भ्रष्टाचार पर निबंध हिंदी में | essay on corruption in hindi | भ्रष्टाचार उन्मूलन पर निबंध 

समय समय पर हमें छोटी कक्षाओं में या बड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं में निबंध लिखने को दिए जाते हैं। निबंध हमारे जीवन के विचारों एवं क्रियाकलापों से जुड़े होते है। आज hindiamrit.com  आपको निबंध की श्रृंखला में  भ्रष्टाचार पर निबंध हिंदी में | essay on corruption in hindi | भ्रष्टाचार उन्मूलन पर निबंध प्रस्तुत करता है।

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भ्रष्टाचार पर निबंध हिंदी में | essay on corruption in hindi | भ्रष्टाचार उन्मूलन पर निबंध

इस निबंध के अन्य शीर्षक / नाम

(1) भ्रष्टाचार उन्मूलन एक बड़ी चुनौती पर निबंध
(2) भ्रष्टाचार के कारण और निवारण पर निबंध
(3) भ्रष्टाचार : कारण एवं निदान पर निबंध

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पहले जान लेते है भ्रष्टाचार पर निबंध हिंदी में | essay on corruption in hindi | भ्रष्टाचार उन्मूलन पर निबंध की रूपरेखा ।

निबंध की रूपरेखा

(1) प्रस्तावना
(2) भ्रष्टाचार का अर्थ एवं स्वरूप
(3) भ्रष्टाचार का कारण
(4) भ्रष्टाचार दूर करने के उपाय
(5) उपसंहार





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प्रस्तावना

आधी शताब्दी की स्वतन्त्रता के बाद भी भारत इच्छित उन्नति नहीं कर पाया है। स्वतन्त्रता से पूर्व संजोए गये जनता के स्वप्न अभी तक भी पूर्ण नहीं हो पाये हैं ।

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स्थिति इतनी विकट हो चुकी है कि आम लोग स्वतन्त्रता से पूर्व की स्थिति से तुलना करते हुए भी नहीं हिचकिचाते। देश में संसाधनों की भरमार होते हुए भी सामान्य जन अभावमय जीवन जीने के लिए विवश हैं ।

कहने के लिए देश ने विकास और उन्नति भी पर्याप्त की है परन्तु उसका लाभ सर्वसाधारण तक नहीं पहुंच पाया है। यदि इस स्थिति के मूल कारणों को खोजें तो हमें केवल दो कारण ही दिखाई देते हैं-एक जनसंख्या वृद्धि और दूसरा भ्रष्टाचार। यहाँ पर हम दूसरे कारण अर्थाति भ्रष्टाचार पर ही विचार करेंगे।





भ्रष्टाचार का अर्थ एवं स्वरूप

भ्रष्टाचार शब्द ‘भ्रष्ट एवं आचार’ दो अलग-अलग शब्दों से मिलकर
बना है ‘भ्रष्ट’ का अर्थ है बिगड़ा हुआ अथवा गिरा हुआ और ‘आचार’ का अर्थ है आचरण या व्यवहार।

दोनों का मिलकर अर्थ हुआ आचरण की भ्रष्टता या बिगड़ा हुआ व्यवहार।

समाज में विभिन्न स्तरों और क्षेत्रों में कार्यरत व्यक्तियों से जिस निष्ठा एवं ईमानदारी की अपेक्षा की जाती है उसका न होना ही भ्रष्टाचार है।

समाज, सरकार और संस्था में लाभ के पद पाकर के उनसे किसी भी प्रकार का आर्थिक लाभ उठाने और नियम विरुद्ध कार्य करके अपने इष्ट मित्रों और परिवार जनों को लाभ पहुँचाने से लेकर अन्यायपूर्वक दूसरो को हानि पढुँचाने से लेकर अन्यायपूर्वक दूसरों को हानि पहुँचाने और उन्हें उनके अधिकारों से वंचित करने का प्रयास करने आदि को भ्रष्टाचार के अन्तर्गत समझा जाना चाहिए।

मोटे तौर पर घूस लेना, पक्षपात करना, सार्वजनिक-धन एवं सम्पत्ति का दुरुपयोग करना स्वेच्छानुसार किसी को नियम विरुद्ध लाभ या हानि पहुँचाना आदि सभी भ्रष्टाचार हैं।







