तर्क का अर्थ एवं परिभाषा,तर्क के प्रकार,तर्क के सोपान

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तर्क का अर्थ (meaning of argument)

यह एक अभिव्यक्त किया है। जिसका प्रकटीकरण समस्या समाधान व्यवहार से होता है।

इसके द्वारा समस्या के प्रति रुचि जागृत होती है।

समस्या के समाधान के साथ ही रुचि एवं तर्क दोनों ही समाप्त हो जाते हैं।

सामान्य जीवन में तर्क शक्ति का प्रयोग स्वाभाविक रूप से होता रहता है।

इसमें हमें किसी भी अतिरिक्त शक्ति का प्रयोग नहीं करना पड़ता।

इसलिए इसे उच्च मानसिक क्रिया कहा जाता है।

परीक्षा के समय तक के द्वारा प्रश्नों के सही और उचित उत्तरों का चयन करके परीक्षा देते हैं। ताकि अच्छे अंक प्राप्त हो।

साक्षात्कार के समय तर्क के द्वारा किए गए उत्तर अधिक स्पष्ट एवं बौद्धिक क्षमता के परिचायक होते हैं।

“अतः तर्क वह प्रक्रिया है जो उपस्थित समस्या के लिए उपयुक्त हल प्रस्तुत करती है ताकि समस्या का हल शीघ्र प्राप्त हो जाए।”

तर्क की परिभाषाएं (definition of argument)

स्किनर के अनुसार

तर्क शब्द का प्रयोग कारण तथा प्रभाव के संबंधों की मानसिक स्वीकृति को व्यक्त करने के लिए किया जाता है। यह किसी निरीक्षण कारण से एक घटना की भविष्यवाणी या किसी निश्चित घटना के किसी कारण का अनुमान हो सकता है।

वुडवर्थ के अनुसार

तर्क में (तथ्यों एवं सिद्धांतो) जो इस स्मृति या वर्तमान निरीक्षण द्वारा प्राप्त होते हैं – को परस्पर मिलाया जाता है फिर उस मिश्रण का परीक्षण कर निष्कर्ष निकाला जाता है।

गैरेट के अनुसार

मन में किसी उद्देश्य एवं लक्ष्य को रखकर क्रमानुसार चिंतन करना तर्क है।

तर्क के प्रकार (types of argument)

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इसके निम्न प्रकार है-

(1) निगमनात्मक तर्क (deductive arguments)

(2) आगमनात्मक तर्क (inductive arguments)

(3) आलोचनात्मक तर्क (criticism arguments)

(4) सादृश्यवाची तर्क (similar arguments)

(5) अनौपचारिक तर्क (non formal arguments)

(6) औपचारिक तर्क (formal arguments)

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निगमनात्मक तर्क (deductive arguments)

इस तर्क के अंतर्गत सर्वप्रथम नियम प्रस्तुत किया जाता है उसके बाद उस नियम से संबंधित उदाहरण प्रस्तुत किए जाते हैं।

निगमनात्मक तर्क का आशय उन तक वाक्यों से होता है जो कि एक निश्चित नियम या सिद्धांत से संबंधित होते हैं।

जैसे

जहां जहां धुँआ होता है वहां आग होती है। यह एक तर्क वाक्य है।

इसके आधार पर छात्रों द्वारा अनुभव के आधार पर ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। पहाड़ पर धुँआ है तो पहाड़ पर आग भी है।

इस प्रकार के अनेक ऐसे वाक्य होते हैं जो नियम एवं सिद्धांतों का प्रतिपादन करते हैं।

इस तर्क में छात्र अज्ञात से ज्ञात की ओर नामक शिक्षण सूत्र पर चलते हैं।

आगमनात्मक तर्क (inductive arguments)

यह तर्क निगमनात्मक तर्क के एकदम विपरीत है। इस तर्क में सर्वप्रथम किसी विषय से संबंधित उदाहरण प्रस्तुत किए जाते हैं। ताकि इनके आधार पर छात्र एक निश्चित निष्कर्ष पर पहुंचने का प्रयास करें। इसके बाद ही नियम की निष्पत्ति की जाती है।

