भारतीय समाज में नारी का स्थान पर निबंध | वर्तमान समाज में नारी का स्थान पर निबंध | भारतीय समाज में नारी की दशा पर निबंध

समय समय पर हमें छोटी कक्षाओं में या बड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं में निबंध लिखने को दिए जाते हैं। निबंध हमारे जीवन के विचारों एवं क्रियाकलापों से जुड़े होते है। आज hindiamrit.com  आपको निबंध की श्रृंखला में  भारतीय समाज में नारी का स्थान पर निबंध | वर्तमान समाज में नारी का स्थान पर निबंध | भारतीय समाज में नारी की दशा पर निबंध प्रस्तुत करता है।

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भारतीय समाज में नारी का स्थान पर निबंध | वर्तमान समाज में नारी का स्थान पर निबंध | भारतीय समाज में नारी की दशा पर निबंध

इस निबंध के अन्य शीर्षक / नाम

(1) वर्तमान समय में नारी की दशा पर निबंध
(2) वर्तमान में नारी का समाज में स्थान पर निबंध
(3) भारतीय समाज में नारी की वर्तमान दशा पर निबंध
(4) भारतीय समाज में नारी की वर्तमान स्थिति पर निबंध


भारतीय समाज में नारी का स्थान पर निबंध | वर्तमान समाज में नारी का स्थान पर निबंध | भारतीय समाज में नारी की दशा पर निबंध

पहले जान लेते है भारतीय समाज में नारी का स्थान पर निबंध | वर्तमान समाज में नारी का स्थान पर निबंध | भारतीय समाज में नारी की दशा पर निबंध  की रूपरेखा ।

निबंध की रूपरेखा

(1) प्रस्तावना
(2) भारतीय नारी का अतीत
(3) मध्यकाल में भारतीय नारी
(4) आधुनिक युग में नारी
(5) पाश्चात्य प्रभाव एवं जीवन शैली में परिवर्तन
(6) उपसंहार


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भारतीय समाज में नारी का स्थान पर निबंध | वर्तमान समाज में नारी का स्थान पर निबंध | भारतीय समाज में नारी की दशा पर निबंध


प्रस्तावना

गृहस्थीरूपी रथ के दो पहिये हैं-नर और नारी। इन दोनों के सहयोग से ही गृहस्थ जीवन सफल होता है।

इसमें भी नारी का घर के अन्दर और पुरुष का घर के बाहर विशेष महत्त्व है। फलत: प्राचीन काल में ऋषियों ने नारी को अतीव आदर की दृष्टि से देखा।

नारी पुरुष की सहधर्मिणी तो है ही, वह मित्र के सदृश परामर्शदात्री, सचिव के सदृश सहायिका, माता के उसके ऊपर अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाली और सेविका के सदृश उसकी अनवरत सेवा करने वाली है।

इसी कारण मनु ने कहा है, “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता” अर्थात् जहाँ नारियों का आदर होता है वहाँ देवता निवास करते हैं।

फिर भी भारत में नारी की स्थिति एक समान न रहकर बड़े उतार-चढ़ावों से गुजरी है, जिसका विश्लेषण वर्तमान भारतीय समाज को समुचित दिशा देने के लिए आवश्यक सदृश है।



भारतीय नारी का अतीत

वेदों और उपनिषदों के काल में नारी को पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त थी। वह पुरुष के समान विद्यार्जन कर विद्वत्सभाओं में शास्त्रार्थ करती थी।

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महाराजा जनक की सभा में हुआ याज्ञवल्क्य गागीं शास्त्रार्थ प्रसिद्ध है।

मण्डन मिश्र की धर्मपत्नी भारती अपने काल की अत्यधिक विख्यात विदुषी थीं, जिन्होंने अपने दिग्गज विद्वान् पति की पराजय के बाद स्वयं आदि शंकराचार्य से शास्त्रार्थ किया।

यही नहीं, स्त्रियाँ युद्ध-भूमि में भी जाती थीं। इसके लिए कैकेयी का उदाहरण प्रसिद्ध है । उस काल में नारी को अविवाहित रहने या स्वेच्छा से विवाह करने का पूरा अधिकार था।

कन्याओं का विवाह उनके पूर्ण यौवनसम्पन्न होने पर उनकी इच्छा व पसन्द के अनुसार ही होता था, जिससे वे अपने भले-बुरे का निर्णय स्वयं कर सकें।


