समावेशी शिक्षा किसे कहते हैं / शैक्षिक समावेशन का अर्थ,परिभाषा,प्रकार,विशेषताएं,उद्देश्य,पहचान

बीटीसी एवं सुपरटेट की परीक्षा में शामिल शिक्षण कौशल के विषय समावेशी शिक्षा में सम्मिलित चैप्टर समावेशी शिक्षा किसे कहते हैं / शैक्षिक समावेशन का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, विशेषताएं, उद्देश्य, पहचान आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com का टॉपिक हैं।

Contents

समावेशी शिक्षा किसे कहते हैं / शैक्षिक समावेशन का अर्थ, परिभाषा,प्रकार,विशेषताएं,उद्देश्य,पहचान

समावेशी शिक्षा किसे कहते हैं / शैक्षिक समावेशन का अर्थ,परिभाषा,प्रकार,विशेषताएं,उद्देश्य,पहचान
समावेशी शिक्षा किसे कहते हैं / शैक्षिक समावेशन का अर्थ,परिभाषा,प्रकार,विशेषताएं,उद्देश्य,पहचान


शैक्षिक समावेशन का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, विशेषताएं, उद्देश्य,पहचान / समावेशी शिक्षा किसे कहते हैं

Tags  –  समावेशी शिक्षा से क्या तात्पर्य है,समावेशी शिक्षा से क्या समझते हैं,शैक्षिक समावेशन के उद्देश्य,शैक्षिक समावेशन की पहचान,समावेशी शिक्षा से क्या अभिप्राय है,शैक्षिक समावेशन से अभिप्राय,Meaning and definition of educational inclusion,शैक्षिक समावेशन के प्रकार,शैक्षिक समावेशन की विशेषताएं,shaikshik samaveshan se abhipray,शिक्षा में समावेशन,समावेशन किसे कहते हैं,समावेशन की अवधारणा,शैक्षिक समावेशन के प्रकार,types of educational inclusion,समावेशी शिक्षा किसे कहते हैं / शैक्षिक समावेशन का अर्थ,परिभाषा,प्रकार,विशेषताएं,उद्देश्य,पहचान

समावेशी शिक्षा किसे कहते हैं

समावेशी शिक्षा के मूलभूत मान्यता यह है कि विद्यालयी व्यवस्था में सभी विद्यार्थियों के साथ ही विकलांगता से ग्रसित विद्यार्थियों को भी समान रूप से भागीदार बनाकर शिक्षा दी जानी चाहिए । समावेशी शिक्षा की अवधारणा मूलतः एवं अक्षम एवं  विकलांग बच्चों को शैक्षिक अवसरों की समानता, शिक्षा में पूर्ण सहभागिता का अवसर उपलब्ध कराना, गुणवत्ता परक शिक्षा के संदर्भ में उन्नत एवं उपयोगी पाठ्यचर्या, या उत्कृष्ठ शिक्षण विधि,सहायक सेवाएं तथा सामुदायिक सहभागिता को प्रोत्साहित करना है।

शैक्षिक समावेशन क्या है / what is Educational Inclusion

छात्रों में विविध प्रकार की विषमताएँ एवं विशिष्टताएँ पायी जाती हैं। यह विशिष्टताएँ तथा विषमताएँ शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, सामाजिक तथा लैंगिक कारणों से उत्पन्न होती हैं। इन विषमताओं को सामान्य बनाने तथा समाप्त करने के लिये शैक्षिक समाबेशन (Educational inclusion) पर्याप्त योगदान कर सकता है। शैक्षिक समावेशन के लिये समावेशी शिक्षा आधार का कार्य करती है। शिक्षा ही एक ऐसा अमोघ अस्त्र है जिसके द्वारा समाज के प्रत्येक प्राणी को उसका अधिकार मिल सकता है।

