सामाजिक अध्ययन की शिक्षण विधियां | CTET SOCIAL STUDIES PEDAGOGY

दोस्तों अगर आप CTET परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो CTET में 50% प्रश्न तो सम्मिलित विषय के शिक्षणशास्त्र से ही पूछे जाते हैं। आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com आपके लिए सामाजिक विज्ञान विषय के शिक्षणशास्त्र से सम्बंधित प्रमुख टॉपिक की श्रृंखला लेकर आई है। हमारा आज का टॉपिक सामाजिक अध्ययन की शिक्षण विधियां | CTET SOCIAL STUDIES PEDAGOGY है।

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सामाजिक अध्ययन की शिक्षण विधियां | CTET SOCIAL STUDIES PEDAGOGY

सामाजिक अध्ययन की शिक्षण विधियां | CTET SOCIAL STUDIES PEDAGOGY
सामाजिक अध्ययन की शिक्षण विधियां | CTET SOCIAL STUDIES PEDAGOGY

CTET SOCIAL STUDIES PEDAGOGY

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सामाजिक विज्ञान की शिक्षण विधियां

सामाजिक अध्ययन शिक्षण की विधियां साज-सज्जा, उपागम, विषय वस्तु के संगठन, शिक्षक एवं शिष्य के अभिप्रायो, शिक्षक शिष्य सम्बन्ध, छात्र-छात्र सम्बन्ध तथा छात्र सहभागिता पर आधारित होनी चाहिए। ये शिक्षण विधियां शिक्षाशास्त्रियों तथा अध्यापकों के गंभीर प्रयत्नों एवं परिश्रम का परिणाम हैं-

(1) व्याख्यान या भाषण विधि

शिक्षण विधि के रूप में भाषण अथवा व्याख्यान विधि काफी पुरानी विधि है। इस विधि में अध्यापक द्वारा बालकों को जो भी ज्ञान प्रदान किया जाता है उसका मुख्य स्त्रोत तथा केंद्रबिंदु स्वयं अध्यापक ही होता है। सामाजिक विज्ञान में जिस प्रकरण को उसे कक्षा में विद्यार्थी को पढ़ाना होता है उससे संबंधित विषय-वस्तु को वह घर पर विशेष रूप से समय देकर तैयार कर लेता है और फिर रटे-रटाए ज्ञान को ज्यों का त्यों भाषण के रूप में कक्षा में प्रस्तुत कर देता है। इस तरह व्याख्यान विधि का अनुसरण करने के लिए अध्यापक को दो बातों पर ध्यान देना होता है।

एक तो विषय-वस्तु का समुचित चयन और दूसरे कक्षा में व्याख्यान, कथन, वर्णन, भाषण आदि के रूप में प्रभावपूर्ण प्रस्तुतीकरण । व्याख्यान विधि में मुख्य भूमिका अध्यापक की ही होती हैं अतः इसकी गिनती शिक्षण प्रधान विधियों में ही की जाती है। विद्यार्थी का कार्य अध्यापक द्वारा भाषण या वार्ता आदि के रूप में जो कुछ शाब्दिक वर्णन उसके सामने रखा जाता है उसे एक अच्छे श्रोता के रूप में सुनना तथा समझना भर होता है। वे बीच-बीच में महत्वपूर्ण बातों को नोट करने तथा याद करने का प्रयत्न भी कर सकते हैं।

भाषण या व्याख्यान विधि के लाभ

1. अध्यापक के लिए सुविधा
2. पाठ्यक्रम को समय पर समाप्त करने में सुविधा
3. विद्यालय की वर्तमान परिस्थितियों में उपयुक्त
4. अध्यापक और विद्यार्थी दोनों के समय तथा शक्ति की बचत
5. भाषा-संबंधी योग्यता के विकास में सहायक
6. श्रवणेंद्रियों के उपयोग से सीखने के उचित अवसर व प्रशिक्षण मिलना
7. प्रभावपूर्ण ढंग से शिक्षण में सहायक
8. सामाजिक विज्ञान संबंधी विशेष प्रकरणों तथा शिक्षण के विभिन्न स्तर पर उपयुक्त ।

