छंद की परिभाषा,अंग,प्रकार | हिंदी में छंद | chhand in hindi | छंद के भेद

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Contents

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हमने इस टॉपिक में क्या क्या पढ़ाया है?

(1) छंद की परिभाषा
(2) छंद के अंग
(3) अंगों का वर्णन
(4) छंद के प्रकार





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छंद की परिभाषा | छंद किसे कहते हैं

जब मात्रा अथवा वर्णों की संख्या, विराम, गति, लय तथा तुक आदि के नियमों से युक्त कोई रचना होती है, उसे छन्द अथवा पद्य कहते हैं, इसी को वृत्त भी कहते हैं ।



छंद के अंग

(1) चरण / पद / पाद
(2) वर्ण
(3) मात्रा
(4) दल
(5) संख्या
(6) क्रम
(7) गण
(8) गति / लय
(9) यति / विराम
(10) तुक

छंद के अंग कितने हैं | chhand ke ang

(1) चरण / पाद / पद

किसी छन्द का लक्षण जितने वाक्य अथवा वाक्यांश में एक बार पूरा घटित होता है, उसे उसका एक ‘चरण’ कहते हैं ।

विशेष-

(a) प्रत्येक छन्द में चरणों की संख्या भी निश्चित होती है।
(b) पहले और तीसरे चरण को विषम चरण तथा दूसरे और चौथे चरण को सम चरण कहते हैं।



(2) दल

अधिकतर छन्दों में एक चरण एक पंक्ति में लिखा तथा पढ़ा जाता है। कुछ छन्दों में दो-दो चरण मिलाकर एक पंक्ति में लिखे जाते है । दो चरणों से मिली हुई एक पंक्ति को एक ‘दल’ कहते हैं।

विशेष-चार चरणों वाले छन्द में दो दल बन जाते हैं-

प्रथम दल = प्रथम चरण + द्वितीय चरण
द्वितीय दल = तृतीय चरण + चतुर्थ चरण


(3) गति / लय

छन्दों में मधुरता लाने के लिए एक प्रकार का प्रवाह होना आवश्यक है। गति या प्रवाह से हमारा तात्पर्य लयपूर्ण पाठ-प्रवाह से है जिससे पढ़ने में किसी प्रकार की रुकावट न हो। कविता के प्रवाह को ही गति कहते हैं।

उदाहरण के लिए जब हम पढ़ते हैं- भू में रमी शरद की कमनीयता थी तब पढ़ने (बोलने) में उच्चारण के अवयवों जिह्वा, ओष्ठ आदि को कोई रुकावट नहीं होती किन्तु यदि इसी को-शरद की कमनीयता भू में रमी थी’-ऐसा कर दिया जाये तो पढ़ने में रुकावट आती है (इस रुकावट का स्वयं बोलकर अनुभव किया जा सकता है)। इस प्रकार की रुकावट से प्रवाह भंग हो जाता है और बह उक्ति गतिहीन हो जाने से ‘पद्य कहलाने की अधिकारिणी नहीं रह जाती।



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(4) यति / विराम

किसी छन्द के चरण को पढ़ते समयं बीच में जहाँ कहीं रुक कर विश्राम किया जाता है, उसे यति कहते हैं। चरण के बीच में जहाँ थोड़ी देर रुका जाता है, वहाँ “ , ” चिह्न और चरण के अन्त में जहाँ कुछ अधिक देर रुका जाता है, वहाँ ‘।’ चिह्न लगाया जाता है।



(5) मात्रा

वर्णों के उच्चारण काल को मापने की सबसे छोटी इकाई मात्रा है। किसी स्वर का उच्चारण करने में जितना समय लगता है, उसे एक मात्रा काल कहते हैं । मत्त, कला और कल – ये सब मात्रा के ही
नाम हैं।

छन्द शास्त्र में मात्रा

स्वर हो या व्यंजन, सभी वर्णां के उच्चारण में समय लगता है। व्याकरण शास्त्र के अनुसार प्रत्येक व्यंजन का उच्चारण अंद्द्धमात्रा काल में होता है किन्तु छन्द शास्त्र में मात्रायें केवल स्वरों की मानी जाती है। जब किसी छन्द के चरण में मात्राओं की गिनती करनी हो तो केवल स्वरों की ही मात्राएं गिनी जाती हैं।

