पादप ऊतक के प्रकार / जाइलम एवं फ्लोयम / types of plant tissues in hindi

दोस्तों विज्ञान की श्रृंखला में आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com का टॉपिक पादप ऊतक के प्रकार / जाइलम एवं फ्लोयम / types of plant tissues in hindi है। हम आशा करते हैं कि इस पोस्ट को पढ़ने के बाद आपकी इस टॉपिक से जुड़ी सभी समस्याएं खत्म हो जाएगी ।

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पादप ऊतक के प्रकार / जाइलम एवं फ्लोयम / types of plant tissues in hindi

पादप ऊतक के प्रकार / जाइलम एवं फ्लोयम / types of plant tissues in hindi

पादप ऊतक के प्रकार / जाइलम एवं फ्लोयम / types of plant tissues in hindi

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हम जानते हैं, कि सभी जीवधारियों के शरीर की संरचनात्मक इकाई कोशिका है तथा कुछ जीव एककोशिकीय (Unicellular) और अधिकांश जीव बहुकोशिकीय (Multicellular) होते हैं। एककोशिकीय जीवों में तो शरीर में उपस्थित एक ही कोशिका शरीर के सभी कार्य करती है, परन्तु बहुकोशिकीय जीवों में शरीर का निर्माण विशिष्ट रूप से रूपान्तरित कोशिकाओं के समूहों के द्वारा भिन्न-भिन्न प्रकार से संगठित होने के कारण होता है। वास्तव में बहुकोशिकीय जीवों का सम्पूर्ण शरीर नर और मादा युग्मकों (Gametes) के मिलने से बनी एक मात्र कोशिका अर्थात् युग्मनज (Zygote) के बार-बार विभाजित होने से बनता है। युग्मनज के विभाजनस्वरूप बनने वाली कोशिकाएँ विशिष्ट कार्य के लिए रूपान्तरित होकर समूहों में एकत्रित होती रहती हैं, इन समूहों को ऊतक (Tissues) कहते हैं। ये ऊतक संगठित होकर ऊतक तन्त्र बनाते हैं। इन ऊतक तन्त्रों के संगठन से अंग और अंगों के संगठित होने से अंग तन्त्र बनते हैं। वास्तव में ये अंग तन्त्र बहुकोशिकीय जीवों के शरीर की इकाइयों के रूप में कार्य करते हैं। उपरोक्त से स्पष्ट है कि किसी भी बहुकोशिकीय प्राणी के शरीर की मूलभूत सूक्ष्म इकाई ऊतक होते हैं।

ऊतक किसे कहते है / definition of Tissues

ऊतक को हम निम्न रूप में परिभाषित कर सकते हैं। “समान उत्पत्ति एवं समान कार्य को करने वाली कोशिकाओं का ऐसा समूह, जो समान मूलभूत संरचना (अर्थात् दिखने में समान या भिन्न, परन्तु मूलभूत चना में समान) रखता हो, ऊतक कहलाता है।” बहुकोशिकीय जीवों की ये सूक्ष्म मूलभूत इकाइयाँ स्पष्टतया जन्तुओं और पादपों में भिन्न-भिन्न प्रकार की होती हैं, क्योंकि इन दोनों प्रकार के जीवों की आवश्यकताएँ इनके जीवन प्रारुप के अनुसार भिन्न ही होती हैं। पादप, जोकि स्थिर सजीव है अर्थात् विचरण नहीं करते। अतः इनके अधिकांश ऊतक मृत एवं शरीर को संरचनात्मक शक्ति प्रदान करने वाले होते हैं वही जन्तु, जोकि भोजन, आदि की खोज में इधर-उधर विचरण करते हैं, अधिकांशतया जीवित यान्त्रिक शक्ति प्रदान करने वाले ऊतकों से बने होते हैं। यह अध्याय पादप ऊतकों के विस्तृत अध्ययन से सम्बन्धित है। जन्तुओं के ऊतकों का विस्तृत वर्णन हम अगले अध्याय में करेंगे।