भाषण/व्याख्यान विधि के दोष

1. अमनोवैज्ञानिक विधि
2. क्रियाशीलता का अभाव
3. रटने की प्रवृत्ति को बढ़ावा
4. नीरस तथा अरुचिकर
5. सामाजिक विज्ञान शिक्षण के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अनुपयुक्त
6. सभी प्रकार के अध्यापकों के लिए उपयुक्त सिद्ध न होना

(2) समस्या समाधान विधि

इस विधि से तात्पर्य शिक्षण की उस विधि से है जिसमें विद्यार्थी किसी चुनौतीपूर्ण समस्या के हल के लिए अपने पूर्व अनुभवों तथा वर्तमान में अपने द्वारा किए जाने वाले विशेष प्रयासों का सहारा लेकर समस्या का सर्वोत्तम हल ढूंढने का प्रयत्न करते हैं तथा फिर से इस हल या समाधान को उस जैसी अन्य समस्याओं के समाधान में प्रयोग करने की कुशलता विकसित करते हैं।

समस्या समाधान विधि की विशेषताएं

(1) समस्या विधि सीखने-सिखाने की एक प्रमुख विधि है। (2) इस विधि में कोई भी एक समस्या अध्ययन-अध्यापन का केंद्र होती है। (3) समस्या का चयन अध्यापक भी देख-रेख में विद्यार्थी की रुचि, योग्यताओं तथा आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर किया जाता है।(4) समस्या को हल के लिए सभी विद्यार्थी मिलकर अपने-अपने ढंग से प्रयत्न करते हैं। (5) समस्या का चयन इस ढंग से किया जाता है कि उसके हल के लिए किए जाने वाले प्रयत्नों द्वारा विद्यार्थी को अधिक-से-अधिक शैक्षिक लाभों की प्राप्ति हो सके। साथ ही समस्या समाधान को भी इसी दृष्टि से नियोजित किया जाता है। (6) शिक्षक की भूमिका सभी दृष्टि से संपूर्ण प्रक्रिया में काफी महत्वपूर्ण होती है परंतु वह हर तरह से समस्या का चयन, नियोजन, आयोजन और समाधान प्रक्रिया में विद्यार्थी को ही आगे रखता है ताकि वे अपने स्वयं के प्रयत्नों से समस्या समाधान योग्यता अपने अंदर विकसित कर सकें।

समस्या समाधान विधि के सोपान/चरण

(1) समस्या का चयन (2) समस्या को समझना। (3) आवश्यक सूचनाओं या जानकारी का संग्रह (4) एकत्रित सूचना या ज्ञान का विश्लेषण (5) संभव समाधानों या परिकल्पनाओं का निर्माण (6) उचित परिकल्पना/परिकल्पनाओं का चयन (7) स्वीकृत समाधान का प्रयोग

समस्या समाधान विधि के गुण

  1. मनोवैज्ञानिक विधि
  2. मानसिक शक्तियों के विकास में सहायक
  3. वैज्ञानिक दृष्टिकाण के विकास में सहायक
  4. शिक्षण को व्यावहारिक एवं उपयोगी बनाने में सहायक
  5. अध्यापक तथा छात्रों के बीच स्वस्थ संबंधों के निर्माण में सहायक
  6. समस्या समाधान योग्यता का विकास
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समस्या समाधान विधि के दोष

  1. आंशिक उपयोगिता/सभी प्रकरणों को इस विधि द्वारा पढ़ाना संभव नहीं
  2. पाठ्यक्रम को समाप्त करने में कठिनाई
  3. अध्यापक के उत्तरदायित्व का बढ़ जाना
  4. उपयुक्त साधनों एवं सामग्री का अभाव
  5. कक्षा की वर्तमान परिस्थितियों के अनुपयुक्त

