हंटर आयोग के उद्देश्य,सुझाव,कार्यक्षेत्र / हंटर कमीशन या आयोग के सुझाव / हंटर आयोग ने किन शिक्षाओं पर बल दिया

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हण्टर आयोग या कमीशन Hunter Commission

3 फरवरी सन् 1882 को विलियम हण्टर (Sir William Hunter) को प्रथम भारतीय शिक्षा आयोग का अध्यक्ष मनोनीत किया। इस आयोग को हण्टर के नाम से हण्टर कमीशन (Hunter Commission) कहा जाता है। इस आयोग में कुल बीस सदस्य थे जिन्हें सम्पूर्ण शिक्षा की प्रगति एवं सुझाव प्रस्तुत करने थे।

हंटर आयोग में सम्मिलित भारतीय सदस्य

इनमें सात भारतीय सदस्यों को सम्मिलित किया गया था। ये निम्नलिखित थे-(1) श्री सैयद महमूद, (2) श्री भूदेव मुकर्जी, (3) श्री आनन्द मोहन बोस, (4) श्री के. टी. तैलंग, (5) श्री पी. रंगानन्द मुदालियर, (6) महाराज जितेन्द्र टैगोर, (7) हाजी गुलाम।


हण्टर आयोग का कार्य-क्षेत्र एवं उद्देश्य

हण्टर कमीशन के कार्यक्षेत्र एवं उद्देश्यों को बिन्दुबद्ध नीचे प्रस्तुत किया गया है-

(1) उच्च एवं माध्यमिक शिक्षा की प्रगति की समीक्षा करना तथा प्राथमिक शिक्षा के विकास की समीक्षा करना।

(2) प्राथमिक शिक्षा के विकास एवं वृद्धि के लिए सार्थक सुझाव प्रस्तुत करना।

(3) प्राथमिक शिक्षा में राजकीय विद्यालयों के योगदान की समीक्षा करना।

(4) भारत की शिक्षा व्यवस्था में मिशन स्कूलों की भूमिका की जाँच करना।

(5) शिक्षा क्षेत्र में वैयक्तिक प्रयासों के प्रति सरकारी नीति का निर्माण करना।


हण्टर आयोग की संस्तुतियाँ एवं सुझाव / हंटर आयोग ने क्या सुझाव दिए

शिक्षा के विभिन्न स्तरों एवं स्वरूपों के सन्दर्भ में हण्टर आयोग की संस्तुतियों एवं सुझावों को निम्नलिखित प्रकार से देखा जा सकता है-

(1) प्राथमिक शिक्षा ( primary education)

(1) प्राथमिक शिक्षा की नीति (Policy of primary education)

प्राथमिक शिक्षा नीति के निर्देशक बिन्दु अग्रलिखित थे-

(i) प्राथमिक शिक्षा का उद्देश्य प्राथमिक शिक्षा का उद्देश्य जन शिक्षा का प्रचार करना होना चाहिये। इसे उच्च शिक्षा की सीढ़ी मात्र नहीं माना जाय।

(ii) प्राथमिक शिक्षा का माध्यम-यह शिक्षा देशी (Indian) एवं क्षेत्रीय भाषाओं के माध्यम से प्रदान की जानी चाहिये।

(iii) प्राथमिक शिक्षा के विषय-इस शिक्षा के प्रचार के लिए जन सामान्य से सम्बन्धित व्यावहारिक विषयों की शिक्षा देनी चाहिये।

(iv) राजकीय दायित्त्व-यह शिक्षा पूर्णरूपेण राजकीय दायित्त्व में प्रदान की जानी चाहिये।

(v) राजकीय सेवाओं से सम्बन्ध-निम्न स्तरीय राजकीय पदों के लिए प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य की जाय।