पादप ऊतक किसे कहते हैं / Plant Tissues

पादपों के शरीर में उपस्थित विभिन्न अंग और अंग तन्त्र भी ऊतकों से निर्मित होते हैं। इन पादप ऊतकों का विकास के आधार पर वर्गीकरण नीचे दिए गए रेखाचित्र द्वारा समझा जा सकता है

विभज्योतक ऊतक Meristematic Tissues

ये ऊतक अवयस्क (Immature) कोशिकाओं के बने होते हैं, जिनमें समसूत्री विभाजन होता है तथा ये विभाजित होकर स्थायी ऊतक बनाते हैं। विभज्योतक ऊतक जीवनभर विभाजित होते रहते हैं तथा ये पादपों में वृद्धि करने वाले भागों में ही पाए जाते हैं। उदाहरण- तने, फूल, पत्तियाँ, जड़, कैम्बियम, आदि में।

विभज्योतक ऊतक के लक्षण
Characteristics of Meristematic Tissues

इन ऊतकों की कोशिकाओं में निम्नलिखित लक्षण पाए जाते हैं।
(i) प्रत्येक कोशिका घने कणयुक्त कोशिकाद्रव्य (Cytoplasm) से भरी रहती है।
(ii) प्रत्येक कोशिका का आवरण पतली सेलुलोस (Cellulose) की बनी कोशिका भित्ति के रूप में होता है।
(iii) कोशिकाएँ छोटी, अण्डाकार अथवा बहुमुखी समव्यासी (Isodiametric) होती हैं।
(iv) प्रत्येक कोशिका में एक बड़ा केन्द्रक उपस्थित होता है तथा रसधानी (Vacuoles) प्राय: छोटी अथवा अनुपस्थित होती हैं।
(v) कोशिकाओं के मध्य अन्तराकोशिकीय स्थान (Intercellular space) नहीं पाया जाता है।

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इन ऊतकों की उपस्थिति वाले क्षेत्रों के आधार पर इन्हें तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है

1. शीर्षस्थ विभज्योतक Apical Meristem

यह प्राथमिक विभज्योतक (Primary meristem) तने एवं जड़ के शीर्ष भाग में उपस्थित होता है तथा पादपों की लम्बाई बढ़ाने में सहायक है। शीर्षस्थ विभज्योतक निरन्तर विभाजित होते रहते हैं एवं जड़ व तनों के शीर्षों पर वृद्धि बिन्दु (Growing point) का निर्माण करते हैं। शीर्ष स्थानों को, जहाँ इस प्रकार के विभज्योतक पाए जाते हैं, वर्धी प्रदेश (Growing zone) कहते हैं।

2. अन्तर्वेशी विभज्योतक Intercalary Meristem

ये विभज्योतक पत्तियों के आधार में या टहनी के पर्व (Internode) के दोनों ओर उपस्थित होते हैं। वास्तव में ये ऊतक शीर्षस्थ विभज्योतक ऊतक के वह भाग हैं, जो लम्बाई बढ़ने के कारण उनसे अलग हो जाते हैं। अन्तर्वेशी विभज्योतक स्थायी ऊतकों के बीच-बीच में पाए जाते हैं तथा ये भी पादपों की लम्बाई में के वृद्धि के लिए उत्तरदायी होते हैं।

3. पार्श्व विभज्योतक Lateral Meristem

ये ऊतक तने या मूल की परिधि में पाए जाते हैं तथा तने एवं मूल की चौड़ाई बढ़ाने में सहायक होते हैं अर्थात् ये ऊतक तने एवं जड़ में द्वितीयक वृद्धि (Secondary growth) के लिए उत्तरदायी होते हैं, जिससे तने व जड़ की चौड़ाई में वृद्धि होती है। ये ऊतक, संवहन ऊतक (Vascular bundle) भी बनाते हैं, इन्हें द्वितीयक विभज्योतकी (Secondary meristem) भी कहते हैं; उदाहरण-कैम्बियम तथा वृक्ष की छाल के नीचे कॉर्क कैम्बियम (Cork cambium)