(3) योजना विधि

योजना विधि प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री जॉन डेवी (John Deway) के उन विचारों की देन है जिन्हें शिक्षा के अन्तर्गत प्रयोजनवाद (Pragmatism) के नाम से जाना जाता है। योजना से अर्थ ऐसे कार्य से है जिसे विद्यालय के अंदर ही स्वाभाविक परिस्थितियों में मन लगाकर पूरा किया जा सकता है और इसके द्वारा बालकों की दिन-प्रतिदिन की समस्याओं को हल करने में अथवा उन्हें जीवनोपयोगी शिक्षा देने में सहायता मिलती है। इस विधि के जन्मदाता डब्ल्यू.एच. किलपैट्रिक है। इस विधि में बालक को कोई कार्य सम्पन्न करने के लिए कहा जाता है। इस विधि के द्वारा शिक्षार्थी में योजना बनाना, उसको क्रियान्वित करना, उसका मूल्यांकन करना आदि कौशलों का विकास होता है।

योजना विधि के सोपान/चरण

1. परिस्थिति प्रदान करना
2. योजना का चुनाव
3. योजना का नियोजन
4. योजना का क्रियान्वयन
5. योजना का मूल्यांकन करना
6. योजना का लेखा-जोखा रखना

कुछ सार्थक योजनाओं के उदाहरण

(1) सामाजिक तथा भौतिक वातावरण में उपलब्ध विभिन्न रुचिकर वस्तुओं जैसे-सिक्के, डाक टिकट मुहरें, बरतनों आदि का संग्रह।
विभिन्न ऐतिहासिक, भौगोलिक, औद्योगिक रुचि के क्षेत्रों एवं स्थानों की सैर तथा शैक्षणिक यात्राएं।
(2) विद्यालय में सहकारी भंडार, सहकारी बैंक, पोस्ट आफिस आदि का संचालन।
(3) समुदाय विशेष में यातायात नियंत्रण, बस और रेलवे स्टेशन पर यात्री सुविधाओं तथा चिकित्सालय में चिकित्सा सुविधाओं, मरीजों आदि की देखभाल में सहायता पहुंचाना।
(4) विभिन्न सांस्कृतिक, सामाजिक तथा राष्ट्रीय उत्सवों का आयोजन तथा ऐतिहासिक, सामाजिक और राष्ट्रीय कर्णधारों व महापुरुषों के जन्म दिन आदि का आयोजन।

योजना विधि के गुण

(1) जनतांत्रिक जीवनयापन का प्रशिक्षण
(2) सामाजिक गुणों के विकास में सहायक
(3) उचित प्रकार से समवायी शिक्षण में सहायक
(4) रटने की प्रवृत्ति को निरुत्साहित करना।
(5) क्रियात्मक एवं व्यवहारात्मक ढंग से ज्ञान प्राप्ति
(6) अनुशासन, गृहकार्य तथा टाइम टेबल आदि अनेक कक्षा समस्याओं से मुक्ति

योजना विधि के दोष

(1) क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित ज्ञान प्राप्ति में सहायक न होना
(2) विद्यालय कार्य का अव्यवस्थित हो जाना
(3) खर्चीली एवं शिक्षकों के लिए कठिनाई
(4) पाठ्यक्रम समय से समाप्त करने में कठिनाई

(4) आगमन एवं निगमन विधि

आगमन विधि

आगमन चिंतन प्रणाली एवं विश्लेषण पर आधारित है। इसमें पहले से ज्ञात तथ्यों अथवा नियमों को अपने इसी रूप में ग्रहण कर लेने तथा उपयोग करने का प्रयत्न नहीं किया जाता बल्कि देखा जाता है कि इन तथ्यों या नियमों की प्राप्ति या निर्माण का आधार क्या है।

इस विधि के शिक्षण सूत्र

  1. उदाहरण से नियम की ओर बढ़ना
  2. स्थूल से सूक्ष्म की ओर जाना
  3. विशेष से सामान्य की ओर
  4. विश्लेषण से संश्लेषण की ओर

