[ NCF 2009 ] राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना 2009 का स्वरूप / NCF 2009 का स्वरूप / form of NCF 2009 in hindi

बीटीसी एवं सुपरटेट की परीक्षा में शामिल शिक्षण कौशल के विषय प्रारंभिक शिक्षा के नवीन प्रयास में सम्मिलित चैप्टर राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना 2009 का स्वरूप / NCF 2009 का स्वरूप / form of NCF 2009 in hindi आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com का टॉपिक हैं।

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राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना 2009 का स्वरूप / NCF 2009 का स्वरूप / form of NCF 2009 in hindi

[ NCF 2009 ] राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना 2009 का स्वरूप / NCF 2009 का स्वरूप / form of NCF 2009 in hindi
[ NCF 2009 ] राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना 2009 का स्वरूप / NCF 2009 का स्वरूप / form of NCF 2009 in hindi

राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना 2009 का स्वरूप / NCF 2009 का स्वरूप / form of NCF 2009 in hindi

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राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना शिक्षक शिक्षा 2009 का स्वरूप / form of National Curriculum Framework Teacher Education 2009

[ NCF 2009 ] राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना 2009 का स्वरूप को 6 अध्यायों में विभाजित किया गया है।

प्रथम अध्याय के अन्तर्गत इसकी आवश्यकता पर विचार किया गया है।

द्वितीय अध्याय में पाठ्यक्रमों के आधारों की चर्चा की गयी है। शिक्षा के आधार, पाठ्यक्रम एवं शिक्षाशास्त्र के सिद्धान्त तथा शिक्षण अभ्यास तीन भागों में पाठ्यक्रम के क्षेत्र को विभाजित किया गया है। इन क्षेत्रों से सम्बन्धित सामग्री को ही पाठ्यक्रम में समाहित किया गया है।

तीसरे अध्याय में वर्तमान शिक्षकों के प्रशिक्षण हेतु कार्यक्रम का निर्धारण किया गया है। इसको भी पाठ्यक्रम के क्षेत्रों के आधार पर तीन भागों में विभाजित किया गया है। शिक्षा के सैद्धान्तिक आधार को प्रथम भाग में स्वीकार किया गया है। इसमें बालक के अध्ययन, तत्कालीन समाज के अध्ययन तथा शिक्षा के बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है। पाठ्यक्रम एवं शिक्षाशास्त्र को द्वितीय भाग के रूप में स्वीकार किया गया है। तृतीय भाग में प्रयोगात्मक कार्य एवं शिक्षण अभ्यास को सम्मिलित किया गया है। इस प्रकार इस अध्याय में सम्पूर्ण पाठ्यक्रम की संरचना की गयी है।

चौथे अध्याय में विकासशील शिक्षक के मूल्यांकन कार्य की योजना प्रस्तुत की गयी है जिसमें प्रोजेक्ट कार्य एवं सामुदायिक कार्यों के माध्यम से शिक्षक के विकास की समीक्षा के अनेक उपाय बताये गये हैं।

पाँचवे अध्याय में छात्राध्यापकों की व्यावसायिक उन्नति पर विचार किया गया है जिससे शिक्षक अपने जीवन काल में सेवारत प्रशिक्षण एवं विचार गोष्ठियों के माध्यम से व्यावसायिक ज्ञान प्राप्त कर सके तथा छात्रों का सर्वांगीण विकास कर सके।

छठवें अध्याय में छात्राध्यापकों के प्रशिक्षण हेतु प्रशिक्षकों की योग्यता पर विचार किया गया है क्योंकि जब तक छात्राध्यापकों के प्रशिक्षक योग्य नहीं होंगे तब तक छात्राध्यापक योग्य नहीं होंगे तथा ऐसे छात्राध्यापक शिक्षक के रूप में अपनी भूमिका का निर्वहन नहीं कर सकेंगे। इसलिये प्रशिक्षकों की योग्यता को एम.एड, एम.फिल. तथा पी-एच.डी. की उपाधि से जोड़ा गया है। तथा कम से कम 55% अंकों के धारक ही प्रशिक्षक बन पायेंगे। इस प्रकार सम्पूर्ण राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना शिक्षक शिक्षा के विभिन्न पक्षों पर 6 अध्यायों में विचार किया गया है।

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(अ) शिक्षा के सैद्धान्तिक आधार / Theoritical Foundations of Education

राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना 2009 में शिक्षा के सैद्धान्तिक आधारों को तीन भागों में विभाजित किया है। ये सभी छात्राध्यापकों को अनिवार्य रूप से पढ़ने होंगे, जिससे विभिन्न शिक्षाविदों, मनोवैज्ञानिक एवं बुद्धिजीवियों के विचारों को छात्राध्यापक समझ सकें एवं आत्मसात् कर सकें। शिक्षा के सैद्धान्तिक आधारों के प्रमुख बिन्दुओं का वर्णन निम्नलिखित रूप में किया जा सकता है-