विद्यालय इस ओर अपना पूर्ण दायित्व का निर्वहन कर सकते हैं। विद्यालय तथा शैक्षिक समावेशन के विशेष विद्यालयों द्वारा इस विषमता के कार्य को सम्पन्न किया जा सकता है। इसीलिये शिक्षक प्रशिक्षण के पाठ्यक्रम में प्रशिक्षुओं के लिये इस समावेशित विषय को अध्ययन के लिये विशेष दृष्टि से रखा गया है, जिससे भावी शिक्षकों के व्यवहार में विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के प्रति संवेदनशीलता उत्पन्न हो सके और वे ऐसे बालकों को सामान्य बालकों के समान बनाने में अपना योगदान दे सकें। साथ ही विशेष आवश्यकता वाले बालकों की आत्मानुभूति का दर्शन कर अपने शिक्षण कार्य के दायित्व को भली प्रकार समझ सकें।

शैक्षिक समावेशन का अर्थ एवं परिभाषाएं / शैक्षिक समावेशन किसे कहते हैं

शैक्षिक समावेशन का आशय उस शिक्षा व्यवस्था से होता है जो कि छात्रों की शारीरिक एवं मानसिक असामान्यता के अनुरूप होती है। शैक्षिक समावेशन किसी एक व्यक्ति अथवा छात्र के लिये नहीं होता वरन् उन सभी छात्रों के लिये होता है, जो सामान्य वातावरण में कार्य नहीं कर पाते। इनमें से कुछ छात्र शारीरिक रूप से अक्षम होते हैं एवं कुछ छात्र प्रतिभाशाली तथा अन्य प्रकार के भी हो सकते हैं। सभी स्थितियों में छात्रों को शैक्षिक समावेशन की आवश्यकता होती है क्योंकि सामान्य वातावरण में सामान्य स्तर के छात्र ही कार्य कर पाते हैं। सामान्य स्तर से अधिक एवं कम योग्यता वाले तथा सामान्य से भिन्न छात्रों के लिये शैक्षिक समावेशन की व्यवस्था की जाती है। शैक्षिक समावेशन को विद्वानों ने निम्नलिखित रूप में परिभाषित किया है-

(1) श्रीमती आर.के. शर्मा के अनुसार, “शैक्षिक समावेशन से अभिप्राय: उन सभी छात्रों की शिक्षा व्यवस्था से है, जो अपवंचित वर्ग, भाषा, धर्म, जाति, क्षेत्र, वर्ण, लिंग तथा शारीरिक एवं मानसिक दक्षता से ग्रसित हैं। इस प्रकार के छात्र प्रतिभाशाली एवं शारीरिक रूप से अक्षम दोनों रूप में हो सकते हैं।”

(2) प्रो. एस.के.दुबे के शब्दों में, “शैक्षिक समावेशन का आशय उस शिक्षा व्यवस्था से है, जो सामान्य स्तर के छात्रों से अधिक एवं निम्न मानसिक स्तर के छात्रों के लिये होती है। इसका स्वरूप छात्रों की योग्यता, क्षमता एवं स्थितियों के अनुरूप होता है।”

इस प्रकार स्पष्ट होता है कि शैक्षिक समावेशन किसी एक श्रेणी के छात्रों के लिये नहीं होता वरन् उन सभी छात्रों के लिये होता है, जिनको इसकी आवश्यकता होती है। आज की शिक्षा का उद्देश्य सामान्य से भिन्न छात्रों का भी सर्वांगीण विकास करना है। छात्र को इस स्थिति में उसकी क्षमता एवं योग्यता के अनुसार शिक्षा प्रदान करना शैक्षिक समावेशन के अन्तर्गत आता है। प्रतिभाशाली तथा शारीरिक एवं मानसिक अक्षसता से युक्त बालकों के लिये शिक्षा सम्बन्धी क्रियाकलाप इसके अन्तर्गत आते हैं।

