बालक का चारित्रिक या नैतिक विकास moral development of child

नैतिक विकास,विभिन्न अवस्थाओं में नैतिक विकास,बालक का चारित्रिक या नैतिक विकास– दोस्तों आज hindiamrit आपको बाल विकास का सबसे महत्वपूर्ण टॉपिक की सारी जानकारी प्रदान करेंगे।

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बालक का चारित्रिक या नैतिक विकास moral development of child

चारित्रिक विकास, moral development,विभिन्न अवस्थाओं में चारित्रिक विकास दोस्तों आइये जानते है बालक में मुख्य रूप से कितने विकास होते हैं।

बालक में कुल 6 प्रकार के विकास होते हैं। हम शिक्षा मनोविज्ञान में शारीरिक विकास,मानसिक विकास,सामाजिक विकास,भाषा विकास,नैतिक या चारित्रिक विकास,संवेगात्मक विकास आदि को मुख्य रूप से पढ़ते है।

तो आइये आज जानते है की नैतिक विकास क्या है,शैशवावस्था में नैतिक विकास,बाल्यावस्था में नैतिक विकास,किशोरावस्था में नैतिक विकास कैसे होता है।

विभिन्न अवस्थाओं में नैतिक विकास या चारित्रिक विकास || moral development in different stages

अलग अलग अवस्थाओं में नैतिक या चारित्रिक विकास किस प्रकार होता है, हम निम्न तरीके से समझ सकते है।

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शैशवावस्था में नैतिक या चारित्रिक विकास (moral development in infancy)

नैतिक विकास या चारित्रिक विकास शैशवावस्था में किस प्रकार होता है । हम निम्न बिंदुओं के माध्यम से समझ सकते है –

(1) उचित-अनुचित का ज्ञान न होना

शैशवावस्था में जब बालक छोटा होता है तो उसे उचित अनुचित का ज्ञान नहीं होता है।

उस उम्र में वह क्या सही है? और क्या गलत है? , यह पहचान नहीं पाता है।

ना ही बालक स्वयं इसे कर पाता है कि उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए।

(2) सामान्य नियमों का ज्ञान होना

इस अवस्था में बालक को सामान्य नियमों का ज्ञान भी नहीं होता है।

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(3) अहम् के भाव की प्रबलता

इस अवस्था में बालक में अहम के भाव की प्रबलता होती है।

बालक वस्तु या किसी कार्य के लिए जिद करता है। वह अपनी मनमानी करता है।

और जो वह चाहता है उसी को पूर्ण कराना चाहता है।

(4) आज्ञापालन के भाव की प्रबलता

शैशवावस्था में बालक आज्ञा पालन के भाव को समझने लगता है।

यदि उसे कोई कार्य दिया जाता है जैसे कि बेटा पानी ले आओ, यह वस्तु उठा कर दो। तो वह तुरंत ही आज्ञा का पालन करता है।

(5) नैतिकता का उदय

इस अवस्था में बालक में धीरे-धीरे नैतिकता का उदय होने लगता है।

इस अवस्था में बालक का चारित्रिक विकास या नैतिक विकास प्रारंभ हो जाता है। वह नैतिकता के भाव को समझने लगता है।

(6) कार्य के परिणाम के प्रति चेतनता

शैशवावस्था में बालक के नैतिक विकास में कार्य के परिणाम के प्रति चेतनता नामक गुण का विकास हो जाता है।

बाल्यावस्था में नैतिक / चारित्रिक विकास (moral development in childhood)

मनोवैज्ञानिकों ने बाल्यावस्था को स्थायित्व देने वाली अवस्था होती है

बाल्यावस्था को ‘अधिक सीखने’ की अवस्था बताया है।

यह अवस्था चारित्रिक विकास को स्थायित्व देने वाली अवस्था होती है।

नैतिक विकास या चारित्रिक विकास बाल्यावस्था में किस प्रकार होता है ।

हम निम्न बिंदुओं के माध्यम से समझ सकते है –

(1) ‘हम’ की भावना का विकास

शैशवावस्था के बाद बाल्यावस्था में भी बालक में हम की भावना विद्यमान रहती है।


(2) सही-गलत, न्याय-अन्याय में अन्तर करना सीखना

बालक शैशवावस्था में सही और गलत में फर्क नहीं कर पाता है।

किंतु बाल्यावस्था में बालक सही गलत में अंतर सीख जाता है। न्याय अन्याय में अंतर करना सीख जाता है। इस प्रकार बालक में बाल्यावस्था में नैतिक विकास तीव्र गति से होता है।


