क्रियात्मक शोध का अर्थ एवं परिभाषा | क्रियात्मक शोध की आवश्यकता, महत्व,क्षेत्र,गुण,दोष

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क्रियात्मक शोध का अर्थ एवं परिभाषा | क्रियात्मक शोध की आवश्यकता, महत्व,क्षेत्र,गुण,दोष

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क्रियात्मक शोध का अर्थ

कोरे के अनुसार, “क्रियात्मक अनुसन्धान वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा
व्यावहारिक कार्यकर्ता (शिक्षक, हेडमास्टर, व्यवस्थापक, निरीक्षक इत्यादि) वैज्ञानिक ढंग से अपनी समस्याओं का अध्ययन, अपने निर्णय और क्रियाओं में निर्देशन, सुधार और मूल्यांकन करते हैं।”

जबलपुर के बजमोहन दुबे के अनुसार-“क्रियात्मक अनुसन्धान वास्तव में शिक्षकों के लिए एक पद्धति है, जिसके द्वारा वे अपना शिक्षण कार्य करते हुए अपनी शिक्षा सम्बन्धी समस्याओं का योजनाबद्ध हल खोजकर कार्यान्वित करते हैं।”

हिन्दी में सम्भवतः सर्वप्रथम कामता प्रसाद पाण्डेय ने 1965 में ‘शिक्षा में क्रियात्मक अनुसन्धान’ नाम की पुस्तक की रचना की थी। उनके अनुसार-“शिक्षा- संस्थाओं और शैक्षणिक अनुसन्धान कर्ताओं के बीच एक ऐसी खाई-सी बन गयी है जिसे पाटना प्रजातंत्र की रक्षा हेतु नितान्त आवश्यक बन गया है। प्रजातंत्रात्मक राष्ट्र के विद्यालयों में सतत् विकासशील बनाए रखकर ही प्रजातंत्र को जीवित रखा जा सकता है। इसके लिए विद्यालयों के प्रधानाचार्यों, व्यवस्थापकों, अध्यापकों तथा निरीक्षकों को चाहिए कि वे अपनी जिम्मेदारियों को वैज्ञानिक दृष्टि से समझने की चेष्टा करें। वे अपने शैक्षणिक समस्याओं का हल स्वयं ढूढे तथा सदैव इस बात का प्रयत्न करें कि विद्यालय निरन्तर प्रगति के नवीन मार्ग-चिह्नों का सृजन करें। शिक्षा में क्रियात्मक अनुसंधान इसी तथ्य की पुष्टि हेतु विकसित हुआ है।”
“जब शिक्षक अपनी कक्षागत समस्या को स्वयं वैज्ञानिक ढंग से हल करता है तो वह क्रियात्मक अनुसंधान होता है।”

क्रियात्मक अनुसन्धान की विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गयी परिभाषाओं का विवरण निम्नलिखित है-
(1) स्टीफन्, एम. कोरे (Stephen M.Corey) के अनुसार-“क्रियात्मक अनुसन्धान वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा व्यवहारिक कार्यक्रम वैज्ञानिक विधि अपनी समस्याओंका अध्ययन, अपने निर्णय और क्रियाओं में निर्देशन, सुधार और मूल्यांकन करते हैं।”

(2) मेक ग्रेथी (Mek Grathy) के शब्दों में, “क्रियात्मक अनुसन्धान व्यवस्थित खोज की क्रिया है, जिसका उद्देश्य व्यक्ति अथवा समूह क्रियाओं में रचनात्मक सुधार तथा विकास
लाना है।”

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि क्रियात्मक अनुसन्धान एक ऐसी विधि है, जिसके द्वारा कार्य पद्धतियों की भिन्न-भिन्न समस्याओं का अध्ययन वस्तुनिष्ठ पद्धति से किया जाता है तथा इसी आधार पर उनमें सुधार लाने का प्रयास किया जाता है। इसका प्रयोग शैक्षिक क्रियाओं के अतिरिक्त सभी प्रकार की संस्था अथवा संस्थानों में किया जाता है। जीवन के पृथक्-पृथक् क्षेत्रों में विभिन्न कार्यकर्ता अपनी कार्य-प्रणाली की समस्याओं के अध्ययन के लिए इसी अनुसन्धान का प्रयोग करते हैं।

क्रियात्मक शोध की आवश्यकता

जैसा कि कई स्थानों पर व्यक्त किया गया है-आवश्यकता (Need),महत्त्व (Importance), उद्देश्य (Aims) आदि शब्द भाषायी अन्तर से सभी समान और मिलते-जुलते हैं। इस दृष्टि से क्रियात्मक अनुसन्धान की आवश्यकता हमें इसलिए है कि-

