समावेशी बालकों के लिए विशेष शिक्षण विधियां / Specific Teaching Methods for Inclusive Children in hindi

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समावेशी बालकों के लिए विशेष शिक्षण विधियां / Specific Teaching Methods for Inclusive Children in hindi

समावेशी बालकों के लिए विशेष शिक्षण विधियां / Specific Teaching Methods for Inclusive Children in hindi
समावेशी बालकों के लिए विशेष शिक्षण विधियां / Specific Teaching Methods for Inclusive Children in hindi


Specific Teaching Methods for Inclusive Children in hindi / समावेशी बालकों के लिए विशेष शिक्षण विधियां

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समावेशित बालकों के लिये विशेष शिक्षण विधियाँ / Specific Teaching Methods for Inclusive Children

समावेशित बालकों के लिये विशेष शिक्षण विधियों का आशय अपवंचित, अक्षम, पिछड़े एवं विशेष आवश्यकता वाले बालकों के विद्यालयी व्यवस्था एवं शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में अनुकूलन से है; जैसे- एक बालक विद्यालय में प्रवेश करता है जो मन्द बुद्धि है। शिक्षक द्वारा उसकी व्यक्तिगत सहायता करके उसे विद्यालयी व्यवस्था के प्रति अनुकूलन सिखाया जाता है। एक बालक खेलने में रुचि रखता है। उसको विद्यालयी व्यवस्था में खेल के माध्यम से अधिगम कराया जाता है। इस प्रकार जब बालक-बालिकाओं में विविधता होते हुए भी उनको विद्यालय में एक क्रमबद्ध एवं सुसंगठित व्यवस्था के समायोजन सिखाया जाता है तो इस प्रकार की प्रक्रिया अनुकूलन के अन्तर्गत आती है। अनुकूलन की प्रक्रिया के अन्तर्गत वे सभी उपाय आते हैं जिनके माध्यम से विविधता युक्त छात्रों को विद्यालय संस्कृति, विद्यालयी व्यवस्था एवं विद्यालयी जलवायु के साथ समायोजित किया जाता है।

वे अपनी व्यक्तिगत व्यवस्थाओं को त्यागकर एक सामूहिक व्यवस्था के प्रति रुचि प्रकट करते हैं; जैसे-एक छात्र संवेगात्मक रूप से अस्थिर है, उसका अपने संवेगों पर नियन्त्रण नहीं है। जब वह विद्यालय में प्रवेश करता है तथा समूह में कार्य करता है तो वह दूसरों के संवेगों को समझता है तथा अपने संवेगों पर नियन्त्रण रखता है क्योंकि उसको उस समूह में ही रहना है। इस प्रकार वह समूह के साथ कार्यnकरना सीख जाता है तथा संवेगात्मक रूप से स्थिर हो जाता है। इस प्रकार समावेशी विद्यालयों में अनुकूलन की व्यवस्था अनिवार्य रूप से होती है। समावेशित बालकों के लिये विशेष शिक्षण विधियों के रूप में अनुकूलन की प्रक्रिया को सम्पन्न करने के लिये निम्नलिखित व्यवस्था विद्यालय में होनी चाहिये-

1.शिक्षकों का सहयोग (Co-operation of teacher)-शिक्षकों को आपसी सहयोग की व्यवस्था करनी चाहिये। सामान्य शिक्षकों को विशेष शिक्षा या समावेशी शिक्षा के शिक्षकों से सहयोग प्राप्त करना चाहिये। सहयोग की इस प्रक्रिया में प्रधानाध्यापक एवं विद्यालय प्रबन्ध समिति का सहयोग भी लिया जाय। इससे विविधता से युक्त छात्रों के विद्यालयी अनुकूलन पर विचार-विमर्श किया जा सकेगा। विशेष शिक्षा शिक्षक द्वारा सामान्य शिक्षा शिक्षकों को सुझाव प्रदान किये जा सकेंगे।

2. योजना निर्माण (Planning construction)-सामान्य विद्यालयों में विविधता से सम्पन्न छात्रों के अनुकूलन के लिये योजना का निर्माण करना चाहिये। इस योजना में अभिभावक,समुदाय, शिक्षक, विशेष शिक्षा शिक्षक एवं स्वयंसेवी संस्थाओं को सम्मिलित करना चाहिये क्योंकि बहुत-सी संस्थाएँ विशेष शिक्षा के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान देती हैं। उनको इस क्षेत्र में विशेष अनुभव होते हैं। इन अनुभवों का लाभ सभी को प्राप्त होता है तथा सभी मिलकर छात्रों के अनुकूलन का प्रयास करते हैं।

