जैव रासायनिक चक्र के प्रकार : ऑक्सीजन, नाइट्रोजन,कार्बनडाइऑक्साइड और जल चक्र

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जैव रासायनिक चक्र के प्रकार :ऑक्सीजन,नाइट्रोजन,कार्बनडाइऑक्साइड और जल चक्र

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जैव रासायनिक चक्र के प्रकार : ऑक्सीजन,नाइट्रोजन,कार्बनडाइऑक्साइड और जल चक्र

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सजीवों को शरीर के निर्माण के लिए आवश्यक विभिन्न रासायनिक पदार्थों के अवयवों (तत्वों) की आवश्यकता होती है। इन अवयवों में ऑक्सीजन, कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, उनके खनिज, आदि लगभग 30 अति महत्त्वपूर्ण तत्व हैं। अपने सम्पूर्ण जीवन काल में जीव इनको वातावरण से ग्रहण करते रहते हैं तथा जीवों की मृत्यु के पश्चात् ये सभी तत्व पुनः वातावरण में चले जाते हैं। तत्पश्चात् नए जीवों द्वारा इन तत्वों को पुनः वातावरण से ग्रहण कर लिया जाता है। इस प्रकार इन तत्वों का वातावरण और जीवों के मध्य चक्रण होता रहता है। यह चक्रण ही जैव-भू-रासायनिक चक्र (Bio-geochemical cycle) या जैव-रासायनिक चक्र कहलाता है, इसको हम निम्न प्रकार से परिभाषित कर सकते हैं
“वातावरण के निर्जीव और सजीव घटकों के मध्य होने वाले विभिन्न रासायनिक पदार्थों के तत्वों के चक्रण को जैव-भू-रासायनिक चक्र कहते हैं।”

जैव-भू-रासायनिक चक्रों के प्रकार Types of Bio-geochemical Cycles

जैव-भू-रासायनिक चक्रों को निम्नलिखित दो वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है –
(i) गैसीय चक्र (Gaseous Cycles) गैसीय चक्रों में रसायनों के मुख्य संग्राहक (Reservoirs) वायुमण्डल और महासागर होते हैं;
उदाहरण-कार्बन चक्र, नाइट्रोजन चक्र, ऑक्सीजन चक्र, आदि ।
(ii) अवसादीय चक्र (Sedimentary Cycles) अवसादी चक्रों में रसायनों के मुख्य संग्राहक मृदा एवं शैल होती हैं;
उदाहरण-सल्फर चक्र, कैल्शियम चक्र, फॉस्फोरस चक्र, आदि।
गैसीय जैव-भू-रासायनिक चक्र Gaseous Bio-geochemical Cycles

कुछ महत्त्वपूर्ण गैसीय जैव-भू-रासायनिक चक्र निम्न हैं

(1) कार्बन चक्र या कार्बन डाइऑक्साइड चक्र Carbon Cycle or Carbon Dioxide Cycle

पृथ्वी पर कार्बन चक्र मुख्यतया कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का चक्रण है। वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड की सान्द्रता 0.03% होती है। हरे पेड़-पौधे वायुमण्डल से स्वतन्त्र कार्बन डाइऑक्साइड को ग्रहण कर लेते हैं और इसे प्रकाश-संश्लेषण (Photosynthesis) की क्रिया द्वारा जटिल कार्बनिक पदार्थों; जैसे- कार्बोहाइड्रेट्स (ग्लूकोस) में बदल देते हैं। सजीवों से सिर्फ नीले-हरे शैवाल एवं हरे पादप ही वो जीव हैं, जो प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया द्वारा इस प्रकार अपना भोजन सूर्य के प्रकाश और कार्बन डाइऑक्साइड की मदद से बना पाते हैं, इसी कारण ये पादप स्वपोषी (Autotrophs) अथवा उत्पादक (Producers) कहलाते हैं।

प्रकृति में कार्बन के चक्रीय प्रक्रम को निम्नलिखित पदों में विभक्त किया जा सकता है।
(i) पादप वायुमण्डल में उपस्थित स्वतन्त्र कार्बन डाइऑक्साइड को ग्रहण करके प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया द्वारा कार्बोहाइड्रेट्स (ग्लूकोस) में परिवर्तित कर देते हैं। यह क्रिया निम्न है