निगमन विधि

आगमन विधि जहां आगमन चिंतन एवं तर्क प्रणाली पर आधारित है वहीं निगमन विधि निगमन चिंतन एवं तर्क प्रणाली पर आधारित रहती है। इस दृष्टि से इसकी प्रवृत्ति एवं कार्यप्रणाली आगमन विधि के ठीक विपरीत होती है। इस विधि में विद्यार्थी के सामने पहले से ही ज्ञात तथ्यों, अवधारणाओं नियमों तथा सामान्यीकृत विशेषताओं को रखा जाता है और फिर उनकी सत्यता की जांच विशेष उदाहरणों, क्रियाओं तथा प्रयोगों के आधार पर की जाती है। इस विधि में सामान्य से विशेष की ओर, नियम से उदाहरण की ओर तथा सूक्ष्म से स्थूल की ओर बढ़ जाता है। विद्यार्थी सूक्ष्म जानकारी, नियम तथा स्थापित तथ्यों को जैसा उन्हें अध्यापकों द्वारा बताया जाता है या उनके द्वारा इनकी जिस रूप में पुस्तकों तथा अन्य स्त्रोतों से जानकारी मिलती है बिल्कुल वैसी ही ग्रहण कर लेते हैं फिर उन्हें उदाहरणों, क्रियाओं अथवा प्रयोगों के माध्यम से परखने की कोशिश करते हैं।

(5) अनुसंधान या खोज विधि

जैसा कि नाम से ही विदित होता है अनुसंधान या खोज विधि शिक्षण की एक ऐसी विधि है जिसमें विषय-वस्तु का ज्ञान समस्याओं का हल, तथ्यों का सामान्यीकरण तथा निष्कर्षित सिद्धांतों को विद्यार्थी पर लादा नहीं जाता बल्कि इन सभी बातों की खोज या अनुसंधान उनके अपने प्रयत्नों से ही कराने की चेष्टा की जाती है।

सोपान :

  1. जो खोजना है उसके बारे में स्पष्ट ज्ञान
  2. आवश्यक सूचना या आंकड़ों का संग्रह
  3. संग्रह किए गए आंकड़ों या सूचनाओं का विश्लेषण
  4. संभावित परिकल्पनाओं का निर्माण
  5. निष्कर्ष निर्धारण

(6) अधिन्यास विधि (Assignment Method)

अधिन्यास विधि प्रदर्शन तथा प्रयोगशाला विधि के समन्वित रूप का एक उत्तम उदाहरण है। इसमें कक्षा विशेष के पूरे वर्ष के पाठ्यक्रम को, पूर्ण वर्ष में मिलने वाले समय का अनुमान लगाकर साप्ताहिक,पाक्षिक या मासिक अवधि के हिसाब से छोटे-छोटे भागों में बांट दिया जाता है। इन्हें अधिन्यास की संज्ञा दी जाती है तो दिए गए समय में पूरे करने होते हैं। इसके लिए अध्यापक उन्हें लिखित प्रश्न आदि देता है और प्रश्नों का उत्तर देने के लिए क्या-क्या और कहां से पढ़ना है इन सब बातों की जानकारी भी दी जाती है। अध्यापक द्वारा छात्रों की प्रगति का पूरा लेखा-जोखा रखा जाता है। इस विधि में छात्रों के व्यक्तिगत अंतर को उचित महत्व मिलता है। उनमें उत्तरदायित्व, आत्मविश्वास, स्वाध्याय, स्वावलम्बन,आत्मनिर्भरता आदि की भावना का विकास होता है, वैज्ञानिक दृष्टिकोण का भी विकास होता है।

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(7) कहानी-विधि

सामाजिक अध्ययन शिक्षण के अधिगम में यह विधि बड़ी उपयोगी होती है। इस विधि के द्वारा कोई भी ज्ञान बड़ी आसानी से शिक्षार्थियों को दिया जा सकता है। इस विधि के द्वारा कोई भी नीरस और उबाऊ विषय वस्तु को रोचक ढंग से पढ़ाया जा सकता है। यह विधि अधिगम के लिए सन्दर्भगत वातावरण प्रदान करती है। इस विधि के द्वारा अनेक विषय-क्षेत्रों को आसानी से पढ़ाया जा सकता है। कहानियों में व्यक्तियों के अनुभव शामिल होते हैं।  इस विधि के द्वारा बच्चों के परिवेश का समृद्ध चित्रण किया जा सकता है। इस विधि के द्वारा बच्चों में सृजनात्मकता एवं सौन्दर्यबोध का विकास किया जा सकता है। यह बच्चों में रुचि और जिज्ञासा का विकास करती है।  इस विधि के द्वारा बच्चों में ज्ञान प्राप्ति के साथ-साथ मनोरंजन भी होता है।

