अपवंचित बालक किसे कहते हैं / अपवंचित बालक की समस्याएं एवं उनका समाधान / अपवंचित वर्ग एवं उनकी शिक्षा का प्रावधान

बीटीसी एवं सुपरटेट की परीक्षा में शामिल शिक्षण कौशल के विषय समावेशी शिक्षा में सम्मिलित चैप्टर अपवंचित बालक किसे कहते हैं / अपवंचित बालक की समस्याएं एवं उनका समाधान / अपवंचित वर्ग एवं उनकी शिक्षा का प्रावधान आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com का टॉपिक हैं।

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अपवंचित बालक किसे कहते हैं / अपवंचित वर्ग एवं उनकी शिक्षा का प्रावधान

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( Deprived Class) अपवंचित बालक किसे कहते हैं / अपवंचित बालक की समस्याएं एवं उनका समाधान

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अपवंचित वर्ग ( Deprived Class)

कुछ बालक ऐसे होते हैं, जो सुविधाओं के क्षेत्र में सामान्य बालकों से कम होते हैं। ये विभिन्न प्रकार की सुविधाओं; जैसे-आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक आदि से वंचित रह जाते हैं। इन सुविधाओं के अभाव में उनका विकास सामान्य बालकों की तरह नहीं हो पाता, उसमें गतिरोध आ जाता है, फलतः क्षमतावान होने पर भी वे वातावरणात्मक सुविधाओं के अभाव में विकास नहीं कर पाते। शैक्षिक समावेशन का कार्य सभी प्रकार से इन वंचित बालको की शिक्षा का प्रबन्ध करना है।
सामान्यतया वंचित शब्द का अर्थ बालक की आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक असुविधाओं आदि से जुड़ा है। वंचित होना वास्तव में आवश्यक और अपेक्षित अनुभव उद्दीपकों का अभाव है। ये उद्दीपक बालक के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक वातावरण से सम्बन्धित होते हैं और इनके अभाव में बालक अपेक्षित विकास नहीं कर पाता।

अपवंचित बालक किसे कहते हैं – अर्थ एवं परिभाषाएं

समाज का वह वर्ग जो कथित रूप से छोटी जाति, निर्धन होने के कारण उन्हें पढ़ने लिखने पता आगे बढ़ने के अवसरों से वंचित कर दिया गया है। कहीं-कहीं लिंगभेद का भी प्रभाव होता है । अर्थात ऐसे बच्चे जिन्हें अवसरों की समानता प्राप्त नहीं है वंचित वर्ग के बच्चे कहलाते हैं। अपवंचित बालक के अंतर्गत अनुसूचित जाति,जनजाति ,पिछड़ी जाति, घुमंतू वर्ग श्रमिक परिषद  आदि के बच्चे आते हैं।

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अत: वंचित होना या वंचन की परिभाषा निम्नलिखित प्रकार से दी जा सकती है-

(1) गार्डन (Garden) के अनुसार-“वंचित होना बाल्य जीवन की उद्दीपक दशाओं की न्यूनता है।”

(2) श्रीमती आर. के. शर्मा के शब्दों में, “वंचन सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक परिवेश से जुड़े आवश्यक एवं अपेक्षित अनुभव उद्दीपकों का अभाव है,इस वंचन के फलस्वरूप बालक का अपेक्षित विकास नहीं हो पाता।”

(3) वॉलमैन (Wolman) के अनुसार, “वंचित होना (वंचन) निम्न स्तरीय जीवन दशा या अलगाव को घोषित करता है, जो कि कुछ व्यक्तियों को उनके समाज की सांस्कृतिक उपलब्धियों में भाग लेने से रोक देता है।”

अपवंचित बालकों के प्रकार / वंचित वर्ग के प्रकार

(1) अनुसूचित जाति – भारत के संविधान के अनुच्छेद 341 के प्रावधान के तहत अनुसूचित जाति वे जाति हैं जो समाज में विभिन्न कारणों से पिछड़े हैं।

(2) अनुसूचित जनजाति – भारत के संविधान के अनुच्छेद 342 के प्रावधान के तहत अनुसूचित जनजाति वे जाति हैं जो जंगली क्षेत्रों में रहते हैं जिन्हें आदिवासी भी कहा जाता है।

(3) पिछड़ी जातियां – भारत के संविधान के अनुच्छेद 340 के अनुसार सामाजिक व शैक्षिक दृष्टि से पिछड़ी जातियां जो अछूत की श्रेणी में नहीं आते हैं  समय व मानक के अनुसार समय-समय पर जातियों का निर्धारण किया जाता रहा है।

(4) घुमंतू वर्ग – घुमंतू वर्ग के अंतर्गत वे लोग हैं जो एक स्थान पर स्थाई रूप से घर ना बनाकर अपने बच्चों को तथा परिवार के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान को चला करते हैं।  इनका व्यवसाय जड़ी बूटी वाली दवा बेचना, सर्कस दिखाना, भीख मांगना होता है।

(5) श्रमिक वर्ग – श्रमिक वर्ग के अंतर्गत वह बच्चे आते हैं जिनके मां बाप खदान, ईट भट्ठे, जंगलों आदि में  काम करते हैं । जो काम का मौसम ने पर अपने पैतृक आवास को छोड़कर दूसरी जगह चले जाते हैं।

अपवंचित बालकों की समस्याएँ (Problems of deprived children)