इस तर्क में छात्र विशिष्ट से सामान्य की ओर नामक शिक्षण सूत्र पर चलते हैं।

जैसे

राम की मृत्यु हो गई, राम ने जन्म लिया था। भैंस की मृत्यु हो गई भैंस ने जन्म लिया था। अतः जो जन्म लेता है उसकी मृत्यु होना निश्चित है। इस उदाहरण से सिद्ध होता है कि पहले उदाहरण उसके से निष्कर्ष निकालते हैं। इसके बाद ही एक नियम बनाते हैं।

आलोचनात्मक तर्क (criticism arguments)

इस प्रकार के तर्कों के आधार पर छात्र विभिन्न प्रकार के आलोचनात्मक अध्ययन के बाद एक निश्चित निष्कर्ष पर पहुँचता है।

जैसे–

छात्र विद्यालय में प्रथम अवस्था में जाने पर संकोच करता है। परंतु जाने पर यह देखता है कि विद्यालय में शिक्षक पढ़ाते हैं। कहानी सुनाते हैं।दोपहर में भोजन देते हैं। खेलने का अवसर देते हैं।

इस स्थिति में वह समझ जाता है कि विद्यालय में छात्रों के साथ प्रेम पूर्ण व्यवहार किया जाता है। इसलिए विद्यालय जाना लाभदायक है।

इस प्रकार आलोचनात्मक तर्क के द्वारा ही छात्र विचारों के गुण दोषों का विवेचन करके स्वीकार करता है।

सादृश्यवाची तर्क (similar arguments)

अनेक अवसरों पर हम किसी एक व्यक्ति के व्यवहार के बारे में जानते हैं। उसके आधार पर हम दूसरे व्यक्ति के व्यवहार का ज्ञान कर सकते हैं।

जैसे

धातु में ऊष्मा की संचालक होती हैं। इस आधार पर हम समझ जाते हैं कि तांबा, पीतल,लोहा सभी धातु में ऊष्मा के संचालक होंगी।

अनौपचारिक तर्क (non formal arguments)

तर्कों का प्रयोग सामान्य रूप से हम अनेक प्रकार से अपने दैनिक जीवन में घर परिवार के वार्तालाप में करते हैं।

इन तर्कों का कोई क्रमबद्ध रूप नहीं होता इसलिए इनको उचित महत्व प्रदान नहीं किया जा सकता है।

जैसे

भूतों के चार पैर होते हैं। भूत किसी भी रूप को धारण कर लेता है आदि सारी बातें।

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औपचारिक तर्क (formal arguments)

सामान्य रूप से देखा जाता है कि तर्क वाक्यों में एक दूसरे से संबंध होता है। कि यह किसी निश्चित उद्देश्य की ओर अग्रसर करते हैं।

इस प्रकार के तर्क वाक्य दार्शनिक विचार प्रक्रिया का अंग होते हैं।

जैसे

शीर्षासन से मस्तिष्क को शक्ति मिलती है। पद्मासन से पैर सुदृढ़ होते हैं। यह सभी योगासन के प्रमुख अंग है। अतः योग मानवीय विकास की प्रमुख आवश्यकता है।

उपरोक्त उदाहरण में प्रस्तुत तर्क वाक्य एक दूसरे से संबंध तथा निष्कर्ष भी तर्क वाक्यों से पूर्णता संबंधित है। इस प्रकार के तर्क वाक्य औपचारिक तर्क वाक्यों की श्रेणी में आते हैं। क्योंकि यह तर्क वैध एवं विश्वसनीय है।

तर्क के सोपान (steps of argument)

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तर्क के 5 सोपान हैं–

(1) समस्या की उपस्थिति

तर्क तो तभी होगा जब समस्या होगी। अतः समस्या की उपस्थिति ही तर्क का पहला सोपान है।

(2) समस्या की जानकारी

जब हम जान पाते है कि समस्या है तो तर्क के लिए यह जानना आवश्यक है। समस्या किस प्रकार की है? समस्या किस क्षेत्र से संबंधित है? उसके बाद ही तो तर्क की प्रक्रिया शुरू होगी।

(3) समस्या समाधान के उपाय 

हमारे समस्या जानने के बाद हम उसके समाधान के उपाय खोजते है। कि यह समस्या किस प्रकार से हल होगी। हम समस्या को हल करने के लिए भिन्न भिन्न उपाय खोजते है।