(vi) निम्न वर्गों के लिए विशेष प्रयास प्राथमिक शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए पिछड़े वर्गों, आदिवासियों एवं जन-जातियों को आर्थिक एवं अन्य प्रकार की सहायता प्रदान की जानी चाहिये। अन्त में हण्टर आयोग ने अपनी टिप्पणी में कहा है-“जनसाधारण की प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था के लिए, उसके प्रसार एवं सुधार के लिए राज्य द्वारा और
अधिक सतत् प्रयास केन्द्रीकृत किये जायें।”

(2) प्राथमिक शिक्षा का संगठन (Organisation of primary education)

इंग्लैण्ड में प्राथमिक शिक्षा के संगठनात्मक प्रारूप का अनुकरण करते हुए लार्ड रिपन ने प्राथमिक शिक्षा का दायित्त्व नगरपालिकाओं (Muncipal boards) तथा जिला परिषदों (District boards) को सौंप दिया। इस प्रकार प्राथमिक शिक्षा का महत्त्वपूर्ण प्रबन्धन
स्थानीय निकायों (Local bodies) के अधिकार क्षेत्र में आ गया। इसके फलस्वरूप अपरोक्ष रूप से ब्रिटिश सरकार ने अपने उत्तरदायित्त्व को तिलांजली दे दी।

(3) प्राथमिक शिक्षा का पाठ्यक्रम (Curriculum of primaryeducation)

हण्टर आयोग ने प्राथमिक शिक्षा को क्षेत्रीय आधार पर विकसित एवं विकेन्द्रित करने के लिए प्रपत्रों को पाठ्यक्रम सम्बन्धी निर्णय लेने का अधिकार सौंप दिया। इस आयोग ने राष्ट्रीय स्तर पर निम्नलिखित विषयों की अनिवार्यता पर बल दिया-(अ) भौतिक विज्ञान, (ब)
क्षेत्रमिति, (स) चिकित्सा, (द) बहीखाता, (य) कृषि।

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(4) प्राथमिक शिक्षा की आर्थिक व्यवस्था (Economic provision of primary education)

हण्टर आयोग ने प्राथमिक शिक्षा की आर्थिक व्यवस्था के लिए महत्त्वपूर्ण सुझाव दिये थे। उसने स्थानीय निकायों को ‘प्राथमिक शिक्षा कोष’ के निर्माण का विचार दिया। इस कोष की धनराशि को निश्चित रूप से प्राथमिक शिक्षा के विकास में व्यय करना
अनिवार्य कर दिया।

(5) प्राथमिक शिक्षा क्रशिक्षक-प्रशिक्षण (Teacher’s training of primary education)

हण्टर आयोग ने प्राथमिक स्तर के शिक्षकों को प्रशिक्षित करने के लिए पृथक् नॉर्मल स्कूलों (Normal schools) की स्थापना पर बल दिया। इसके विकास के लिए हण्टर आयोग ने निम्नलिखित संस्तुतियाँ की-(i) प्रशिक्षण विद्यालयों का निर्माण ऐसे स्थानों पर किया जाय, जहाँ से वे समस्त प्राथमिक पाठशालाओं की स्थानीय मांगों की पूर्ति कर सकें। प्रत्येक विद्यालय निरीक्षक के क्षेत्र में कम से कम एक नॉर्मल स्कूल की स्थापना की जाय। (ii) प्रान्तीय सरकारों द्वारा प्राथमिक शिक्षा कोष के लिए स्वीकृत धनराशि से प्राथमिक विद्यालयों के निरीक्षण एवं नॉर्मल स्कूलों की उचित व्यवस्था की जाये।

2. देशी शिक्षा (Indigenous Education)

देशी शिक्षा का तात्पर्य भारत की प्राच्य शिक्षा पद्धति पर आधारित शिक्षा से था। कमीशन ने इन भारतीय विद्यालयों के महत्त्व को
स्वीकारते हुए कहा था-“अति दीर्घकाल से कठिनाइयों का सामना करने पर भी इन विद्यालयों का अस्तित्व इस बात का ज्वलन्त प्रमाण है कि वे सजीव तथा लोकप्रिय हैं।