स्थायी ऊतक Permanent Tissues

ये ऊतक विभज्योतक ऊतक द्वारा ही बनते हैं, परन्तु ये अपनी विभाजन होने की क्षमता खो देते हैं, जिसके कारण इन्हें स्थायी ऊतकों के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। ये किसी विशिष्ट कार्य करने के लिए एक निश्चित व स्थायी आकार तथा संरचना ले लेते हैं। इस प्रकार से विशिष्ट कार्य करने के लिए स्थायी रूप तथा आकार लेने की क्रिया को विभेदीकरण (Differentiation) कहते हैं।

स्थायी ऊतक के लक्षण
Characteristics of Permanent Tissues

इस ऊतक के लक्षण निम्न प्रकार हैं।
(i) स्थायी ऊतक की कोशिकाएँ मृत अथवा सजीव दोनों प्रकार की हो सकती हैं।
(ii) इस ऊतक की कोशिकाएँ पतली (जीवित कोशिकाओं में) अथवा मोटी (मृत कोशिकाओं में) कोशिका भित्ति से घिरी रहती हैं।
(iii) इसकी कोशिकाएँ किसी विशिष्ट कार्य को करने के लिए स्थायी रूप तथा आकार ले लेती हैं।
(iv) इनके कोशिकाद्रव्य में बड़ी रसधानी रहती है।
(v) इनकी कोशिकाओं के मध्य अन्तराकोशकीय स्थान उपस्थित (जीवित कोशिकाओं में) या अनुपस्थित (मृत कोशिकाओं में) होता है।

ये ऊतक निम्न तीन मूलभूत प्रकार के होते हैं

1. सरल ऊतक Simple Tissues

ये ऊतक एक ही प्रकार की कोशिकाओं द्वारा निर्मित होते हैं अर्थात् इनकी सभी कोशिकाएँ समांगी (Homogenous) होती हैं।
सरल ऊतक पुनः निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं

A. मृदूतक Parenchyma

ये सबसे सरल और अविशिष्ट पादप ऊतक होते हैं। यह ऊतक प्राय: समव्यासी, गोल, अण्डाकार अथवा बहुमुखी, पतली भित्ति वाली, जीवित कोशिकाओं का समूह इसकी कोशिकाओं के बीच में अन्तराकोशिकीय स्थान (Intercellular space) काफी विकसित होते हैं। इनकी कोशिका भित्ति पतली एवं सेलुलोस की बनी होती है। कोशिकाओं के मध्य में एक बड़ी रसधानी होती है। मृदूतक नए तने, जड़ व पत्तियों के बाह्यत्वचा (Epidermis) और वल्कुट (Cortex) में पाया जाता है।
सामान्य मृदूतक के रूपान्तरण के उदाहरण निम्नलिखित हैं
(i) हरितऊतक या क्लोरेन्काइमा (Chlorenchyma) इस प्रकार के मृदूतकों में हरितलवक (Chloroplast) पाया जाता है, जिसके कारण प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया सम्पन्न होती है। इस प्रकार के ऊतक पादपों की पत्तियों में प्रमुखता से पाए जाते हैं।
(ii) एैरेन्काइमा या वायोतक (Aerenchyma) इस प्रकार के ऊतकों की मृदूतकी कोशिकाओं के अन्तराकोशिकीय स्थान अत्यधिक बढ़ जाते हैं, तब ये ऊतक में वायुकोष्ठ बना लेते हैं तथा ऊतक स्पंजी हो जाते हैं, जिसके फलस्वरूप ये ऊतक जल में पाए जाने वाले पादपों में प्रमुखता से पाए जाते हैं तथा श्वसन एवं प्लवन में सहायक होते हैं।
(iii) ताराकार ऊतक (Stellate Tissue) इस प्रकार के ऊतक की कोशिकाओं में अनेक लम्बे प्रवर्ध होने के कारण ये आकृति में सितारों की तरह दिखाई देते हैं। इन ऊतकों में वायु प्रकोष्ठों की संख्या भी नियमित हो जाती है। ये ऊतक केले की पत्ती के वृत्त एवं अनेक जलीय पादपों में पाए जाते हैं।