ये भी पढ़ें-  पठन के प्रकार - सस्वर और मौन पठन / सस्वर और मौन पठन के भेद

शैक्षिक समावेशन की विशेषताएँ

शैक्षिक समावेशन की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं-

(1) शैक्षिक समावेशन सामान्य शिक्षा व्यवस्था से पथक रूप में पाया जाता है अर्थात् इसकी संरचना सामान्य से पृथक् होती है। (2) शैक्षिक समावेशन प्रतिभाशाली एवं शारीरिक अक्षमता से युक्त छात्रों के लिये ही होता है। (3) शैक्षिक समावेशन की व्यवस्था में छात्रों की योग्यता एवं मानसिक स्तर का विशेष ध्यान रखा जाता है। (4) शैक्षिक समावेशन उन छात्रों के लिये होता है, जो कि एक निश्चित शैक्षिक वातावरण में सामान्य रूप से कार्य नहीं कर पाते। (5) शैक्षिक समावेशन की शिक्षा का पाठ्यक्रम एवं विधियाँ सामान्य शिक्षा के पाठ्यक्रम एवं विधियों से भिन्न होते हैं।

शैक्षिक समावेशन के उद्देश्य

शैक्षिक समावेशन के निम्नलिखित उद्देश्य निर्धारित किये गये हैं-

(1) इसके माध्यम से छात्राध्यापक या प्रशिक्षु विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के प्रति संवेदनशील हो सकेंगे। (2) सामान्य विद्यालय में अध्यापक शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा आर्थिक दृष्टि से पिछड़े बालकों की पहचान कर उनकी उचित देखरेख का निर्देशन दे सकेंगे। (3) शैक्षिक समावेशनद्वारा विशेष आवश्यकता वाले बालकों की शैक्षिक,मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक समस्याओं की विवेचना कर समाधान कर सकेंगे। (4) शैक्षिक समावेशन की अवधारणा को समझकर विद्यालय में समावेशित वातावरण का सृजन कर सकेंगे। (5) विशिष्ट बालकों के लिये शैक्षिक कार्य योजना का निर्माण कर उसका क्रियान्वयन कर सकेंगे। (6) विशिष्ट बालकों की आवश्यकताओं को पहचान कर विशेष शिक्षण योजना तैयार कर सकेंगे तथा एक अच्छे अध्यापक की भूमिका का निर्वहन कर सकेंगे।

शैक्षिक समावेशन की पहचान
Identification of Educational Inclusion

शैक्षिक समावेशन की पहचान के रूप में विशिष्ट आवश्यकता वाले बालकों की पहचान की जाती है। व्यक्तिगत भिन्नता के विस्तृत अध्ययन से पूर्व सभी बालकों को सामान्य बालकों की श्रेणी में रखा जाता था अर्थात् समस्त बालकों को सामान्य मानकर चला जाता था। कुछ बालकों को जो सामान्य से भिन्न थे, असामान्य (Abnormal) माना जाता था परन्तु मानसिक मापन तथा सांख्यिकी के अध्ययन तथा मनोविज्ञान के विकास से उन बालकों की ओर ध्याच गया जो सामान्य से थोड़ा भी भिन्न थे तथा उन्हें सामान्य बालकों से पृथक् (Abstracted) बालक पहचाना जाने लगा।

दो बालक चाहे वे जुड़वाँ ही क्यों न हों, एक-दूसरे से भिन्न अवश्य होते हैं। अत: यह निष्कर्ष निकाला गया कि अधिकांश छात्र समूह औसत से भिन्न होते हैं। ऐसे बालक शारीरिक तथा मानसिक भिन्नता के कारण विशिष्ट कहे जाते हैं। इनमें सीखने की अक्षमता, बाध्यता तथा शारीरिक या मानसिक विकलांगता पायी जाती है। ये बालक दृष्टि, श्रवण एवं वाणी बाधिता तथा मन्द बुद्धि-सेरेब्रलपाल्सी, ओटिज्म एवं अधिगम अक्षमता भी रखते हैं। कुछ बालकों में ‘अटेन्सन डेफीसिट हाइपर एक्टिविटी डिसऑर्डर’ पाया जाता है।

