रासायनिक सूत्रों के प्रकार : मूलानुपाती सूत्र,अणु सूत्र और संरचना सूत्र बनाने के नियम

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रासायनिक सूत्रों के प्रकार : मूलानुपाती सूत्र,अणु सूत्र और संरचना सूत्र बनाने के नियम

रासायनिक सूत्रों के प्रकार : मूलानुपाती सूत्र,अणु सूत्र और संरचना सूत्र बनाने के नियम
रासायनिक सूत्रों के प्रकार : मूलानुपाती सूत्र,अणु सूत्र और संरचना सूत्र बनाने के नियम

मूलानुपाती सूत्र,अणु सूत्र और संरचना सूत्र बनाने के नियम

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रासायनिक सूत्र Chemical Formula

हम जानते हैं कि एक ही तत्व के परमाणु अथवा विभिन्न तत्वों के परमाणु परस्पर संयोग करके अणु बनाते हैं। जब अणुओं को उनके परमाणुओं के रूप में व्यक्त किया जाता है, तो प्राप्त सम्पूर्ण प्रतीक प्रतीकों के समूह रासायनिक सूत्र कहलाता है। इस सूत्र में प्रतीकों के नीचे दाहिनी ओर लिखी संख्याएँ उनके परमाणुओं की वास्तविक या आपेक्षिक संख्याओं को प्रदर्शित करती हैं।
उदाहरण-
H       +           H             → H2
हाइड्रोजन                             हाइड्रोजन अणु
परमाणु

N +                3H          → NH3
नाइट्रोजन                            अमोनिया अणु
परमाणु

नोट –  प्रतीक के नीचे दाहिनी ओर कोई संख्या नहीं लिखी होने पर, यह उसके एक परमाणु को दर्शाता है। जैसे- उपरोक्त उदाहरण में अमोनिया अणु में N का एक परमाणु उपस्थित है।

रासायनिक सूत्रों के प्रकार
Types of Chemical Formulae

रासायनिक सूत्रों को निम्नलिखित तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है।

1.मूलानुपाती सूत्र (Empirical formula)
2.अणुसूत्र  (Molecular formula)
3.संरचना सूत्र (Structural formula)

1. मूलानुपाती सूत्र Empirical Formulas

वह सूत्र जो किसी यौगिक में उपस्थित तत्वों के परमाणुओं की संख्या के सरलतम् अनुपात को प्रदर्शित करता है, मूलानुपाती सूत्र कहलाता है।
उदाहरण — NH3 (अमोनिया), HCHO या CH2O (फॉर्मेल्डिहाइड), H2O (जल) आदि।

मूलानुपाती सूत्र ज्ञात करना (Finding Empirical Formula)

मूलानुपाती सूत्र को यौगिकों के अणुसूत्र से तथा इनकी रचना के आधार पर भी ज्ञात किया जा सकता है।

(i) अणुसूत्र से मूलानुपाती सूत्र ज्ञात करना –

इसके लिए अणुसूत्र में दिए विभिन्न तत्वों के परमाणुओं का सरल अनुपात ज्ञात किया जाता है तथा इस सरल अनुपात को तत्वों के प्रतीकों के नीचे लिखकर मूलानुपाती सूत्र प्राप्त किया जाता है। उदाहरण- ग्लूकोस (Cg H1206), ग्लूकोस के एक अणु में कार्बन, हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन के क्रमश: 6, 12 तथा 6 परमाणु होते हैं। अतः इनका सरल अनुपात 1: 2:1 है। इस प्रकार ग्लूकोस का मूलानुपाती सूत्र CH2O है। इसी प्रकार, हाइड्रोजन परॉक्साइड
(H202) का मूलानुपाती सूत्र HO है। बहुत से यौगिकों के लिए एक ही मूलानुपाती सूत्र हो सकता है। जैसे-CH2O से ग्लूकोस (CgH1206) तथा फॉर्मेल्डिहाइड (HCHO) दोनों का बोध होता है।

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(ii) प्रतिशत संघटन से मूलानुपाती सूत्र ज्ञात करना –

