परमाणु एवं अणु की परिभाषा एवं निर्माण ,प्रमुख परमाणु मॉडल का परिचय

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परमाणु एवं अणु की परिभाषा एवं निर्माण , प्रमुख परमाणु मॉडल का परिचय

परमाणु एवं अणु की परिभाषा एवं निर्माण ,प्रमुख परमाणु मॉडल का परिचय
परमाणु एवं अणु की परिभाषा एवं निर्माण ,प्रमुख परमाणु मॉडल का परिचय

प्रमुख परमाणु मॉडल का परिचय

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परमाणु की संरचना को समझाने तथा इसके मुख्य गुणों को स्पष्ट करने के लिए शृंखलागत प्रयोग किए गए तथा यह पाया गया कि परमाणु वे सूक्ष्मतम कण हैं, जिनसे अणु बनते हैं तथा जो रासायनिक अभिक्रियाओं में बिना अपघटित हुए भाग लेते हैं।

डाल्टन का परमाणु सिद्धान्त Dalton’s Atomic Theory

डाल्टन में प्रयोगों एवं प्रेक्षणों के परिणामों के आधार पर परमाणु की निम्न परिकल्पनाएँ दीं –
(i) प्रत्येक तत्व अनेक सूक्ष्म कणों से मिलकर बना है, जिन्हें परमाणु (Atoms) कहते हैं।
(ii) परमाणु तत्व का वह सूक्ष्मतम कण है, जिसे पुनः विभाजित नहीं किया जा सकता तथा जो रासायनिक अभिक्रिया के अन्तराल में उसी प्रकार बना रहता है।
(iii) एक ही तत्व के परमाणु, द्रव्यमान एवं अन्य सभी गुणों में समान होते हैं।
(iv) दो या दो से अधिक तत्वों के दो या दो से अधिक परमाणु सरल गुणित अनुपात (1:1 या 1:2 या 2:1 आदि) में रासायनिक संयोग करके यौगिक परमाणु (जिन्हें अब अणु कहा जाता है) बनाते हैं।
(v) भिन्न-भिन्न तत्वों के परमाणु भार एवं द्रव्यमान भिन्न भिन्न होते हैं। अतः संक्षेप में, डाल्टन के परमाणुवाद के आधार पर, परमाणु तत्व का वह छोटे-से-छोटा अविभाज्य कण है, जो किसी भी रासायनिक अभिक्रिया में भाग ले सकता है।

आधुनिक परमाणु सिद्धान्त Modern Atomic Theory

19वीं शताब्दी के अन्त तथा 20वीं शताब्दी के आरम्भ तक थॉमसन, रदरफोर्ड, चैडविक आदि वैज्ञानिकों ने प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध किया कि परमाणु तत्व का अविभाज्य नहीं है, बल्कि इलेक्ट्रॉन (Electron), प्रोटॉन (Proton) तथा न्यूट्रॉन (Neutron) आदि कणों से मिलकर बना है। इस प्रकार आधुनिक वैज्ञानिक खोजों के उपरान्त डाल्टन के परमाणु सिद्धान्त में विभिन्न संशोधन किए गए, ये निम्न प्रकार हैं।

(i) परमाणु विभाज्य है, अविभाज्य नहीं अर्थात् यह इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन, न्यूट्रॉन आदि कणों से मिलकर बना है तथा उनमें विभाजित भी हो सकता है।
(ii) डाल्टन के परमाणुवाद के अनुसार, परमाणु सरल संख्यात्मक अनुपातों में संयोजित होकर यौगिक बनाते हैं, लेकिन यौगिक में तत्वों के परमाणुओं में सरल गुणित अनुपात होना आवश्यक नहीं है। उदाहरण प्रोटीन, स्टॉर्च आदि में यह अनुपात सरल नहीं होता है।
(iii) तत्व का मूल स्वरूप परमाणु क्रमांक है, न कि परमाणु भार ।
(iv) रासायनिक अभिक्रिया परस्पर इलेक्ट्रॉनों के आदान-प्रदान द्वारा ही होती है।
(v) सामान्यतया परमाणुओं को न तो उत्पन्न किया जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है, किन्तु नाभिकीय विखण्डन प्रक्रिया द्वारा एक तत्व के परमाणुओं को दूसरे तत्व के परमाणुओं में परिवर्तित किया जा सकता है।
(vi) यौगिक अणु हैं, परमाणु नहीं डाल्टन के नियमानुसार, यौगिक अणु होते हैं। सभी तत्वों के परमाणु संयुक्त होकर यौगिक का निर्माण करते हैं, यौगिक के परमाणुओं का नहीं।
(vii) एक ही तत्व के परमाणु भिन्न-भिन्न द्रव्यमानों के भी हो सकते हैं। ऐसे परमाणुओं को समस्थानिक (Isotopes) कहा जाता है।
(viii) भिन्न-भिन्न तत्वों के परमाणुओं के परमाणु भार समान भी हो सकते हैं। ऐसे परमाणु समभारिक (Isobars) कहलाते हैं। अतः संक्षेप में आधुनिक परमाणु सिद्धान्त के आधार पर यह कहा जा सकता है कि परमाणु, तत्व का वह छोटे से छोटा कण है जो रासायनिक अभिक्रिया में भाग लेता है, परन्तु स्वतन्त्र अवस्था में नहीं रह सकता।