(1) यदि एक समरूप समूह  के बालकों के लक्षणों का मापन किया जाय तो उसका वितरण सामान्य वक्र (Normalcurve) के समान होगा। इस सामान्य वक्र के मध्य में पड़ी लम्बवत् रेखा यह बताती है कि सामान्य बालक वे हैं, जो इस बिन्दु पर पड़ते हैं और बिन्दु से हटने वाले समस्त बालकअसामान्य हैं परन्तु इस प्रकार तो प्राय: सभी बालक सामान्य से भिन्न हो जायेंगे। अत: सामान्य वक्र केदायें तथा बायें छोर पर पड़ने वाले 10% बालकों को औसत से भिन्न माना जा सकता है। इन 20% बालकों को ही विशिष्ट बालकों की संज्ञा दी जा सकती है। इस प्रकार यह भिन्नता अन्त: व्यक्तिगत (Inter individual) है।

(2) एक बालक के विभिन्न लक्षणों में यद्यपि धनात्मक सहसम्बन्ध देखने को मिलता है तथापि वह बालक एक लक्षण में सामान्य बालकों के समान होते हुए भी अन्य लक्षणों के सम्बन्ध में औसत से भिन्न हो सकता है। उदाहरणार्थ-एक बालक शारीरिक रूप से सामान्य होते हुए भी मानसिक रूप से पिछड़ा हो सकता है।

(3) एक बालक के विभिन्न लक्षणों का मापन करके यदि उन्हें सामान्य वक्र में दर्शाया जाय तो भी लक्षणों का वितरण असमान हो जायेगा। अर्थात् बालक के 30% लक्षण अपने ही अन्य लक्षणों से असामान्य रूप से पृथक् होंगे। फलतः भिन्नता अन्त: व्यक्तिगत (Inter individual) है।

शैक्षिक समावेशन के प्रकार / types of educational inclusion

विशिष्ट बालकों के  वर्गीकरण के आधार पर शैक्षिक समावेशन के प्रकारों की विस्तृत व्याख्या निम्नानुसार की जा सकती है-

1. बौद्धिकता सम्बन्धी शैक्षिक समावेशन-

ऐसे समस्त बालक जो मानसिक रूप से पिछड़े हैं, सीखने में अक्षम हैं अथवा शैक्षिक रूप से पिछड़े हैं, प्रतिभावान हैं या सृजनात्मक हैं, बौद्धिक रूप से भिन्न कहलाते हैं जिनकी शिक्षा व्यवस्था बौद्धिकता सम्बन्धी समावेशन के अन्तर्गत आती है। मानसिक रूप से पिछड़े बालकों का व्यवहार सामान्य बालकों से सर्वथा भिन्न होता है क्योंकि बौद्धिक रूप से भिन्न बालकों का-(1) बौद्धिक स्तर सामान्य बालकों से कम या अधिक होता है। (2) उनकी सीखने की गति सामान्य बालकों से भिन्न होती है। (3) उनकी रुचियों का स्तर बौद्धिक स्तर से प्रभावित होने के कारण सामान्य बालकों से भिन्न होता है। (4) वातावरण के उत्तेजकों को अपनी बुद्धि के अनुसार समझने के कारण उनके अनुभव भी भिन्न होते हैं।

ये भी पढ़ें-  मात्रात्मक एवं गुणात्मक मापन में अंतर | difference between quantitative and qualitative measurement in hindi 

90-110 बुद्धिलब्धि वाले बालकों को सामान्य मानकर अन्य बालकों को बौद्धिक रूप से भिन्न अर्थात् विशिष्ट माना जाता है। 110 से अधिक बुद्धिलब्धि वाले बालक प्रतिभावान तथा 90 से कम बुद्धिलब्धि वाले बालक मानसिक रूप से पिछड़े समझे जाते हैं।

इनकी बुद्धिलब्धि का मापन बुद्धि परीक्षणों द्वारा किया जाता है। इन परीक्षणों से प्राप्त बुद्धिलब्धि अंक निम्नलिखित कारणों से प्रभावित हो सकते हैं-(1) बीमारी, (2) पारिवारिक समस्या, (3) परीक्षण के सम्बन्ध में चिन्ता, (4) भाषा भिन्नता तथा (5) परीक्षण से सम्बन्धित परिस्थितियाँ । इस प्रकार के बालकों का परीक्षण कम से कम दो वर्ष तक किया जाना चाहिये जिससे बौद्धिक रूप से भिन्न बालकों की भली-भाँति पहचान हो सके।

