कक्षा शिक्षण में हिंदी भाषा के कौशल या दक्षता के उद्देश्य | CTET HINDI PEDAGOGY

दोस्तों अगर आप CTET परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो CTET में 50% प्रश्न तो सम्मिलित विषय के शिक्षणशास्त्र से ही पूछे जाते हैं। आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com आपके लिए हिंदी विषय के शिक्षणशास्त्र से सम्बंधित प्रमुख टॉपिक की श्रृंखला लेकर आई है। हमारा आज का टॉपिक कक्षा शिक्षण में हिंदी भाषा के कौशल या दक्षता के उद्देश्य | CTET HINDI PEDAGOGY है।

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कक्षा शिक्षण में हिंदी भाषा के कौशल या दक्षता के उद्देश्य | CTET HINDI PEDAGOGY

कक्षा शिक्षण में हिंदी भाषा के कौशल या दक्षता के उद्देश्य | CTET HINDI PEDAGOGY
कक्षा शिक्षण में हिंदी भाषा के कौशल या दक्षता के उद्देश्य | CTET HINDI PEDAGOGY

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कक्षा शिक्षण में हिन्दी भाषा के कौशल या दक्षता के उद्देश्य

राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अन्तर्गत भाषा सम्बन्धी क्षमताओं के विकास का लक्ष्य रखा गया है। बालक चिन्तनात्मक और वैचारिक विषय-वस्तु को आत्मसात् करने और अपने चिन्तन एवं अनुभवों की अभिव्यक्ति को सशक्त बना सकें तथा छात्र अपने निजी हित से ऊपर उठकर समाज तथा राष्ट्रीय कल्याण के सन्दर्भ में विचारशील बन सकें। भाषा शिक्षण का मुख्य उद्देश्य समाज सम्मत आदर्शों और मूल्यों को पनपाना तथा बालक/बालिकाओं को समाजोपयोगी
कार्यों के लिये प्रवृत्त करने की भावना को जागृत करना है। शैक्षिक उद्देश्यों के साथ-साथ बालक-बालिकाओं में भी सामान्य उद्देश्य; जैसे- सद्प्रवृत्तियाँ, राष्ट्र प्रेम, सामाजिकता, आध्यात्मिकता, सकारात्मक सोच, व्यक्तिगत हित से ऊपर उठकर सामुदायिक हित की भावना का विकास तथा चरित्र निमार्ण का उद्देश्य भी सम्मिलित होना चाहिये ।

इसके लिये भाषा-शिक्षण के उद्देश्य निम्नलिखित अधिगम क्षेत्रों के आधार पर निर्धारित किये गये हैं- (1) सुनने की दक्षता का उद्देश्य, (2) बोलनने की दक्षता का उद्देश्य, (3) पढ़ने की दक्षता का उद्देश्य, (4) लिखने की दक्षता का उद्देश्य तथा (5) व्यावहारिक व्याकरण की दक्षता का उद्देश्य एवं (6) विशेष अध्ययन सामग्री की दक्षता का उद्देश्य ।

1. सुनना या श्रवण (Listening) की दक्षता

(1) भाषा के सभी ध्वनि-रूपों के शुद्ध उच्चारण को समझना।
(2) विषय-वस्तु में आये विचारों, भावों, घटनाओं एवं तथ्यों आदि में प्रसंगानुसार सम्बन्ध स्थापित करते हुए समझना।
(3) विषय-वस्तु के केन्द्रीय भावों, प्रमुख विचारों और निष्कर्षों को समझना।
(4) दृश्य-शृव्य सामग्री कविता, कहानी, नाटक, घटना- विवरण, दृश्य वर्णन तथा चर्चा को देखकर एवं सुनकर आह्लादित होना।
(5) सुनने के शिष्टाचार का पालन करने की क्षमता का विकास करना।

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2. बोलना या वाचन (Speaking) की दक्षता

(1) शुद्ध, स्पष्ट, शिष्टतापूर्वक, उतार-चढ़ाव एवं उचित हावभाव के साथ प्रभावी ढंग से बोलने के कौशल का विकास करना।
(2) वार्तालाप, वाद-विवाद परिचर्चा तथा अनुभव आदि को अपने ढंग से प्रस्तुत करने की क्षमता का विकास करना।
(3) कविता, कहानी तथा  सम्वाद को भावपूर्ण अभिव्यक्त करने के कौशल का विकास करना।
(4) निर्धारित विषयों पर भाषण एवं देखी-सुनी घटना का वर्णन करने की क्षमता का विकास करना।

3. पढ़ना या पठन (Reading) की दक्षता

(1) मौन एवं सस्वर द्वारा वाक्य को अर्थान्वितियों या लय इकाइयों में बाँटकर उचित अनुपात के साथ पढ़ने की क्षमता का विकास करना।
(2) अनुच्छेद के मुख्य कथनों, सहायक कथनों और उदाहरणों को पहचान कर स्वाभाविक से पढ़ने के कौशल का विकास करना।
(3) विषय-वस्तु के केन्द्रीय भाव तथा सार को समझते हुए पढ़ने के कौशल का विकास करना।
(4) निश्चित गति से बोधपूर्वक समझते हुए मौन पठन की क्षमता का विकास करना।
(5) कविता, कहानी एवं मनोरंजन युक्त पठन सामग्री को पढ़ने की रुचि विकसित करना।
(6) शब्दकोश के अवलोकन का अभ्यास करते हुए पठन कौशल का
विकास करना।