विशेष-

ध्यान रहे, छन्द शास्त्र में वर्ण भी स्वरों को ही माना जाता है। वर्णिक छन्दों में वर्णों की गिनती करते समय केवल स्वरों की ही गणना की जाती है।

मात्राओं के आधार पर स्वरों (वर्णों) के भेद

व्याकरण शास्त्र के अनुसार स्वर के दो भेद होते हैं-

1. हस्व स्वर

जिस स्वर के उच्चारण में एक मात्रा का समय लगता है, उसे हस्व स्वर कहते हैं। हिन्दी में चार ह्रस्व स्वर हैं-अ, इ, उ, ऋ।

2. दीर्घ स्वर

जिस स्वर के उच्चारण में दो मात्रा अरथात ह्रस्व से दो गुना समय लगता है, उसे दीर्घ स्वर कहते हैं। हिन्दी में 8 दीर्घ स्वर हैं- आ, ई, ऊ, ऋृ, ए, ऐ, ओ, औ।



(6) वर्ण

छन्दों में मात्राओं तथा वर्णों की गणना तथा वर्णक्रम समझने के लिए लघु-गुरु का ज्ञान बहुत आवश्यक है। निम्नलिखित नियमों पर ध्यान दीजिए-

छंद शास्त्र में वर्ण के दो भाग हैं – लघु वर्ण और गुरु वर्ण

(a) लघु वर्ण

(i) ह्रस्व को छन्द शास्त्र में ‘लघु’ कहते हैं। लघु वर्ण की एक मात्रा गिनी जाती है।

(ii) यदि किसी दीर्घ स्वर का शीघ्रता में हस्व की तरह उच्चारण किया जाये तो उसे लघु माना जाता है और उसकी एक मात्रा गिनी जाती है।

(b) गुरु वर्ण

(i) दीर्घ स्वर को छन्द शास्त्र में ‘गुरु कहते हैं । गुरु वर्ण की दो मात्राएँ गिनी जाती हैं।

(ii) अनुस्वार (-) तथा विसर्ग (:) सहित स्वर को गुरु माना जाता है, उसकी दो मात्राएँ गिनी जाती है; जैसे-कं, क: आदि।

(iii) संयुक्त व्यंजन (स्वरहीन व्यंजन) से पूर्व का लघु वर्ण भी गुरु माना जाता है और उसकी दो मात्रायें गिनी जाती हैं; जैसे-‘चम्पा’ में ‘च’ और ‘कल्याण’ में ‘क’ वर्ण गुरु हैं।

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लघु-गुरु चिह्न-लघु वर्ण के लिए ‘। ‘ चिह्न तथा गुरु वर्ण के लिए ‘s’ चिह्न लगाया जाता है। जैसे- क (।)  था ( s)



(7) संख्या

वर्णों और  मात्राओं की गणना को संख्या कहते हैं।



(8) क्रम

लघु वर्ण तथा गुरु वर्ण के स्थान निर्धारण को क्रम कहते हैं।



(9) गण

मात्रिक छन्दों में केवल मात्राओं की संख्या का नियम होता है किन्तु वर्णिक छन्दों में वर्णों की संख्या का नियम होता है। इनमें लघु-गुरु व्णों का एक क्रम भी निश्चित रहता है ।

वर्णों का क्रम गणों के द्वारा सूचित किया जाता है; अत: वर्णिक छन्दों को जानने के लिए पहले गणों का ज्ञान होना आवश्यक है।

तीन वर्णों के समूह का एक गण होता है जिनमें लघु ‘। ‘ और गुरु ‘s’ वर्णों का निश्चित क्रम होता है। गण आठ होते हैं।

गण का नामपरिभाषासंकेत या मात्रा
भगणआदि का वर्ण गुरुS I I
जगणमध्य का वर्ण गुरुI S I
सगणअंतिम वर्ण गुरुI I S
यगणआदि का वर्ण लघुI S S
रगणमध्य का वर्ण लघुS I S
तगणअंतिम वर्ण लघुS S I
मगणतीनों वर्ण गुरुS S S
नगणतीनों वर्ण लघुI I I
गण के नाम और उनकी मात्रा की टेबल