अणु की परिभाषा / what is Molecule

किसी पदार्थ (तत्व या यौगिक) का वह सूक्ष्मतम कण जो स्वतन्त्र अवस्था में रह सकता है तथा जिसमें पदार्थ के सभी गुणधर्म निहित होते हैं, अणु कहलाता है।

पदार्थ के अणुसूत्र (Molecular formula) – से उस पदार्थ का एक अणु प्रदर्शित होता है। उदाहरण- अमोनिया के अणु को NH, जल के अणु को HO तथा क्लोरीन के अणु को CI से प्रदर्शित करते हैं।

अणुओं के प्रकार Types of Molecules

उपस्थित परमाणुओं की प्रकृति के आधार पर अणु दो प्रकार के होते हैं

(i) समपरमाणुक अणु (Homoatomic Molecules)
ऐसे अणु जो समान प्रकार के परमाणुओं के संयोजन से बने होते हैं,समपरमाणुक अणु कहलाते हैं। उदाहरण- हाइड्रोजन (H2), ऑक्सीजन (O2), नाइट्रोजन (N2) आदि। अणु में उपस्थित परमाणुओं की संख्या उस अणु की परमाणुकता (Atomicity) कहलाती है। अक्रिय गैसें (Inert gases) जैसे He, Ne,Ar, Kr, Xe आदि एकपरमाणुक (Monoatomic) हैं। हाइड्रोजन (Hg), नाइट्रोजन (N2), क्लोरीन (Cl2) द्विपरमाणुक (Diatomic); ओजोन (O3) त्रिपरमाणुक (Triatomic) तथा फॉस्फोरस (P4) चतुष्परमाणुक (Tetratomic) अणु हैं।

(ii) विषमपरमाणुक अणु (Heteroatomic Molecules)
दो या दो से अधिक भिन्न प्रकार के परमाणुओं के संयोजन द्वारा बना अणु विषमपरमाणुक अणु कहलाता है। उदाहरण- जल (H2O),अमोनिया (NHg), हाइड्रोजन क्लोराइड (HCl) आदि।

परमाणु की संरचना Structure of Atom

आधुनिक खोजों के परिणामस्वरूप जे जे थॉमसन (JJ Thomson), रदरफोर्ड (Rutherford), चैडविक (Chadwick) आदि वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया कि परमाणु विभाज्य है। यह विभिन्न प्रकार के अतिसूक्ष्म कणों से मिलकर बना है, जिनको मूल कण या स्थायी कण कहते हैं। इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन परमाणु संरचना के स्थायी मूल कण हैं। भिन्न-भिन्न तत्वों के परमाणुओं में इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन की संख्या भिन्न-भिन्न होती है, जिसके कारण तत्वों के गुणों में भी भिन्नता होती है।

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थॉमसन का परमाणु मॉडल Atomic Model of Thomson

