[ NCF 2005 ] राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना 2005 के उद्देश्य,आवश्यकता, महत्व,सिद्धांत, समस्याएं / NCF 2005 के उद्देश्य,आवश्यकता,महत्व,सिद्धांत, समस्याएं

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राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना : 2005 / National Curriculum Framework : 2005

प्रत्येक राष्ट्र की भाँति भारत वर्ष में भी एक ऐसे पाठ्यक्रम की परिकल्पना की जाती रही है, जो कि शिक्षा व्यवस्था में गुणात्मक एवं क्रान्तिकारी परिवर्तन ला सके। भारत में विभिन्न भाषाएँ, सभ्यताएँ, संस्कृतियाँ, धर्म, जातियाँ एवं सम्प्रदाय प्राचीनकाल से रहे हैं। ऐसे देश में राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की आवश्यकता प्राचीनकाल से ही अनुभव की जाती रही है।

इस सन्दर्भ में प्रथम प्रयास राष्ट्रीय शिक्षा नीति सन् 1986 के द्वारा प्रस्तुत प्रतिवेदन में किया गया। इस प्रतिवेदन में राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना की आवश्यकता एवं महत्त्व को विशेष रूप से प्रदर्शित किया गया। इस सुझाव के परिणामस्वरूप सन् 1988 में राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की संरचना प्रस्तुत की गयी, जिसमें स्कूलों के पाठ्यक्रम की चर्चा विशेष रूप से की गयी।

एन.सी.ई.आर.टी. के अथक प्रयासों के परिणामस्वरूप राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की संरचना का परिमार्जित एवं गुणात्मक स्वरूप सन् 2000 में प्रस्तुत किया गया। इसे राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना 2000 के नाम से जाना गया। इस प्रकार राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना सन् 2005 से पूर्व राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना सन् 1968 तथा राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना सन् 2000 का स्वरूप प्रस्तुत किया गया।

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(1) राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना 2005 का स्वरूप

राष्ट्रीय पाठ्यक्रम सन् 2005 में समाहित बिन्दु निम्नलिखित प्रकार है-

1.बोझ के बिना सीखने की प्रक्रिया का समावेश (Inclusion of process of learning without burden)

2. भाषा शिक्षा का समावेश (Inclusion of language education)

3.अनुदेशन का माध्यम (Mediumof instruction)

4. सामान्य विद्यालयों की व्यवस्था (Arrangement of general school)

5.धर्म निरपेक्षता का समावेश (Inclusionof secularism)

6. सामाजिक भावनाओं का समावेश (Inclusion of social spirits)

7. राष्ट्रीय एकता का समावेश (Inclusion of national integreation)

8.रुचिपूर्ण शिक्षा व्यवस्था (Interesting education system)

9. छात्रों का स्वतन्त्र विकास (Free development of students)

10. शिक्षक सशक्तिकरण का समावेश (Inclusion of teachers empowerment)

11.अभिभावकों की सहभागिता (Participiationofparents)

12.पूर्व कार्यक्रम का समावेश (Inclusionofpre-programmes)

13. कक्षा-कक्ष व्यवस्था पर विचार (View on classroom management)

14. वित्तीय एवं मानवीय स्रोतों पर विचार (View on financial and human sources)

15.मानवीय मूल्यों का समावेश (Inclusion of human values)

16. पूर्व कार्यक्रमों की असफलता पर विचार (View of failure of pre-programmes)

(2) राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना सन् 2005 के उद्देश्य

प्रत्येक योजना, कार्यक्रम एवं पाठ्यक्रम से पूर्व उद्देश्यों का निर्धारण किया जाता है,जिससे कि पाठ्यक्रम का मूल्यांकन किया जा सके। इसी क्रम में राष्ट्रीय पाठ्यक्रम सन् 2005 की संरचना से पूर्व इसके उद्देश्यों का निर्धारण किया गया। इस पाठ्यक्रम के प्रमुख उद्देश्यों को निम्नलिखित रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है-

1. राष्ट्रीय विकास (National development)

2. राष्ट्रीय एकता का विकास (Development of national integration)

3. छात्र में अध्ययन के प्रति रुचि का विकास (Development of interest to study in students)

4. सामाजिक एकता (Social integration)

5. अभिभावकों की आकांक्षाओं की पूर्ति (Completion of ambitions of parents)

6. मानवीय मूल्यों का विकास (Development of hurnan values)

7. भाषायी समस्या का समाधान (Solution of language problem)

8. स्तरानुकूल शिक्षण विधियाँ (Teaching methods Iaccording tolevel)

9.प्रभावी शिक्षण का उद्देश्य (Aims ofeffective teaching)

10. शिक्षकों में आत्म-विश्वास का विकास (Development of self confidence in teachers)

11. शिक्षण साधनों में समन्वय स्थापित करना (Co-ordination establishment in teaching resources)

12. छात्रों का सर्वांगीण विकास (Allround developmentofstudents)

13. संस्कृति का संरक्षण (Preservation of culture)

14. मानसिक एवं शारीरिक विकास का समन्वयन (Co-ordination of mental and physical development)

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(3) राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना 2005 की आवश्यकता एवं महत्त्व

राष्ट्रीय पाठ्यक्रम 2005 की संरचना की आवश्यकता एवं महत्त्व को निर्धारित करने वाले बिन्दुओं पर विचार करने से पूर्व यह समझना परमावश्यक है कि पाठ्यक्रम एक ऐसी संरचना है, जो पूर्णत: विकासशील अवस्था में रहती है।

राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना सन् 2005 की आवश्यकता एवं महत्त्व को स्पष्ट करने वाले प्रमुख तथ्यों का वर्णन निम्नलिखित रूप में किया जा सकता है-

1.नवीन तथ्यों समावेश के लिये (For the inciusionofnew factors)

2. पाठ्यक्रम विकास के लिये (For the curriculum development)

3. परिवर्तन के अनुरूप पाठ्यक्रम (Curriculum according to changing)

4. मानवीय मूल्यों के विकास के लिये (For the development of human values)

5. भाषायी समस्या के समाधान के लिये (For the solution of language problems)

6. कक्षा-कक्ष शिक्षण के लिये (For the class room teaching)

7. छात्र की सन्तुष्टि के लिये (For the satisfaction of student)

8. शिक्षकों की सन्तुष्टि के लिये (For the satisfaction of teachers)

9.अभिभावक सन्तुष्टि के लिये (For the satisfaction of
parents)

10.शोध परिणामों के प्रयोग के लिये (For the use of research result)

11.शिक्षण विधियों के विकास के लिये (For the development teaching methods)

12. शैक्षिक उद्देश्य की प्राप्ति के लिये (For the achievement of educational aims)

(4) राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना सन् 2005 के सिद्धान्त

राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना सन् 2005 के प्रस्तुतीकरण से पूर्व कुछ सिद्धान्तों का अनुसरण किया गया था। अर्थात् कुछ प्रमुख सिद्धान्तों को आधार मानकर इस पाठ्यक्रम की रचना की गयी थी। इस पाठ्यक्रम के आधार मूल सिद्धान्त अग्रलिखित हैं-

1. सन्तुलित विकास का सिद्धान्त (Principle of balanced development)

2. समायोजन का सिद्धान्त (Principle ofadjustment)

3.एकता का सिद्धान्त (Principle of integration)

4.रुचि का सिद्धान्त (Principle of interest)

5. संस्कृति संरक्षण का सिद्धान्त (Principle of culture preservation)

6. नैतिकता का सिद्धान्त (Principle of morality)

7. मानवता का सिद्धान्त (Principle of humanity)

8.आदर्शवादिता का सिद्धान्त (Principle of idealism)

9. उपयोगिता का सिद्धान्त (Principle of utility)

10. सामाजिकता का सिद्धान्त (Principle of sociality)

(5) राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना 2005 की समस्याएँ

राष्ट्रीय पाठ्यक्रम सन् 2005 के निर्माण में तथा इसके सफलतम क्रियान्वयन में अनेक प्रकार की बाधाएँ उत्पन्न हुई हैं जिनका समाधान करना अनिवार्य है योंकि प्रत्येक योजना के क्रियान्वयन से पूर्व उसके मार्ग को बाधा रहित बना देना चाहिये।

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राष्ट्रीय पाठ्यक्रम सन् 2005 की संरचना एवं क्रियान्वयन सम्बन्धी प्रमुख बाधाएँ या समस्याएँ निम्नलिखित हैं-

1. भाषाओं की समस्या (Problem of languages)

2.समाज की आकांक्षा (Ambitions of society)

3. शिक्षक सम्बन्धी समस्याएँ (Teacher related problems)

4.धर्म सम्बन्धी समस्याएँ (Religion related problems)

5. राजनैतिक समस्याएँ (Political problerms)

6. धन सम्बन्धी समस्या (Money related problem)

7.विचारों की समस्या (Problem of views)

8. परम्पराओं की समस्या (Problemoftraditions)

9.संसाधनों का अभाव (Lack of resources)

10.वैश्वीकरण का प्रभाव (Effectof globlisation)

11. क्रियान्वयन एवं निर्णय की समस्या (Problem of implementation and decision)

(6) राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना 2005 सम्बन्धी समस्याओं का समाधान


पाठ्यक्रम संरचना सम्बन्धी समस्याओं को निम्नलिखित रूप में समाप्त किया जा सकता है –

(1) भाषा सम्बन्धी समस्याओं के समाधान के लिये कोई एक सूत्रीय व्यवस्था को निरूपित करना चाहिये ।

(2) समाज के व्यक्तियों में कार्य के प्रति निष्ठा की भावना जागृत की जानी चाहिये।

(3) शिक्षकों में आत्मविश्वास की भावना का विकास करते हुए कर्त्तव्य पालन के दृष्टिकोण को विकसित करना चाहिये।

(4) धार्मिक संकीर्णता से ऊपर उठाकर मानव कल्याण एवं मानव विकास की भावना का समावेश जन सामान्य में करना चाहिये।

(5) सरकार को शिक्षा के क्षेत्र में अधिक मात्रा में धन उपलब्ध कराना चाहिये। 

(6) भारतीय समाज में विकसित दृष्टिकोण का समावेश करते हुए आधुनिक विचारधाराओं के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण उत्पन्न करना चाहिये।

(7) पाठ्यक्रम निर्माताओं उपलब्ध संसाधनों में ही श्रेष्ठतम पाठ्यक्रम का स्वरूप निर्मित करना चाहिये।

(8) शिक्षा को राजनैतिक दोषों से दूर रखने के लिये राजनीतिज्ञों में जागरूकता उत्पन्न करनी चाहिये।


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