4. लिखना या लेखन (Writing) की दक्षता

(1) समान आकार सुन्दर एवं सुडौल अक्षर यथोचित गति से लिखने की क्षमता का विकास करना।
(2) शब्दगत दूरी तथा पंक्तिगत समान दूरी का ध्यान रखना।
(3) शुद्ध शब्द,स्पष्ट वाक्य एवं विराम चिह्नों का प्रयोग करते हुए लेखन कौशल का विकास करना।
(4) देखे गये दृश्य, घटना, निबन्ध एवं विभिन्न पत्र-लेखन कौशल का विकास करना।
(5) पठित सामग्री का सार एवं प्रश्नोत्तर लिखने के कौशल का विकास करना।
(6) दैनिक जीवन में उपयोगी भिन्न प्रपत्र भरने की कुशलता का विकास करना।

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5. व्यावहारिक व्याकरण (Applied Grammar) की दक्षता

(1) शब्द, शब्दभेद, सन्धि, समास, उपसर्ग एवं प्रत्यय के आधार पर शब्द निर्माण की क्षमता का विकास करना।
(2) पद, पदबन्ध, वाक्य तथा वाक्य संरचना की समझ पैदा करना। (3) धातु से अन्य शब्द रूपों का निर्माण एवं धातुओं की पहचान कर सकने की समझ विकसित करना।
(4) विलोम, समानार्थी शब्द युग्म, मुहावरे एवं कहावतों को समझते हुए व्यावहारिक प्रयोग करने की क्षमता का विकास करना ।

6. विशेष अध्ययन सामग्री (Special Study Material) की दक्षता

राष्ट्रीय लक्ष्यों एवं आदर्शों, यथा- जनतान्त्रिकता, धर्म निरपेक्षता, सामाजिक, आर्थिक न्याय तथा राष्ट्रीय एकता मानवतावाद आदि के प्रति चेतना एवं सक्रियता का विकास करना। चरित्र, निर्माण के लिये जीवनमूल्यों, यथा-श्रम की महत्ता, सत्य, शिष्टाचार सद्वृत्तियाँ,राष्ट्रीय प्रेम, आध्यात्मिकता, सकारात्मक सोच एवं व्यक्तिगत हित से ऊपर उठकर सामुदायिक हित की भावना का विकास एवं परोपकार आदि का विकास करना ।

भाषा शिक्षण की अपेक्षित दक्षताओं के मुख्य बिन्दु

भाषा शिक्षण की अपेक्षित दक्षताओं के सम्बन्ध में आवश्यक बिन्दु निम्नलिखित हैं-

(1) भाषा-शिक्षण के मूल उद्देश्यों की सम्प्राप्ति का आधार कक्षावार भाषायी दक्षताएँ होंगी।
(2) इन दक्षताओं का उल्लेख क्षेत्रवार तथा कक्षावार किया गया है, जो बालक-बालिकाओं के ध्यानपूर्वक सुनने, समझने, पढ़ने, पढ़कर समझने तथा अपने मन की बात प्रकट करने से सम्बन्धित है।
(3) दक्षताओं के कथन प्रत्येक अधिगम क्षेत्र में जो शिक्षार्थी के लिये भाषा शिक्षण का उद्देश्य भी है, निम्नलिखित दो प्रकार से लिया गया है- (i) ऊर्ध्वाधर अर्थात् ऊपर से नीचे। (ii) क्षैतिजाकार अर्थात् बायें से दायें।
(4) ऊर्ध्वाधर दक्षता कथन में बालक -बालिकाओं द्वारा एक कक्षा में अधिकाधिक ज्ञान प्राप्ति की अपेक्षा की गयी है, जबकि क्षैतिजाकार दक्षता को बालक उत्तरोत्तर आगे वाले कक्षा में प्राप्त करता चलेगा।

(5) भाषा की दक्षताएँ यद्यपि अलग-अलग अधिगम क्षेत्रों में बाँटी गयी हैं किन्तु शिक्षण के समय इन सभी का संग्रहीत होना स्वाभाविक है। यह ध्यान दिया जाना है कि जिस अधिगम क्षेत्र की दक्षता का विकास किया जा रहा है, उस पर अधिक बल दिया जाय। अन्य क्षेत्रों में दक्षताएँ उसमें स्वयं सहायक सिद्ध हो सकती हैं।
(6) दक्षताओं की प्राप्ति हेतु शिक्षण एकीकृत रूप से किया जाना अपेक्षित है।
(7) भाषा की प्रकृति ऐसी है कि इसमें दक्षताओं को पृथक्-पृथक् करके नहीं देखा जा सकता। कभी-कभी कुछ दक्षताएँ समानान्तर रूप से भी विकसित की जा सकती हैं। अतः यह न माना जाय कि एक दक्षता के पूर्ण होने पर ही दूसरी दक्षता का विकास किया जायेगा।

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(8) सभी दक्षताएँ एक-दूसरे से सम्बन्धित होने पर भी प्रत्येक क्षेत्र की दक्षता का पृथक् से भी उतना ही महत्त्व है, जितना सभी के साथ सहसम्बन्ध करके।
(9) मूल्यांकन में भी यही दृष्टि रहेगी कि कुछ दक्षताएँ पृथक् से
मूल्यांकित न होकर संग्रहीत रूप से परखी जायें। कभी यह भी सम्भव है कि एक दक्षता की जाँच करते समय दूसरी दक्षता अप्रत्यक्ष रूप से ही स्वतः मूल्यांकित हो जाये। अत: इन सभी तथ्यों का सतत् एवं सावधिक मूल्यांकन नियोजन में ध्यान रखना आवश्यक एवं अपेक्षित होगा।
(10) दी गयी दक्षताओं का क्रम उसी कक्षा से सम्बन्धित है तथापि बायें से दायें चलने वाले क्रम को सभी दक्षताओं में स्तरानुसार देखा जाना एवं प्राप्त किया जाना अपेक्षित है।



                        ◆◆◆ निवेदन ◆◆◆

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