धन आवेश जे जे थॉमसन (J J Thomson) ने सन् 1904 में प्रथम परमाणु मॉडल प्रस्तुत किया। उनके अनुसार, परमाणु एक अतिसूक्ष्म, गोलाकार, विद्युत उदासीन कण है, जिसमें धनावेशित कण प्रोटॉन समान रूप से फैले होते हैं तथा ऋणावेशित इलेक्ट्रॉन उसमें इस प्रकार धँसे होते हैं जैसे तरबूज में बीज। ऋणावेश व धनावेश परिमाण में समान होते हैं अतः परमाणु विद्युत रूप से उदासीन होते हैं। इस मॉडल को परमाणु का तरबूज मॉडल या प्लम-पुडिंग मॉडल भी कहा जाता है। इस मॉडल के द्वारा अन्य वैज्ञानिकों द्वारा किये गये
प्रयोगों जैसे x-कण प्रकीर्णन प्रयोग तथा परमाणु के स्पेक्ट्रम की व्याख्या नहीं की जा सकी, अतः इसे अमान्य कर दिया गया।

रदरफोर्ड का -कण प्रकीर्णन प्रयोग और नाभिक की खोज

अरनेस्ट रदरफोर्ड ने सन् 1919 में परमाणु की संरचना ज्ञात करने के लिए सोने की बारीक पन्नी (Gold foil) पर -कणों (हीलियम, Het के नाभिक) की  बमबारी (Bombardment) की और देखा कि अधिकांश कण धातु पन्नी को पार कर सीधी रेखा में चले गए, कुछ पन्नी से बाहर निकलते समय अपने मार्ग से विक्षेपित (Deflect) हो गए और बहुत ही थोड़े कण पन्नी से प्रतिकर्षित (Repel) होकर लौट गए।

अल्फा-कण प्रकीर्णन से निष्कर्ष
(Inference from α-Particle Scattering Experiment)

(i) चूँकि अधिकांश – कण (लगभग 99%) बिना विक्षेपित हुए आर-पार सीधे निकल जाते हैं, अत: यह स्पष्ट होता है कि परमाणु का अधिकांश भाग रिक्त (खाली) होता है।
(ii) परमाणु के केन्द्र के निकट – कण अपने पथ से विक्षेपित हो जाते हैं, जो दर्शाते हैं कि परमाणु के केन्द्र में धनावेशित भाग उपस्थित होता है।
(iii) ऐसे बहुत कम x-कण (लगभग 20000 कणों में से 1 कण) थे, जोकि टकराकर पुनः अपने ही मार्ग पर लौट आए। यह परमाणु के केन्द्र में एक अति सूक्ष्म, अति सघन, धनावेशित व भारी भाग (Positively charged,dense and rigid portion) की उपस्थिति को दर्शाता है, जिसे नाभिक (Nucleus) कहते हैं।

रदरफोर्ड का परमाणु मॉडल (Rutherford’s Atomic Model)

रदरफोर्ड ने निम्न नाभिकीय मॉडल प्रस्तुत किया –
(i) परमाणु अति सूक्ष्म, गोलाकार, विद्युत उदासीन कण है।
(ii) परमाणु का केन्द्र धनावेशित होता है, जिसे नाभिक (Nucleus) कहा जाता है। इलेक्ट्रॉनों का द्रव्यमान उपेक्षणीय होने के कारण परमाणु का लगभग सम्पूर्ण द्रव्यमान (अर्थात् प्रोटॉन और न्यूट्रॉन) नाभिक में स्थित होता है।
(iii) इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर वृत्ताकार पथों में चक्कर लगाते हैं। इस प्रकार परमाणु का अधिकांश भाग रिक्त होता है।
(iv) चूँकि परमाणु विद्युत उदासीन होता है, अत: इलेक्ट्रॉनों की संख्या प्रोटॉनों की संख्या के बराबर होती है।
(v) नाभिक का आकार परमाणु के आकार की तुलना में काफी कम होता है।
(vi) नाभिक की त्रिज्या 10-12 सेमी और परमाणु की त्रिज्या 108 सेमी होती है।
(vii) इलेक्ट्रॉनों पर धनावेशित नाभिक (Positive nucleus), आकर्षण बल
आरोपित करता रहता है, किन्तु इलेक्ट्रॉन नाभिक में नहीं गिरते हैं, क्योंकि
इलेक्ट्रॉनों के परिक्रमण (Rotation) से उत्पन्न अपकेन्द्रीय बल नाभिक के आकर्षण बल को सन्तुलित कर देता है।

