अनुप्रास अलंकार हिंदी में – परिभाषा,उदाहरण | अनुप्रास अलंकार के प्रकार | anupras alankar in hindi – नमस्कार साथियों 🙏 आपका स्वागत है। दोस्तों आप कोई भी परीक्षा दीजिए जिसमें हिंदी विषय सम्मिलित है। हिंदी विषय में अलंकार एक महत्वपूर्ण एवं आवश्यक पाठ है। इसीलिए हम आपके लिए सभी महत्वपूर्ण अलंकारों की विस्तृत जानकारी लाए है जो आपके लिए अति महत्वपूर्ण साबित होगी।
आज हम आपको अलंकारों की श्रृंखला में अनुप्रास अलंकार हिंदी में – परिभाषा,उदाहरण | अनुप्रास अलंकार के प्रकार | anupras alankar in hindi को विधिवत पढ़ायेगे। इसमें आपको परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण प्रश्नों का भी समूह दिया जाएगा ।
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अनुप्रास अलंकार हिंदी में – परिभाषा,उदाहरण | अनुप्रास अलंकार के प्रकार | anupras alankar in hindi
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अनुप्रास अलंकार हिंदी में – परिभाषा,उदाहरण | अनुप्रास अलंकार के प्रकार | anupras alankar in hindi
हमनें इस आर्टिकल में निम्न टॉपिको को सम्मिलित किया है
(1) अनुप्रास अलंकार किसे कहते हैं
(2) अनुप्रास अलंकार के उदाहरण स्पष्टीकरण के साथ
(3) अनुप्रास अलंकार के प्रकार
(4) अनुप्रास अलंकार के अन्य उदाहरण
(5) अनुप्रास अलंकार के परीक्षा उपयोगी उदाहरण
(6) अनुप्रास अलंकार से जुड़े प्रश्न
अनुप्रास अलंकार
जहां किसी पंक्ति के शब्दों में एक ही वर्ण एक से अधिक बार आता है, वहां अनुप्रास अलंकार होता है।
अनुप्रास अलंकार के उदाहरण :–
मुदित महिपति मंदिर आए,
सेवक सचिव सुमंत्र बुलाए।
यहाँ पर ‘स’ और ‘म’ वर्ण की आवृत्ति बार बार हो रही है। अतः यहाँ अनुप्रास अलंकार होगा।
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अनुप्रास अलंकार के 10 उदाहरण | अनुप्रास अलंकार के अन्य उदाहरण
(1) अमिय मूरिमय चूरन चारू समन सकल भव रुज परिवारू ।
(2) कंकन किंकन नूपुर धुनि सुनि। कहत लखन सन राम हृदय मुनि।।
(3) बिरति विवेक विनय विज्ञाना।
बोध जयारथ वेद पुराना।।
(4) मुख मयंक सम मंजु मनोहर।
(5) तेगबहादुर हा, वे ही थे गुरू-पदवी के पात्र समर्थ ।
तेगबहादुर, हा वे ही थे गुरू-पदवी थी जिनके अर्थ।।
(6) चौदवी का चॉद हो या आफताब हो।
(7) सीचीं गुलाब घरी घरी, अरी बरीहि न बारि।
(8) राम रमापति करि धन लेहू ।
(9) विस्मृत का नील नलिन रस बरसों, अपांग के घन से
(10) सत्य सनेह सील सुख सागर
(11) निपट नीरव नन्द निकेत में।
(12) कस्तूरी कुण्डलि बसै, मृग ढूंढै बन माहि।
(13) मेरे मन के मीत मनोहर
तुम हो प्रियवर मेरे सहचर।।
(14) जितने गुण सागर नागर हैं।
कहते यह बात उजागर हैं।।
अनप्रास अलकार के प्रकार एवं उदाहरण | अनुप्रास अलंकार के भेद एवं उदाहरण
अनुप्रास अलंकार के पाँच भेद होते हैं, जो इस प्रकार हैं –
(1) छेकानुप्रास
(2) वृत्यानप्रास
(3) लाटानुप्रास
(4) अन्त्यानुप्रास
(5) श्रृत्यानुप्रास
छेकानुप्रास अलंकार