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3.योजना का मूल्यांकन (Evaluation of planning)-अनुकूलन के लिये जो भी योजनाएँ निर्मित की जाये उनकी समय-समय पर समीक्षा करनी चाहिये। इसमें सर्वप्रथम क्रियान्वयन की नीति का मूल्यांकन किया जाय। इसके बाद उस योजना के द्वारा कितने छात्रों का अनुकूलन किया गया। इसके साथ-साथ जिस उद्देश्य के लिये योजना का निर्माण किया उस उद्देश्य को किस स्तर तक प्राप्त किया गया है। योजना की त्रुटियों पर ध्यान देना चाहिये जिससे आगे की योजना में वे त्रुटियाँ न रहें। इस प्रकार के प्रत्येक अनुकूलन, योजना एवं कार्यक्रम की समीक्षा करनी चाहिये।

4. गूंगे एवं बहरे छात्रों के लिये सुझाव (Suggestions for dumb and deaf students)-विद्यालय में गूंगे एवं बहरे छात्रों को भी प्रवेश दिया जाता है। उनके अनुकूलन की व्यवस्था भी करना आवश्यक है। इसके लिये शिक्षकों को बोलते हुए तथा आंगिक संकेत करते हुए शिक्षण कार्य करना चाहिये। इससे सामान्य एवं गूंगे-बहरे छात्र एक साथ शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में सहयोग कर सकेंगे। पाठ्यक्रम सहगामी क्रिया एवं खेलों में भी उनके साथ इसी प्रकार की सुविधा उपलब्ध करायी जाय। इस व्यवस्था से इन छात्रों का विद्यालयी व्यवस्था में अनुकूलन होगा। जो छात्र विद्यालय नहीं जाना चाहते थे वे विद्यालय में रुचि प्रदर्शित करेंगे।

5. श्रवण अक्षम छात्रों का अनुकूलन (Adapation of hearing impaired students)-विद्यालय में कुछ छात्र ऐसे भी होते हैं जो कि कम सुनते हैं। किसी चोट के कारण उनको कम सुनायी देता है। प्रथम इन बालकों को चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करानी चाहिये। यदि किसी कारण उनकी श्रवण क्षमता वापस नहीं आती तो उनके लिये श्रवण यन्त्र की व्यवस्था की जाय। शिक्षक द्वारा ऐसे छात्रों को लिखित निर्देश दिये जायें तथा लिखित कार्य प्रदान किया जाय। इससे इन छात्रों को विद्यालय में अनुकूलन करने में किसी प्रकार की कठिनाई नहीं होगी।

6. गत्यात्मक अक्षम छात्रों का अनुकूलन (Adaptationof motor skill impaired students)-कुछ छात्र ऐसे होते हैं जो कि गत्यात्मक कौशलों में अक्षम होते हैं। इस प्रकार के छात्रों के लिये विद्यालय में रैम्प की सुविधा होनी चाहिये जिससे कि वे अपने रिक्शा को सरलता से विद्यालय में ले जा सकें। विद्यालय में उनकी वॉकर, बैसाखी एवं व्हील चेयर की व्यवस्था की जानी चाहिये जिससे वे विद्यालय में अपने कार्यों को सम्पन्न कर सकें तथा घर जाने में भी उनको असुविधा न हो। इसके साथ-साथ उन पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं की भी व्यवस्था की जाय जिनको वे सरलता से सम्पन्न कर सकते हैं। इसी प्रकार उनका ध्यान खेलकूदों में भी रखा जाय तो निश्चित रूप से उनका अनुकूलन विद्यालय में हो सकेगा।

7. अस्थि अक्षम छात्रों के लिये अनुकूलन (Adaptation for bone impaired students)-कुछ छात्रों को अस्थि सम्बन्धी समस्याएँ होती हैं। उन सभी छात्रों के लिये उनकी अक्षमता के आधार पर सुविधाएँ उपलब्ध करानी चाहिये; जैसे-कुछ छात्र हाथों से विकलांग हैं उनको लिखने में असुविधा होती है तो ऐसे छात्रों को बोलकर शिक्षण अधिगम प्रक्रिया सम्पन्न करायी जा सकती है।

