पठन शिक्षण की विधियाँ / पठन की विधियां

बीटीसी एवं सुपरटेट की परीक्षा में शामिल शिक्षण कौशल के विषय आरंभिक स्तर पर भाषा का पठन लेख एवं गणितीय क्षमता का विकास में सम्मिलित चैप्टर पठन शिक्षण की विधियाँ / पठन की विधियां आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com का टॉपिक हैं।

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पठन शिक्षण की विधियाँ / पठन की विधियां

पठन शिक्षण की विधियाँ / पठन की विधियां
पठन शिक्षण की विधियाँ / पठन की विधियां


Pathan shikshan ki vidhiyan / पठन शिक्षण की विधियाँ

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पठन शिक्षण की प्रमुख विधियाँ

पठन का शिक्षण किस प्रकार किया जाय? इस पर विद्वानों के विभिन्न मत हैं। कुछ विद्वानों का कहना है कि छात्रों को अक्षरों का ज्ञान वाक्यों से आरम्भ कराना उचित है, परन्तु कुछ के अनुसार शब्दों से किया जाय। पठन शिक्षण की विधियाँ में निम्नलिखित प्रणालियाँ प्रचलित हैं-

1.अक्षर-बोध विधि

यह पठन शिक्षण की विधियों में सबसे प्राचीन प्रणाली है, इसमें छात्र सर्वप्रथम स्वर अ, आ,अं, अः, क, ख, ग, च, छ आदि व्यंजनों को पढ़ने में दत्तचित होते हैं। स्वर शिक्षा से छात्र के उच्चारण वाले यान्त्रिक अंगों में लोच आ जाती है। तत्पश्चात् छात्र व्यंजन और स्वर का मिलान सीखता है; जैसे-क + अ = का। यही मिलान शब्दों को जोड़ने और वाक्यों को संजोने में काम आता है; जैसे-काम-काम।

2.ध्वनि साम्य विधि

ध्वनि साम्य के आधार पर छात्रों को उन शब्दों से परिचित कराना चाहिये जिनकी ध्वनियाँ समान होती हैं; यथा-आम, राम, काम, धाम, चाम आदि।

3.देखो और कहो प्रणाली

यह विधि अंग्रेजी विधि का हिन्दी में अनुकरण होते हुए भी मनोवैज्ञानिक है। पठन शिक्षण की विधियों में इस विधि के अनुसार छात्रों का शिक्षण शब्दों से प्रारम्भ होता है। शब्दों को सीखने के बाद वे अक्षरों को स्वत: ही सीख जाते हैं। कुछ ऐसी वस्तुओं के चित्र बनाकर जिनसे छात्र परिचित होते हैं, टाँग दिये जाते हैं या बना दिये जाते हैं। जिस वस्तु का चित्र होता है, उसे चित्र में किसी स्थान पर लिख दिया जाता है। छात्र चित्र को देखकर समझदा और बोलता है।

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4.अनुकरण विधि

यह विधि देखो और कहो विधि का परिवर्तित रूप है। इस विधि में अध्यापक एक-एक शब्द का उच्चारण करता जाता है। यह विधि अंग्रेजी भाषा के शिक्षण में अधिक लाभकारी सिद्ध होती है। कारण यह है कि अंग्रेजी भाषा का उच्चारण अनिश्चित होता है, जैसे-put का उच्चारण पुट किन्तु but का उच्चारण बट होता है, बुट नहीं।

5. यन्त्र प्रणाली

यह एक नवीन प्रणाली है। इस प्रणाली में जिस पाठ को छात्रों को पढ़ाना होता है उसे पहले रिकॉर्ड में भर लिया जाता है और फिर छात्रों के सम्मुख सुनाया जाता है। छात्र उसका अनुकरण करते जाते हैं। इससे उच्चारण में एकरूपता और पढ़ने के क्रम में समता आ जाती है, किन्तु यह प्रणाली व्यय साध्य और दुर्लभ है। अत: इसे त्याज्य कह सकते हैं।