यौगिकों की रचना के आधार पर भी उसका मूलानुपाती सूत्र ज्ञात किया जा सकता है। इसके लिए निम्नलिखित पद प्रयुक्त होते हैं

पद 1 –  प्रत्येक तत्व की प्रतिशतूता को उसके परमाणु भार द्वारा भाग दिया जाता है। इससे प्रत्येक तत्व की मोल संख्या प्राप्त हो जाती है।
2 –  प्राप्त सभी संख्याओं को इनमें से सबसे छोटी संख्या द्वारा पुनः भाग दिया जाता है। इससे मोल संख्या का सरल अनुपात प्राप्त होता है।
पद 3 –तत्व के प्रतीकों को पास-पास लिखकर, उनकी सरल मोल संख्या को उनके नीचे दाहिनी ओर लिखने पर मूलानुपाती सूत्र प्राप्त हो जाता है। अतः यौगिक का मूलानुपाती सूत्र ज्ञात करने के लिए हमें उसका भारात्मक संघटन तथा उसमें उपस्थित तत्वों के विषय में ज्ञात होना चाहिए।

2. अणुसूत्र Molecular Formula

किसी यौगिक के अणु में उपस्थित परमाणुओं की वास्तविक संख्या को व्यक्त करने वाले सूत्र को अणुसूत्र कहते हैं।
उदाहरण — हाइड्रोजन परॉक्साइड का अणुसूत्र H2O2 है, जिसमें हाइड्रोजन व ऑक्सीजन के 2 परमाणु उपस्थित हैं।
यौगिक के अणुसूत्र व मूलानुपाती सूत्र परस्पर निम्नलिखित प्रकार से सम्बन्धित हैं।
अणुसूत्र = ( मूलानुपाती सूत्र ) x n
जहाँ, n= अणुभार / मूलानुपाती सूत्र भार
मूलानुपाती सूत्र भार = मूलानुपाती सूत्र द्वारा प्रदर्शित सभी परमाणुओं के परमाणु भारों का योग

यदि किसी यौगिक का अणुभार, मूलानुपाती सूत्र भार के बराबर होता है, तो यौगिक का मूलानुपाती सूत्र ही उसका अणुसूत्र होगा।

अणुसूत्र का महत्त्व (Significance of Molecular Formula)

किसी यौगिक के अणुसूत्र (या रासायनिक सूत्र) से निम्नलिखित तथ्यों की जानकारी होती है
(i) यह किसी यौगिक के एक अणु को दर्शाता है।
(ii) यह उस यौगिक में उपस्थित विभिन्न तत्वों को दर्शाता है।
(iii) यह अणु (यौगिक) में उपस्थित विभिन्न तत्वों की वास्तविक संख्या को दर्शाता है।
(iv) इसकी सहायता से यौगिक का अणुभार ज्ञात किया जा सकता है (क्योंकि अणुभार को अणुसूत्र में उपस्थित विभिन्न तत्वों के परमाणुओं के परमाणु भारों को जोड़कर प्राप्त किया जा सकता है)
(v) इसकी सहायता से यौगिक में उपस्थित प्रत्येक अवयव का प्रतिशत संघटन ज्ञात किया जा सकता है।
अवयव की प्रतिशतता =  (अवयव की परमाणु संख्या x अवयव के परमाणुओं की संख्या × 100 ) /  यौगिक का अणुभार

(vi) यदि यौगिक गैसीय अवस्था में हो, तो यह सामान्य ताप तथा दाब पर उसके 1 ग्राम-अणु के आयतन को भी दर्शाता है।

नोट –  यदि किसी यौगिक के दाहिनी ओर जल के अणु भी लिखे हों, तो उससे यौगिक के एक अणु में उपस्थित क्रिस्टलन जल का भी ज्ञान होता है; उदाहरण- FeSO4.7H20 में क्रिस्टलन जल के 7 अणु उपस्थित हैं।