छेकानुप्रास को छेक अनुप्रास के नाम से भी जाना जाता है।
जिसमें ‘छेक’ का अर्थ होता है चतुर अथवा चालाक।
इसलिए छेकानुप्रास को चतुरालंकार अर्थात चतुरों का अलंकार कहा जाता है।
“जहाँ पर कोई वर्ण एक बार स्वरूपतः और क्रमतः दुहराया जाता है तो वहाँ छेकानुप्रास होता है।”
दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि जब कोई वर्ण स्वरूप के अनुसार और क्रम के अनुसार दो बाद आता है तो वहाँ पर छेक अनुप्रास होता है।
छेकानुप्रास अलंकार के उदाहरण :–
(क) बन्दउँ गुरू पद पदुम परागा।
सुरूचि सुबास सरस अनुरागा।।
स्पष्टीकरण :- ‘प’ के बाद ‘द’ और फिर पदुम में ‘प’ के बाद ‘द’
स्वरूपतः एव क्रमतः आया है।
(ख) राधा के वर वैन सुनि, चीती चकित सुभाय ।
दाख दुखी मिसरी मुरी, सुधा रही सकुचाय ।।
स्पष्टीकरण :- ‘दाख’ और ‘दुखी’ में वर्ण स्वरूपानुसार एवं क्रमानुसार आये हैं।
(ग) रीझि रीझि रहसि रहसि हॅसि हॅसि उठे।
सॉसै भरि ऑसु भरि कहत दई दई ।
स्पष्टीकरण :- रीझि रीडझि, रहसि रहसि, हसि हसि, दई दई में
छेकानुप्रास है।
(घ) सजल सफल नव नवल, सकल भव।
वर दन्त की पंगति कुन्द कली, अधराधर पल्लव लोलन की।
स्पष्टीकरणः– अधराधर अर्थात अधर-अधर में छेक अनुप्रास अलंकार है।
छेकानुप्रास अलंकार के अन्य उदाहरण
(1) हरषित महतारी मुनि मन हारी, अदभुत रूप निहारी।
(2) रसवती रसना करके कही, कथित थी कथनीय गुणावली।
(3) विविध सरोज सरोवर फूले ।
(4) चौदवी का चॉद हो या आफताब हो।
(5) सीचीं गुलाब घरी घरी, अरी बरीहि न बारि।
(6) राम रमापति करि धन लेहू ।
(7) विस्मृत का नील नलिन रस बरसों, अपांग के घन से
वृत्यानुप्रास अलंकार
जब किसी पंक्ति में एक वर्ण की आवृत्ति एक बार से अधिक
अथवा अनेक वर्ण की आवृत्ति अनेक बार हो तो वहाँ वृत्यानुप्रास होता है।
वृत्यानुप्रास अलंकार के उदाहरण :-
(क) कूलन में केलिन में कछारन में कुंजन में,
क्यारिन में कलित किलंकत है।
स्पष्टीकरण :-यहाँ वृत्यानुप्रास ही होगा क्योंकि ‘क के बाद ‘ल चार बार आ गया है, अगर दो ही बार रहता तो छेकानुप्रास हो जाता।
(ख) रघु नंद आनंद कंद कोशल चंद दशरथ नंदनम्
स्पष्टीकरण – यहाँ न के बाद द कई बार आया है अतः वृत्यानुप्रास है।
वृत्यानुप्रास अलंकार के अन्य उदाहरण
(1) सपने सुनहले मन भाये।।
(2) मुख मयंक सम मंजु मनोहर।
(3) ध्वनि-मयी कर के गिरि कंदरा
कलित कानन केलि निकुंज को।
(4) कुल कानन कुण्डल मोर पंखा
उर पे बनमाल विराजति है।
(5) सेस महेस गनेस दिनेस सुरेसहु जाहि निरन्तर गावै ।
(6) सत्य सनेह सील सुख सागर
(7) निपट नीरव नन्द निकेत में।
(8) कस्तूरी कुण्डलि बसै, मृग ढूंढै बन माहि।
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लाटानुप्रास अलंकार
जब किसी शब्द अथवा वाक्य का दुहराव एक ही तरह हो लेकिन उस के अन्वय करने से अथात कहने अथवा लिखने में थोड़ा सा
अन्तर हो जाय तो वहाँ लाटानुप्रास होता है।
लाटानुप्रास अलंकार के उदाहरण –
(क) पूत सपूत तो का धन संचय ?
पूत कपूत तो का धन संचय?