इन संस्थाओं को सरकारी सहायता प्रदान करके राष्ट्रीय शिक्षा-प्रणाली में महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए तैयार किया जा सकता है।” देशी शिक्षा पद्धति के उत्थान के सन्दर्भ में हण्टर शिक्षा आयोग की महत्त्वपूर्ण संस्तुतियाँ निम्नांकित हैं-

(1) देशी पाठशालाओं को पर्याप्त सरकारी सहायता प्रदान की जाय। (2) इन पाठशालाओं में प्रवेश प्रतिबन्ध को हटाया जाया
(3) इन पाठशालाओं में प्रवेश लेने वाले निर्धन छात्रों को छात्रवृत्तियाँ प्रदान की जायें।
(4) देशी संस्थाओं को स्थानीय संस्थाओं के नियन्त्रण से मुक्त
किया जाय।
(5) देशी संस्थाओं के पाठ्यक्रम में हस्तक्षेप न किया जाय, किन्तु शिक्षकों के प्रशिक्षण की उचित व्यवस्था की जाये ।

(3) माध्यमिक शिक्षा (Secondary education)

हण्टर कमीशन ने माध्यमिक शिक्षा के क्षेत्र में संक्षिप्त विचार प्रस्तुत किये थे। माध्यमिक शिक्षा सम्बन्धी ये विचार, इस शिक्षा के विस्तार तथा दोषों के निवारण के उपाय के सन्दर्भ में हैं। माध्यमिक शिक्षा के विस्तार के सन्दर्भ में आयोग ने कहा था कि सरकार को माध्यमिक शिक्षा सुयोग्य एवं बुद्धिमान भारतीयों के हाथों में सौंपकर स्वयं को उसके उत्तरदायित्व से मुक्त हो जाना चाहिये।

इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सरकार सहायता अनुदान प्रणाली का अनुसरण करे। यदि किसी क्षेत्र में अंग्रेजी की शिक्षा के लिए माध्यमिक स्कूलों की स्थापना आवश्यक हो, तो उनकी सहायता-अनुदान प्रणाली द्वारा स्थापित की जाय। माध्यमिक शिक्षा में उत्पन्न दोषों को दूर करने के उपायों के अन्तर्गत हण्टर आयोग ने हाईस्कूल स्तर की शिक्षा को दो भागों में बाँटने पर बल दिया।

इनमें से ‘ए’ कोर्स (A-Course) उन छात्रों के लिए बनाया जाय जो उच्च शिक्षा में रुचि रखते हों, किन्तु ‘बी’ कोर्स (B-Course) ऐसे छात्रों के लिए हो जो माध्यमिक शिक्षा के बाद कोई व्यवसाय सीखने में रुचि रखते हों। इस प्रकार हण्टर कमीशन ने माध्यमिक शिक्षा को दो धाराओं में विभाजित करके उसके व्यावसायीकरण पर अतिरिक्त बल दिया था।

(4) शिक्षक-प्रशिक्षण (Teacher’s training)

इस आयोग की नियुक्ति के समय सम्पूर्ण भारत में मात्र दो शिक्षक-प्रशिक्षण संस्थान कार्यरत थे। इनमें से एक लाहौर में तथा दूसरा मद्रास में था। हण्टर कमीशन ने शिक्षक-प्रशिक्षण को अत्यधिक महत्त्व देते हुए और अधिक शिक्षक-प्रशिक्षण संस्थाओं की स्थापना पर बल दिया। हण्टर आयोग का सुझाव था कि स्नातकों का प्रशिक्षण काल कुछ कम कर दिया जाय तथा शिक्षक-प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों में व्यावहारिकता पर बल प्रदान किया जाय।

(5) उच्च शिक्षा (Higher education)