प्राय: यह देखा जाता है कि प्राथमिक विद्यालयों में गिनती, पहाड़े बोल कर सिखाये जाते हैं। इसी प्रकार उनको गुणा, भाग की प्रक्रिया बोलकर सिखायी जाय। शिक्षक द्वारा लिखकर गुणा, भाग एवं अन्य कार्य किये जायें। इस प्रकार शिक्षक अपनी भूमिका एक लिखने वाले के रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं। इसके साथ-साथ कुछ छात्रों के पीठ के पीछे कूबड़ होता है तथा अन्य प्रकार की अस्थि विकलांगता होती है तो उन छात्रों की अस्थि विकलांगता का ध्यान रखते हुए फर्नीचर की व्यवस्था की जाय जिससे उनको कोई कष्ट न हो। इस प्रकार अस्थि विकलांग छात्रों को अनुकूलन सम्भव हो सकेगा।

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8. विशेष आवश्यकता वाले बालकों के लिये अनुकूलन (Adaptation for special need children)-समावेशी विद्यालयों में अक्षम छात्रों के अतिरिक्त कुछ ऐसे छात्र होते हैं जो पूर्णतः स्वस्थ परन्तु सामाजिक परिस्थितियों, बौद्धिक स्तर एवं अन्य घटनाओं के कारण उनको विशेष सहायता की आवश्यकता होती है। जब इन छात्रों का अनुकूलन होता है तब विद्यालय समावेशी रूप में विकसित होता है। विविध प्रकार की विविधताओं से युक्त विशेष आवश्यकता वाले बालकों को अनुकूलन निम्नलिखित रूप में किया जा सकता है-

(1) कक्षा के कुछ छात्र प्रतिभाशाली हैं तो उनका सामान्य कक्षा शिक्षण एवं गतिविधियों में मन नहीं लगेगा एवं विद्यालय में समायोजित नहीं हो पायेंगे। ऐसे छात्रों के लिये शिक्षक को उनके स्तर के अनुरूप पाठ्यक्रम एवं पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाएँ उपलब्ध करानी चाहिये। जिससे कि वे शैक्षिक आवश्यकता के अनुरूप व्यवस्था को प्राप्त कर सकें तथा विद्यालयी व्यवस्था में अनुकूलित होकर विश्वास का प्रदर्शन करें।

(2) कुछ छात्र मन्दबुद्धि स्तर के होते हैं। उनकी शिक्षक द्वारा प्रत्यक्ष एवं व्यक्तिगत रूप से सहायता करनी चाहिये; जैसे-उनको कक्षा में आगे बैठाकर उनकी गतिविधियों पर ध्यान देना चाहिये, व्यक्तिगत सहायता प्रदान करके उसकी शैक्षिक एवं अशैक्षिक गतिविधियों पर ध्यान देना चाहिये। इससे अनुकूलन की स्थिति उत्पन्न होगी तथा मन्दबुद्धि छात्र विद्यालयी व्यवस्था में रुचि का प्रदर्शन करेंगे।

(3) कुछ छात्र सांस्कृतिक रूप से भिन्नता को प्रदर्शित करते हैं। उनके रीति-रिवाज, त्यौहार एवं परम्पराएँ पृथक् होती हैं। उन छात्रों का अनुकूलन भी आवश्यक है; जैसे-आगरा के किसी विद्यालय में सीतापुर के परिवार के बालक-बालिका पढ़ते हैं तो उनके अनुकूलन में कुछ ऐसी सांस्कृतिक गतिविधियाँ विद्यालय में आयोजित की जायें जो उनकी संस्कृति से सम्बन्धित हों। इससे संस्कृति का आदान-प्रदान भी होगा तथा बालकों का अनुकूलन भी होगा।

(4) कुछ छात्र सामाजिक स्तर पर दलित जातियों से सम्बन्धित होते हैं। उनको समाज में उच्च जातियों द्वारा दबाकर रखा जाता है। ऐसे छात्रों को विद्यालय में जब समान सहभगिता के अवसर दिये जायेंगे तो उनको अपने आत्मसम्मान एवं अधिकारों का ज्ञान होगा। इस आधार पर अनुकूलन सम्भव हो सकेगा। वे विद्यालयी व्यवस्था में रुचि लेंगे तथा विद्यालयी गतिविधियों में पूर्ण सहभागिता प्रदर्शित रहेंगे।