नोट – रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल की तुलना सौर मण्डल से की जाती है। जिस प्रकार, सौर मण्डल में ग्रह सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करते रहते हैं उसी प्रकार, इलेक्ट्रॉन भी नामिक के चारों ओर घूमते रहते हैं। जिस कारण इन्हें ग्रहीय इलेक्ट्रॉन (Planetary electron) भी कहा जाता है।

रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल के दोष
Defects of Rutherford’s Atomic Model

(i) मैक्सवेल के विद्युत चुम्बकीय सिद्धान्त के अनुसार, प्रत्येक आवेशित कण घूमते समय चुम्बकीय विकिरण के कारण अपनी ऊर्जा का ह्रास करता है। ऊर्जा में कमी होने के कारण इलेक्ट्रॉन की नाभिक से दूरी कम होती चली जाएगी और अन्त में यह नाभिक में गिर जाएगा अर्थात् यह मॉडल परमाणु के स्थायित्व की व्याख्या नहीं कर सका।
(ii) नाभिक के चारों ओर असीमित वृत्तीय कक्षाएँ सम्भव हैं इनमें से इलेक्ट्रॉन किन कक्षाओं में घूमते हैं, उसमें उनका वेग कितना होता है आदि की जानकारी रदरफोर्ड के मॉडल से नहीं होती है।
(iii) परमाणु का उत्सर्जन स्पेक्ट्रम सतत् नहीं होता जबकि रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल के अनुसार इलेक्ट्रॉनों की ऊर्जा के सतत् ह्रास के कारण स्पेक्ट्रम सतत् होना चाहिए। रदरफोर्ड के मॉडल से इस तथ्य की भी व्याख्या नहीं हो पायी।

नाभिक की संरचना (Structure of Nucleus)

परमाणु के केन्द्र पर स्थित धनावेशित भाग को नाभिक कहते हैं। नाभिक का आकार अत्यन्त छोटा होता है। परमाणु के नाभिक की त्रिज्या लगभग 10^-15 मीटर होती है। नाभिक की रचना प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन से होती है। नाभिक का द्रव्यमान प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन पर निर्भर करता है, जबकि नाभिक का धनावेश केवल प्रोटॉनों के कारण होता है। नाभिक में उपस्थित सभी मूल कणों अर्थात् प्रोटॉनों तथा न्यूट्रॉनों को न्यूक्लिऑन (Nucleon) कहते हैं, जो नाभिक के अन्दर उपस्थित अत्यन्त प्रबल बल के कारण परस्पर बंधे रखते हैं, ये बल नाभिकीय बल कहलाते हैं।

परमाणु के अभिलक्षण
Characteristics of an Atom

परमाणु क्रमांक या परमाणु संख्या व परमाणु भार या द्रव्यमान संख्या किसी परमाणु के अभिलाक्षणिक गुण होते हैं।

परमाणु क्रमांक या परमाणु संख्या (Atomic Number)

किसी तत्व के नाभिक में उपस्थित कुल प्रोटॉनों की संख्या उस तत्व का परमाणु क्रमांक कहलाती है। इसे Z द्वारा निरूपित करते हैं। किसी भी तत्व का परमाणु विद्युत उदासीन होता है, अत: उदासीन परमाणु में प्रोटॉनों और इलेक्ट्रॉनों की संख्या समान होती है। अत:

परमाणु क्रमांक (Z) = प्रोटॉनों की संख्या = इलेक्ट्रॉनों की संख्या

परमाणु क्रमांक का महत्त्व
(Significance of Atomic Number)

परमाणु क्रमांक की सहायता से निम्न का ज्ञान होता है
(i) परमाणु के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास का
(ii) परमाणु में प्रोटॉनों अथवा इलेक्ट्रॉनों की संख्या का।
(iii) तत्वों के गुणधर्मों का, क्योंकि ये परमाणु क्रमांक पर निर्भर होते हैं।

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द्रव्यमान संख्या या परमाणु भार
(Mass Number or Atomic Weight)