समूह या मूलक Group or Radical

किसी यौगिक के अणु का वह परमाणु समूह, जिसका रासायनिक संघटन नियत हो, जो धन या ऋण आवेशित हो तथा रासायनिक अभिक्रियाओं में स्वतन्त्र रूप से भाग लेता हो, मूलक (Radical) कहलाता है। मूलक को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता
(i) सरल मूलक ये एकपरमाणुक (Monoatomic) होते हैं।
जैसे— Na+, K+, CI-, Ca+, Mg + आदि ।
(ii) यौगिक मूलक ये बहुपरमाणुक (Polyatomic) होते हैं, अत: बहुपरमाण्विक मूलक भी कहलाते हैं। जैसे— हाइड्रॉक्सिल (OH-), नाइट्रेट (NO3-),सल्फेट (SO4-), अमोनियम (NH4+) आदि।

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मूलकों की विशेषताएँ Characteristics of Radicals

मूलकों की विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं
(i) प्रत्येक यौगिक का निर्माण दो या दो से अधिक मूलकों के संयोजन द्वारा होता है।
(ii) यौगिक के गुण उसके अवयवी मूलकों या समूहों के गुणों पर ही निर्भर करते हैं।
(iii) मूलकों का कोई मुक्त (स्वतन्त्र) अस्तित्व नहीं होता है।
(iv) ये स्वतन्त्र परमाणु की भाँति रासायनिक अभिक्रिया में भाग लेते हैं।
(v) इनका संघटन निश्चित होता है।
(vi) इनकी संयोजकता भी निश्चित होती है।

आयन lons

सभी परमाणुओं तथा अणुओं में इलेक्ट्रॉनों तथा प्रोटॉनों की संख्या समान होती है जिस कारण वे विद्युत उदासीन होते हैं। जब ये इलेक्ट्रॉनों को ग्रहण करते या उनका त्याग करते हैं, तो इन पर इलेक्ट्रॉनों की संख्या परिवर्तित हो जाने के कारण कुछ आवेश आ जाता है। ये आवेशित परमाणु या परमाणुओं के समूह (मूलक) आयन कहलाते हैं। अतः आयन वे परमाणु या परमाणुओं के समूह हैं जिन पर कम-से-कम एक स्वतन्त्र आवेश उपस्थित होता है।
उदाहरण- सोडियम आयन (Na+), मैग्नीशियम आयन (Mg++), कार्बोनेट आयन (CO3-) आदि।
आयन मुख्यतः जलीय विलयन में निर्मित होते हैं तथा स्वतन्त्र अवस्था में नहीं रह सकते। ये निम्न दो प्रकार के होते हैं।

1. धनायन Cations

धनायन का निर्माण परमाणु या परमाणुओं के समूह से एक या अधिक इलेक्ट्रॉनों के निकल जाने के कारण होता है। विद्युत अपघटन करने पर ये ऋणोद (कैथोड) पर मुक्त होते हैं।
उदाहरण- सोडियम आयन (Na+) और मैग्नीशियम आयन (Mg++) इसका आकार सदैव अपने मूल परमाणु की अपेक्षा छोटा होता है।

नोट –  सामान्यतः धातु, धनायन बनाते हैं, परन्तु हाइड्रोजन आयन (H+) तथा अमोनियम आयन (NH4+) अधातु तत्वों द्वारा निर्मित होते हैं।

2. ऋणायन Anions

ऋणायन का निर्माण किसी परमाणु या परमाणुओं के समूह द्वारा एक या एक से अधिक इलेक्ट्रॉनों को ग्रहण करने के कारण होता है। विद्युत अपघटन करने पर ये धनोद (ऐनोड) पर मुक्त होते हैं।
उदाहरण- क्लोराइड आयन (CI-), ऑक्साइड आयन (O–), सल्फेट आयन (SO4– ) आदि। इलेक्ट्रॉनों की अधिकता के कारण इनका आकार अपने मूल परमाणु की अपेक्षा बड़ा होता है।

नोट – लवण में उपस्थित धनायन को क्षारीय मूलक (Basic radical) तथा ऋणायन को अम्लीय मूलक (Acidic radical) कहते हैं, क्योंकि धनायन क्षार से एवं ऋणायन अम्ल से प्राप्त होता है।