भ्रष्टाचार के कारण

भ्रष्टाचार की समस्या से छोटे बड़े सरकारी गैर सरकारी सभी व्यक्ति दखी हैं- अतः सरकारी संस्थागत एवं व्यक्तिगत स्तरों पर इसके कारणों को खोज निकालने का प्रयास किया जाता रहा है।

सादे विचार-विमर्श और मन्थन के पश्चात भ्रष्टाचार के निम्नलिखित प्रमुख कारणों को बताया जा सकता है।

(क) चरित्र एवं नैतिक मुल्यों का पतन

प्रायः देखा गया है कि राष्ट्रीय आपत्ति एवं संघर्ष के अवसर
पर हमारे जीवन में धेष्ठ मुल्यों, जैसे-एकता, त्याग, बलिदान आदि की भावनाएं वर्तमान रहती हैं।

स्वतन्त्रता संग्राम के समय हमारे समाज में भी नैतिक स्तर ऊँचा था । सभी स्वार्थ एवं वर्ग-भेद मिला कर देश के लिए कुछ कर गुजरने के लिए तत्पर थे। परन्तु स्वतन्त्रता के आ जाने के बाद देश के नैतिक और चारित्रिक स्तर में गिरावट आई।

हम सादगी और त्याग को छोड़करं भोम – विलार में लिप्त होते गये। भोग के साधनों के लिए अधिक से अधिक धन की आवश्यकता होती है अंतः किसी भी प्रकार धन एकत्रित करना मनुष्यों का उद्देश्य होता गया।

न्याय और सत्य आदि की बलि चढ़ा दी गयी। गलत साधनों का उपयोग करते समय उत्पन्न होने वाली हया-शर्म को त्याग दिया गया।

जीवन-स्तर सुधारने की धुन और उपभोगितावादी-संस्कृति के आगमन ने भ्रष्टाचीर के इसे विष को और अधिक घातक रूप प्रदान कर दिया। धर्म विद्यालय और परिवार अपने सदस्यों को नैतिकता सिखाने में असमर्थ हो गये।


(ख) कानून-व्यवस्था का शिथिल होना

भ्रष्टाचार में लिप्त होने बाले व्यक्ति को इस दुष्कर्म में लिप्त
होने से या तो नीति ज्ञान सहायक होता है या समाज का दण्ड विधान।

नैतिक शिक्षाओं के निष्प्रभावी होने की चर्चा पहले की जा चुकी है। अब प्रश्न रह जाता है दण्ड विधान का यह बात सही है कि जब आदमी की आत्मा उचित-अनुचित का निर्णय करने योग्य नहीं रहती जब नीति के बन्धन शिथिल हो जाते हैं तब दण्ड की कठोरता का डर ब्यक्ति को बुराइयों से रोकता है ।

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परन्तु हमारी न्याय पद्धति एवं न्याय व्यवस्था इतना शिथिल है कि अपराधी का निर्णय बहुत विलम्ब से होता है और अनेक बार अपराधी इस डर से छोड़ दिये जाते हैं कि कहीं किसी निरपराध व्यक्ति को दण्ड न मिल जाये ।

न्यायाधिकरण को इस शंका के आधार पर अपने स्वविवेक के उपयोग की व्यवस्था ने न्याय के क्षेत्र में भी भ्रष्टाचार को जन्म दिया और अब  भ्रष्टाचारी व्यक्ति अपने राजनैतिक सम्पर्कों, धन और शारीरिक बल के आतंक से निष्कलंक छूटने लगे।




(ग) सशक्त विपक्ष का अभाव

सरकारी स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त करने में शक्तिशाला
विपक्ष एक सकारात्मक भूमिका निभा सकता है ।

दूर्भाग्य की बात यह है कि हमने लोकतन्त्र की तो स्थापना कर ली परन्तु अभी तक, भी सशक्त एवं रचतात्मक विपक्ष की महत्ता को नही समझ पाये। यदि विपक्ष चाहे तो वह सरकार के मनमाने आचरण पर अंकृश लगा सकता है।