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1. कम समय में अपनी सभी समस्याओं का सरल और सही समाधान खोज सकें।
2. प्रत्येक कार्यकर्ता अपने क्षेत्र में इसका प्रयोग कर सकें।
3. सभी लोग अपनी-अपनी समस्याओं का समाधान स्वतः ही खोज सकें।

शिक्षा के क्षेत्र में क्रियात्मक अनुसन्धान की आवश्यकता इसलिए है कि

1. शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने वाला प्रत्येक शिक्षक एवं अधिकारी अपनी समस्याओं का सरल और सही समाधान खोज सके।
2. पाठ्यक्रम को छात्रों की आवश्यकताओं एवं परिस्थितियों के अनुरूप बदला जा सके।
3. शिक्षण विधियों में उचित परिवर्तन लाया जा सके।
4. कम समय में ही समस्याओं को शीघ्रता एवं सरलता से सुलझाया जा सके।
5. शिक्षा से सम्बन्धित दैनिक समस्याओं का सही हल खोजा जा सके।
6. शिक्षण में व्यावहारिकता लायी जा सके।

क्रियात्मक शोध के उद्देश्य

क्रियात्मक अनुसन्धान के स्वरूप पर दृष्टि डालने से इनके निम्नलिखित
प्रमुख दो उद्देश्य दिखाई पड़ते हैं-
(1) व्यक्तियों के व्यवहार में परिवर्तन लाना।
(2) परिवर्तनों के विरोध की शक्ति कम कर देना।
उपर्युक्त दोनों उद्देश्यों पर विशद् रूप से विचार करने पर ज्ञात होता है कि क्रियात्मक अनुसन्धान का मूल उद्देश्य व्यक्तियों के व्यवहार में परिवर्तन लाना है।
क्रियात्मक अनुसन्धान के द्वारा विद्यालय संगठन, शिक्षण विधि, परीक्षण अथवा सहगामी क्रियाओं आदि किसी भी समस्या से सम्बन्धित परीक्षण किया जा रहा हो वह व्यक्तियों के व्यवहार में परिवर्तन के उद्देश्य पर ही केन्द्रित होता है।

शिक्षा में क्रियात्मक अनुसन्धान का महत्त्व

क्रियात्मक अनुसन्धान एक ऐसी विधि है जो वर्तमान शिक्षा के क्षेत्र में उत्पन्न समस्याओं का वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन करती है। क्रियात्मक अनुसन्धान विद्यालय की तत्कालीन समस्याओं के समाधान हेतु विद्यालय की कार्य-प्रणाली में परिवर्तन, परिवर्धन तथा सुधार करता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि शिक्षा के ढाँचे को प्रगतिशील बनाए रखने के लिए विद्यालयों में और विशेषतया भारतीय विद्यालयों में क्रियात्मक अनुसन्धान का बहुत महत्त्व है। संक्षेप में क्रियात्मक अनुसन्धान के महत्त्व को निम्नलिखित रूप में स्पष्ट किया जा सकता है-

(1) विद्यालय की कार्य-प्रणाली में वांछित सुधार करना।
(2) विद्यालय में व्याप्त यान्त्रिकता एवं रूढ़िवादिता के वातावरण को समाप्त करना।
(3) शिक्षकों, प्रधानाचार्यो, प्रबन्धकों एवं निरीक्षकों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने में सहायक।
(4) विद्यार्थियों के सर्वमुखी विकास के लिए विद्यालय की क्रियाओं का प्रभावकारी आयोजन।
(5) शिक्षकों में आपसी सहयोग बढ़ाने एवं सहानुभूतिपूर्वक कार्य करने की भावना विकसित करने में सहायक।
(6) विद्यालय की उपलब्धियों के स्तर को बढ़ाने में सहायक।
(7) विद्यालय में सामाजिक कुशलता का विकास करने में सहायक।
(8) विद्यालय की समस्याओं का समाधान।
(9) देश की प्रगति में सहायक।

क्रियात्मक-अनुसन्धान के लाभ या महत्त्व

1. स्थानीय तात्कालिक समस्याओं का तुरन्त अध्ययन

क्रियात्मक-अनुसन्धान में स्थानीय तात्कालिक समस्याओं का ही अध्ययन किया जाता है। स्थानीय तात्कालिक समस्याओं का इतनी जल्दी अध्ययन किसी अन्य अनुसन्धान पद्धति द्वारा नहीं हो सकता है।

