राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् के कार्य / राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् की आवश्यकता,उद्देश्य, गठन / NCTE के कार्य

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राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् के कार्य / राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् की आवश्यकता,उद्देश्य, गठन

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NCTE के कार्य / राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् की आवश्यकता,उद्देश्य, गठन

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राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् क्या है / National Council for Teacher Education NCTE

कोठारी आयोग (1964-66) ने अध्यापक शिक्षा के कार्यक्रम को रूढ़िवादी, कठोर तथा वास्तविकताओं से अलग बताया था। इस आयोग ने अध्यापक शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिये अध्यापक शिक्षा की एक राष्ट्रीय परिषद् बनाने की सिफारिश की। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1986) के क्रियान्वियन 1992 की कार्य योजना में NCTE राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् को स्थापित करने की सिफारिश इस शर्त पर की गयी कि अध्यापक शिक्षा की राष्ट्रीय परिषद् को
आवश्यक संसाधन जुटानेहोंगे तथा अध्यापक शिक्षा की संस्थाओं का मूल्यांकन करने की योग्यता तथा पाठ्यक्रो एवं शिक्षा के तरीकों के सम्बन्ध में मार्गदर्शन प्रदान करने की योग्यता जुटानी होगी।

NCERT के अध्यापक शिक्षा विभाग में सन् 1973 में अध्यापक शिक्षा के क्षेत्र में अनेक सुधार हुए उस समय से लगातार प्रयास किये गये और अन्तत: 29 दिसम्बर 1993 को 73वें अधिनियम के रूप में भारतीय संसद ने राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् एक्ट पारित किया। राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् अधिनियम 1993 के अनुसरण में एक संविधिक निकाय के रूप में राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् 17 अगस्त, 1995 को स्थापित की गयी। एनसीटीई का मुख्यालय नयी दिल्ली में स्थित है तथा इसके संविधक दायित्वों की पूर्ति करने के लिये इसकी चार क्षेत्रीय समितियाँ हैं जो बंगमुरू, भोपाल, भुवनेश्वर तथा जयपुर में स्थित हैं।

एनसीटीई की नियोजित और समन्वित विकास तथा अध्यापक शिक्षा में नवाचारों की शुरूआत करने सहित अपने आवण्टित कार्य निष्पादित करने में समर्थ बनाने के उद्देश्य से दिल्ली स्थिति एनसीटीई में और साथ ही इसकी चार क्षेत्रीय समितियों में वित्त, स्थापना और विविध मामलों और अनुसन्धान,नीति नियोजन, मॉनीटरन, पाठ्यचर्या, नवाचारों, पुस्तकालय तथा प्रलेखन,सेवाकालीन कार्यक्रमों पर कार्रवाई करने के लिये क्रमशः प्रशासनिक और शैक्षणिक स्कन्ध है। एनसीटीई मुख्यालय अध्यक्ष की अध्यक्षता में तथा प्रत्येक क्षेत्रीय समिति निदेशक की अध्यक्षता में काम करती है।

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राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद् की आवश्यकता (Need of National Council for Teacher Education)

राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् की स्थापना की आवश्यकता क्यों अनुभव की गयी, इसके कुछ पहलू निम्नानुसार हैं-

1. शिक्षा का विस्तार-हमारा देश भारतवर्ष स्कूली शिक्षा में बड़े पैमाने पर विस्तार तथा सैकेण्डरी शिक्षा में कुछ मौलिक परिवर्तन लाने का आयोजन कर रहा है। स्कूली शिक्षा की बुनियाद तथा अध्यापक के योगदान के महत्त्व को सामने रखते हुए यह अनुभव किया गया कि अखिल भारतीय संस्थान की स्थापना की जाये, जो सरकार को अध्यापक शिक्षा की योजनाओं को आयोजित करने में सलाह दे सके।