मध्यकाल में भारतीय नारी

मध्यकाल में नारी की स्थिति अत्यधिक शोचनीय हो गयी; क्योंकि मुसलमानों के आक्रमण से हिन्दू-समाज का मूल ढाँचा चरमरा गया और वे परतन्त्र होकर मुसलमान शासकों का अनुकरण करने लगे।

मुसलमानों के लिए स्त्री मात्र भोग-विलास और वासना-तृप्ति की वस्तु थी। फलतः लड़कियों को विद्यालय में भेजकर पढ़ाना सम्भव न रहा।

हिन्दुओं में बाल-विवाह का प्रचलन हुआ, जिससे लड़की छोटी आयु में ही ब्याही जाकर अपने घर चली जाए। परदा-प्रथा का प्रचलन हुआ और नारी घर में ही बन्द कर दी गयी।

युद्ध में पतियों के पराजित होने पर यवनों के हाथ न पड़ने के लिए नारियों ने अग्नि का आलिंगन करना शुरू किया, जिससे सती-प्रथा का प्रचलन हुआ।

इस प्रकार नारियों की स्वतन्त्रता नष्ट हो गयी और वे मात्र दासी या भोग्या बनकर रह गयीं |

नारी की इसी असहायावस्था का चित्रण गुप्त जी ने निम्नलिखित पंक्तियों में किया है-
अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी।
आँचल में है दूध और आँखों में पानी ॥




आधुनिक युग में नारी

आधुनिक युग में अंग्रेजों के सम्पर्क से भारतीयों में नारी-स्वातन्त्र्य की चेतना जागी ।

उन्नीसवीं शताब्दी में भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन के साथ सामाजिक आन्दोलन का भी सूत्रपात हुआ।

राजा राममोहन राय और महर्षि दयानन्द जी ने समाज-सुधार की दिशा में बड़ा काम किया। सती-प्रथा कानून द्वारा बन्द करायी गयी और बाल-विवाह पर राक लगा।

आगे चलकर महात्मा गाँधी ने भी स्त्री-सुधार की दिशा में बहत काम किया।

नारी की दीन-हीन दशा के विरुद्ध पन्त का काव
हृदय आक्रोश प्रकट कर उठता है–

मुक्त करो नारी को मानव
चिरबन्दिनी नारी को।

आज नारियों को पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त हैं। उन्हें उनकी योग्यतानुसार आर्थिक स्वतन्त्रता भी मिली हुई है।

स्वतन्त्र भारत में आज नारी किसी भी पद अथवा स्थान को प्राप्त करने से वंचित नहीं। धनोपार्जन के लिए वह आजीविका का कोई भी साधन अपनाने के लिए स्वतन्त्र है।

फलतः स्त्रियाँ अध्यापिका, डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक, वकील, जज, प्रशासनिक अधिकारी ही नहीं, अपितु पुलिस में नीचे से ऊपर तक विभिन्न पदों पर कार्य कर रही हैं।

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स्त्रियों ने आज उस रूढ़ धारणा को तोड़ दिया है कि कुछ सेवाएँ पूर्णतः पुरुषोचित होने से स्त्रियों के बूते की नहीं। आज नारियाँ विदेशों में राजदूत, प्रदेशों की गवर्नर, विधायिकाएँ या संसद सदस्याएँ, प्रदेश अथवा केन्द्र में मन्त्री आदि सभी कुछ हैं।

भारत जैसे विशाल देश का प्रधानमन्त्रित्व तक एक नारी कर गयी, यह देख चकित रह जाना पड़ता है।

श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित ने तो संयुक्त राष्ट्र महासभा की अध्यक्षता कर सबको दाँतों तले अँगुली दबवा दी। इतना ही नहीं, नारी को आर्थिक स्वतन्त्रता दिलाने के लिए उसे कानून द्वारा पिता एवं पति की सम्पत्ति में भी भाग प्रदान किया गया है।

आज स्त्रियों को हर प्रकार की उच्चतम शिक्षा की सुविधा प्राप्त है। बाल-मनोविज्ञान, पाकशास्त्र, गृह-शिल्प, घरेलू चिकित्सा, शरीर-विज्ञान, गृह-परिचर्या आदि के अतिरिक्त विभिन्न ललित कलाओं; जैसे-संगीत, नृत्य, चित्रकला, छायांकन आदि में विशेष दक्षता प्राप्त करने के साथ-साथ वाणिज्य और विज्ञान के क्षेत्रों में भी वे उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही हैं।

