दहेज प्रथा पर निबंध हिंदी में | essay on dowry system in hindi

समय समय पर हमें छोटी कक्षाओं में या बड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं में निबंध लिखने को दिए जाते हैं। निबंध हमारे जीवन के विचारों एवं क्रियाकलापों से जुड़े होते है। आज hindiamrit.com  आपको निबंध की श्रृंखला में  दहेज प्रथा पर निबंध हिंदी में | essay on dowry system in hindi पर निबंध प्रस्तुत करता है।

Contents

दहेज प्रथा पर निबंध हिंदी में | essay on dowry system in hindi

इस निबंध के अन्य शीर्षक / नाम

(1) दहेज प्रथा : एक सामाजिक अभिशाप पर निबंध
(2) भारतीय समाज का कलंक दहेज पर निबंध
(3) दहेज प्रथा : हमारे समाज का कोढ़ है पर निबंध
(4) दहेज समस्या और उसका समाधान पर निबंध
(5) दहेज एक सामाजिक अभिशाप है पर निबंध


दहेज प्रथा पर निबंध हिंदी में | essay on dowry system in hindi

पहले जान लेते है दहेज प्रथा पर निबंध हिंदी में,essay on dowry system in hindi पर निबंध की रूपरेखा ।

निबंध की रूपरेखा

(1) प्रस्तावना

(2) दहेज का समाज पर कुप्रभाव

(3) दहेज प्रथा समाज का आधुनिक दोष है

(4) दहेज प्रथा का अनौचित्य

(5) दहेज प्रथा की समाप्ति के उपाय

(6) उपसंहार

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प्रस्तावना

आज हमारा देश एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहाँ से हमें एक ओर तो अपना उज्ज्वल अतीत दिखाई पड़ता है और दूसरी ओर कल्पनाओं के सुनहरे रंग में रंगा हुआ दूरगामी भंविष्य जिसमें आशा की उज्ज्वल किरणें कभी टिमटिमाती हैं और कभी डगमगाती-सी डूब जाती हैं।

इसमें सन्देह नहीं कि हमारा अतीत उज्ज्वल था, यह भी आशा की जा सकती है कि अतीत से प्रेरणा प्राप्त कर हम उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करेंगे, किन्तु जब हम बदलते हुए समाज की चौड़ी सड़क पर डग भरते ही हैं कि कोई न कोई बड़ी, बाधा हमारा रास्ता रोक कर खड़ी हो जाती है।

आज हमारे समाज में कूछ ऐसी रूढ़ियाँ और कुरीतियाँ जड़ पकड़ गयी हैं जो हमें आगे बढ़ने से रोकती हैं। इन्हीं कुरीतियों में से एक अत्यन्त कुत्सित एवं घृणित कुरीति दहेज प्रथा भी है।

दहेज का समाज पर कुप्रभाव-दहेज प्रथा एक ऐसी घातक एवं जघन्य प्रथा है कि जिसने हमारे समाज मजबूत ढाँचे को ही लड़खड़ा दिया है और हमारी सामाजिक व्यवस्था की गाड़ी की धुरी मानो तड़तड़ा कर विखण्डित हो जाना चाहती है।

दहेज की इस डायन ने समाज में भाई और बहन के बीच में द्वेष की दीवार खड़ी कर दी है, पिता और पुत्री के बीच में घृणा की चिनगारी सुलगा दी है, पति और पत्नी के पावन सम्बन्ध अनाचार और स्वार्थ का विष घोल दिया है-क्या नहीं किया इस पापिन दहेज प्रथा ने? इसी कारण आज समाज में पुत्री पिता पर भार है, भाई बहन से लाचार है, पति को पत्नी से नहीं धन से प्यार है। ये सब इस कुल कलंकिनी दहेज प्रथा के ही कुपरिणाम हैं।