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मृदूतक के कार्य Functions of Parenchyma
मृदूतक के कार्य निम्न प्रकार से हैं
(i) मृदूतक का मुख्य कार्य जल और खाद्य पदार्थों (मण्ड, प्रोटीन तथा वसा) को संचित करना है।
(ii) हरितलवक उपस्थित होने पर ये प्रकाश-संश्लेषण द्वारा खाद्य निर्माण करते हैं।
(iii) जलीय पादपों में वायोतक प्लवन और श्वसन में सहायता करते हैं।
(iv) मांसल तनों और पत्तियों में मृदूतक कोशिकाओं में श्लेष्मक, जल अथवा रबरक्षीर एकत्र रहता है, जैसे- नागफनी, घ्वीकर (Aloe) ।
(v) विभाजन क्षमता के लौटने पर ये द्वितीयक वृद्धि (Secondary growth) व घाव भरने, आदि के काम भी आते हैं।
(vi) अधिक पानी सोखकर, स्फीत (Turgid) रहने के कारण इसकी कोशिकाएँ कोमल भागों को यान्त्रिक शक्ति प्रदान करती हैं।
(vii) मृदूतक पानी और खाद्य के अनुप्रस्थ स्थानान्तरण में सहायता करते हैं।

B. स्थूलकोण ऊतक Collenchyma

इस ऊतक की कोशिकाएँ लम्बी और जीवित होती हैं। इनमें अन्तराकोशिकीय अवकाश प्राय: अनुपस्थित होते हैं, क्योंकि इनमें कोशिकाओं के कोनों पर कोशिका भित्ति के ऊपर पैक्टिन युक्त सेलुलोस की परत जम जाती है, जिसके परिणामस्वरूप कोशिका भित्ति मोटी और दृढ़ हो जाती है तथा वहाँ उपस्थित अन्तराकोशिकीय अवकाश भर जाते हैं। स्थूलकोण ऊतक मुख्यतया द्विबीजपत्री पादपों के तनों की अधस्त्वचा (Hypodermis) में पाए जाते हैं।

स्थूलकोण ऊतक के कार्य Functions of Collenchyma bet

यह निम्न प्रकार से कार्य करता है।
(i) स्थूलकोण ऊतक की उपस्थिति के कारण पादप के कोमल भागों में दृढ़ता और लचीलापन आ जाता है।
(ii) मृदूतक की तरह यह भी पादपों को यान्त्रिक सहायता प्रदान करता है।
(iii) जब इनमें हरितलवक पाया जाता है, तब यह भोजन के निर्माण में सहायक होता है।
(iv) पैक्टिन और सेलुलोस की उपस्थिति के कारण इसकी कोशिकाएँ जल संचय में सहायता करती हैं।

C. दृढ़ोतक Sclerenchyma

इस ऊतक की कोशिकाएँ मृत, लम्बी, संकरी एवं दोनों सिरों पर नुकीली होती हैं। इनके ऊपर सेलुलोस और लिग्निन की बनी मोटी भित्ति पाई जाती है। लिग्निन एक रासायनिक पदार्थ है, जो कोशिकाओं को सीमेन्ट की तरह दृढ़ता प्रदान करता है। ये भित्तियाँ इतनी अधिक मोटी हो जाती हैं, कि कोशिका के भीतर कोई अन्तराकोशिकीय स्थान नहीं पाया जाता है। मृत होने के कारण इनमें जीवद्रव्य नहीं होता है। दृढ़ोतक पौधों के तने, पत्तियों को शिरा (Vein), फलों तथा बीजों के कठोर आवरण (बीजावरण) और नारियल के बाहरी रेशेदार छिलके (Husk) में पाए जाते हैं।