2. शारीरिक अक्षमता सम्बन्धी शैक्षिक समावेशन

शारीरिक अक्षमता सम्बन्धी शैक्षिक समावेशन के अन्तर्गत शारीरिक रूप से अक्षम बालकों को शिक्षा की मुख्य धारा में समावेशित किया जाता है। एक लम्बे समय से अस्वस्थ, क्षतिपूण स्वास्थ्य, श्रवण क्षति, नेत्र क्षति तथा बहुल विकलांगता आदि शरीर से संबंधित दशाएं बालक को सामान्य बालकों से शारीरिक रूप से भिन्न बनाती हैं। शारीरिक क्षति अथवा प्रभाव के कुछ प्रमुख कारण हैं-(1) जन्म पूर्व क्षति (Pre-natal injury) । (2) जन्म क्षति (Birth injury) । (3) जन्मोपरान्तचोट (Posinatal injury) । (4) आनुवंशिक कारक (Genetic factors)। शारीरिक रूप से भिन्न बालक के लिये विशेष शिक्षा का आयोजन उनकी शारीरिक कमी को ध्यान में रखकर करना चाहिये।

3. मौखिक संचार सम्बन्धी शैक्षिक समावेशन

मौखिक संचार में भिन्न बालक प्रमुख रूप से दो प्रकार के होते हैं- (1) प्रथम वाक् क्षति युक्त बालक – जिनके बोलने में दोष होता है; जैसे-हकलाना तथा स्वर दोष (Stuttering, vocal disorder),(2) द्वितीय भाषा विकलांग – बालक वे बालक हैं, जो उस भाषा को नहीं जानते जो उनके वातावरण तथा विद्यालय में बोली जा रही हैं। इन बालकों की एक प्रमुख समस्या होती है, अपने विचारों को दूसरों तक न पहुँचा पाना। इसका प्रतिफल निम्नांकित दोषों का पैदा होना है-(1) पिछड़ापन, (2) सीखने में मन्दगति, (3) भग्नाशा का अनुभव होना, (4) संवेगात्मक रूप से अव्यवस्थित तथा (5) व्यक्तित्व का विकृत होना। उपर्युक्त कारणों से बालकों की शैक्षिक उपलब्धि नकारात्मक रहती है और उनका शैक्षिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा व्यावसायिक जीवन प्रभावित होता है। अत: ऐसे बालकों के शैक्षिक समावेशन के लिये विशेष कार्यक्रमों की व्यवस्था होनी चाहिये।

4. मनोसामाजिक भिन्नता सम्बन्धी शैक्षिक समावेशन

इस श्रेणी के अन्तर्गत संवेगात्मक रूप से व्यथित तथा सामाजिक रूप से कुसमायोजित बालक आते हैं। संवेगात्मक रूप से व्यथित बालक को अपनी भावनाओं के प्रदर्शन में कठिनाई अनुभव होती है। ऐसे बालकों में भावनाओं का सही व्यवस्थापन न होने की स्थिति में वे संवेगात्मक असन्तुलन का प्रदर्शन करते हैं। फलस्वरूप वे स्वयं के लिये एवं समाज के लिये समस्या बन जाते हैं। सामाजिक रूप से कुसमायोजित बालक अपने परिवार के सदस्यों, मित्रों, सहयोगियों और समाज के विभिन्न सदस्यों से नियमानुसार एवं सहज भाव से अन्त:क्रिया नहीं कर पाता।

फलतः वह सामाजिक रूप से स्वीकृत विचारों तथा गुणों को सीखने से वंचित रह जाता है। इसके दुष्परिणाम उसके चरित्र, व्यक्तित्व, कार्यप्रणाली तथा व्यवसाय में देखने को मिलते हैं। वास्तव में ऐसे बालक मनोसामाजिक भिन्नता का परिणाम हैं। दूसरे शब्दों में, संवेगात्मक एवं सामाजिक अस्थिरता इन्हें समस्यात्मक तथा अपराधी बनाती है। शैक्षिक समावेशन के रूप में ऐसे बालकों के लिये विशेष शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिये।