(8) क्रियात्मक विधि/करके सीखना

यह विधि ‘करके सीखने के सिद्धान्त पर आधारित हैं। अगर सामाजिक अध्ययन की कक्षा गतिविधि आधारित होती है तो शिक्षार्थी का ज्ञान स्थाई और सार्थक होगा। इस विधि में शिक्षार्थी सदैव क्रियाशील रहता है और स्वयं कार्य करके ज्ञान अर्जित करता है, जिससे उसमें परस्पर क्रिया, अवलोकन और सहयोग जैसे कौशलों का विकास होता है।  इस विधि में शिक्षार्थी को उसकी रुचि के अनुसार कार्य करने का अवसर मिलता है। इस विधि में शिक्षक एक मार्गदर्शक के रूप में रहता है।

(9) क्षेत्र भ्रमण विधि

स्थानीय समाज अध्ययन के लिए क्षेत्र-भ्रमण या पर्यटन एक उपयुक्त विधि या साधन माना गया है। इसके द्वारा छात्र प्रत्यक्ष रूप से उस वातावरण की प्रत्येक बात का सूक्ष्मातिसूक्ष्म अध्ययन कर सकता है। क्षेत्र भ्रमण के साथ ही छात्र भ्रमण द्वारा स्थानीय समाज के सदस्यों के पारस्परिक सम्बन्धों का व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। सामाजिक विज्ञान में स्थानीय स्थलों की विभिन्न वस्तुओं एवं संस्थाओं-झीलों, ऐतिहासिक सामग्री,फैक्ट्री, बाजार, बैंक, रेडियो स्टेशन व सामाजिक संस्थाओं का भ्रमण के द्वारा प्रत्यक्ष एवं वास्तविक ज्ञान प्रदान किया जा सकता है।

क्षेत्र-भ्रमण विधि के लाभ

(1) यह छात्रों के ज्ञान को आधुनिकतापूर्ण एवं स्थाई बनाता है।
(2) भ्रमण द्वारा पाठ्यक्रम के अनुभवों को समृद्ध बनाया जाता है। (3) इसके द्वारा छात्रों के सामान्य ज्ञान में वृद्धि की जाती है।
(4) यह मौखिक पाठों की पूर्ति करके उनको रोचक बनाता है।

(10) समूह चर्चा अथवा परिचर्चा विधि

परिचर्चा विधि सामाजिक विज्ञान शिक्षा की वह विधि है जिसमें शिक्षक और विद्यार्थी मिल-जुलकर सामाजिक विज्ञान के पाठ्यक्रम से सम्बन्धित किसी प्रकरण, प्रश्न या समस्या के ऊपर स्वतन्त्रतापूर्वक सामूहिक वातावरण में अपने विवेकपूर्ण विचारों का आदान-प्रदान करते हैं तथा इस प्रकार समस्या समाधान के लिए आम सहमति द्वारा किसी निर्णय पर पहुंचने की कोशिश करते हैं, प्रकरण विशेष से संबंधित अपनी शंकाओं का समाधान करते हैं और सामूहिक विचार-मंथन के द्वारा विषय से संबंधित आवश्यक ज्ञान एवं कुशलताओं आदि का अर्जन करते हैं।

परिचर्चा विधि के चरण

  1. समस्या की प्रस्तुति
  2. समस्या तथा समाधान के स्त्रोतों से अवगत कराना
  3. विद्यार्थी द्वारा परिचर्चा से पूर्व की जाने वाली तैयारी
  4. परिचर्चा का संचालन
  5. परिचर्चा के बाद का कार्य
  6. मूल्यांकन

परिचर्चा विधि के गुण

• विद्यार्थियों को मिल-जुलकर सहयोगपूर्ण ढंग से कार्य करने का प्रशिक्षण मिलता है।
• यह विधि छात्रों की तर्क शक्ति, विचार-शक्ति एवं कल्पना शक्ति के विकास के उचित अवसर प्रदान करती है।