1.बालकों का अध्ययन (Study of children)

बालकों के अध्ययन के सन्दर्भ में मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों का प्रावधान किया गया है, जिससे छात्राध्यापकों में बालकों की विकास सम्बन्धी प्रक्रियाओं को समझने की योग्यता का विकास हो सके। छात्राध्यापक अपनी कक्षा के समस्त छात्रों में से सामान्य, मन्दबुद्धि एवं प्रतिभाशाली छात्रों की पहचान कर सकें। इसके साथ-साथ बाल विकास के सिद्धान्तों के बारे में भी छात्राध्यापकों को ज्ञान होना चाहिये।
छात्रों के सर्वांगीण विकास की पृष्ठभूमि को तैयार करने के लिये यह आवश्यक है कि छात्राध्यापक द्वारा छात्रों को पूर्ण रूप से समझा जाय। इसके लिये छात्राध्यापकों को मनोविज्ञान के विभिन्न सिद्धान्तों को समझना एवं उनका प्रयोग करना आवश्यक है। प्रत्येक छात्राध्यापक को बाल विकास एवं शिक्षा मनोविज्ञान का पूर्ण ज्ञान होना चाहिये जिससे वह बालकों में निहित प्रतिभाओं का विकास सरलता से कर सके। इसके लिये राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना शिक्षक शिक्षा 2009 निर्वहन नहीं कर सकता ।

2. समकालीन समाज का अध्ययन (Study of comtemporary society)

इस भाग के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार की सामाजिक व्यवस्था एवं शिक्षा प्रणालियों के बारे में ज्ञान कराया जाता है। सामाजिक परम्पराओं, मान्यताओं एवं संस्कृति को समझे बिना एक शिक्षक कुशलता से अपने दायित्वों का पालन नहीं कर सकता। इसलिये पाठ्यक्रम में भारतीय समाज की संरचना, सामाजिक स्तरीकरण, सामाजिक परिवर्तन एवं विभिन्न दार्शनिक विचारधाराओं का समावेश किया गया है जिससे छात्र सामाजिक परम्पराओं एवं सामाजिक मूल्यों को समझ
सकें तथा समाज की आकांक्षा के अनुरूप अपने दायित्व का निर्वहन कर सकें। दूसरे शब्दों में, समाज से सम्बन्धित व्यापक सामग्री को इस भाग में समाहित किया गया है।

3.शिक्षा सम्बन्धी अध्ययन (Education related study)

इस भाग की अध्ययन सामग्री पूर्णत: शिक्षा सम्बन्धी व्यवस्था से सम्बन्धित होगी। इसमें शिक्षा का अर्थ, शिक्षा के उद्देश्य, शिक्षा के कार्य एवं शिक्षा सम्बन्धी विभिन्न आयोगों के विचार आदि को सम्मिलित
किया जायेगा। इसके साथ-साथ शिक्षा के सम्बन्ध में सरकार की नीतियों एवं सामाजिक सहयोगिता आदि के सन्दर्भ में विस्तृत अध्ययन किया जायेगा। वैदिक कालीन शिक्षा व्यवस्था, मध्यकालीन शिक्षा व्यवस्था एवं आधुनिक शिक्षा व्यवस्था के प्रमुख बिन्दुओं का ज्ञान छात्राध्यापकों को दिया जायेगा। इसके साथ प्रमुख दार्शनिक विचारधाराओं को भी इसमें सम्मिलित किया जायेगा; जैसे-शिक्षा में आदर्शवाद, प्रकृतिवाद, प्रयोजनवाद एवं बाल केन्द्रित शिक्षा व्यवस्था
आदि। इस प्रकार इस भाग में छात्राध्यापकों को शिक्षा से सम्बन्धित विभिन्न विचारधाराओं का ज्ञान प्रदान किया जायेगा।

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(ब) पाठ्यक्रम एवं शिक्षणशास्त्रीय सिद्धान्त
Curriculum and Pedagogic Theory

इस सोपान के अन्तर्गत छात्राध्यापकों को पाठ्यक्रम एवं शिक्षणशास्त्रीय सिद्धान्तों से अवगत कराया जायेगा जिससे छात्राध्यापक अपने भावी जीवन में एक आदर्शवादी शिक्षक के
रूप में कार्य कर सकें। पाठ्यक्रम एवं शिक्षणशास्त्रीय सिद्धान्त की रूपरेखा को निम्नलिखित रूप में स्पष्ट किया जा सकता है-

1. पाठ्यक्रम सम्बन्धित विचार (Curriculum related views)

छात्राध्यापक को सामान्य रूप से उस ज्ञान को भी प्राप्त करना है जिसका सम्बन्ध पाठ्यक्रम से होता है। पाठ्यक्रम का आशय उस शिक्षण सामग्री से है जो कि छात्राध्यापक को अपने भावी जीवन में
प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक स्तर पर पढ़ानी है। इसके अन्तर्गत छात्राध्यापकों को निम्नलिखित बिन्दुओं पर विचार करने का प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है-