स्पष्टीकरण : पुत्र अगर सुपुछ है तो घन इकट्ठा करने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि वह धन अर्जित कर लेगा, और अगर पुत्र कुपुत्र है तब भी धन इकट्ठा करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि वह संचय किये हुए धन को समाप्त कर देगा।
(ख) माँगी नाम न केवट आना
मागी नाव न, केवट आना
स्पष्टीकरण :- पहली पंक्ति का अर्थ है नाव मांगते हैं लेकिन केवट नहीं आता है और दूसरी पंक्ति का अर्थ है कि नाव मांगते नहीं है फिर भी केवट आता है।
(ग) वे घर है वन ही सदा जहाँ है बन्घु वियोग।
वे घर है वन ही सदा जह नहीं बन्धु वियोग।।
स्पष्टीकरण :- पंक्ति का तात्पर्य है कि जहाँ भाइयों में प्रेम नहीं है वह घर वन के समान होता है और जहाँ पर भाइयों में प्रेम है वहाँ बन भी घर के समान लगता है।
(घ) पराधीन जो जन, नहीं स्वर्ग नरकता हेतु ।
पराधीन जो जन नहीं, स्वर्ग नरकता हेतु ।।
स्पष्टीकरण :- जो मनुष्य पराधीन है अर्थात दूसरे के अधीन है उसके लिए स्वर्ग भी नरक है और जो मनुष्य पराधीन नहीं है उसके लिए नरक भी स्वर्ग के समान ही है।
(ङ) वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे
स्पष्टीकरण :- राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की ये रचना है, इसमें दोनों बार आये हुए मनुष्य का अर्थ मानव या आदमी ही है। गुप्त जी कहते हैं कि आदमी वही है जो आदमी के लिए मरता है।
(च) तेगबहादुर हा, वे ही थे गुरू-पदवी के पात्र समर्थ ।
तेगबहादुर, हा वे ही थे गुरू-पदवी थी जिनके अर्थ।।
स्पष्टीकरण :- तेगबहादुर वे ही थे जो गुरू पद के पात्र थे और दूसरी पंक्ति से अन्वयार्थ है कि तेगबहादुर वही गुरू पद जिनके अर्थ से जानी-जाती थी।
नोट –
लाटानुप्रास अलंकार का इतिहास
वास्तव में ‘लाट’ गुजरात प्रदेश को कहा जाता है।
एक समय था, जब लाट प्रदेश के लोग ऐसी कविताओं की रचना करते थे। जिसमें समानता हो लेकिन कहने का भाव अलग-अलग हो। चूंकि ऐसी काव्यों की रचना प्रायः लाट प्रदेश में हुई इसलिए इसे लाटानुप्रास कहते हैं।
लाटानुप्रास अलंकार के अन्य उदाहरण
(1) अवैरन के जॉचे कहाँ, निज जाच्यों सिवराज।
औरन के जॉँचे कहों, जनु जाच्यों सिवराज ।।
(2) मघु खण्डन परिनाम है, सियरानी को पीय।
मधुखण्डन परिनाम है, सियरानी को पीय।।
(3) नाचल रसाल मन मोर हरि पारी मै तो,
नाचत इतै हैं मन मोर हरियारी मैं।
(4) सुमनस मोद विनोद निंकुजो में करते थे।
सुमनस मोद विनोद निकुजो में करते थे।
अन्त्यानुप्रास अलंकार
जिस पंक्ति के अंत का वर्ण अथवा अक्षर समान हो तो उसे
अन्त्यानुप्रास कहते हैं। अन्त्यानुप्रास को तुकान्त अलंकार भी कहते हैं।
अन्त्यानुप्रास अलंकार के उदाहरण
(क) मेरे मन के मीत मनोहर
तुम हो प्रियवर मेरे सहचर।।
(ख) जितने गुण सागर नागर हैं।
कहते यह बात उजागर हैं।।
(ग) रंगराती रातै हिये, प्रियतम लिखी बनाई।
पाती काती रिह की, छाती रही लगाई। ।
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श्रुत्यानुप्रास अलंकार
जो सुनने में अच्छा लगे अर्थात जिस पंक्ति में ऐसे वर्णों का प्रयोग अधिक हो जिनका उच्चारण स्थान एक हो तो वहाँ श्रुत्यानुप्रास अलंकार होता है।
श्रुत्यानुप्रास अलंकार के उदाहरण :–
(क) छोरटी है गोरटी या चोरटी अहीर की ।
स्पष्टीकरण – यहाँ पर आये वर्ण छ,च,ट का उच्चारण स्थान तालु तथा क, ग,ह,अ का उच्चारण स्थान कंठ है। इस प्रकार अधिकतर आये वर्ण का उच्चारण स्थान एक है अतः यहाँ श्रुत्यानुप्रास अलंकार होगा।
श्रुत्यानुप्रास अलंकार के अन्य उदाहरण
● चरर मरर ख ल गये अरर रवस्फूटों से।
● दबकि दबोरे एक बार्दिघ में बोरे एक
मगन मही में एक नगन जड़ात है।
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अनुप्रास अलंकार के प्रश्न
(1) दमके दुतिया दुति दामिनी ज्यों। – छेकानुप्रास अलंकार
(2) मार सुमार करी डरी, मरी मराहि न मारि । – छेकानुप्रास अलंकार
(3) तरनि तनूजा तट तमाल तरूवर बहु छाये।
झुके कूल जो जल परसन हित मनहु सुहाए।। – वृत्यानुप्रास अलंकार
(4) मुदित महीपति मैंदिर आये।
सेवक सचिव सुमन्त बुलाये।। – वृत्यानुप्रास अलंकार
(5) जननी तू जननी भई, विधि सन कछु न लखाय।
जननी तू जननी भई, विधि सन कछु न लखाय।।। – लाटानुप्रास
(6) जय हनुमान ज्ञान गुण सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर। – अन्त्यानुप्रास अलंकार
(7) चारु चंद्र की चंचल किरणें पंक्ति में कौनसा अलंकार है – अनुप्रास अलंकार
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Bahut hi achhi jankri h knowledge dene ke liye thankyou