भारत में विपक्ष सदा दुर्बल और विभाजित रहा है। अपने हितों को सर्वोपरि रखने और विभाजित होने के कारण सरकार पर वांछित दबाव बनाने असमर्थ रहा है। दुर्बल लोकतन्त्र के कारण विपक्ष भी स्वार्थ से प्रेरित रहता है।


(घ) चुनावों की दोषपूर्ण पद्धति

भारतवर्ष में बहदलीय लोकतन्त्रीय राज्य व्यवस्था है। अनेक राष्ट
एवं क्षेत्रीय दल हर बार चुनावों में अपने अनेक उम्मीदवार खड़े करते है। उन्हें चुनाव लड़ाने के लिए साधनों एवं धन की आवश्यकता होती है।

यह धन दलों को चन्दों द्वारा प्राप्त होता है। यह चन्दा न तो दल के खातों में आता है न देने वाला इसे अपने खातों में दिखाता है। इसलिए इस धन के दुरुपयोग की सम्भावना बनी रहती है।

चुनावों के चन्दे देकर बडे-बडे पुँजीपति दल की सरकार बनने पर उससे अनुचित लाभ उठाता हैं, जिससे चन्दे में दी गयी अकृत सम्पत्ति के बदले लाभ उठाया जा सके। कई बार अपने चुनाव पर भारी खर्च करने वाले नेता जीत कर अनुचित तरीकों से आर्थिक लाभ उठाने का प्रयास करते हैं ।

यह लाभ उन्हें घूंस आदि के रूप में प्राप्त होता है। इस प्रकार लोकतन्त्र की व्यवस्था में धन के दुरुपयोग और राजनैतिक पद से लाभ उठाकर प्रशासन में हस्तक्षेप के कारण भी भ्रष्टाचार बढ़ता जाता है।




भ्रष्टाचार दूर करने के उपाय

भ्रष्टाचार को दूर करना आसान काम नहीं है परन्तु इसे समाप्त किए बिना हमारे देश का स्वतन्त्र अस्तित्व ही खतरे में आ सकता है; अतः इसे दूर तो करना ही होगा।

इसे करने के लिए सबसे पहले नैतिकता और राष्ट्रीय चरित्र के निर्माण की है। जब तक समाज के सभी वर्ग उचित-अनुचित के भेद को समझकर नैतिक आचरण प्रारम्भ नहीं करेंगे तब तक भ्रष्टाचार का उन्मूलन सम्भव नहीं है।

नैतिकता के साथ नागरिकों में राष्ट्रीयता का निर्माण करना भी आवश्यक है। जब तक हम अपने निजी हितों और स्वार्थों की अपेक्षा राष्ट्रीय हित को अधिक महत्त्व देना नहीं सीखेंगे तब तक भ्रष्टाचार दूर होना असम्भव् है।

भ्रष्टाचार में लिप्त व्यक्तियों को दोषी पा कर उन्हें कठोर दण्ड दिया जाना आवश्यक है। अतः यह भी आवश्यक है कि कानूनों और न्याय-पद्धति में तदनुसार सुधार किया जाये ।

भ्रष्टाचार की आत्मघाती -इस समस्या के समाधान के लिए चुनाव पद्धति में भी सुधार लाना आवश्यक है। सफल लोकतन्त्र नागरिकों की जागरूकता पर आश्रित होता है।

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अत: भ्रष्टांचार को मिटाने के लिए नागरिकों में जागरूकता पैदा करना भी आवश्यक है।




उपसंहार

देश की ऐसी अनेक समस्याएँ हैं जिनको सुलझाने के लिए हमें दलगत राजनीति से ऊपर उठकर राष्ट्रीय स्तर पर विचार और प्रयास करना आवश्यक है।

भ्रष्टाचार भी आज एक असाध्य रोग के रूप में व्याप्त है। जब तक सभी नागरिक ओर सभी दल निहित स्वार्थों और हितों से ऊपर उठकर इस पर विचार नहीं करेंगे और जब तक इस दानव से लड़ने का सकल्प नहीं करगे तब तक इससे छुटकारा सम्भव नही है ।









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