                             पर्णहरिम + जल
6CO2 + 12H2O           →               C6H12O6 + +6H20+ 602 ↑
कार्बन                      सूर्य का प्रकाश        ग्लूकोज
डाइऑक्साइड

(ii) पादपों से इन कार्बोहाइड्रेट्स को शाकाहारी जीवों, जोकि प्रथम श्रेणी के उपभोक्ता कहलाते हैं, के द्वारा प्राप्त कर लिया जाता है।
(iii) शाकाहारी जन्तुओं द्वारा कार्बोहाइड्रेट्स का ऑक्सीकरण होकर कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में कुछ कार्बन को त्याग दिया जाता है।
(iv) माँसाहारी जन्तुओं द्वारा शाकाहारी जन्तुओं का भक्षण किया जाता है। अत: इनके द्वारा भी भोजन (कार्बोहाइड्रेट्स) के ऑक्सीकरण द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में कुछ कार्बन को त्याग दिया जाता है।
(v) उत्पादकों और उपभोक्ताओं (शाकाहारी एवं माँसाहारी जन्तुओं) की मृत्यु के पश्चात् अपघटकों द्वारा इनके शरीर में उपस्थित कार्बनिक यौगिकों का अपघटन होता है, जिससे पुनः कार्बन डाइऑक्साइड उत्पन्न होती है और वायुमण्डल में चली जाती है। इस प्रकार कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में शेष कार्बन वातावरण में स्वतन्त्र हो जाता है।
(vi) इसके अतिरिक्त जीवाश्म ईंधनों; जैसे-कोयला, पैट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, आदि के जलने, चूने की चट्टानों के अपक्षय, गर्म झरने, ज्वालामुखी द्वारा भी वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड मुक्त होती है।

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इस प्रकार कार्बन चक्र का मुख्य पथ वायुमण्डल और जलमण्डल से
सजीव तन्त्रों में होकर पुनः वायुमण्डल तक बनता है।

नोट • जो कार्बन डाइऑक्साइड वायु में मिलती है, उसका 95% भाग जीवाणुओं की क्रियाशीलता के कारण है।
• प्रकृति में कार्बन मुख्यतया कार्बन डाइऑक्साइड के माध्यम से जैवीय शरीर का लगभग 18% भाग बनाता है।

(2) नाइट्रोजन चक्र Nitrogen Cycle

नाइट्रोजन चक्र में लगभग 78-79% मुक्त नाइट्रोजन होती है, लेकिन पादप इसका वायुमण्डल उपयोग इस रूप में नहीं कर पाते हैं। वायुमण्डलीय नाइट्रोजन विभिन्न प्रकार के नाइट्रोजन यौगिकों के रूप में मृदा में स्थिर रहती है। पादप नाइट्रोजन को इन नाइट्रोजन यौगिकों के रूप में मृदा से घुलित अवस्था में अवशोषित कर प्राप्त करते हैं, क्योंकि पादपों में मुक्त नाइट्रोजन को उपयोग में लेने के लिए कोई उपापचयी तन्त्र (Anabolic system) नहीं होता है। कुछ पादप, जो नाइट्रोजन न्यून मृदा में उगते हैं, ये कीटों के शरीर से नाइट्रोजन ग्रहण करते हैं। ऐसे पादपों को कीटभक्षी (Insectivorous plant) पादप कहते हैं।