(1) प्रस्तुत पाठ्यक्रम वर्तमान समय में छात्रों के लिये पूर्णत: उपयोगी होना चाहिये जिससे कि सामाजिक अपेक्षाओं एवं उनके भावी जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकें।

(2) प्रस्तुत पाठ्यक्रम के लिये शिक्षण अधिगम सामग्री के प्रयोग एवं निर्माण के बारे में भी शिक्षकों को विचार करना चाहिये जिससे शिक्षण अधिगम प्रक्रिया प्रभावी रूप में सम्पन्न हो सके।

(3) पाठ्यक्रम की पूर्ण समीक्षा करना जिससे सभी छात्राध्यापक उस पाठ्यक्रम सम्बन्धी समस्या, गुण एवं दोष के बारे में पूर्व में ही विचार कर सकें।

(4) छात्राध्यापकों को यह ज्ञान भी सम्भव हो जाता है कि उस पाठ्यक्रम के आधार पर वह विविध गतिविधियों का निर्माण किस प्रकार कर सकते हैं तथा शिक्षण को प्रभावी किस प्रकार बना सकते हैं।

(5) छात्राध्यापकोंद्वारा प्रस्तुत पाठ्यक्रम के उद्देश्यों के बारे में जानकारी प्राप्त करना तथा उनको प्राप्त करने की विविध विधियों पर विचार करना।

2. शिक्षणशास्त्रीय सिद्धान्त (Pedagogic theory)

इस भाग के अन्तर्गत शिक्षकों को शिक्षण कला सम्बन्धी सिद्धान्तों से अवगत कराया जाता है । जिससे उनका प्रस्तुतीकरण प्रभावी रूप में सम्पन्न हो सके। शिक्षक, शिक्षार्थी एवं पाठ्यक्रम, इन तीन चरों पर सम्पूर्ण शिक्षाशास्त्रीय सिद्धान्त टिके हुए हैं। छात्राध्यापक के लिये इन तीनों चरों से सम्बन्धित अध्ययन व्यवस्था राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना शिक्षक शिक्षा 2009 में उपलब्ध करायी गयी है। इसका वर्णन निम्नलिखित रूप में किया जा सकता है-

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(1) छात्राध्यापकों को शिक्षण विधियों के विभिन्न स्वरूपों का ज्ञान कराना जिससे वे आवश्यकता के अनुसार शिक्षण विधियों का प्रयोग करके शिक्षण कला को प्रभावी रूप में सम्पन्न कर सकें।

(2) छात्राध्यापकों में प्रस्तुतीकरण की योग्यता का विकास करना जिससे छात्र शिक्षण अधिगम सामग्री के निर्माण एवं प्रयोग का ज्ञान प्राप्त करते हुए शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को प्रभावी रूप में सम्पन्न कर सकें।

(3) छात्राध्यापकों को विविध शिक्षण तकनीकी एवं शिक्षण कलाओं से सम्बन्धित जानकारी प्रदान करना जिससे छात्राध्यापक एक ओर
शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को प्रभावी रूप में सम्पन्न कर सकें वहीं दूसरी ओर अधिगम वातावरण का सृजन कर सकें।

(4) छात्राध्यापकों में छात्रों में अधिगम कौशलों के विकास हेतु योग्यता विकसित करने की व्यवस्था करना जिससे कि सभी छात्र अपनी क्षमता एवं योग्यता के अनुसार अधिगम स्तर उच्च कर सकें।

(5) छात्राध्यापकों को विभिन्न जीवन कौशलों से सम्बन्धित जानकारी प्रदान करना जिससे छात्रों में विभिन्न कौशलों का विकास कर शिक्षा को व्यावहारिक जीवन में उपयोगी बनाया जा सके।

(6) छात्राध्यापकों को मनोविज्ञान के ज्ञान से सम्पन्न करना जिससे उनके द्वारा छात्रों की मनोदशा को समझकर उनके अनुरूप ही शिक्षण अधिगम प्रक्रिया की व्यवस्था की जा सके।

(7) छात्राध्यापकों को पाठ्यक्रम से सम्बन्धित विभिन्न तथ्यों की
जानकारी प्रदान करना जिससे छात्र पाठ्यक्रम में निहित भावों को समझ सकें तथा उससे सम्बन्धित उद्देश्यों को प्राप्त कराने में अपनी भूमिका का निर्वहन कर सकें।

(8) छात्राध्यापकों को शिक्षक, शिक्षार्थी एवं पाठ्यक्रम से सम्बन्धित विभिन्न प्रकार की चुनौतियों के बारे में बताना तथा उनके समाधान के उपायों का ज्ञान कराना जिससे छात्र अपने भावी जीवन में शिक्षण के तीनों चरों को समन्वित कर शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को प्रभावी बना सकें।

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