उच्च शिक्षा की समीक्षा हण्टर कमीशन के कार्य क्षेत्र में सम्मिलित नहीं थी, किन्तु इस क्षेत्र में कमीशन ने अपने संक्षिप्त विचार प्रस्तुत किये थे। इस क्षेत्र के महत्त्वपूर्ण सुझाव निम्नांकित हैं-

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(1) कॉलेजों को दी जाने वाली सहायता-अनुदान प्रणाली का निर्णय शिक्षकों की संख्या, कॉलेजों के व्यय, कार्य क्षमता तथा स्थानीय आवश्यकताओं को ध्यान में रखा जाये।

(2) कॉलेजों को विभिन्न भौतिक सुविधाओं तथा पुस्तकालय आदि के लिए उचित सहायता-अनुदान दिया जाये।

(3) कॉलेजों में छात्रों की रुचियों के अनुरूप विस्तृत पाठ्यक्रमों के शिक्षण की व्यवस्था की जाये।

(4) कॉलेज के छात्रों के नेतिक विकास के लिए उपयुक्त पाठ्यक्रम लागू किया जाए।

(5) कॉलेजों में छात्रों के वैयक्तिक विकास के उद्देश्य से विभिन्न विषयों पर विद्वानों की व्याख्यान मालाओं की व्यवस्था की जाए।

(6) सहायता-अनुदान प्रणाली (Grant-in-aid system)

सहायता अनुदान प्रणाली से सम्बन्धित हण्टर आयोग के प्रमुख सुझाव निम्नांकित थे-

(1) प्रान्त के विद्यालयों की आवश्यकता एवं परिस्थितियों के अनुरूप सहायता-अनुदान प्रणाली को लागू किया जाय तथा नियमों में आवश्यक परिवर्तन किये जायें।

(2) सहायता अनुदान प्रणाली को सर्वत्र प्रसारित करने के दृष्टिकोण से इन्हें समाचार-पत्रों में प्रकाशित कराया जाय।

(3) अराजकीय विद्यालयों के प्रबन्धकों को इन नियमों के निर्माण में सहभागी बनाया जाय।

(4) दुर्बल वित्तीय व्यवस्था वाले विद्यालयों तथा पिछड़े क्षेत्रों के विद्यालयों को पर्याप्त आर्थिक सहायता प्रदान की जाय।

(5) सहायता-अनुदान प्रणाली को जहाँ तक सम्भव हो सके अधिकाधिक निष्पक्ष बनाया जाय तथा सरकारी विद्यालयों के प्रति पक्षपात से स्वतन्त्र किया जाय।

(6) सहायता-अनुदान प्रणाली द्वारा उचित एवं निश्चित समय पर आर्थिक सहायता दी जाय तथा इसके नियमों को अपेक्षाकृत उदार बनाया जाय।

(7) मिशनरी प्रयास (Missionary’s efforts)

भारतीय शिक्षा आयोग की नियुक्ति का मूल कारण मिशनरियों का आन्दोलन था। ये लोग हण्टर कमीशन से अपने अनुकूल सिफारिशें करने की आशाएँ लगाये बैठे थे किन्तु कमीशन ने इसके विपरीत कार्य करके उन्हें शिक्षा के प्रत्येक स्तर पर कार्य करने से हतोत्साहित कर दिया।

इसका कारण था कि प्राथमिक शिक्षा का भार स्थानीय एवं निजी संस्थाओं को सौंप दिया, माध्यमिक शिक्षा के निजीकरण को प्रोत्साहित करने की सिफारिश की तथा उच्च शिक्षा का प्रबन्धन भी भारतीयों को सौंपने का प्रस्ताव रखा। इस प्रकार मिशनरियों के कुटिल शैक्षिक प्रयासों की चाल को उन्होंने नाकाम कर दिया।