वंचित बालकों में निम्नलिखित समस्याएँ परिलक्षित होती हैं-
(1)  वंचित बालकों का सामाजिक-आर्थिक स्तर निम्न होता है। (2) वंचित बालकों का सांस्कृतिक स्तर निम्न होता है। (3) वंचित बालकों का मूल स्तर भी छोटा होता है। (4) इनमें सांसारिक ज्ञान की कमी होती है। (5) वंचित बालक अपने चारों ओर घटित होने वाली घटनाओं से अनभिज्ञ रहते हैं। (6) वंचित बालकों की शैक्षिक उपलब्धि निम्न स्तरीय होती है। (7) वंचित बालक की रुचियों का क्षेत्र सीमित होता है। (8) वंचित बालक हीन भावना से ग्रसित होते हैं। (9) इनमें आकांक्षा स्तर निम्न होता है । (10) वचित बालकों में चिन्ता और भय की मात्रा अधिक होती है। (11) ये नकारात्मक अवबोध से पीड़ित रहते हैं।

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(12) इन बालकों का जातीय (Racial) स्तर अल्पसंख्यक स्तर का होता है। (13) इनकी भाषा का कम विकास होता है। (14) इनमें गहरायी प्रत्यक्षीकरण (Depth perception) और प्रत्यक्षात्मक प्रभेदन (Perceptional differentiation) निम्न स्तर का होता है। (15) इनमें सूचना संसाधन (Information processing) में विश्लेषणात्मक प्रवृत्ति की न्यूनता रहती है। (16) इनमें क्षेत्र निर्भरता (Field dependency) अत्यधिक कम होती है। (17) यह आत्मप्रेम (Narcisism) से पीड़ित रहते हैं। (18) वंचित बालक असुरक्षा (Insecurity) की भावना से भी पीड़ित रहते हैं। (19) वंचित बालकों में प्रदर्शन (Exhibition) करने की भावना बलवती होती है। (20) इन पर युयत्सा (Pugnacity) की प्रवृत्ति हावी रहती है। (21) ये अन्तर्मुखी होते हैं।

रथ, आर. दास एवं बी. एन. दास (Rath, R. Das and V.N. Das) ने वंचित बालक के तीन लक्षण बताये हैं – (1) बौद्धिक विकास में क्रमिक हास। (2) शैक्षिक उपलब्धि में क्रमिक ह्रास । (3) शैक्षिक जीवन का अपरिपक्व रूप से समापन।

शैक्षिक समावेशन द्वारा अपवंचित वर्ग की समस्याओं का समाधान

समस्याओं के समाधान के लिये निम्नलिखित सुझाव प्रस्तुत हैं-

1. माता-पिता की शिक्षा-प्रौढ़ शिक्षा के माध्यम से बालकों के अभिभावकों को उचित ढंग से शिक्षा दी जाय, जिससे कि वे शिक्षा के महत्त्व को समझ सकें एवं अपने बालकों/ बालिकाओं को विद्यालय भेज सकें। शिक्षा द्वारा उनकी संकीर्णता, रूढ़िवादिता तथा अन्ध-विश्वास आदि को समाप्त किया जा सकता है।

2. अपव्यय एवं अवरोधन दूर करना-अनुसूचित जाति के बालों में व्याप्त अपव्यय एवं अवरोधन के कारणों की जाँच करने के लिये सरकार की ओर से प्रयास होने चाहिये। आवश्यक है कि उनके लिये छात्रावासों की व्यवस्था की जाये तथा उनके पाठ्यक्रम में उनकी रुचि के विषय सम्मिलित किये जायें।

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3. अध्यापकों को सुविधाएँ-अनुसूचित जाति के अध्यापकों को अपनी शैक्षिक योग्यता को बढ़ाने के लिये प्रेरित करने की आवश्यकता है। इनको विशेष सुविधाएँ देकर प्रशिक्षित किया जाना चाहिये। ग्रामीण क्षेत्रों में अध्यापन कर रहे अध्यापकों को विशेष भत्ता, मकान सम्बन्धी सुविधा आदि प्रदान करनी चाहिये।

4. व्यक्तिगत निर्देशन-अनुसूचित जाति के बालकों के लिये व्यक्तिगत निर्देशन एवं अतिरिक्त अध्यापन की व्यवस्था की जाये। इनके लिये विशेष कक्षा लगाकर इन्हें अन्य वर्गों की भाँति समान स्तर तक उठाया जाये। अच्छे विद्यालय में प्रवेश दिलाने हेतु इनकी सहायता की जाये।

अपवंचित वर्ग की शिक्षा व्यवस्था / अपवंचित वर्ग की शिक्षा की समस्या का निवारण

(1) वंचित वर्ग के बच्चों की पढ़ाई चलाएं रहने के लिए छात्रवृत्ति की धनराशि में बढ़ोतरी व वितरण व्यवस्था को व्यवहारिक बनाया जाए। (2) निष्ठावान समाजसेवी शिक्षकों की नियुक्ति की जाए । (3) घुमंतू वर्ग के बच्चों के लिए सचल अध्यापक की व्यवस्था की जाए। (4)  घुमंतू वर्ग के बच्चों के लिए जिस क्षेत्र में यह टीके उस क्षेत्र के प्रधानाध्यापक व ग्राम प्रधान को इनके शिक्षा का दायित्व सौंपा जाए । (5) श्रमिक बस्तियों में विद्यालय खोले जाएं तथा समाजसेवी विचारों वाले शिक्षकों की नियुक्ति की है बच्चों की पहुंच क्षेत्र में विद्यालय खोले जाएं।

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