किसी परमाणु के नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों और न्यूट्रॉनों (न्यूक्लिऑनों) की संख्या के योग को उस परमाणु की द्रव्यमान संख्या (A) कहते हैं।
द्रव्यमान संख्या = प्रोटॉनों की संख्या + न्यूट्रॉनों की संख्या
A = p+n= Z+ n
जहाँ, A = द्रव्यमान संख्या, p = प्रोटॉनों की संख्या, n = न्यूट्रॉनों की संख्या
द्रव्यमान संख्या किसी तत्व का मूल लक्षण नहीं है, क्योंकि यह किसी तत्व के भिन्न-भिन्न परमाणुओं के लिए भिन्न-भिन्न हो सकती है।
नोट – चूँकि प्रोटॉन एवं न्यूट्रॉन का सापेक्ष द्रव्यमान लगभग एक होता है, जबकि इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान इनके सापेक्ष नगण्य होता है। इस प्रकार किसी परमाणु का परमाणु द्रव्यमान (अथवा परमाणु भार) उसकी द्रव्यमान संख्या (A) के लगभग बराबर होता है।

परमाणु क्रमांक तथा द्रव्यमान संख्या में संबंध

हम जानते हैं कि किसी परमाणु का परमाणु क्रमांक (Z), उस परमाणु के नाभिक में प्रोटॉनों की कुल संख्या के बराबर होता है तथा परमाणु की द्रव्यमान संख्या (A) परमाणु नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों और न्यूट्रॉनों की कुल संख्या के बराबर होती है।
अर्थात् परमाणु संख्या (Z) = प्रोटॉनों की संख्या (p)
तथा द्रव्यमान संख्या (A) = प्रोटॉनों की संख्या (p) + न्यूट्रॉनों की संख्या (m)
द्रव्यमान संख्या(A) = परमाणु संख्या(Z) + न्यूट्रॉनों की संख्या(n)

अतः न्यूट्रॉनों की संख्या (n) = द्रव्यमान संख्या (A) – परमाणु संख्या (z)
न्यूट्रॉनों की संख्या (n) = परमाणु भार – परमाणु क्रमांक

परमाणु इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन द्वारा निर्मित होता है, अतः किसी परमाणु का परमाणु द्रव्यमान उसके अवयवियों अर्थात् इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन एवं न्यूट्रॉन के कुल द्रव्यमान के योग के बराबर होता है।

बोर का परमाणु मॉडल
Bohr’s Atomic Model

बोर के अनुसार, अपरमाण्विक कणों के विषय में प्राचीन पारम्परिक नियम वैध नहीं रह सकते हैं। रदरफोर्ड के मॉडल पर उठी आपत्तियों को दूर करने के लिए नील्स बोर (1913) ने मैक्स प्लांक के क्वाण्टम सिद्धान्त का उपयोग किया, जिसके अनुसार, ऊर्जा का उत्सर्जन या अवशोषण सतत् नहीं होता बल्कि ऊर्जा के छोटे पैकेटों के रूप में होता है, जिन्हें क्वाण्टा (Quanta) कहते हैं।

प्लांक क्वाण्टम सिद्धान्त के आधार पर बोर ने परमाणु मॉडल के विषय में निम्न अवधारणाएं प्रस्तुत की –
(i) इलेक्ट्रॉन  लगातार बिना ऊर्जा खोए अपनी अनुमत कक्षाओं (Respective orbits) में घूमते रहते हैं। इस प्रकार प्रत्येक कक्षा की ऊर्जा की मात्रा निश्चित होती है। अतः इन्हें ऊर्जा स्तर (Energy level) भी कहते हैं। एक परमाणु में 4 ऊर्जा स्तर होते है। इन कक्षाओं (या कोशों) को K, L, M, N… अक्षरों या संख्याओं 1, 2, 3, 4…. से प्रदर्शित किया जाता है।

(ii) इलेक्ट्रॉन केवल उन्हीं कक्षों में घूम सकता है, जिनमें कोणीय संवेग का मान h/2π का पूर्ण गुणक होगा।

(iii) परमाणु में इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा (E), उसकी कक्षा की त्रिज्या (r) पर निर्भर करती है। त्रिज्या जितनी अधिक होगी ऊर्जा भी उतनी ही अधिक होगी। पहली, दूसरी, तीसरी कक्षाओं की नाभिक से दूरी (अर्थात् त्रिज्या) तथा उनके इलेक्ट्रॉनों ऊर्जा क्रमश: बढ़ती जाती है।