संयोजकता Valency

किसी तत्व/मूलक (आयन) की अन्य तत्वों / मूलकों से संयोग करने की क्षमता उसकी संयोजकता कहलाती है। चूँकि तत्वों का संयोजन इलेक्ट्रॉनों के स्थानान्तरण या साझे द्वारा होता है अतः किसी तत्व ( या मूलक) द्वारा त्यागे गये या ग्रहित इलेक्ट्रॉनों की कुल संख्या को उस तत्व की संयोजकता कहते हैं। फ्रैंकलैण्ड ने तत्वों की संयोजकता प्रदर्शित करने के लिए हाइड्रोजन को आधार तत्व माना तथा उसके अनुसार, “किसी तत्व की संयोजकता हाइड्रोजन परमाणुओं की वह संख्या है, जो उस तत्व के एक परमाणु से संयोग करती है।” एक संयोजकता वाले तत्वों या मूलकों को एकसंयोजक (Monovalent) तत्व कहते हैं। इसी प्रकार दो, तीन, चार, पाँच, संयोजकता वाले तत्वों/मूलकों को क्रमशः द्विसंयोजक (Bivalent), त्रिसंयोजक (Trivalent), चतुःसंयोजक (Tetravalent) तथा पंचसंयोजक (Pentavalent) तत्व कहते हैं।

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परिवर्ती संयोजकता (Variable Valency)

कुछ तत्व एक से अधिक प्रकार की संयोजकताएँ भी दर्शाते हैं जैसे आयरन +2 तथा +3 संयोजकताएँ दर्शाता है, मर्करी +1 तथा +2 संयोजकताएँ दर्शाता है। समान तत्व की ये एक से अधिक संयोजकताएँ परिवर्ती संयोजकताएँ कहलाती हैं। सामान्यतः कम संयोजकता वाले यौगिक के नाम के तथा अधिक संयोजकता वाले यौगिक के नाम के जोड़कर यौगिक का नाम दिया जाता है। उदाहरण- FeCl2 (+2 संयोजकता) तथा FeCl5 (+3 संयोजकता) क्रमश: फेरस क्लोराइड तथा फेरिक क्लोराइड कहलाते हैं।

संयोजकता द्वारा अणुसूत्र लिखना
Writing Molecular Formula from Valency

किसी यौगिक के अवयवी तत्वों (मूलकों या आयनों) की संयोजकता ज्ञात होने पर, उसका अणुसूत्र निम्न प्रकार लिखा जाता है –
(i) सर्वप्रथम दोनों तत्वों अथवा आयनों के प्रतीकों (संकेतों) को पास-पास इस प्रकार लिखते हैं कि धनावेशित मूलक (या धनात्मक संयोजकता वाला तत्व) बायीं ओर लिखा हो तथा ऋणावेशित मूलक (या ऋणात्मक संयोजकता वाला तत्व) दायीं ओर लिखा हो।
(ii) अब इन तत्वों (या आयनों) के ऊपर इनकी संयोजकता (आवेश) को लिख देते हैं।
(iii) अब संयोजकता (या आवेश) अंकों की परस्पर अदला-बदली (विनिमय) कर देते हैं अर्थात् धनात्मक मूलक की संयोजकता (या आवेश) को ऋणात्मक मूलक के नीचे तथा ऋणात्मक मूलक की संयोजकता (या आवेश) को धनात्मक मूलक के नीचे लिख देते हैं। यह नियम विकर्ण नियम (Diagonal law) कहलाता है।
उदाहरण- जैसे फेरिक की संयोजकता(Fe) +3 और सल्फेट (SO4) की -2 होती है तो इनका अणुसूत्र Fe2 (SO4)3 बनेगा ।

नोट 1. यदि आवश्यकता हो, तो संयोजकता (या आवेश) के अंकों को उनके महत्तम समापवर्तक से भाग दे देते हैं।
2. बहुपरमाण्विक मूलक की स्थिति में इसे कोष्ठक () में लिखकर, संयोजकता अंक को कोष्ठक के बाहर नीचे की ओर लिख देते हैं बशर्ते यह अंक 1 से अधिक हो।


                             ◆◆◆ निवेदन ◆◆◆

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