2. घटना स्थल पर ही अध्ययन

क्रियात्मक-अनुसन्धान में किसी प्रयोगशाला आदि की आवश्यकता नहीं होती है। इसमें क्रियात्मक-अनुसन्धानकर्ता अध्ययन इकाइयों का अध्ययन घटनास्थल पर ही कर लेता है, दूसरे शब्दों में अध्ययन इकाइयाँ जहाँ रहती हैं, काम करती हैं या किसी उद्देश्य से एकत्रित होती हैं वहीं पर उनसे उनकी समस्या के सम्बन्ध में आँकड़े एकत्र कर समस्या का समाधान किया जाता है। अत: यह अध्ययन समाज की जीवन्त या वास्तविक परिस्थितियों (Realistic Life Situations) में होते हैं। ऐसी परिस्थिति में अध्ययन के कारण इस अध्ययन में विश्वसनीय परिणाम प्राप्त होते हैं।

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3. समस्या के मूल्यांकन में सहायक

क्रियात्मक-अनुसन्धान के आधार पर अध्ययन समस्या का मूल्यांकन बहुत अच्छे ढंग से किया जाता है, क्योंकि समस्या का अध्ययन वास्तविक परिस्थितियों में किया जाता है और कई बार अनुसन्धानकर्ता उस समूह का सहभागी निरीक्षणकर्ता (Participent Observer) होता है।

4. समस्या के नीति-निर्माण में सहायक

जब कोई क्रियात्मक-अनुसन्धानकर्ता किसी क्षेत्र विशेष के लोगों की तात्कालिक समस्या के सम्बन्ध में जनतान्त्रिक मूल्यों के आधार पर नीति-निर्माण करना चाहता है तो वह नीति-निर्माण क्रियात्मक-अनुसन्धान के आधार पर कर सकता है।

5. जनतान्त्रिक मूल्यों के आधार पर समस्या सुधार

क्रियात्मक-अनुसन्धान में अनुसन्धानकर्ता चूँकि जनतान्त्रिक मूल्यों को महत्त्व देता है। अतः जब वह समस्या से सम्बन्धित सुधार करता है तो सुधार में अधिक-से-अधिक सम्बन्धित लोग लाभान्वित होते हैं।

6. समस्या का तुरन्त समाधान

क्रियात्मक-अनुसन्धान की सहायता से स्थानीय तात्कालिक समस्याओं का तुरन्त समाधान क्या और कैसे होगा यह ज्ञात हो जाता है। अत: समस्याओं का अपेक्षाकृत बहुत जल्दी निराकरण और समाधान किया जा सकता है।

7. लचीली अध्ययन

पद्धति का लाभ-क्रियात्मक-अनुसन्धान एक प्रकार की लचीले सिद्धान्तों पर आधारित अनुसन्धान प्रक्रिया है। इसके नियम बहुत अधिक कठोर नहीं हैं। अत: स्थानीय तात्कालिक समस्याओं का अध्ययन बहुत सुविधाजनक ढंग से किया जा सकता है। लचीली अनुसन्धान पद्धति का यह अर्थ नहीं है कि अनुसन्धानकर्ता मनमाने ढंग से अध्ययन करता है। यह सब होते हुए भी अध्ययन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण अवश्य अपनाता है, वस्तुनिष्ठता का पूरा-पूरा ध्यान रखता है, जनतान्त्रिक और मानवीय मूल्यों को भी महत्त्व देता है और अन्ततः वह वैज्ञानिक विधि के पदों का अनुसरण जहाँ तक सम्भव होता है, करता है।

8. विस्तृत क्षेत्र

क्रियात्मक-अनुसन्धान का क्षेत्र यद्यपि स्थानीय स्तर पर तात्कालिक समस्याओं के अध्ययन तक ही सीमित है लेकिन इसका क्षेत्र बहुत व्यापक और विस्तृत इसलिए है कि इसके अन्तर्गत जहाँ-जहाँ मनुष्य है वहाँ-वहाँ की सभी प्रकार की तात्कालिक स्थानीय समस्याओं का अध्ययन सम्मिलित है। इतना ही नहीं इसका अध्ययन क्षेत्र समस्याओं के निराकरण, सुधार, समाधान और समस्याओं के सम्बन्ध में नीति निर्माण तक विस्तृत है।

क्रियात्मक अनुसन्धान के दोष

उत्तर-क्रियात्मक अनुसन्धान में अनेक गुणों के साथ ही साथ कुछ दोष अथवा सीमाएँ भी होती हैं, इनका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है-(1) किसी अनुसन्धान तकनीकी ज्ञान के अभाव में अनुसन्धानकर्ता अपनी मूल समस्या से दूर हो जाते हैं तथा उनकी शक्ति व्यर्थ के तथ्यों की ओर मुड़ जाती है। (2) क्रियात्मक अनुसन्धान प्रायःअध्यापकों, पर्यवेक्षकों एवं प्रशासकों द्वारा सम्पादित किये जाते हैं, इन्हें मुख्यत: तकनीकी ज्ञान प्राप्त नहीं होता है, इस कारण से इनके अनुसन्धान में वैज्ञानिक दृष्टिकोण अथवा तकनीकी समाहित नहीं होती है। (3) क्रियात्मक अनुसन्धानों के परिणामों का सामान्यीकरण नहीं किया जा सकता, इस कारण से किसी विद्यालय अथवा कक्षा की समस्या पर किये गये अनुसन्धान के परिणामों को अन्य विद्यालय अथवा कक्षा के लिए उपयोग में नहीं लाया जा सकता।