नाइट्रोजन चक्र के निम्नलिखित पाँच मुख्य चरण हैं
(i) नाइट्रोजन स्थिरीकरण (Nitrogen-Fixation) स्वतन्त्र नाइट्रोजन द्वारा नाइट्रोजनयुक्त पदार्थों के निर्माण को नाइट्रोजन स्थिरीकरण या नाइट्रोजन यौगिकीकरण कहते हैं। प्रकृति में निम्नलिखित प्रकार से यह क्रिया होती है।
(a) अजैविक या बिजली के चमकने से (Non-biological or by
Electric Discharge)
– बिजली के चमकते समय वायुमण्डल की स्वतन्त्र नाइट्रोजन ऑक्सीजन के साथ मिलकर नाइट्रोजन के ऑक्साइड का निर्माण करती है। ये मृदा में उपस्थित कैल्शियम तथा पोटैशियम, आदि के साथ मिलकर इनके नाइट्रेट तथा नाइट्राइट निर्मित करते हैं।
(b) जैविक या सूक्ष्मजीवों द्वारा (Biological or by
Microorganisms) –
स्वतन्त्रजीवी जीवाणु; जैसे- एजोटोबैक्टर (Azotobacter), क्लॉस्ट्रिडियम (Clostridium), सहजीवी जीवाणु; जैसे- राइजोबियम लेग्यूमिनोसेरम (Rhizobium leguminosarum), नीले-हरे शैवाल, उदाहरण – एनाबीना (Anabaena), नॉस्टाक (Nostoc), आदि वायुमण्डल में उपस्थित स्वतन्त्र नाइट्रोजन को नाइट्रोजन यौगिकों में बदल देते हैं।
(ii) नाइट्रोजन का स्वांगीकरण (Nitrogen Assimilation) – पादप नाइट्रोजन का प्रयोग मुख्यतया नाइट्रेट के रूप में करते हैं। पादप की कोशिकाओं में नाइट्रेट के अपचयन (Reduction) से निर्मित अमोनिया अमीनो (NH2) रूप में उपयोग में लाई जाती है।
(iii) अमोनीकरण (Ammonification) – मृत जन्तुओं तथा पादपों के शरीर एवं जन्तुओं के उत्सर्जी पदार्थों का विघटन मृतोपजीवी सूक्ष्मजीवों, जैसे जीवाणु बैसिलस वल्गेरिस (Bacillus vulgaris), आदि द्वारा सम्पन्न होता है, जिसके फलस्वरूप अमोनिया मुक्त होती है। यह क्रिया अमोनीकरण  कहलाती है।
(iv) नाइट्रीकरण (Nitrification) – इस क्रिया में जीवाणु; जैसे- नाइट्रोसोमोनास (Nitrosomonas) तथा नाइट्रोबैक्टर (Nitrobacter), आदि अमोनिया को नाइट्राइट या नाइट्रेट में बदल देते हैं। नाइट्रोसोमोनास जीवाणु अमोनिया को नाइट्राइट में और नाइट्रोबैक्टर नाइट्राइट को नाइट्रेट में बदल देते हैं। ये नाइट्रीकारक जीवाणु कहलाते हैं।
(v) विनाइट्रीकरण (Denitrification) – इस क्रिया में जीवाणु; जैसे-बैसिलस डिनाइट्रीफिकेन्स (Bacillus denitrificans), स्यूडोमोनास डिनाइट्रीफि केन्स (Pseudomonas denitrificans), आदि मृदा में उपस्थित नाइट्रोजन यौगिकों को स्वतन्त्र नाइट्रोजन में बदल देते हैं। इससे मृदा ऊसर हो जाती है।

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नाइट्रोजन चक्र का महत्त्व Importance of Nitrogen Cycle

नाइट्रोजन चक्र निम्न प्रकार से महत्त्वपूर्ण है।
(i) नाइट्रोजन चक्र द्वारा वातावरण और मृदा में नाइट्रोजन की मात्रा सन्तुलित रहती है।
(ii) वायुमण्डल की स्वतन्त्र नाइट्रोजन का उपयोग करके नाइट्रोजन के अनेक यौगिक विभिन्न उपयोगों के लिए कृत्रिम रूप से प्राप्त किए जाते हैं। इन उपयोगी पदार्थों से पुनः मुक्त नाइट्रोजन प्राप्त करना इस चक्र से ही सम्भव है।
(iii) पादपों की वृद्धि तथा प्रकृति में भोजन प्राप्त कराने के लिए नाइट्रोजन चक्रण अति आवश्यक है।
(iv) जीव-जन्तुओं की उचित वृद्धि उचित खाद्य पदार्थों के बिना असम्भव है, जो नाइट्रोजन चक्रण से ही सम्भव होता है।

