समस्यात्मक बालकों की पहचान,विशेषताएं,प्रकार / समस्यात्मक बालकों की शिक्षा एवं शिक्षण सामग्री

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समस्यात्मक बालकों की पहचान,विशेषताएं,प्रकार / समस्यात्मक बालकों की शिक्षा एवं शिक्षण सामग्री

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(Problematic child) समस्यात्मक बालकों की पहचान,विशेषताएं,प्रकार

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समस्यात्मक बालक किसे कहते हैं

(Problematic child) समस्यात्मक बालकों को उनके असामान्य व्यवहार के अवलोकन से समझा जा सकता है। जो बालक सामान्य व्यवहारों से हटकर कार्य करता है उसे समस्यात्मक बालक के नाम से पुकारा जाता है। इनमें चोरी करना, झूठ बोलना, अन्य बच्चों को परेशान करना, कार्य पूरा न करना, स्कूल से भागना, कक्षा में देर से आना आदि असामान्य व्यवहार प्रमुख हैं। ये बालक स्वयं ही योजना बनाकर कार्य सम्पन्न करते हैं। इनमें समायोजन शक्ति का अभाव होता है। अत: ये समाज के लिये समस्या बन जाते हैं।

वैलेन्टाइन (Velentine) के अनुसार- “समस्यात्मक बालक शब्द का प्रयोग साधारणत: उन बालकों के वर्णन के लिये किया जाता है, जिनका व्यवहार अर्थवा व्यक्तित्व किसी बात में गम्भीर रूप से असामान्य होता है।”

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(Problematic child) समस्यात्मक बालक से तात्पर्य ऐसे बच्चों से है जो घर परिवार या समाज विद्यालय कक्षा में जाने अनजाने में गैर पारंपरिक असंगत व जोखिम भरे कार्य करके घर या विद्यालय अथवा पड़ोस व शुभचिंतकों के प्रति  समस्या उत्पन्न करते हैं।  समस्यात्मक बालक घर में अभिभावकों हेतु, विद्यालय में शिक्षकों हेतु तथा समुदाय के लिए आए दिन समस्या उत्पन्न किया करते हैं यह अपने को ठीक से समायोजित नहीं कर पाते हैं।

समस्यात्मक बालकों के लक्षण या विशेषताएं

(Problematic child) समस्यात्मक बालकों को समझने के लिये उनके व्यवहार को समझना आवश्यक होगा। जीन डी.कमिंग ने 239 विद्यालयी बालकों पर जिनकी उम्र 2 वर्ष से लेकर 7 वर्ष की र्थी, एक अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि इनमें क्रूरता, गलत आदतें, अप्रसन्नता, लापरवाही, क्रोधी स्वभाव, फुसफुसाहट, ध्यान का अभाव आदि विशेषताएँ पायी गयीं। इनका कथन है कि 7 वर्ष के पश्चात् बालकों का व्यवहार समस्यात्मक होता है, इससे पहले नहीं। इसी प्रकार से रिचार्ड एल. हैण्डरसन ने अपने एक अध्ययन में सबसे अधिक गम्भीर एवं सबसे कम गम्भीर 10,10 लक्षण बताये हैं। किन्स ने अध्ययन किया और बताया है कि कुछ बच्चे विषमलिंगीय कामुकता, हस्त-मैथुन, अश्लील बातें आदि से सम्बन्धित समस्यात्मक व्यवहार अपनाते हैं। लेकिन जब उसको सामाजिक स्वीकृति नहीं मिलती है तो वे उसे छोड़ भी देते हैं।

समस्यात्मक बालकों के प्रकार

सिरिल बर्ट ने समस्यात्मक बालकों को दो भागों में बाँटा है-

(1) झगड़ालू और उत्तेजित व्यवहार वाले बालक,(2) दमित या हतोत्साहित बालक। इस प्रकार इससे यह पता चलता है कि बालकों में समस्यात्मक व्यवहार के उत्पन्न होने के विभिन्न कारण हैं, जिनके वशीभूत होकर वे असामान्य व्यवहार करने लगते हैं।

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समस्यात्मक बालकों के समस्यात्मक बनने के कारण

(1) बालक के जन्म के बाद कोई रोग या दुर्घटना के बाद शारीरिक अपंगता आ जाती है।
(2) घर में माता पिता के मध्य लड़ाई ।
(3) परिवार में अत्यधिक लाड़ प्यार में बालक का तुनक मिजाज बना देते हैं। (4) वंशानुक्रम के प्रभाव से भी समस्यात्मक बालक प्रभावित होकर अपने पूर्वजों द्वारा किए गए समस्यात्मक कार्य करता है।

समस्यात्मक बालकों की शिक्षा

(1) समस्यात्मक बालकों को अच्छे कार्यों के प्रति प्रोत्साहन दिया जाए तथा उन्हें दंड न दिया जाए । (2) इसके लिए स्वास्थ्य शिक्षाप्रद मनोरंजन की व्यवस्था हो। (3) समस्यात्मक बालक को कक्षा व घर में अकेले रहने का अवसर न दिया जाए । (4) मनोवैज्ञानिक जांच करके समस्या का पता लगाया जाए । (5) अनुशासन के लिए कठोर विधि न  अपनाई जाए । (6) विशेष प्रशिक्षण विद्यालय खोले जाएं जहां समस्यात्मक बालकों की शिक्षा देने वाले अध्यापक प्रशिक्षण प्राप्त कर सकें। (7)  प्रत्येक जनपद में मनोचिकित्सालय की व्यवस्था और इनको स्कूलों से जोड़ा जाए। (8) प्रदेश अथवा मंडल स्तर पर गंभीर व्यवहार ग्रस्त समस्यात्मक बालकों के लिए आवासीय विद्यालय खोले जाएं।

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