परिचर्चा विधि के दोष
• सभी विद्यार्थियों के लिए उपयोगी नहीं है।
• समय एवं शक्ति का अपव्यय होता है।

(11) इकाई विधि (Unit Method)

इकाई विधि से तात्पर्य उस शिक्षण विधि से है जिसमें विषय विशेष की अध्ययन सामग्री को उपयुक्त सार्थक इकाईयों में इस प्रकार विभक्त कर समवायी ढंग से अधिकतम अनुभव अर्जित कराए जाते हैं जिनके द्वारा विद्यार्थियों को अधिक से अधिक प्रभावपूर्ण ढंग से अपने जीवन की परिस्थितियों में समायोजित होने में सहायता मिल सके।

इकाई विधि के गुण

(1) इकाई विधि में संपूर्ण पाठ्यक्रम को इकाइयों में विभक्त कर लेने से शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को सुविधाजनक और सार्थक बनाने में सहायता मिलती है।
(2) इकाई विधि समवायी दृष्टि से शिक्षण देने तथा अधिगम अनुभव अर्जित करने की एक सफल विधि है।
(3) सामाजिक विज्ञान की सामग्री विभिन्न क्षेत्रों जैसे-इतिहास, भूगोल, नागरिक शास्त्र, अर्थशास्त्र,राजनीतिशास्त्र आदि से भी ली जाती है इस प्रकार के समन्वित ज्ञान को प्रदान करने की दृष्टि से इकाई विधि अधिक उपयुक्त ठहरती है क्योंकि इकाइयों में विभाजन कर शिक्षा देना इस विषय की प्रकृति व उद्देश्यों से पूरी तरह मेल खाता है।

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इकाई विधि के दोष

(1) इस विधि पर आधारित पाठ्यपुस्तकों का अभाव।
(2) पाठ्यक्रम को समय पर समाप्त करने में कठिनाई।
(3) परीक्षा और मूल्यांकन प्रणाली का इकाई विधि से तालमेल न होना।
(4) छात्रों का इस विधि के प्रयोग का कोई पूर्व-अनुभव न होना तथा अन्य विषयों के शिक्षण में भी इस विधि का प्रयोग न किया जाना।

सामाजिक अध्ययन की कक्षा-कक्ष गतिविधियां

वाद-विवाद : इस गतिविधि के माध्यम से छात्रों में तर्कशक्ति बढ़ती है तथा विषयों/तथ्यों को तर्क की कसौटी पर परखने का कौशल बढ़ता है। अतः इस गतिविधि के चयन से सूचना-संग्रहण, सूचना-प्रक्रमण और श्रोतावर्ग के सामने उनके प्रस्तुतीकरण में छात्रों की उच्च स्तर की भागीदारी तथा प्रस्ताव के पक्ष या विपक्ष में बोलने, तर्क-वितर्क करने तथा तर्कों का विश्लेषण करने में अपनी योग्यता का प्रदर्शन करने का अवसर प्राप्त होता है।

निदर्शन : इस गतिविधि के द्वारा अध्यापक प्रस्तुतीकरण, विश्लेषण तथा संश्लेषण के आदर्श रूप छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करते हैं। ऐसा करते समय छात्र की भूमिका सूचना और कौशलों के प्रेक्षक तथा अभिलेखक की होती है।

प्रश्न पूछना : सामाजिक विज्ञान के अध्यापन में एक महत्वपूर्ण गतिविधि है प्रश्न पूछना। इस गतिविधि के माध्यम से छात्रों से विषय के सम्बन्ध में प्रश्न पूछता है तथा उनके उत्तरों के आधार पर वह छात्रों के विषय सम्बन्धी ज्ञान की ओर आर्थिक सुदृढ़ तथा व्यापक बनाता है। छात्रों से प्रश्न इसलिए पूछे जाते हैं, ताकि अध्यापक को मालूम हो सके कि छात्रों ने अध्याय को कितनी अच्छी तरह से समझा है ताकि महत्वपूर्ण बिन्दुओं को अलग करके और उन पर विशेष बल देकर उनके बारे में छात्रों की धारणा शक्ति को और अधिक मजबूत किया जा सके।