(3) आदर्श व्यक्तित्व का चुनाव

बाल्यावस्था में बालक सोचता है कि वह एक एक आदर्श व्यक्तित्व धारण करें।

वह अपने चारों ओर के लोगों से अच्छी बातें सीखता है। और उन्हें धारण करने की सोचता है।

बालक अपने व्यक्तित्व को अच्छा बनाने में तल्लीन रहता है।


(4) धार्मिक भावों का उदय

बालक के नैतिक विकास में बाल्यावस्था में धार्मिक जागरूकता भी उत्पन्न हो जाती है।

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बालक धार्मिक भावों के साथ जुड़ता है और धर्म को समझने लगता है। उसे धार्मिक क्रियाओं में रुचि होने लगती है।

किशोरावस्था में चारित्रिक /नैतिक विकास (moral development in adolescence)

नैतिक विकास या चारित्रिक विकास किशोरावस्था में किस प्रकार होता है । हम निम्न बिंदुओं के माध्यम से समझ सकते है –

(1) समायोजन का अभाव

बालक के नैतिक विकास में किशोरावस्था आने पर बालक में समायोजन का अभाव हो जाता है।

वह लोगों के बीच खुद को समायोजित नहीं कर पाता है। वह दूसरों से अलग रहने लगता है।

(2) मानव धर्म का महत्त्व

बाल्यावस्था के बाद किशोरावस्था में धर्म की भावना बालक में प्रबल हो जाती है।

बालक मानव धर्म पर जोर देता है। उसके महत्व को वह खुद के जीवन में धारण करने की कोशिश करता है।

(3) सभ्यता व संस्कृति का संरक्षण

इस अवस्था में बालक का धर्म से जुड़ा अधिक हो जाता है।वह धर्म के बाद सभ्यता एवं संस्कृति में भी रुचि लेता है।

बालक सभ्यता व संस्कृति को सर्वश्रेष्ठ मानता है। और इनके संरक्षण पर बल देता है।

(4) चारित्रिक गुणों का विकास

किशोरावस्था में बालक का चारित्रिक विकास लगभग पूर्ण रूप से हो जाता है। इस अवस्था में बालक में नैतिकता के सभी गुण आ जाते हैं।

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बालक के नैतिक या चारित्रिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक

निम्नलिखित कारक / तत्व बालक के नैतिक विकास को प्रभावित करते हैं।

(1) परिवार का वातावरण

बालक के नैतिक व चारित्रिक विकास में परिवार के वातावरण का सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है।

यदि परिवार के लोगों में अच्छे गुण विद्यमान हैं। तो बालक भी उन गुणों को ही सीखता है। और बालक नैतिकता के भाव से पूर्ण होता है।

(2) माता पिता और मित्रों का चरित्र

यदि बालक के माता पिता और उसके साथ रहने वाले मित्र चरित्रवान है अर्थात उनमें नैतिकता के अच्छे गुण हैं तो बालक भी उन गुणों को सीखता है और उसमें भी नैतिकता का गुण आता है।

(3) विद्यालय

नैतिकता का पाठ परिवार के बाद विद्यालय में ही पढ़ाया जाता है।

यदि विद्यालय बालक को अच्छे-अच्छे नैतिकता के पाठ पढ़ाता है उसे अच्छे गुणों के बारे में बताता है तो बालक का चारित्रिक विकास होता है।

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(4) आस पास के क्रिया-कलाप

बालक अपने आसपास के क्रियाकलापों से बहुत कुछ सीखता है। यदि बालक के आसपास का माहौल सही है या नैतिकता से भरा हुआ है तो बालक का नैतिक विकास होता है।

अर्थात यदि बालक के आसपास नैतिकता के कार्य संपन्न होते हैं तो बालक उन कार्यों से नैतिकता का भाव सीखता है।

(5) अधिक स्नेह

अधिक इसमें भी बालक के नैतिक विकास को प्रभावित करता है। कभी-कभी बालक को अधिक लाड़ प्यार बिगाड़ देता है।

अर्थात अधिक स्नेह के कारण बालक की गलतियों को माफ कर दिया जाता है। जिससे बड़े होकर बालक उन गलतियों को सुधार नहीं पाता है। और उसके नैतिक विकास में प्रभाव पड़ता है।

(6) नैतिकता के कार्य

यदि बालक को नैतिकता के कार्य सिखाया जाए अर्थात उसे बताया जाए ईमानदारी,ईर्ष्या ना करना, किसी की बुराई ना करना यह सब अच्छे गुण हैं।

उससे नैतिकता के कार्य भी कराए जाएं जैसे किसी की मदद करना, तो बालक का नैतिक विकास होता है

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