6. संगत विधि

इस विधि का आविष्कार मैडम मॉण्टेसरी ने किया था। यह एक पाश्चात्य प्रणाली है। इस प्रणाली में छात्रों को कुछ वस्तुओं के सम्पर्क में लाया जाता है। वस्तुओं के सामने उनके नाम के कार्ड रख दिये जाते हैं। कार्डों को मिलाकर छात्रों में वितरित कर दिया जाता है। छात्र संगति के अनुसार अपनी प्रज्ञा का उपयोग कर कार्डों को यथास्थान रखने का प्रयास करता है। यन्त्र प्रणाली की भाँति यह प्रणाली भी सरलता से नहीं अपनायी जा सकती क्योंकि इसके द्वारा केवल कुछ ही शब्दों का ज्ञान कराया जा सकता है। दूसरे खिलवाड़ समझकर छात्र इस ओर अधिक ध्यान नहीं देते।

7. वाक्य शिक्षण विधि

यह एक मनोवैज्ञानिक प्रणाली है। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि छात्र अपने मनोभावों को न तो अक्षरों से प्रकट कर सकता है और न ही अक्षरों को जोड़-जोड़कर शब्दों के द्वारा। छात्र तो मनोभावों को सम्पूर्ण वाक्यों में ही भली-भाँति प्रकट कर सकता है। अत: इस विधि के समर्थकों का कहना है कि वाक्य-शिक्षण विधि को ही शिक्षा का आधार बनाया जाय।

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8. समवेत पाठ विधि

इस विधि का प्रयोग छात्रों को छोटे-छोटे गीत या पद्य लिखने के लिये किया जाता है। पहले अध्यापक सस्वर पाठ करता जाता है और बाद में छात्र उसका अनुकरण करते हैं। इस प्रणाली से स्वर ठीक होता है और वाचन संस्कार दृढ़ होता है। रुचि जाग्रत करने के कारण इस प्रणाली को लाभकारी माना जाता है।

9. कहानी विधि

इस विधि को वाक्य-शिक्षण विधि का विकसित रूप कहा जा सकता है। छात्र कहानी सुनने तथा चित्र देखने की ओर अधिक आकर्षित होते हैं। अत: इस प्रणाली में छात्रों की रुचि का ध्यान रखते हुए बने चित्रों के आधार पर मूलभूत लिखे हुए वाक्यों का सहारा लेते हुए कहानी सुनायी जाती है। इस विधि में छात्र अधिक रुचि लेने लगते हैं।

10. शब्द-शिक्षण विधि

इस प्रणाली में छात्रों को सार्थक एवं सरल शब्दों को कहने की शिक्षा दी जाती है। यह एक मनोवैज्ञानिक विधि है। इसलिये छात्र इसमें रुचि लेते हैं, परन्तु इसके लिये कुशल शिक्षक की आवश्यकता पड़ती है।

उपर्युक्त पठन की जिन विधियों का उल्लेख किया गया है किसी को भी पूर्ण नहीं माना जा सकता। समस्या यह है कि हिन्दी अध्यापक द्वारा किस विधि को अपनाया जाय, अत: इस सम्बन्ध में हमारा मत निम्नलिखित प्रकार है-

(1) शिक्षक को समय, सुविधा, परिस्थिति एवं छात्रों की रुचि के अनुसार जो विधि उपयुक्त मालूम पड़े उसी को अपनाना चाहिये। प्रत्येक परिस्थिति में एक ही प्रणाली सफल नहीं हो सकती।

(2) शिक्षा देने से पूर्व छात्रों को मौखिक अभिव्यक्ति का यथेष्ठ अभ्यास कराना चाहिये। मौखिक अभिव्यक्ति में ऐसे सरल शब्दों को लिया जाय जो सरल और सीधे अक्षरों से बने हों। यथा-आम, अनार, ईख, कमल आदि।

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(3) अक्षरों का पूर्व अभ्यास तथा पहचान कठिन शब्दों का अभ्यास कराना चाहिये। होने पर ही मात्राओं का ज्ञान कराया जाय। मात्राओं के पूर्ण ज्ञान के बाद संयुक्त मिले-जुले  पढ़ने या पठन की प्रक्रिया पठन की प्रक्रिया से आशय उन गतिविधियों से है जिनके माध्यम से छात्र पठन सम्बन्धी क्रिया को पूर्ण करता है। पठन सम्बन्धी सोपानों का क्रमबद्ध एवं आवश्यक रूप से करने से घठन का कार्य उचित रूप में सम्पन्न होता है। इसलिये पठन की क्रिया को सम्पत्र करने से पूर्ण पठन को सोपानों का ज्ञान छात्र एवं शिक्षक दोनों को अनिवार्य रूपसे होना चाहिये।


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