नोट – उपरोक्त चक्रण के अतिरिक्त नाइट्रोजन सजीवों के लिए ऑक्सीजन को निष्क्रिय रखने जैसा अति महत्त्वपूर्ण कार्य करती है। यह कार्य इतना महत्त्वपूर्ण है, जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है, क्योंकि सक्रिय रूप में ऑक्सीजन सभी वस्तुओं (सजीव या निर्जीव) को ऑक्सीकृत करने अर्थात् जलाने की क्षमता रखती है।

(3) ऑक्सीजन चक्र Oxygen Cycle

वायुमण्डल में स्वतन्त्र ऑक्सीजन की मात्रा लगभग 21% होती है। वातावरण में ऑक्सीजन (O2) हरे पादपों की प्रकाश-संश्लेषण क्रिया में हुए जल के अपघटन (Hydrolysis of water) से आती रहती है। अतः पृथ्वी पर हरे पादप ऑक्सीजन के प्राथमिक स्रोत हैं। ऑक्सीजन चक्र के निम्नलिखित चरण हैं –
(i) सभी जीव (पादप और जन्तु) श्वसन क्रिया में वायुमण्डल से ऑक्सीजन लेते हैं तथा जलीय जीव जल में घुली हुई ऑक्सीजन का श्वसन हेतु उपयोग करते हैं।
(ii) श्वसन की क्रिया में ऑक्सीजन की सहायता से कार्बनिक पदार्थों का ऑक्सीकरण किया जाता है, जिसके फलस्वरूप कार्बन डाइऑक्साइड, जल और ऊर्जा प्राप्त होती है। कार्बन डाइऑक्साइड और जल को वायुमण्डल में मुक्त कर दिया जाता है, जबकि ऊर्जा का उपयोग जीवों द्वारा विभिन्न दैनिक क्रियाओं को करने में किया जाता है। इस प्रक्रिया को निम्न समीकरण द्वारा समझ सकते हैं
श्वसन
C6H1206 + 602 → 6CO2 + 6H2O + ऊर्जा ↑

(iii) कोयला, पैट्रोलियम पदार्थों, आदि जीवाश्म ईंधनों के दहन में भी वायुमण्डल की ऑक्सीजन व्यय होती है और कार्बन डाइऑक्साइड बनती है।

(iv) उपरोक्त विभिन्न क्रियाओं द्वारा वायुमण्डल में छोड़ी गई कार्बन
डाइऑक्साइड का उपयोग पादपों द्वारा प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया में कार्बनिक भोज्य पदार्थों (कार्बोहाइड्रेट्स; जैसे-ग्लूकोस) के निर्माण में कर लिया जाता है। इस क्रिया में ऑक्सीजन बनती है, जो वायुमण्डल में पुनः मुक्त कर दी जाती है।

                            पर्णहरिम + जल
6CO2 + 12H2O           →               C6H12O6 + +6H20+ 602 ↑
कार्बन                      सूर्य का प्रकाश        ग्लूकोज
डाइऑक्साइड

(v) इस प्रकार विभिन्न स्रोतों से एवं विभिन्न प्रक्रमों द्वारा वायुमण्डल में मुक्त हुई इस ऑक्सीजन का प्रयोग पुनः उपभोक्ता करते हैं।

कुछ महत्त्वपूर्ण अवसादीय जैव-भू-रासायनिक चक्र निम्न हैं।

(1) फॉस्फोरस चक्र Phosphorus Cycle

फॉस्फोरस एक महत्त्वपूर्ण पोषक खनिज है। जीवधारियों में फॉस्फोरस कई जीवद्रव्यीय घटकों; जैसे- DNA, RNA, AMP, ADP, ATP, GDP, GTP,NADP और फॉस्फोलिपिड, आदि में समाविष्ट हो जाता है। पादप फॉस्फोरस को प्राय: फॉस्फेट आयन (PO- ) और हाइड्रोजन फॉस्फेट आयन के रूप में भूमि से जड़ों द्वारा अवशोषित करते हैं। वायुमण्डल में फॉस्फोरस चक्र निम्न प्रकार चलता है।