दृढ़ोतक के अन्तर्गत निम्नलिखित दो प्रकार की कोशिकाएँ आती हैं

(i) दृढ़ोतक तन्तु (Sclerenchymatous Fibres) ये लम्बी, पतली और दोनों सिरों पर नुकीली कोशिकाएँ होती हैं। इनकी कोशिका भित्ति में अत्यधिक लिग्निन होता है।
(ii) दृढ़ या पाषाण कोशिकाएँ (Stone Cells) ये गोल अथवा कुछ बेलनाकार कोशिकाएँ होती हैं। कोशिका भित्ति पर अत्यधिक लिग्निन जमा हो जाने के कारण इनकी कोशिका गुहा अत्यन्त छोटी और संकरी हो जाती है।

दृढ़ोतक के कार्य Functions of Sclerenchyma
इसके कार्य इस प्रकार हैं
(i) इस ऊतक का मुख्य कार्य पादप को यान्त्रिक शक्ति प्रदान करना है।
(ii) यह ऊतक पौधे के बाहरी परतों में ‘रक्षात्मक ऊतक’ के रूप में कार्य करता है।
(iii) इस ऊतक की कोशिकाएँ मृत होने के कारण इनमें जल धारण करने की क्षमता अधिक पाई जाती है। अत: इनके तन्तु वाहक ऊतक अर्थात् दारु (Xylem) और पोषवाह (Phloem) में बहुतायत से पाए जाते हैं।

2. जटिल ऊतक Complex Tissues

जटिल ऊतक कोशिकाओं का वह समूह है, जिसमें एक से अधिक प्रकार की कोशिकाएँ उपस्थित होती हैं तथा ये सभी कोशिकाएँ मिलकर एक इकाई की तरह कार्य करती हैं।
जटिल ऊतक निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं

A. दारु या जाइलम Xylem

यह जल संवाहक ऊतक (Water conducting tissues) कहलाता है। इसका प्रमुख कार्य मृदा से जल एवं खनिज लवणों को लेकर पादपों के विभिन्न भागों में पहुँचाना है। यह ऊतक पादप का प्रमुख काष्ठीय भाग बनाता है।
इसमें निम्नलिखित चार प्रकार की कोशिकाएँ पाई जाती हैं।

(i) वाहिनिकाएँ (Tracheids) इस प्रकार की कोशिकाएँ निर्जीव, लम्बी,नलिकाकार एवं दोनों सिरों पर नुकीली होती हैं। कोशिका भित्ति पर अत्यधिक लिग्निन जमा होने के कारण इन वाहिनिकाओं की दीवार सर्पिलाकार (Spiral), वलयाकार (Annular) (Reticulate) और गर्तमय (Pitted) हो सकती हैं।
(ii) वाहिकाएँ (Vessels) ये भी पतली बेलनाकार, नलीनुमा वाहिनिकाओं की तरह कोशिकाएँ हैं, परन्तु इनकी चौड़ाई वाहिनिकाओं की तुलना में अधिक होती है।
गुरु वाहिकाएँ भी कोशिका भित्ति पर लिग्निन के स्थूलन के कारण अनेक प्रकार की; जैसे- सर्पिलाकार, वलयाकार, जालिकावत्, सोपानवत्, गर्ती,आदि।
(iii) दारु मृदूतक (Xylem Parenchyma) ये वे जीवित कोशिकाएँ हैं, जो मृदूतक के समान ही होती हैं, परन्तु इनकी भित्ति लिग्निन के जमा होने के कारण थोड़ी मोटी हो जाती हैं।
(iv) दारु तन्तु (Xylem Fibres) इस प्रकार की कोशिकाएँ निर्जीव, लम्बी,पतली और सिरों पर नुकीली होती हैं। ये पादपों को सहारा और प्रदान करती हैं।