(iv) साधारणत: इलेक्ट्रॉन, परमाणु में निम्नतम ऊर्जाओं की कक्षाओं में रहते हैं यह अवस्था उनकी मूल अवस्था (Ground state) कहलाती है। जब इलेक्ट्रॉन अपनी कक्षा से उच्च ऊर्जा वाली कक्षा में कूदता है तो ऊर्जा का अवशोषण होता है व इलेक्ट्रॉन अपनी कक्षा से निम्न ऊर्जा की कक्षा में कूदता है, तो ऊर्जा का उत्सर्जन होता है अर्थात् किसी परमाणु द्वारा ऊर्जा का अवशोषण या उत्सर्जन केवल तभी किया जाता है जब इलेक्ट्रॉन एक ऊर्जा स्तर से दूसरे ऊर्जा स्तर तक जाता है।

∆E = E2 – E1 = hc / λ
जहाँ, E2 =n = 2 स्तर की ऊर्जा
E1 =n = 1 स्तर की ऊर्जा

कक्षा की त्रिज्या जितनी अधिक होगी, ऊर्जा का मान भी उतना अधिक होगा।

बोर मॉडल की कमियाँ Drawbacks of Bohr Model

(i) बोर के मॉडल से केवल एक इलेक्ट्रॉन वाले परमाणुओं (जैसे H2) या आयनों (जैसे He+) के उत्सर्जन स्पेक्ट्रम की व्याख्या की जा सकती है। यह मॉडल एक इलेक्ट्रॉन अधिक वाले परमाणुओं या आयनों के उत्सर्जन स्पेक्ट्रम की व्याख्या नहीं कर सका।
(ii) यह मॉडल हाइड्रोजन के स्पेक्ट्रम की सूक्ष्म संरचना की भी व्याख्या नहीं कर सका।

(iii) यह मॉडल जीमन प्रभाव (चुम्बकीय क्षेत्र में स्पेक्ट्रमी रेखाओं का
विघटन) व स्टार्क प्रभाव (विद्युत क्षेत्र में स्पेक्ट्रमीत रेखाओं का विघटन) की भी व्याख्या नहीं कर सका।

तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास
Electronic Configuration of Elements

किसी तत्व के परमाणु की विभिन्न कक्षाओं (या कोशों) में इलेक्ट्रॉनों की व्यवस्था, उस तत्व का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास कहलाती है। इसे लिखने के लिए नील बोर तथा बरी नामक वैज्ञानिकों ने कुछ नियम निर्धारित किये जिन्हें बोर-बरी के नियम (Bohr Burry schems) कहते हैं। ये नियम निम्न प्रकार हैं

(i) किसी कोश में इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम संख्या 2n 2 होती है, जहाँ उस कक्षा की क्रम संख्या है।

कोश  कोश की क्रम संख्या(n)  इलेक्ट्रॉनों की संख्या (2n²)
K                       1                         2
L                       2                         8
M                      3                        16
N                      4                        32

(ii) बाह्यतम कोश (Outermost shell) में अधिकतम 8 इलेक्ट्रॉनों तथा उसके पहले वाले कोश में (Preceeding shell) में अधिकतम 18 इलेक्ट्रॉन हो सकते हैं।
(iii) प्रथम कक्षा में इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम संख्या 2 होती है। प्रथम कक्षा में 2 इलेक्ट्रॉन होने के बाद द्वितीय कक्षा में इलेक्ट्रॉन भरने प्रारम्भ हो जाते हैं।
(iv) किसी भी कक्षा में 8 इलेक्ट्रॉन होने के बाद उससे अगली कक्षा में इलेक्ट्रॉन भरने प्रारम्भ हो जाते हैं।
(v) सबसे बाहर वाली कक्षा (बाह्यतम् कोश) में 2 इलेक्ट्रॉनों से अधिक तथा उससे अन्दर वाली कक्षा (Penultimate shell) में 8 इलेक्ट्रॉनों से अधिक तब तक नहीं हो सकते, जब तक कि बाहर से तीसरी भीतरी कक्षा में इलेक्ट्रॉनों की संख्या 2n 2 नियम के अनुसार अधिकतम न हो जाये।

आयनों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास
Electronic Configuration of lons