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अभ्यास प्रश्न (बहुविकल्पीय प्रश्न)

1. निम्नलिखित में से कौन सा समस्या समाधान विधि का गुण नहीं है?
(a) अच्छी आदतों का विकास
(b) जीवन से संबंधित
(c) कम प्रायोगिकता
(d) व्यक्तिगत विभिन्नताओं की पहचान

2.निम्नलिखित में से कौन-सी एक विशेषता व्याख्यान विधि का गुण नहीं है?
(a) भाषा संबंधी योग्यता के विकास में सहायक
(b) प्रभावपूर्ण ढंग से शिक्षण में सहायक
(c) पाठ्यक्रम को समय पर समाप्त करने हेतु अनुकूल
(d) मनोवैज्ञानिक विधि

3. सामाजिक अध्ययन शिक्षण की ‘योजना विधि के चरण/सोपान में योजना के चुनाव के पश्चात् अगला चरण क्या होगा?
(a) योजना का क्रियान्वयन
(b) योजना का नियोजन
(c) योजना का लेखा-जोखा रखना
(d) योजना का मूल्यांकन

4. निम्नलिखित विधियों में से किस विधि का सर्वाधिक उपयोग माध्यमिक स्तर व उच्चतर स्तर पर सामाजिक अध्ययन शिक्षकों द्वारा किया जाता है-
(a) व्याख्यान विधि
(b) किण्डनगार्डन
(c) खेल विधि
(d) कहानी विधि

5. सामाजिक विज्ञान शिक्षण के दौरान उच्च माध्यमिक स्तर पर व्याख्यान विधि का सर्वाधिक प्रयोग किया जाता है लेकिन फिर भी इस विधि की आलोचना जिस कारण की जाती है वह है-
(a) इसके माध्यम से छात्रों में अभिव्यक्ति कौशल का विकास नहीं हो पाता
(b) इस विधि द्वारा छात्रों एवं शिक्षक के बीच सही सम्बन्ध स्थापित नहीं हो पाते ।
(c) यदि शिक्षक की अपने विषय में अच्छी पकड़ नहीं है, तो वह व्याख्यान को नीरस कर देता है।
(d) यह विधि पाठ्य-वस्तु को पूरी तरह स्पष्ट नहीं कर पाती

6. निम्नलिखित कथनों में से कहानी-विधि की विशेषता नहीं है-
(a) कहानियों में व्यक्तियों के अनुभव शामिल होते हैं
(b) यह बच्चों में रुचि और जिज्ञासा का विकास करती है।
(c) इस विधि के द्वारा किसी भी नीरस और ऊबाऊ विषय को रोचक ढंग से पढ़ाया जा सकता है।
(d) इस विधि के द्वारा ज्ञान देने में समय अधिक नहीं लगता

7. सामाजिक विज्ञान की शिक्षण तकनीकें हैं-
(a) योजना विधि
(b) समस्या समाधान विधि
(c) कहानी-कथन विधि
(d) उपरोक्त सभी

8. आगमन विधि का सूत्र नहीं है-
(a) उदाहरण से नियम की ओर बढ़ना
(b) संश्लेषण से विश्लेषण की ओर बढ़ना
(c) विशेष से सामान्य की ओर जाना
(d) स्थूल से सूक्ष्म की ओर जाना

9. सामाजिक अध्ययन शिक्षण के दौरान एक अध्यापिका पहले विद्यार्थियों को उदाहरण देती है फिर नियम समझाती है अर्थात् ज्ञात तथ्यों से अज्ञात तथ्यों को समझा रही है इस प्रकार वह कौन-सी विधि का अनुसरण कर रही है-
(a) ज्ञात से अज्ञात विधि
(b) निगमन विधि
(c) स्थूल से सूक्ष्म विधि
(d) आगमन विधि

उत्तरमाला – 1. (c) 2. (d) 3. (b)  4. (a) 5. (c) 6. (d) 7. (d) 8. (b) 9. (b)

                                 ◆◆◆ निवेदन ◆◆◆

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