क्रियात्मक अनुसन्धान का क्षेत्र (Scope of Action-Research)

क्रियात्मक अनुसन्धान का क्षेत्र बड़ा सीमित है। यहाँ पर क्षेत्र से हमारा सम्बन्ध अनुसन्धान की क्रिया सीमा से है। यदि क्षेत्र का अर्थ हम, जहाँ-जहाँ क्रियात्मक अनुसन्धान किया जा सकता है, इस बात से लें तो क्रियात्मक अनुसन्धान का क्षेत्र बड़ा व्यापक है। सम्भवतः, कोई भी ऐसा क्षेत्र और स्थान नहीं जहाँ क्रियात्मक अनुसन्धान न किया जा सकता हो। पाठशाला हो या उद्योगशाला, किसी किसान का खेत हो अथवा मजदूर का मजदूरी करना, लड़ाई का मैदान हो या पहलवानों का अखाड़ा-सभी जगह क्रियात्मक अनुसन्धान सम्भव है।

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यहाँ तक कि चोर, गुण्डे, डाकू और लुटेरे तक क्रियात्मक अनुसन्धान करते ही रहते हैं। यह बात दूसरी है कि उस अनुसन्धान का प्रयोजन स्वार्थ पर आधारित है या परहित पर। प्रत्येक क्षेत्र में उपयुक्त उदाहरण दिए जा सकते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में तो हम उदाहरण बाद में देंगे, पहले मजदूरों के मजदूरी करने में क्रियात्मक अनुसन्धान का एक उदाहरण लीजिए। एक स्थान पर 8-10 मजदूर मिट्टी डाल रहे थे। काम कर रहे थे, फिर भी डाँट पड़ रही थी। उन्हें एक सूझ सूझी-वे एक पंक्ति में खड़े हो गए और एक ने अपना वजन दूसरे को दिया, दूसरे ने तीसरे को, तीसरे ने चौथे को और इसी प्रकार अन्तिम मजदूर ने उसे ठिकाने पर डाल दिया। कम परिश्रम, अधिक काम यही तो उन मजदूरों ने खोज की। इसी का नाम क्रियात्मक अनुसन्धान है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि प्रत्येक क्षेत्र में क्रियात्मक अनुसन्धान सम्भव है।

अनुसन्धान के उपकरणों का वर्गीकरण

अनुसन्धान के विभिन्न उपकरणों को निम्नलिखित रूप से वर्गीकृत किया जा सकता है-

1. अवलोकन (Observation)
2. साक्षात्कार (Interview)
3. समाजमितीय विधि (Sociometric Method) |
4. पृच्छाविधि (Inquiry Method)-इसके अन्तर्गत वे सभी उपकरण सम्मिलित किये जाते हैं, जिससे कि कोई सूचना प्राप्त हो रही हो। इसका प्रारूप प्रश्न तथा कथन का होता है।
इसमें निम्नलिखित उपकरण सम्मिलित किये जाते हैं-
(1) प्रश्नावली (Questionnaire) (2) चिह्नांकन मापनी (Check List) (3) अनुसूची (Schedule) (4) निर्धारण मापनी (Rating Scale) (5)अभिवृत्ति मापनी (Attitude Scale) (6) प्राप्तांक पत्र (ScoreCard)।


5. मनोवैज्ञानिक परीक्षण (Psychology Test)-विद्यार्थी की मानसिक योग्यता के अध्ययन के लिए मनोवैज्ञानिक परीक्षण की आवश्यकता होती है। वर्तमान में अनेक मनोवैज्ञानिक से परीक्षण किये जाते हैं, जिसके माध्यम से एक अनुसन्धानकर्ता अनेक सूचनाएँ प्राप्त करता है, जिसके माध्यम से उसे अपने निष्कर्ष पर पहुँचने में सहायता प्राप्त होती है। वर्तमान में जिन मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का प्रयोग किया जा रहा है, उनका विवरण निम्नलिखित है-
(1) बुद्धिपरीक्षण (Intelligence Test) (2) उपलब्धि परीक्षण (Achievement Test) (3) रुचि तालिका (Interest Inventory)  (4) अभियोग्यता परीक्षण (Attitude Test) (5) व्यक्तित्व तालिका (Personality Inventory) (6) अभिवृत्ति मापनी (Attitude Scale)

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