[ NCF 2005 ] राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना 2005 के सिद्धांत / NCF 2005 के सिद्धांत / principles of NCF 2005 in hindi

बीटीसी एवं सुपरटेट की परीक्षा में शामिल शिक्षण कौशल के विषय प्रारंभिक शिक्षा के नवीन प्रयास में सम्मिलित चैप्टर राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना 2005 के सिद्धांत / NCF 2005 के सिद्धांत / principles of NCF 2005 in hindi आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com का टॉपिक हैं।

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राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना 2005 के सिद्धांत / NCF 2005 के सिद्धांत / principles of NCF 2005 in hindi

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[ NCF 2005 ] राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना 2005 के सिद्धांत / NCF 2005 के सिद्धांत / principles of NCF 2005 in hindi

राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना 2005 के सिद्धांत / NCF 2005 के सिद्धांत / principles of NCF 2005 in hindi

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राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना सन् 2005 के सिद्धान्त / Principles of National Curriculum Frame Work: 2005

राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना सन् 2005 के प्रस्तुतीकरण से पूर्व कुछ सिद्धान्तों का अनुसरण किया गया था। अर्थात् कुछ प्रमुख सिद्धान्तों को आधार मानकर इस पाठ्यक्रम की रचना की गयी थी। इस पाठ्यक्रम के आधार मूल सिद्धान्त अग्रलिखित हैं-

1. सन्तुलित विकास का सिद्धान्त (Principle of balanced development)

पाठ्यक्रम में सन्तुलित विकास की अवधारणा को स्थान प्रदान किया गया है। विकास के प्रत्येक पक्ष को उसकी आवश्यकता तथा महत्त्व के आधार पर स्थान प्रदान किया गया है, जैसे-नैतिक एवं मानवीय मूल्यों को पाठ्यक्रम में उचित स्थान देना, आदर्शवाद को प्रयोजनवादी की तुलना में कम स्थान प्रदान करना एवं उपयोगिता को अधिक महत्त्व प्रदान करना आदि। इससे समाज का विकास पूर्णतः सन्तुलित रूप में होगा तथा इस प्रकार का समाज एक आदर्श समाज के रूप में दृष्टिगोचर होगा।

2. समायोजन का सिद्धान्त (Principle ofadjustment)

राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना सन् 2005 का निर्माण करने से पूर्व समिति के सभी सदस्यों ने उपलब्ध मानवीय एवं भौतिक संसाधनों पर विचार किया। इसके उपरान्त उपलब्ध संसाधनों में समन्वय करते हुए उनके
सर्वाधिक उपयोग की व्यवस्था को निश्चित करते हुए राष्ट्रीय पाठ्यक्रम सन् 2005 की संरचना की गयी। इस प्रकार साधनों का उचित विदोहन एवं साधनों के मध्य समन्वय स्थापित करते हुए इस पाठ्यक्रम में समायोजन के सिद्धान्त का अनुकरण किया गया।

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3.एकता का सिद्धान्त (Principle of integration)

राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की संरचना में राष्ट्रीय एवं भावात्मक एकता को स्थान प्रदान किया जिससे राष्ट्र की अखण्डता सुरक्षित बनी रहे। समाज में निहित विभिन्न संस्कृतियों, धर्म एवं परम्पराओं को एक सूत्र में पिरोते हुए धर्मनिरपेक्ष शिक्षा व्यवस्था का स्वरूप प्रस्तुत किया है। भाण, सम्स्या के समाधान हेतु भी इस पाठ्यक्रम में विचार विमर्श किया गया है। अत: इस पाठ्यक्रम में प्रत्येक पक्ष को एकता के सिद्धान्त के साथ सम्बद्ध किया गया है।

4.रुचि का सिद्धान्त (Principle of interest)

राष्ट्रीय पाठ्यक्रम सन् 2005 में शिक्षा व्यवस्था से सम्बद्ध प्रत्येक चर की रुचि को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है क्योंकि रुचि के अभाव में शिक्षण प्रक्रिया प्रभावी रूप से नहीं चल सकती है। पाठ्यक्रम निर्माण में शिक्षक की रुचि, छात्रों की रुचि तथा अभिभावकों की रुचि का विशेष ध्यान दिया गया है। पाठ्यक्रम की प्रभावशीलता एवं सफलता का मूल्यांकन उसी अवस्था में होता है, जब उसका अनुकूल प्रभाव शिक्षक, छात्र एवं समाज पर दृष्टिगोचर होता है। राष्ट्रीय पाठ्यक्रम
में रुचि के सिद्धान्त का अनुसरण करके पाठ्यक्रम को उत्कृष्ट स्वरूप प्रस्तुत किया है।

5. संस्कृति संरक्षण का सिद्धान्त (Principle of culture preservation)

भारतीय संस्कृति विश्व के लिये आदर्श एवं अनुकरणीय संस्कृति है। इसके संरक्षण एवं विकास को प्रत्येक स्तर पर स्वीकार किया गया है। भारतीय संस्कृति के मूल तत्त्व, मानवता, नैतिकता, सामाजिकता, आदर्शवादिता एवं समन्वयता आदि को पाठ्यक्रम की विषयवस्तु में पूर्ण स्थान प्रदान किया गया है। इससे भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का संरक्षण होता है। इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना सन् 2005 में संस्कृति के संरक्षण सिद्धान्त को महत्त्व प्रदान किया गया है।

6. नैतिकता का सिद्धान्त (Principle of morality)

राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना नैतिक मूल्यों को पूर्णत: महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है। भारत में नैतिक मूल्यों को आज भी समान एवं उपयोगिता की दृष्टि से देखा जाता है। प्रत्येक शिक्षक एवं अभिभावक अपने छात्रों एवं बालकों में नैतिक मूल्यों का विकास करना चाहते हैं। अतः पाठ्यक्रम में प्राथमिक स्तर से ही कहानी एवं शिक्षाप्रद वाक्यों के माध्यम से छात्रों में नैतिकता का संचार किया जाता है। यह क्रम उच्चस्तर तक भी निरन्तर बना रहता है। अत: पाठ्यक्रम संरचना सन् 2005 में नैतिकता के सिद्धान्त का समावेश किया गया हो।

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7. मानवता का सिद्धान्त (Principle of humanity)

मानवीय मूल्यों का महत्त्व भारतीय स्तर पर होने के साथ-साथ वैश्विक स्तर पर भी है। कोई भी राष्ट्र एवं समाज मानवता के विरुद्ध अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने में संकोच करता है। आज विश्व का सबसे
विकसित देश अमेरिका भी मानवाधिकार एवं मानव मूल्यों के विकास की अनिवार्यता को स्वीकार करता है। भारतीय परम्परा में मानवीय मूल्यों की अनिवार्यता को स्वीकार किया गया है। इसलिये पाठ्यक्रम में प्रारम्भ से ही ऐसे प्रकरणों का समावेश किया गया है, जिससे
छात्रों में प्रेम, सहयोग, परोपकार एवं सहिष्णुता की भावना का विकास हो सके। इससे यह सिद्ध होता है कि राष्ट्रीय पाठ्यक्रम सन् 2005 की संरचना में मानवीय मूल्यों एवं मानवता को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया तथा मानवता के सिद्धान्त का अनुकरण किया गया है।

8.आदर्शवादिता का सिद्धान्त (Principle of idealism)

राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना 2005 में आदर्शवादी परम्परा का अनुकरण किया गया है। इस पाठ्यक्रम में मुख्य रूप से उपयोगिता एवं भौतिक विकास के सिद्धान्त का अनुकरण किया गया है, परन्तु आदर्शवादिता के महत्त्व को अस्वीकार नहीं किया गया है। अत: प्राथमिक स्तर से ईश्वर की सत्ता एवं महानता के बारे में छात्रों को ज्ञान कराया जाता है। जैसे प्राथमिक स्तर पर एक कविता के माध्यम से आदर्शवादिता को प्रदर्शित किया है जिसकी पंक्तियाँ इस प्रकार हैं-

विमल इन्दु की विशाल किरणें प्रकाश तेरा बता रही हैं।
अनादि तेरी अनन्त माया, जगत को लीला दिखा रही हैं।।

इससे यह सिद्ध होता है कि राष्ट्रीय पाठ्यक्रम सन् 2005 में आदर्शवादिता के सिद्धान्त को स्वीकार किया गया है।

9. उपयोगिता का सिद्धान्त (Principle of utility)

पाठ्यक्रम का प्रस्तुतीकरण उपयोगिता के आधार पर किया गया है। पाठ्यक्रम संरचना सन् 2005 में प्रत्येक विषयवस्तु को जीवन से सम्बन्धित करने का प्रयास किया गया है। उपयोगी विषयों को प्राथमिक स्तर से ही महत्त्व प्रदान किया गया है जैसे पर्यावरण विज्ञान एवं गणित विषयों को प्राथमिक स्तर से ही शिक्षण का मुख्य बिन्दु बनाया गया है। इतिहास एवं भूगोल को इनकी तुलना में कम महत्त्व
प्रदान किया गया है। अत: उपयोगिता को आधार मानकर पाठ्यक्रम को निर्मित किया गया है। दूसरे शब्दों में पाठ्यक्रम में उपयोगिता के सिद्धान्त को महत्त्व प्रदान किया गया है।

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10. सामाजिकता का सिद्धान्त (Principle of sociality)

राष्ट्रीय पाठ्यक्रम सन् 2005 की संरचना में सामाजिकता के सिद्धान्त को अपनाया गया है। समाज की आकांक्षा पूर्ति शिक्षा के द्वारा ही होती है। इसलिये समाजिक व्यवस्था एवं सामाजिक परम्पराओं को संज्ञान में लेते हुए पाठ्यक्रम की संरचना की गयी है। पाठ्यक्रम में उन सभी तथ्यों एवं प्रकरणों का समावेश किया गया है जो स्वस्थ एवं आदर्श समाज का विकास करते हैं; जैसे-कक्षा 5 के स्तर पर जुम्मन एवं अलगू से सम्बन्धित पाठ सामाजिक उत्तरदायित्व, कर्त्तव्यनिष्ठा, सत्यवादिता
एवं न्यायप्रियता की शिक्षा प्रदान करता है। इससे छात्रों में भी यह सभी गुण विकसित होंगे और एक स्वस्थ आदर्शवादी समाज की स्थापना होगी। इससे यह सिद्ध होता है कि इस पाठ्यक्रम में सामाजिकता के सिद्धान्त को अपनाया गया है।

उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि पाठ्यक्रम संरचना में सन् 2005 में उन सभी सिद्धान्तों का अनुकरण किया गया है जो कि एक आदर्श एवं श्रेष्ठ पाठ्यक्रम की संरचना के लिये आवश्यक एवं अनिवार्य होते हैं। अतः इसके द्वारा विषयवस्तु एवं सामाजिक परिस्थितियों
में समन्वय स्थापित करते हुए छात्र के सर्वांगीण विकास का पथ प्रशस्त किया जा सकता है।

इस प्रकार राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना सन् 2005 प्रत्येक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी है जो कि छात्र, राष्ट्र, समाज एवं शिक्षक के विकास में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से प्रमुख भूमिका का निर्वाह करता है।



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