इस सन्दर्भ में हण्टर कमीशन ने अपना स्पष्ट मन्तव्य निम्नलिखित प्रकार से प्रस्तुत किया है-“भारत जैसे विशाल देश की शिक्षा का भार केवल एक दल को सौंपने से इसकी कोई भलाई नहीं हो सकेगी और विशेषतः मिशनरियों को जो उदार एवं सच्चे होते हुए भी जनसाधारण की विभिन्न भावनाओं से सहानुभूति रखने में असमर्थ हैं।”

इस प्रकार मिशनरियों की घोर उपेक्षा की गयी तथा भारतीयों में शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने की रुचि जाग्रत हो उठी।

(8) धार्मिक शिक्षा (Religious education)

धार्मिक शिक्षा के क्षेत्र में घोर अनियमितताएँ विद्यमान थीं। हिन्दू, मुस्लिम एवं मिशनरी तीनों ही धार्मिक प्रतिद्वन्द्वताओं के शिकार थे तथा शिक्षा में अपने-अपने धर्म की प्रधानता पर बल दे रहे थे। इस अनियमितता का पटापेक्ष हण्टर कमीशन ने निम्नलिखित सुझाव प्रस्तुत करके किया-

(1) समस्त राजकीय विद्यालयों को धार्मिक शिक्षा से वंचित रखा जाय। (2) अन्य राजकीय विद्यालयों में धार्मिक शिक्षा की न्यूनाधिक व्यवस्था की जा सकती है।

इसे सरकारी नियन्त्रण से मुक्त किया जाय। (3) इन धार्मिक शिक्षा प्रदान करने वाले विद्यालयों में सहायता-अनुदान प्रणाली को लौकिक शिक्षा के आधार पर लागू किया जाये।

(9) मुस्लिम शिक्षा (Muslimeducation)

मुस्लिम शिक्षा के दोषों की समीक्षा करने के बाद हण्टर कमीशन ने उसके सुधार हेतु निम्नलिखित सुझाव प्रस्तुत किये थे-
(1) स्थानीय निकायों एवं प्रान्तों को मुस्लिम शिक्षा को दोषमुक्त करने के उपाय करने चाहिये। (2) देशी मुस्लिम विद्यालयों में पूर्ण व्यावहारिक पाठ्यक्रम लागू किये जायें। (3) प्राथमिक स्तर के मुस्लिम विद्यालयों में गुणात्मक सुधार करने चाहिये तथा शिक्षा का माध्यम हिन्दुस्तानी क्षेत्रीय भाषाओं को बनाया जाना चाहिये। (4) मुस्लिमों को अंग्रेजी की उच्च शिक्षा प्रदान करने के लिए उदार आर्थिक सहायता प्रदान की जाय। (5) मुस्लिमों में शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए छात्रवृत्तियों की व्यवस्था की जाये ।

(10) स्त्री-शिक्षा (Women’s education)

स्त्री-शिक्षा की शोचनीय स्थिति से द्रवित होकर हण्टर कमीशन ने लिखा था-“यह बात स्पष्ट है कि स्त्री-शिक्षा अभी तक अत्यधिक पिछड़ी हुई दशा में है। अत: इस बात की आवश्यकता है कि प्रत्येक सम्भव विधि से इसका पोषण किया जाये।”

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स्त्री-शिक्षा के विकास के लिए हण्टर आयोग के महत्त्वपूर्ण सुझाव निम्नलिखित प्रकार हैं-

(1) स्थानीय स्तर पर शिक्षा के कोषों में से बालक एवं बालिकाओं के विद्यालयों की स्थापना के लिए अनुपात में धन व्यय किया जाए।

(2) बालिका विद्यालयों के लिए अनुदान-सहायता प्रणाली को और अधिक उदार बनाया जाय तथा इसमें पर्याप्त वृद्धि की जाये ।

(3) बालक-बालिकाओं के पाठ्यक्रमों में पर्याप्त अन्तर किया जाय, क्योंकि एक समान पाठ्यक्रम लागू करना अव्यावहारिक है।