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दारु के कार्य Functions of Xylem
दारु के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं
(i) दारु पादप को यान्त्रिक शक्ति प्रदान करता है।
(ii) जड़ों द्वारा अवशोषित जल और लवणों के घोल को पादप के विभिन्न भागों तक दारु द्वारा ही पहुँचाया जाता है।

नोट – पादपों में दारु और पोषवाह मिलकर संवहन बण्डलों (Vascular bundles) का निर्माण करते हैं। अतः इन दोनों को संवहन ऊतक (Vascular tissue) भी कहते हैं। जिन पादपों में दारु अर्थात् संवहन ऊतक मिलते हैं, उन्हें ट्रैकियोफाइटा के नाम से जाना जाता है। इनमें टेरिडोफाइटा, अनावृतबीजी (Gymnosperms) और आवृतबीजी (Angiosperms) के पादप आते हैं।

B. पोषवाह या फ्लोएम Phloem

इसकी कोशिका भित्ति दृढ़ और लिग्निनयुक्त होती है। इस ऊतक का मुख्य कार्य पादपों में भोज्य पदार्थों का संवहन है।
पोषवाह निम्नलिखित चार प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर बना होता है।
(i) चालनी नलिकाएँ (Sieve Tubes) ये विशेष नलिकाकार संरचनाएँ हैं,जो अनेक सजीव और लम्बी कोशिकाओं के सिरे कतार में जुड़ने के फलस्वरूप बनती हैं। इन कोशिकाओं के बीच-बीच में उपस्थित अनुप्रस्थ भित्तियों में अनेक छिद्र होते हैं, जिससे इनकी रचना छलनी के समान प्रतीत होती है। इसी कारण इन्हें चालनी पट्टिकाएँ (Sieve plates) कहते हैं।
(ii) सहकोशिकाएँ (Companion Cells) ये कोशिकाएँ लम्बी, पतली और चालनी नलिकाओं के पार्श्व में उपस्थित होती हैं। इन कोशिकाओं में एक बड़ा केन्द्रक तथा जीवद्रव्य पाया जाता है। केवल आवृतबीजी पादपों के पोषवाह में सहकोशिकाएँ पाई जाती हैं।
(iii) पोषवाह मृदूतक (Phloem Parenchyma) चालनी नलिकाओं के बीच-बीच में साधारण मृदूतक समान जीवित, लम्बी एवं केन्द्रकयुक्त, छोटी-छोटी कोशिकाएँ होती हैं, जो पोषवाह मृदूतक कहलाती हैं।
(iv) पोषवाह रेशे (Phloem Fibres) ये लम्बी दृढ़ कोशिकाओं के बने होतेहैं तथा पोषवाह को यान्त्रिक शक्ति और दृढ़ता प्रदान करते हैं।

पोषवाह के कार्य Functions of Phloem
पोषवाह निम्न प्रकार से कार्य करते हैं।
(i) पोषवाह पत्तियों द्वारा तैयार कार्बनिक खाद्य-पदार्थों को पादप के विभिन्न भागों तक पहुँचाता है।
(ii) यह एकमात्र ऊतक है, जो पादपों को यान्त्रिक शक्ति संचयन प्रदान करता है।

3. विशिष्ट ऊतक Special Tissues

पादपों में ये ऊतक विशेष कार्यों को पूरा करते हैं एवं मुख्यतया अनेक प्रकार के पदार्थों का स्रावण करते हैं। इन्हें निम्नलिखित समूहों में बाँटा गया है-
A. ग्रन्थिल ऊतक Glandular Tissues
ये ऊतक तेल, रेजिन, मकरन्द, जल, आदि का स्रावण करते हैं।
B. रबरक्षीरी ऊतक Laticiferous Tissues
इन ऊतकों से गाढ़ा अथवा जलीय पदार्थ रबरक्षीर (Latex) स्रावित होता है।


                             ◆◆◆ निवेदन ◆◆◆

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