5. सांस्कृतिकता सम्बन्धी शैक्षिक समावेशन

इस श्रेणी में मुख्य रूप से सांस्कृतिक रूप से वंचित तथा अल्पसंख्यक बालक आते हैं। सारतक रूप से भिन्न बालक वे नहीं हैं जिनकी अपनी कोई संस्कृति नहीं है बल्कि वे हैं जो उस परिवेश से जिसमें वे रह रहे हैं, एक भिन्न संस्कृति को रखते हैं। ऐसे बालक समाज के उन अनेकानेक बालकों से भिन्न होते हैं जिनकी संस्कृति समान है। यह विशिष्टता अनेक सामाजिक, मनोवैज्ञानिक तथा शैक्षिक समस्याओं को जन्म देती है। अत: सांस्कृतिक रूप से भिन्न बालक भी विशेष शिक्षा का पात्र
है क्योंकि वह अन्य बालकों से भिन्न है और इसी कारण विशिष्ट है।

6. वंचन के आधार पर शैक्षिक समावेशन

वंचित बालक सामान्य बालकों से भिन्न अवश्य होते हैं परन्तु वे हीन किसी भी दृष्टि से नहीं होते। उनकी अक्षमता स्वयं की न होकर सामाजिक तथा आर्थिक वातावरण से सम्बन्धित होती है। वंचित बालकों की अपनी कुछ धनात्मक विशेषताएँ होती हैं; जैसे-समूह प्रवृत्ति, सहन शक्ति, अनौपचारिकता, कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति तथा विपन्नता में भी प्रसन्न रहना आदि। हम इन गुणों के आधार पर विश्व के महान् व्यक्ति ईश्वरचन्द्रविद्यासागर तथा अब्राहम लिंकन आदि को जानते हैं। शैक्षिक समावेशन के रूप में आज विद्यालयों में ऐसे वंचित बालकों के लिये कुशल मार्ग-दर्शन और विशिष्ट शिक्षा की आवश्यकता अनुभव की जाती है।

ये भी पढ़ें-  सम्प्रेषण के प्रकार | types of communication in hindi | शाब्दिक एवं अशाब्दिक सम्प्रेषण

शैक्षिक समावेशन द्वारा विशिष्ट बालकों की समस्याओं का निराकरण

भारत में पायी जाने वाली व्यापक विविधता के आधार पर भारतीय शिक्षा में समावेशन की अवधारणा को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। जहाँ पृथक् रूप में पहचाने गये छात्रों को शिक्षा में समावेशित करने के लिये अनेक प्रयास किये जाते हैं। इन शैक्षिक प्रयासों को ही समावेशन कहा जाता है। समावेशन के सन्दर्भ में अवसर एवं वंचना का आधार शारीरिक एवं सामाजिक वर्गीकरण को माना जाता है। ऐसे बालक समाज के सीमान्त या हाशिये पर होते हैं। इसमें वर्ग,जेण्डर तथा विशेष आवश्यकता वाले छात्र या बच्चे आते हैं। समाज में वर्गीकरण की परम्परा अनादि काल से चली आ रही है। कार्य, काल और आर्थिक परिस्थितियों के आधार पर समाज का वर्गीकरण नया नहीं है।

विभिन्न प्रकार के बालक ऐसे होते हैं जो सामान्य से पृथक् होते हैं।
ऐसे बालकों को परिभाषित करने की प्रक्रिया को पृथक्करण कहते हैं। प्रत्येक प्रकार के पृथक्करण का अपना एक अलग वर्ग होता है; जैसे-अक्षम बालक, प्रतिभाशाली बालक, मानसिक मन्द बालक, विकलाग बालक आदि। यह वर्ग समाज में समावेशन की अवधारणा को उत्पन्न करते हैं। वास्तव में पृथक्करण की प्रक्रिया के बाद समावेशन की प्रक्रिया का आरम्भ होता है। विभिन्न असमानताओं के आधार पर शिक्षा में विभिन्न प्रकार के पृथक्करण निर्धारित किये जाते हैं। यह पृथक्करण असमानता पर आधारित होता है। शारीरिक कारणों की असमानता के अतिरिक्त यह असमानता व्यक्तिगत एवं सामाजिक भी हो सकती है। इसी असमानता के आधार पर विशिष्ट वर्गों के बालकों के समायोजन की प्रक्रिया को समावेशन कहते हैं।