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दहेज के शिकार बन कर समाज के कितने ही धनवान्- भिखारी बन गये। अगणित कुलीन कन्याएँ विष का गोद में समा गयीं और कुछ ऐसी भी हैं जो ठीक समय पर वैवाहिक सम्बन्ध न हो पाने से जीवन के प्रकाशमान राजमार्ग से भटक कर ऐसी टेढ़ी-मेढ़ी पगडण्डी पर चल पड़ती हैं जो उन्हें पाप और सन्ताप से परिपूर्ण अन्धकारमयी नरक की नगरी में पहुँचा देती हैं।

समाज का कोई वर्ग, जीवन का कोईक्षेत्र दहेज के कुप्रभाव से सुरक्षित नही और आज यह कुत्सित प्रथा हमारे समाज में इतनी गहरी जड़ पकड़ गयी है कि इसको निर्मूल करने के लिए कोई उपाय सफल होता दिखाई नहीं पड़ता ।






दहेज-प्रथा समाज का आधुनिक दोष है

स्वार्थ से प्रेरित कुछ लोग इस प्रथा को भारतीय संस्कृति के अन्तर्गत प्राचीन परम्परा सिद्ध करने का प्रयत्न करते हैं, यहाँ तक कि कुछ सुशिक्षित सज्जन वेदों जैसे पावन ग्रन्थों में भी इस प्रथा का मूल खोजने का प्रयास करते हैं।

परन्तु हमारे जिन पूज्य महर्षियों ने वेदों और पुराणों की रचना की थी, उनके हृदय ज्ञानलोक से प्रकाशित हो चुके थे । उनमें से किसी ने इस निन्दनीय प्रथा के समर्थन में मंत्र रचना की हो, यह सर्वथा असम्भव है।

यह बात मानी जा सकती है कि पिता अपनी पत्री को उपहार दे, उसकी सुविधा के लिए उपकरण तथा सामान दे, अपनी कन्या को पतिगृह को विदा करते। समय सुन्दर वस्त्र और आभूषण दे।

यह भी बात कुछ समझ में आती है कि अपनी शक्ति के अनुसार समय- समय पर वह उसकी सहायता कर दे क्योंकि कोई भी पिता अपनी सन्तान को दुः खी नहीं देखना चाहता किंतु कन्यारत्न दुष्कुलादपि कह कर कन्या को रत्न मानने वाले ऋषि, अपनी कन्या को देने के लिए उसके लिए वर खरीदे या इस प्रकार की अनुमति दे, इस पर कदापि विश्वास नहीं किया जा सकता।

यदि अतीत के इतिहास पर दृष्टिपात किया जाए तो सच्चाई इसके विपरीत दिखाई पड़ती है। वैदिक काल के सामन्ती युग तक दहेज का कोई अवशेष दिखाई नहीं पड़ता । एक-एक कन्यारत्न को पाने के लिए अनेकों राजकुमार स्वयंवरों में जाकर अपनी योग्यता प्रमाणित करते थे।

शान्तनु जैसे राजा एक सामान्य मल्लाह से उसकी कन्या के साथ विवाह के लिए याचना करते थे। राम और अर्जुन जैसे श्रेष्ठ वीरों को सुयोग्य कन्या के साथ विवाह के लिए अपनी वीरता का प्रमाण देना होता था ।

यह कैसी विडम्बना है कि एक व्यक्ति किसी को अमूल्य रत्न दे और रत्न का ग्राहक रत्न देने वाले से ही उसका मूल्य मॉगे ? हमारे समाज में यह रोाग सर्वथा आधृनिकतम है। बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में उत्पन्न क्रमशः बढ़ती हुई यह व्याधि अपनी चरम सीमा पर पहुँच गयी है।






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दहेज-प्रथा का अनौचित्य

स्वतन्त्रता के पश्चात देश में प्रजातन्त्र की स्थापना हुई। हमारे संविधान ने स्त्री और पुरुष को समान अधिकार दिये परन्तु यह कैसी विपरीत गति है कि एक ओर तो हम स्तीरी को पुरुष के समान स्थान व सम्मान देना चाहते हैं और दूसरी ओर हमारे समाज में दहेज जैसी कुप्रथा को प्रोत्साहन मिलता जा रहा है जो नारी के अधिकारों का हनन करती जा रही है।