(4) बालिका विद्यालयों में शुल्क प्रणाली लागू की जाय तथा बालिकाओं को पर्याप्त छात्रवृत्तियाँ प्रदान की जाएँ।

(5) माध्यमिक बालिका विद्यालयों की मांग के अनुसार अधिकाधिक क्षेत्रों में पृथक् व्यवस्था की जाए।

(6) निजी विद्यालय संस्थापकों द्वारा छात्राओं की शिक्षा सुविधा के लिए आवासीय शिक्षण संस्थाएँ खोली जायें।

(7) सरकार द्वारा बालिका विद्यालयों के निजीकरण पर पर्याप्त बल दिया जाए।

(8) बालिका विद्यालयों में अधिकाधिक शिक्षिकाओं की नियुक्ति की जाय तथा उन्हें इस व्यवसाय की ओर आकर्षित किया जाए।

(9) बालिका विद्यालयों के निरीक्षण कार्य के लिए महिला निरीक्षिकाओं की नियुक्ति की जाए।

11. हरिजनों एवं पिछड़े वर्गों की शिक्षा (Education of harigain and back- ward classes)

हरिजनों एवं पिछड़े वर्गों की शिक्षा के प्रति आयोग ने अत्यधिक चिन्ता
प्रकट की थी। आयोग का विचार था कि उनकी वर्तमान सामाजिक दशा में परिवर्तन केवल शिक्षा द्वारा ही सम्भव है। इसके लिए आयोग के निम्नलिखित सुझाव दृष्टव्य हैं-


(1) हरिजन एवं पिछड़े वर्गों के छात्रों को प्रान्तों के उन समस्त विद्यालयों में प्रवेश दिया जाय जो स्थानीय निकायों (Local Bodies) द्वारा संचालित किये जाते हैं।

(2) यदि कहीं इन बालकों को विद्यालयों में प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगाया जाता है तो वहाँ पर इनके लिए विशेष विद्यालयों की स्थापना की जाए।

(3) शिक्षक एवं शिक्षा अधिकारी जनता में इन लोगों के प्रति व्याप्त भेद-भाव की भावना को धीरे-धीरे समाप्त करने का प्रयास करें। इन समीचीन सुझावों के फलस्वरूप हरिजन एवं पिछड़े वर्गों में शिक्षा के प्रति।जागरूकता उत्पन्न होने लगी तथा वे विद्यालयों में छात्रों को भेजने लगे।

12. आदिवासियों एवं पहाड़ी जातियों की शिक्षा (Education of tribes and hill Tribes)

हण्टर आयोग ने शिक्षा सर्वेक्षण से पता लगाया कि ये जातियाँ भी शिक्षा लाभ से वंचित रही हैं। अतः आयोग ने इन जातियों की शिक्षा के लिए निम्नलिखित सुझाव प्रस्तुत किये-

(1) आदिवासियों एवं पहाड़ी जातियों की उचित शिक्षा का प्रबन्ध करना सरकारी दायित्त्व है।

(2) सरकारी विद्यालयों एवं संस्थाओं को इस दिशा में पर्याप्त प्रोत्साहन प्रदान करना चाहिये।

(3) इन जातियों के छात्रों को नि:शुल्क शिक्षा प्रदान की जाय तथा उनके लिए छात्रवृत्तियों की व्यवस्था की जाए।

(4) आदिवासी विद्यालयों में आदिवासी शिक्षकों को नियुक्त किया जाये तथा जिन आदिवासी जातियों को लिखने-पढ़ने में प्रयुक्त किया जा सकता है, उन्हें शिक्षा का माध्यम बनाया जाए।

(5) आदिवासी जातियों की शिक्षा का स्वरूप सरल, व्यावहारिक, दैनिक प्रयोग से सम्बन्धित तथा शिक्षकों के लिए अल्पकालीन प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाए।


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