आवेश युक्त परमाणु अथवा परमाणुओं के समूह को आयन कहते हैं। जिन आयनों पर धनावेश होता है, उन्हें धनायन कहते हैं व जिन आयनों पर ऋणावेश होता है, उन्हें ऋणायन कहते हैं। परमाणु द्वारा इलेक्ट्रॉनों के त्यागने अथवा ग्रहण करने पर आयनों का निर्माण होता है। आयनों पर धनावेश या ऋणावेश की संख्या उनके द्वारा त्यागे गये या ग्रहण किये गये इलेक्ट्रॉनों की संख्या के बराबर होती है। तत्वों के आयनों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास ज्ञात करने के लिए सर्वप्रथम आयन में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों की संख्या को निम्न सूत्रों की सहायता से ज्ञात कर लेते हैं।
धनायन के लिए इलेक्ट्रॉनों की संख्या = परमाणु क्रमांक – कुल धनावेश
ऋणायन के लिए इलेक्ट्रॉनों की संख्या = परमाणु क्रमांक + कुल ऋणावेश

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अब तत्व (उदासीन) का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास लिखकर उसमें उतने ही इलेक्ट्रॉन घटा या बढ़ा दिये जाते हैं।
उदाहरण— Ca+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास निम्न प्रकार ज्ञात किया जा सकता है
Ca 2+ में इलेक्ट्रॉनों की संख्या = परमाणु क्रमांक – 2 =
20- 2 = 18

                                K  L  M  N
Ca(20) का विन्यास = 2, 8, 8,  2
Ca2+(18) का विन्यास = 2, 8, 8

बोर-बरी नियमों के अपवाद
Exceptions of Bohr-Burry’s Laws

बोर-बरी नियमों की सहायता से अधिकांश तत्वों के सही इलेक्ट्रॉनिक
विन्यास बनाये जा सकते हैं परन्तु इन नियमों के कुछ अपवाद भी हैं
जैसे-क्रोमियम, कॉपर, सिल्वर, गोल्ड आदि।
(Cr24) का
(i) क्रोमियम (24) बोर-बरी नियमों के अनुसार क्रोमियम
इलेक्ट्रॉनिक विन्यास निम्नलिखित होना चाहिए
               K   L    M   N
Cr(24) – 2   8   12   2

किन्तु वास्तव में क्रोमियम का सही इलेक्ट्रॉनिक विन्यास है-
           
               K   L    M   N
Cr(24) – 2   8   13    1

(ii) कॉपर (29) बोर-बरी नियमों के अनुसार कॉपर का इलेक्ट्रॉनिक
विन्यास निम्नलिखित होना चाहिए।
               K   L    M   N
Cu(29) – 2   8   17   2
किन्तु वास्तव में कॉपर का सही इलेक्ट्रॉनिक विन्यास है-
               K   L    M   N
Cu(29) – 2   8   18   1

विभिन्न परमाण्विक स्पीशीज
Different Atomic Species

समस्थानिक Isotopes

एक ही तत्व के वे परमाणु जिनकी परमाणु संख्याएँ समान, किन्तु द्रव्यमान संख्याएँ भिन्न-भिन्न होती हैं, समस्थानिक कहलाते हैं। समस्थानिकों के नाभिक में प्रोटॉनों संख्या समान, किन्तु उनके नाभिक में न्यूट्रॉनों की संख्या भिन्न-भिन्न होने के कारण उनकी द्रव्यमान संख्याएँ भिन्न-भिन्न होती है।
उदाहरण- (i) क्लोरीन के परमाणुओं के नाभिक में प्रोटॉनों की कुल संख्या 17
है, अतः परमाणु संख्या 7 होती है। क्लोरीन के दो समस्थानिक होते हैं – 17CI35 और 17Cl37

(ii) हाइड्रोजन के तीन समस्थानिक होते हैं, जिनकी परमाणु संख्या 1 किन्तु द्रव्यमान संख्याएँ 1, 2 और 3 होती हैं। हाइड्रोजन या प्रोटियम 1H1 , ड्यूटीरियम 1H2 और ट्राइटियम 1H3

(iii) कार्बन के दो समस्थानिक होते हैं।
6C12 और 6C14

समस्थानिकों के गुण (Properties of Isotopes )