(4) एक उपाय का चुनाव

भिन्न भिन्न उपाय खोजने के बाद हम एक उपाय का चुनाव करते है। कि इससे तो यह समस्या पक्का और जल्द से जल्द हल हो जाएगी। अतः उपाय का चुनाव जो सर्वोत्तम है, यह तर्क का चौथा सोपान है।

(5) उपाय का प्रयोग 

सर्वोत्तम उपाय को चुनकर समस्या पर लागू करना तर्क का अंतिम सोपान है।

तर्क की विशेषतायें (characteristics of argument)

(1) निश्चित लक्ष्य

तर्कशक्ति का प्रारंभ लक्ष्य प्राप्ति के लिए होता है। मानव प्रगति लक्ष्य प्राप्ति पर निर्भर करती है।

अतः चिंतन और तर्क के द्वारा जीवन के लक्ष्यों को निर्धारित किया जाता है।

(2) प्रतिक्रिया में शिथिलता

तर्कशक्ति का प्रारंभ प्रतिक्रिया की शिथिलता से होता है। जब व्यक्ति किसी कार्य को करने में असमर्थ होता है। तो वह विभिन्न प्रकार के प्रतिक्रियाएं करता है।

लेकिन सफलता ना मिलने पर शिथिल हो जाता है।और तर्क का सहारा लेता है।

(3) पूर्व ज्ञान

तर्क में पूर्व ज्ञान, पूर्व अनुभव तथा पूर्व अनुभूतियों का विश्लेषण किया जाता है।

इसमें समस्या समाधान के नवीन तरीकों का जन्म होता है।

(4) कारण की खोज

तर्क में किसी घटना के कारण को खोजा जाता है। क्यों ? ,कैसे? आदि प्रश्नों के उत्तर खोज कर कारण और प्रभाव के बीच संबंध देखा जाता है।

अतः कारण खोज से समस्या का समाधान सरल हो जाता है।

(5) सीखने की विधियों का उपयोग

तर्क में सूखने की विभिन्न विधियों प्रयत्न एवं भूल, सूझ द्वारा,अनुकरण द्वारा, साहचर्य द्वारा आदि विधियों का सहारा लिया जाता है।

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यह विधियां क्रमवार प्रयोग की जाती है। ताकि समस्या का समाधान सही प्रकार से हो।

(6) समस्या समाधान

तर्क का प्रयोग समस्या समाधान के लिए किया जाता है जब तक समस्याएं हैं तर्क का प्रयोग होता रहेगा।

तर्क का विकास / तर्क विकास के तरीके (methods of argument development)

(1) दृढ़ निश्चय एवं आत्मविश्वास

शिक्षक को बालकों में आत्मविश्वास की भावना की वृद्धि करनी चाहिए। ताकि वह जीवन के लक्ष्यों को पूर्ण करने का दृढ़ निश्चय कर सकें।

दृढ़ निश्चय से लगन बुद्धि उत्साह क्रियाशीलता आत्मविश्वास विकसित होता है। जो तर्क शक्ति का आधार है।

(2) स्वाभाविकता का विकास

बालकों को तर्क की प्रेरणा आपसी बातचीत से मिलती है।

परिवार के सदस्य एक साथ बैठकर जब विचार विमर्श करते हैं। तो बालक भी अपनी राय देते हैं।

हमें उनकी राय को नकारना नहीं चाहिए बल्कि उनकी स्वाभाविक ताकि प्रशंसा करनी चाहिए।

(3) क्रमागत ज्ञान

तर्क विधि विभिन्न चरणों पर आधारित है। बालकों को क्रमबद्ध तरीके से चरणों में ज्ञान देना चाहिए ताकि वह सभी चरणों को समझ सकें।

(4) सूझ शक्ति का प्रयोग

चिंतन एवं तर्क सूझ शक्ति और पूर्व अनुभवों पर निर्भर करता है।

हमें सूझ एवं पूर्व अनुभवों का सही प्रयोग करना बालकों को सिखाना चाहिए। ताकि वह उचित तरीके से तर्क करने में सफल हो सकें।

(5) नवीन जानकारी

नई-नई जानकारियां भी तर्क शक्ति को बढ़ाती हैं तथा तर्क करने में सहायता प्रदान करती है।

(6) संवेगात्मक नियंत्रण

तर्क करने में संवेग का नियंत्रण बहुत आवश्यक है। जो बालक संवेगात्मक रूप से नियंत्रित है। वह तर्क करने में अधिक सक्षम होगा।

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