इन गणों के नाम तथा स्वरूप को समझने के निम्नलिखित सूत्र बहुत उपयोगी सिद्ध होगा ।

गण याद करने का सूत्र

सूत्र- ये मा ता रा ज भा न स ल गा’

इस सूत्र में 10 वर्ण हैं। पहले आठ वर्ण गणों के सांकेतिक नाम हैं-

य  –  यगण।
मा  – मगण।
ता –  तगण ।
रा –  रगण।
ज –  जगण।
भा – भगण I
न  –  नगण ।
स  – सगण ।

सूत्र के अन्तिम दो वर्ण लघु-गुरु के संकेत हैं –
ल – लघु 
गा = गुरु।

अब किसी भी गण के सांकेतिक नाम को लेकर सूत्र में उसके आगे दो और वर्ण जोड़ने पर उसी गण का स्वरूप बन जाता है।

(10) तुक

छंद के चरणान्त की अक्षर मैत्री ( समान स्वर व्यंजन की स्थापना ) को तुक कहते हैं।

तुक दो प्रकार के होते हैं –

(a) तुकांत – तुक वाले छन्दों को तुकांत कहते हैं।

(b) अतुकांत – तुक हीन छन्दों को अतुकांत कहते हैं।




छंद के भेद | chhand ke bhed | छंद के प्रकार | chhand ke prakar

छन्दों के भेद-

(1) मात्रिक छंद
(2)वर्णिक छंद
(3) उभय छंद
(4) मुक्तक छंद


(क) मात्रिक छन्द

ज़िस छन्द की प्रत्येक पंक्ति (चरण) में मात्राओं की निश्चित संख्या का नियम होता है, उसे मात्रिक छन्द कहते हैं।

जैसे दोहा, चौपाई आदि।

(ख) वर्णिक-छन्द

जिस छन्द की प्रत्येक पंक्ति (चरण) में वर्णों की निश्चित संख्या का नियम होता है, उसे वर्णिक छन्द कहते हैं।

जैसे-इन्द्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा आदि।

मात्रिक और वर्णिक छन्दों के तीन-तीन भेद हैं-

(क) सम  (ख) अर्द्धम (ग) विषम

(क) सम : जिस छन्द के चारों चरणों में मात्राओं और वर्णों की संख्या बराबर होती है। उसे सम कहते हैं। जैसे- चौपाई आदि

(ख) अर्द्ध सम : जिस छन्द के प्रथम और तृतीय तथा द्वितीय और चतुर्थ चरणों में मात्राओं अथवा वर्णों की संख्या बराबर होती है उसे अर्द्ध सम कहते हैं। जैसे- दोहा, सोरठा, बरवै आदि

(ग) विषम : जिस छन्द में चार से अधिक छः चरण हों तथा प्रत्येक चरण में मात्राओं अथवा वर्णों की संख्या भिन्न हो, उसे विषम कहते हैं। जैसे- छप्पय, कुण्डलियाँ आदि




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(ग) उभय छन्द

गणों में वर्णों का बँधा होना प्रमुख लक्षण होने के कारण इसे उभय छन्द (वर्णिक वृत्त) कहते हैं। इन छन्दों में मात्रा और वर्ण दोनों की समानता बनी रहती है।

जैसे-पल-पल जिसके मैं पथ को देखती थी,
निशि-दिन जिसके ही ध्यान में थी बिताती । (वर्णिकवृत्त-मालिनी)




(घ)  मुक्तक छन्द

चरणों की अनियमित, असमान, स्वच्छन्द गति और भावानुकूल
यति विधान ही मुक्तक छन्द है।

इन छन्दों के चरणों में मात्रा अथवा वर्णों की संख्या का कोई नियम नहीं रहता है। इसमें केवल पद्य का प्रवाह अपेक्षित है।

पं० सूर्य कान्त त्रिपाठी ‘निराला’ से लेकर
‘नयी कविता’ तक हिन्दी कविता में इसका अत्यधिक प्रयोग हुआ है। आधुनिक कविता इसी मुक्तक छन्द में लिखी जा रही है ।

जैसे- वह तोड़ती पत्थर,
      देखा मैने उसे,
    इलाहाबाद में पथ पर (मुक्तक छन्द)






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