(i) समस्थानिकों के परमाणु क्रमांक समान तथा द्रव्यमान संख्याएँ भिन्न होती हैं।
(ii) समस्थानिकों में इलेक्ट्रॉनों तथा प्रोटॉनों की संख्याएँ समान तथा न्यूट्रॉनों की संख्याएँ भिन्न होती हैं।
(iii) समस्थानिकों के भौतिक गुण; जैसे-घनत्व, क्वथनांक आदि भिन्न होते हैं।
(iv) चूँकि एक तत्व के सभी समस्थानिकों की द्रव्यमान संख्याएँ भिन्न-भिन्न होती हैं, इसलिए इनके भौतिक गुण भी भिन्न-भिन्न होते हैं।
(v) चूँकि तत्व के सभी समस्थानिकों का परमाणु क्रमांक समान होता है, इसलिए एक तत्व के सभी समस्थानिकों को आवर्त सारणी में एक ही स्थान पर रखा जाता है।
(vi) किसी एक तत्व के समस्थानिकों में से कुछ रेडियोएक्टिव हो सकते हैं और कुछ नहीं। इसका मुख्य कारण नाभिकीय संरचना का भिन्न-भिन्न होना है।
(vii) हाइड्रोजन एकमात्र ऐसा समस्थानिक है, जिसके सभी समस्थानिकों का
नाम अलग-अलग है, जैसे— हाइड्रियम (H), ड्यूटीरियम (H)
तथा ट्राइटियम ( H3 ) |

समस्थानिकों के उपयोग (Uses of Isotopes)

(i) परमाणु रिऐक्टर में यूरेनियम के एक समस्थानिक (U-235) का
उपयोग ईंधन के रूप में होता है।
(ii) जीवाश्म की आयु सीमा ज्ञात करने के लिए कार्बन के समस्थानिक (C-14) का उपयोग करते हैं।
(iii) आयोडीन के समस्थानिकों का उपयोग घेंघा रोग के इलाज में होता है।

समभारिक Isobars

वे तत्व जिनकी द्रव्यमान संख्याएँ समान, किन्तु परमाणु संख्याएँ भिन्न-भिन्न होती हैं, समभारिक कहलाते हैं।
उदाहरण— आर्गन 18Ar40, पोटैशियम 19K40 तथा कैल्सियम20Ca40

समभारिकों के गुण (Properties of Isobars)

(i) समभारिकों के परमाणु क्रमांक भिन्न-भिन्न होने के कारण उनके
रासायनिक गुण भिन्न-भिन्न होते हैं।
(ii) समभारिकों में मूल कणों की संख्या भिन्न-भिन्न होने के कारण उनके भौतिक गुण भी भिन्न-भिन्न होते हैं।
(iii) आवर्त सारणी में समभारिकों का स्थान भिन्न-भिन्न होता है।
(iv) समभारिकों में प्रोटॉनों एवं न्यूट्रॉनों की संख्या का योग समान होता है, परन्तु परमाणु क्रमांक भिन्न-भिन्न होते हैं।
(v) नाभिकीय संरचना भिन्न होने के कारण समभारिकों में रेडियोऐक्टिव गुण समान या असमान होता है।

समन्यूट्रॉनिक Isotonestion

• विभिन्न तत्वों के वे परमाणु जिनमें न्यूट्रॉन की संख्या समान होती है, किन्तु द्रव्यमान संख्या तथा परमाणु संख्या दोनों भिन्न होते हैं, समन्यूट्रॉनिक कहलाते हैं। उदाहरण— 6C14 , 7N15 और 8O16

तत्व C N O
द्रव्यमान संख्या 14 15 16
परमाणु संख्या 6 7 8
न्यूट्रॉनों की संख्या 8 8 8

समइलेक्ट्रॉनिक Isoelectronic

ऐसी स्पीशीज (परमाणु या आयन) जिनमें इलेक्ट्रॉनों की संख्या समान होती समइलेक्ट्रॉनिक स्पीशीज कहलाते हैं। उदाहरण – Na+, Mg + O2- तथा F- समइलेक्ट्रॉनिक आयन हैं, क्योंकि इनमें से प्रत्येक में 10 इलेक्ट्रॉन उपस्थित हैं।

आयन/तत्व इलेक्ट्रॉनों की संख्या
Na+ 11-1=10
Mg²+ 12-2=10
0²- 8+ 2 = 10
F- 9 + 1 = 10

                             ◆◆◆ निवेदन ◆◆◆

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