स्वयं स्त्रियों में भी अब सामाजिक चेतना जाग उठी है । प्रबुद्ध नारियाँ अपनी दुर्दशा के प्रति सचेत हैं और उसके सुधार में दत्तचित्त भी।

अनेक नारियाँ समाज-सेविकाओं के रूप में कार्यरत हैं। आशा है कि वे भारत की वर्तमान समस्याओं; जैसे-भुखमरी,बेकारी, महँगाई, दहेज-प्रथा आदि के सुलझाने में भी अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएँगी।





पाश्चात्य प्रभाव एवं जीवन शैली में परिवर्तन

किन्तु वर्तमान में एक चिन्ताजनक प्रवृत्ति भी नारियों में बढ़ती दीख पड़ती है, जो पश्चिम की भौतिकवादी सभ्यता का प्रभाव है।

अंग्रेजी शिक्षा के परिणामस्वरूप अधिक शिक्षित नारियाँ तेजी से भोगवाद की ओर अग्रसर हो रही हैं।

वे फैशन और आडम्बर को ही जीवन का सार समझकर सादगी से विमुख होती जा रही हैं और पैसा कमाने की होड़ में अनैतिकता की ओर उन्मुख हो रही हैं।

यही बहुत ही कुत्सित प्रवृत्ति है, जो उन्हें पुनः मध्यकालीन-हीनावस्था में धकेल देगी।

इसी बात को लक्ष्य कर कवि पन्त नारी को चेतावनी देते हुए कहते हैं-

तुम सब कुछ हो फूल, लहर, विहगी, तितली, मार्जारी,
आधुनिके ! कुछ नहीं अगर हो, तो केवल तुम नारी।

प्रसिद्ध लेखिका श्रीमती प्रेमकुमारी ‘दिवाकर’ का कथन है कि, “आधुनिक नारी ने नि:सन्देह बहुत कुछ प्राप्त किया है, पर
सब-कुछ पाकर भी उसके भीतर का परम्परा से चला आया हुआ कुसंस्कार नहीं बदल रहा है।

वह चाहती है कि रंगीनियों से सज जाए और पुरुष उसे रंगीन खिलौना समझकर उससे खेले। वह अभी भी अपने-आपको रंग-बिरंगी तितली बनाये रखना चाहती है।

कहने की आवश्यकता नहीं है कि जब तक उसकी यह आन्तरिक दुर्बलता दूर नहीं होगी, तब तक उसके मानस का नव-संस्कार न
होगा।

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जब तक उसका भीतरी व्यक्तित्व न बदलेगा तब तक नारीत्व की पराधीनता एवं दासता के विष-वृक्ष की जड़ पर कुठाराघात न हो सकेगा।”





उपसंहार

नारी, नारी ही बनी रहकर सबकी श्रद्धा और सहयोग अरजित कर सकती है, तितली बनकर वह स्वयं तो डूबेगी ही और समाज को भी डुबाएगी।

भारतीय नारी पार्चात्य शिक्षा के माध्यम से आने वाली यूरोपीय संस्कृति के व्यामोह में न फँसकर यदि अपनी भारतीयता बनाये रखे तो इससे उसका और समाज दोनों का हितसाधन होगा और वह उत्तरोत्तर प्रगति करती जाएगी।

वर्तमान में कुरूप सामाजिक समस्याओं; जैसे – दहेज प्रथा,शारीरिक व मानसिक हिंसा की शिकार स्त्री को अत्यन्त सजग होने की आवश्यकता है।

उसे भरपूर आत्मविश्वास एवं योग्यता अर्जित करनी होगी, तभी वह सशक्त व समर्थ व्यक्तित्व की स्वामिनी हो सकेगी अन्यथा उसकी प्राकृतिक कोमल स्वरूप- संरचना तथा अज्ञानता उसे समाज के शोषण का शिकार बनने पर विवश कर देगी।

नारी के इसी कल्याणमय रूप को लक्ष्य कर कविवर प्रसाद ने उसके प्रति इन शब्दों में श्रद्धा-सुमन अर्पित किये-

नारी! तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत-नभ -पग-तल में,
पीयुष-स्त्रोत-सी बहा करो, जीवन के सुन्दर समतल में ।







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