2. न्यूनतम सुविधा की प्राप्ति-हमारे देश में बहुत-सी प्रशिक्षण संस्थाओं में दृश्य-श्रव्य सामग्री, आधुनिक सामान प्रयोगशालाओं, इमारतों तथा पुस्तकालयों का अभाव है। अनेक संस्थाएँ धनाभाव के कारण न्यूनतम सुविधाएँ भी प्रदान नहीं कर पाती हैं।

3. प्रशिक्षित अध्यापकों की समस्या-प्रशिक्षित अध्यापकों की अधिकता तथा कमी भी एक समस्या रही है। अनेक राज्यों में प्रशिक्षित अध्यापक बेकार हैं और अनेक राज्यों में उनकी कमी है। अनेक राज्य सरकारों ने प्रशिक्षण कॉलेजों को बन्द कर दिया है।

4. अध्यापकों की शिक्षा-राज्यों में प्रशिक्षित अध्यापकों के प्रतिशत में अन्तर है। यह अन्तर प्रशिक्षण पाठ्यक्रम के समय व्यवहार के अतिरिक्त विभिन्न राज्यों में 18 से 99 प्रतिशत है। प्राइमरी अध्यापकों की योग्यताओं में भी अन्तर है। उपरोक्त समस्याओं के समाधान के लिये राष्ट्रीय स्तर पर एक परिषद् का होना आवश्यक है।

राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद् के उद्देश्य (Aims of National Council for Teacher Education)

इस परिषद् के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-
(1) सतत् शिक्षा पर बल देना। (2) शिक्षक शिक्षा के स्तरों के निर्धारण तथा रखरखाव के लिये एक तन्त्र का निर्माण करना। (3) निम्न स्तर के संस्थानों को बन्द करने के लिये तथा शिक्षक संस्थाओं को नियमित करना। (4) प्रशिक्षित अध्यापकों की आपूर्ति तथा माँग के बीच की दूरी कम करना।

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राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद् के कार्य (Functions of NCTE)

राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् के निम्नलिखित कार्य हैं-
(1) शिक्षक शिक्षा के सभी क्षेत्रों में नवीनता तथा अनुसन्धान को बढ़ावा देना तथा उनके परिणामों का प्रसार करना।

(2) शिक्षक शिक्षा संस्थानों के लिये स्तर तथा मार्गदर्शी सिद्धान्त निर्धारित करना तथा उनके कार्यों को देखना ।

(3) प्रौढ़ तथा अनौपचारिक शिक्षा के कार्मिकों के प्रशिक्षण के लिये व्यवस्था करना।

(4) शिक्षक शिक्षा से सम्बन्धित सभी मामलों तथा उसके कार्यक्रमों में केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकारों, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, विश्वविद्यालय तथा अन्य एजेन्सियों को सुझाव देना।

(5) शिक्षकों तथा शिक्षा शिक्षकों के लिये सतत् शिक्षा तथा व्यावसायिक विकास के लिये मार्गदर्शी सिद्धान्त तैयार करना।

(6) विद्यालयों में अथवा मान्यता प्राप्त संस्थाओं में अध्यापक की कम से कम योग्यताओं के बारे में आदेश देना।

(7) शिक्षक शिक्षा में किसी निश्चित वर्ग के पाठ्यक्रमों अथवा प्रशिक्षण के नियमों को निर्धारित करना, जिसमें प्रवेश के लिये न्यूनतम योग्यता के मापदण्डों तथा प्रत्याशियों के चुनाव का ढंग, पाठ्यक्रम की विषयवस्तु तथा पाठ्यक्रम का ढंग निर्धारित करना सम्मिलित हो।

(8) मान्यता प्राप्त संस्थाओं द्वारा शिक्षणशुल्क तथा अन्य शुल्क प्राप्त करने से सम्बन्धित दिशा-निर्देश निर्धारित करना।