वैसे समाज के सभी लोग इसके दुष्परिणामों से परिचित हैं, सभी इस बुराई को निर्मूल करना चाहते हैं। पर यह काली कमली समाज को ऐसी लिपटी है कि दिन-दिन भीगती है और भारी होती जाती है।

समाज की छोटी-मोटी व्यवस्था तो क्या सरकार के बनाये मजबूत कानून भी इसको निर्मूल करने में कारगर सिद्ध नहीं हो पा रहे हैं परन्तु इसमें रंचमात्र भी सन्देह नहीं है कि जब तक इस दुर्निवार रोग का परिहार न होगा तब तक समाज में सुख-शान्ति की योजना कोरी कल्पना मात्र ही रहेगी।






दहेज-प्रथा की समाप्ति के उपाय

दहेज प्रथा के अन्त के लिए कुछ सुझाव प्रस्तुत किये जाते हैं। यदि
इनको काम में लाया जाये तो इस प्रथा का अन्त हो सकता है।

1. इस कुप्रथा के अन्त के लिए युवक वर्ग को सामने आना चाहिए। यदि लड़के का पिता उसके विवाह के लिए दहेज की माँग करता है या कन्या का पिता दहेज देकर विवाह करना चाहता है तो ऐसी दशा में लड़के और लड़की, दोनों को ही विवाह करने से इन्कार कर देना चाहिए।

2. सरकार ने दहेज की समाप्ति के लिए कानून बनाया हुआ है। सरकार उसका कठोरता से पालन करने के लिए प्रयत्नशील है, फिर भी यदि कोई लुकछिप कर दहेज की मांग करता है तो समाज के व्यक्तियों को चाहिए कि वे सरकार को उसकी सूचना दें।

3. इस प्रथा की समाप्ति के लिए बड़े लोगों को आगे आना चाहिए जिनके लोग प्रशंसक हैं, अगर वह लोग इस प्रथा के खिलाफ खड़े होंगे तो निश्चित ही लोग भी इस प्रथा के खिलाफ खड़े होंगे।

4. इस प्रथा की समाप्ति के लिए समाज सुधारकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।

5. इस विषय में शिक्षक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। स्कूलों और कालेजों में पढ़ने वाले युवक- युवतियों को इस प्रथा की हानियाँ समझायी जाएँ और प्रेरित किया जाये कि वे माता-पिता द्वारा दहेज लेकर या देकर किये गये विवाह सम्बन्ध को स्वीकार न करें। हमारे युवक-युवतियों को यह तथ्य समझ लेना चाहिए,कि धन के लोभ में किया गया वैवाहिक सम्बन्ध सफल नहीं हो सकता।

“प्रेम खरीदा नहीं जाता, वह समर्पण चाहता है।”





उपसंहार

दहेज प्रथा समाज के लिए घातक रोग है। इससे समाज को अनेक हानियाँ हैं । इस कुप्रथा को समाप्त करने के लिए सरकार को कड़ाई करनी चाहिए।

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समाज के प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वहकानून के पालन में सरकार का पूरा सहयोग करे। आज देश के सभी युवक-युवतियों का यह कर्तव्य है कि वे इस भयानक पिशाच को मिटाने के लिए कमर कसकर खड़े हो जाएँ और जब तक इसका अन्त न हो, चैन की साँस न लें।

इसका अन्त होने पर ही हमारा समाज विकसित और राष्ट्र उन्नत हो सकेगा । दहेज मानव को छोटा बना देता है।

“काम नहीं चलता दहेज से इसकी माँग बनाती छोटा।
दहेज लालच की काई से, मानव मन बन जाता खोटा॥
पुत्र बेचकर खुश ऊपर से, लेकिन अन्तर रोता है।
द्रव्य-वितृष्णा बढ़ जाती है, नहीं चैन से सोता है।॥”



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