(5) कुछ छात्र ऐसे परिवारों से भी हो सकते हैं जो कि अशिक्षित एवं संवेगात्मक रूप से अस्थिर होंगे। उन छात्रों में कुछ गलत आदतें भी हो सकती है। ऐसे छात्रों पर शिक्षकों को व्यक्तिगत रूप से ध्यान देना होगा तथा उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये प्रयास करने होंगे। समूह में कार्य देकर उनको संवेगात्मक स्थिरता प्रदान करनी होगी। इस प्रकार से छात्र विद्यालय में अनुकूलित व्यवहार प्रदर्शित करेंगे।

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9. नवीन तकनीकी का प्रयोग (Use of new technology)-विद्यालय प्रबन्धन को अक्षम एवं अपवंचित छात्रों के लिये नवीन तकनीकी के आधार पर सुविधाएँ उपलब्ध करानी चाहिये जिससे कि वे अपनी अक्षमता से बाधित न हो सकें; जैसे-शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में सीडी प्लेयर, कम्प्यूटर, इण्टरनेट तथा वीडियो प्लेयर का प्रयोग करने पर छात्रों की शैक्षिक आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सकती है। इसी प्रकार विविध आधुनिक शिक्षण यन्त्र प्रदान करके भी छात्रों की विकलांगता सम्बन्धी समस्याओं को कम किया जा सकता है। इस प्रकार सभी प्रकार के छात्र विद्यालयी व्यवस्था के प्रति अनुकूलित व्यवहार का प्रदर्शन करेंगे।

10. मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों के आधार पर अनुकूलन (Adaptation on basis of psychological principles)-शिक्षक को अनुकूलन की प्रक्रिया में मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों का उपयोग करना चाहिये; जैसे-एक बालक द्वारा स्वलीनता या एकाकीपन का प्रदर्शन किया जाता है तो उसको सामाजिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में उत्तरदायित्व प्रदान किये जायें जिससे वह सामाजिक अन्तःक्रिया से परिचित होगा। धीरे-धीरे वह विद्यालय के सामाजिक
एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अनुकूलता का प्रदर्शन करेगा। इस प्रकार शिक्षक द्वारा प्रत्येक छात्र की योग्यता एवं उसके कार्य व्यवहार का मनोवैज्ञानिक अध्ययन करके अनुकूलन की व्यवस्था की जानी चाहिये।

11. सहयोगी सुविधाएँ (Assistive facilities)-विद्यालयी व्यवस्था में छात्रों के लिये विशेष सहयोगी सुविधाएँ प्रदान की जानी चाहिये; जैसे-कुछ छात्र अधिक समय तक कुर्सी पर बैठ नहीं सकते तो उनके लिये आराम कक्ष की व्यवस्था होनी चाहिये। आराम करने के बाद उनमें पुनः कार्य करने की ऊर्जा उत्पन्न होगी। इस प्रकार की सहयोगी सुविधाएँ छात्रों की आवश्यकता के अनुरूप होनी चाहिये। इससे छात्रों को अपनी विकलांगता का अनुभव नहीं होगा।

12. पाठ योजना द्वारा अनुकूलन (Adaptation by lesson plan)-पाठ योजना के द्वारा भी अनुकूलन की व्यवस्था होनी चाहिये। छात्राध्यापकों को प्रशिक्षण काल में ही ऐसी पाठ योजनाओं का निर्माण करना सिखाना चाहिये जो कि विकलांग एवं सामान्य छात्रों की आवश्यकता को विशेष रूप से पूर्ण कर सके; जैसे-हिन्दी शिक्षण में शिक्षक को पठन के लिये कक्षा के अनुरूप व्यवस्था करनी चाहिये। कक्षा में गूंगे एवं बहरे छात्रों की अधिकता है तो उसको सस्वर उच्चारण करते हुए एवं आंगिक अभिनय करते हुए पठन करना चाहिये जिससे छात्र भाव को समझ सकें।

उपरोक्त उपायों के आधार पर सभी प्रकार के छात्रों का अनुकूलन विद्यालयी व्यवस्था में सरल एवं स्वाभाविक रूप से हो सकेगा। छात्रों को विद्यालयी व्यवस्था में किसी प्रकार की असुविधा नहीं होगी। उनकी शैक्षिक एवं अशैक्षिक आवश्यकताओं की पूर्ति विद्यालयी व्यवस्था द्वारा की जा सकेगी। इस प्रकार का विद्यालय अनुकूलन के लिये तथा समावेशी शिक्षा के लिये विशेष रूप से जाना जा सकेगा।

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