(9) अध्यापक शिक्षा के विभिन्न स्तरों के लिये योजना बनाना तथा शिक्षक विकास कार्यक्रमों के लिये मान्यता प्राप्त संस्थाओं की पहचान करना तथा नयी संस्थाएँ स्थापित करना।

(10) शिक्षक शिक्षा के व्यापारीकरण को रोकने के लिये उचित कदम उठाना।

(11) शिक्षक शिक्षा के विभिन्न क्षेत्रों में शोधकार्य तथा नवीन प्रक्रिया को चलाना तथा उन्हें प्रोत्साहित करना और उनके परिणामों को प्रसारित करना।

राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद् का गठन (Organisation of National Teacher Council)

राष्ट्रीय अध्यापक परिषद् का गठन निम्नलिखित प्रकार है-
(1) जिस तिथि से केन्द्रीय सरकार सरकारी गजट में निश्चित करें उस तिथि से एक परिषद् स्थापित की जायेगी जिसे राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् कहा जायेगा।

(2) परिषद् का मुख्यालय देहली में होगा और केन्द्रीय सरकार की पूर्व अनुमति से भारत के अन्य स्थानों पर क्षेत्रीय कार्यालय खोलेंगे।

(3) परिषद् के निम्नलिखित सदस्य होंगे-(अ) केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त अध्यक्ष  (ब) केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त उपाध्यक्ष  (स) केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त सदस्य सचिव

(4) भारत सरकार का शिक्षा विभाग का सचिव

(5) विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का अध्यक्ष 

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(6) राष्ट्रीय शिक्षा अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण का निदेशक।

(7) शिक्षा परियोजना एवं प्रबन्ध के राष्ट्रीय संस्थान का निदेशक ।

(8) योजना आयोग में शिक्षा का सलाहकार।

(9) माध्यमिक शिक्षा के केन्द्रीय बोर्ड का अध्यक्ष।

(10) भारत सरकार के शिक्षा विभाग में वित्तीय सलाहकार।

(11) अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् का सदस्य सचिव।

(12) सभी प्रादेशिक उपसमितियों के अध्यक्ष।

(13) केन्द्रीय सरकार द्वारा निम्नलिखित ढंग से निम्नलिखित व्यक्तियों में से शिक्षा के अनुभव प्राप्त 13 व्यक्ति। (अ) विश्वविद्यालयों में शिक्षा विभागों के प्रोफेसर तथा शिक्षा संकायों के अध्यक्ष-1(ब) माध्यमिक शिक्षक शिक्षा में विशेषज्ञ-1 (स) पूर्व प्रारम्भिक शिक्षक और प्रौढ़ शिक्षा में विशेषज्ञ-1 (द) प्राकृतिक विज्ञान तथा सामाजिक विज्ञान, भाषा विज्ञान, व्यावसायिक शिक्षा,कार्य अनुभव, शिक्षा तकनीक एवं विशेष शिक्षा में चक्र क्रमसे निर्धारित ढंग से विशेषज्ञ-3

(14) राज्य सरकारों तथा केन्द्र शासित प्रदेश के प्रशासनों को प्रतिनिधित्व देने के लिये केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्ति 9 सदस्य।

(15) तीन संसद सदस्य।

(16) प्रारम्भिक तथा प्रारम्भिक शिक्षा के अध्यापकों तथा मान्यता प्राप्त संस्थाओं के अध्यापकों में से केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त तीन सदस्य।

(17) यह परिषद् (राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद्) इस नाम की संस्था होगी, जिसका निरन्तर चलन हो, जिसकी एक सामान्य मोहर होगी जिसे ठेका देने का अधिकार और इस नाम से मुकदमा करने तथा मुकदमें से बचाव करने का अधिकार होगा। इस कानून के अन्तर्गत मान्यता प्राप्त करने के लिये एक निश्चित दिन (तिथि) या उसके बाद प्रत्येक संस्था सम्बन्धित प्रादेशिक समिति को प्रार्थना पत्र दे सकती है।

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