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(2) सल्फर चक्र Sulphur Cycle

सल्फर बहुत-सी प्रोटीन और सह-एन्जाइम का आवश्यक तत्व है। यह मुख्य रूप से चट्टानों में सल्फेट अथवा मुक्त रूप से पृथ्वी पर पाया जाता है। मृदा में पाया जाने वाला अधिकांश सल्फर कार्बनिक पदार्थ के रूप में पाया जाता है। वायुमण्डल में सल्फर चक्र निम्न प्रकार से चलता है।

नोट • मृत शरीरों से कुछ सल्फर हाइड्रोजन सल्फाइड (H2S) के रूप में ई. कोलाई (E. coll) नामक जीवाणु द्वारा अवायवीय दहन के माध्यम से वायु में मुक्त कर दिया जाता है।
• कुछ जीवाणु (हरे और बैंगनी प्रकाश-संश्लेषी जीवाणु) वायु की HS को सीधा सल्फेट में ऑक्सीकृत करते हैं, जिसे पादपों द्वारा उपयोग में लाया जाता है।

(3) जल चक्र Water Cycle or Hydrological Cycle

जल चक्र सभी चक्रों में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण चक्र है। पर्यावरण में जल का परिवहन जल चक्र कहलाता है। इसे गैसीय या अवसादीय किसी भी श्रेणी में नहीं रखा जाता है। पृथ्वी के 75% भाग में जल उपस्थित है। जल, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के संयोग से बना एक यौगिक है, जिसमें हाइड्रोजन और ऑक्सीजन एक विशिष्ट अनुपात (2 : 1) में पाई जाती है।

जलीय चक्र को निम्नलिखित चरणों में बाँटा जा सकता है
(i) सूर्य द्वारा उत्सर्जित ऊर्जा के कारण पर्यावरण का तापमान बढ़ता है, इस कारण महासागरों, समुद्रों, नदियों, झीलों और मृदा की सतह से जल का लगातार वाष्पीकरण (Evaporation) होता रहता है।
(ii) पादपों द्वारा वाष्पोत्सर्जन (Transpiration) की क्रिया में और जीवों द्वारा उत्सर्जन (Excretion); जैसे-मूत्र, पसीना, आदि द्वारा जल और जलवाष्प उत्सर्जित होती है।
(iii) सभी जीवों में श्वसन (Respiration) क्रिया के फलस्वरूप भी जलवाष्प (Water vapour) उत्पन्न होती है, जो वायु में छोड़ दी जाती है।
(iv) जलवाष्प हल्की होने के कारण वायुमण्डल में इकट्ठी होती रहती है।
(v) जब वातावरण का तापमान गिरता है, तो निम्नताप पर जलवाष्प संघनित (Condense) होकर कोहरा, धुन्ध, पाला, ओस, आदि के रूप में या जल की बूँदों में बदल जाती है।
(vi) ये बूँदें वर्षा अथवा हिम के रूप में पृथ्वी पर पुनः वापस आ जाती हैं। इस प्रकार जल चक्रण चलता रहता है।

जल का महत्त्व Importance of Water

जीवों के लिए जल अत्यन्त आवश्यक है। वे जल को अपने शरीर के विभिन्न भागों से ग्रहण करते हैं; जैसे-जन्तु पीकर या शरीर के तल से अवशोषित करते हैं, इसी प्रकार पादप जल को प्राय: मृदा से अपनी जड़ों द्वारा अवशोषित करते हैं। इस जल को पादप प्रकाश-संश्लेषण क्रिया द्वारा भोजन निर्माण के लिए आवश्यक कच्चे पदार्थ के रूप में उपयोग में लाते हैं। जीवधारियों के शरीर का सबसे बड़ा अंश (लगभग 80-90%) जल होता है। जलीय चक्र मुख्यतया वनों द्वारा नियन्त्रित रहता है।

                             ◆◆◆ निवेदन ◆◆◆

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