अतः पृथक् बालकों के समावेशन का स्वरूप एवं क्षेत्र का ज्ञान एक शिक्षक को पूर्ण रूप से होना चाहिये क्योंकि समावेशन के विभिन्न पक्षों का प्रबन्धन करना आवश्यक होता है, जिससे उसके सार्थक परिणाम दृष्टिगोचर होते हैं क्योंकि समावेशित अधिगम में प्रत्येक बिालक को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से लाभ होता है। समावेशी शिक्षा एक प्राचीन विचारधारा है जो कि वैदिक परम्परा से समाज में प्रचलित थी परन्तु यह एक सीमित वर्ग के लिये थी। ब्राह्मण वर्ग का बालक एवं बालिका किसी भी रूप में होता था उसे शिक्षित करने का कार्य किया जाता था। अनेक उदाहरण ऐसे भी देखे जाते हैं कि ब्राह्मण बालक मन्दबुद्धि, विकलांग एवं गरीब होते थे परन्तु उनके पिता द्वारा उनको शिक्षा प्रदान करने का कार्य किया जाता था। सामाजिक परिवर्तन प्रारम्भ हुआ तो जो शिक्षा मात्र ब्राह्मण वर्ग के लिये थी उसके द्वार सभी जातियों के लिये खुल गये।

सरकार की आरक्षण नीति के चलते दलित, अनुसूचित, विकलांग, अनुसूचित जनजाति एवं अल्पसंख्यकों को शिक्षा एवं विकास की मुख्य धारा से सम्बन्धित करने के लिये प्रयास किये गये। इस प्रकार शिक्षा के सार्वभौमीकरण का युग प्रारम्भ हुआ तथा समावेशी शिक्षा के बीज ने वट वृक्ष का स्वरूप धारण किया। वर्तमान समय में आज शिक्षा सभी के लिये है। किसी भी बालक, व्यक्ति एवं बालिका के साथ किसी भी प्रकार को आधार मानकर भेदभाव नहीं किया जाता। वर्तमान समय में विद्यालयों का स्वरूप भी सार्वजनिक एवं प्रजातान्त्रिक हो गया है। वर्तमान समय में समावेशी शिक्षा शिक्षण प्रशिक्षण कार्यक्रम का एक अंग हो गयी है।

आपके लिए महत्वपूर्ण लिंक

टेट / सुपरटेट सम्पूर्ण हिंदी कोर्स

टेट / सुपरटेट सम्पूर्ण बाल मनोविज्ञान कोर्स

50 मुख्य टॉपिक पर  निबंध पढ़िए

Final word

आपको यह टॉपिक कैसा लगा हमे कॉमेंट करके जरूर बताइए । और इस टॉपिक समावेशी शिक्षा किसे कहते हैं / शैक्षिक समावेशन का अर्थ,परिभाषा,प्रकार,विशेषताएं,उद्देश्य,पहचान  को अपने मित्रों के साथ शेयर भी कीजिये ।

Tags  – समावेशी शिक्षा से क्या तात्पर्य है,समावेशी शिक्षा से क्या समझते हैं,शैक्षिक समावेशन के उद्देश्य,शैक्षिक समावेशन की पहचान,समावेशी शिक्षा से क्या अभिप्राय है,शैक्षिक समावेशन से अभिप्राय,Meaning and definition of educational inclusion,शैक्षिक समावेशन के प्रकार,शैक्षिक समावेशन की विशेषताएं,shaikshik samaveshan se abhipray,शिक्षा में समावेशन,समावेशन किसे कहते हैं,समावेशन की अवधारणा,शैक्षिक समावेशन के प्रकार,types of educational inclusion,समावेशी शिक्षा किसे कहते हैं / शैक्षिक समावेशन का अर्थ,परिभाषा,प्रकार,विशेषताएं,उद्देश्य,पहचान

Leave a Comment