहीं हो पा रहा है। इसके अतिरिक्त ऋण, खाद तथा बीज आदि की व्यवस्था में भी सुधार की आवश्यकता है।

इस प्रकार के कर्मचारियों की नियुक्ति करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए कि नियुक्त होने वाले व्यक्ति को किसान और गाँव से वास्तविक स्नेह हो ।

इसके अतिरिक्त ऋण, खाद तथा बीज आदि की व्यवस्था में आवश्यक सुधार होने चाहिए। गाँव में बिजली, रोशनी तथा यातायात के साधनों पर भी विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

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उपसंहार

सारांश यह है कि किसान का जीवन कंटकाकीर्ण होता है । अशिक्षा के कारण आज भी भारतीय किसान का शोषण जारी है। पुलिस, प्रधान, पटवारी, पतरौल आदि जौंक की भाँति इसका रक्त चूस रहे हैं। किसान के परिश्रम के फल को बिचौलिए और दलाल खा रहे हैं । उसका जीवन योगीवत् त्याग, तपस्या एवं सहिष्णुता की त्रिवेणी है।

किसी महान संत ने कहा है कि

“कृषक अन्नदाता होकर भी, सहता गल-गल अत्याचार ।
परसेवा-उपकार-त्यागमय-सहिष्णुता इसका संसार ॥”


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