जीवन में खेलकूद का महत्व पर निबंध | importance of sports in life essay in hindi 

समय समय पर हमें छोटी कक्षाओं में या बड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं में निबंध लिखने को दिए जाते हैं। निबंध हमारे जीवन के विचारों एवं क्रियाकलापों से जुड़े होते है। आज hindiamrit.com  आपको निबंध की श्रृंखला में  जीवन में खेलकूद का महत्व पर निबंध | importance of sports in life essay in hindi प्रस्तुत करता है।

Contents

जीवन में खेलकूद का महत्व पर निबंध | importance of sports in life essay in hindi

इस निबंध के अन्य शीर्षक / नाम

(1) शिक्षा में खेल-कूद का स्थान पर निबंध
(2) खेल-कुद और योगासन का महत्त्व पर निबंध
(3) छात्र जीवन में (व्यक्तित्व विकास में) खेलों का महत्व पर निबंध
(4) युवा पीढ़ी और खेल-कूदों का महत्त्व पर निबंध
(5) व्यक्तित्व के विकास में खेलकूद का महत्व पर निबंध

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जीवन में खेलकूद का महत्व पर निबंध | importance of sports in life essay in hindi

पहले जान लेते है जीवन में खेलकूद का महत्व पर निबंध | importance of sports in life essay in hindi की रूपरेखा ।

निबंध की रूपरेखा

(1) प्रस्तावना
(2) छात्र जीवन और खेल-कूद
(3) जीवन में खेलों का महत्त्व
(4) अनुशासन की भावना
(5) सहयोग की भावना
(6) साहस तथा कष्ट सहन करने की शक्ति का उदय
(7) स्पर्द्धा की भावना
(8) अच्छे खेल का चुनाव
(9) उपसंहार 

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जीवन में खेलकूद का महत्व पर निबंध | importance of sports in life essay in hindi


प्रस्तावना

मनुष्य का जीवन एक कर्मयोगी का जीवन है। भारतीय दर्शन के अनुसार मनुष्य के जीवन का मुख्य उद्देश्य आत्मदर्शन अथवा आत्मज्ञान है जिसका तात्पर्य यह है कि प्रत्येक व्यक्ति कुछ विशिष्ट
व्यक्तित्व लेकर इस संसार में आता है और उन गुणों के अनुरूप ही वह अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित करने की चेष्टा करता है।

इसी के द्वारा वह आत्मिक सन्तोष प्राप्त करता है। इसके लिए मनुष्य को एक स्वस्थ एवं सुदृढ़ शरीर तथा मन की आवश्यकता है। शरीर एवं मन को मजबूत एवं कार्यशील बनाये रखने के लिए व्यायाम की भी आवश्यकता है।




छात्र जीवन में खेल-कूद

छात्र जीवन में बालक का मानसिक और शारीरिक विकास होता है इसलिए उसे उचित वातावरण एवं पोषण की आवश्यकता होती है।

मनोवैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया है कि सात से बारह वर्ष की आयु के मध्य जिस व्यक्तित्व का निर्माण होता है, वह जीवनभर प्रभावी सिद्ध होता है।

मूल रूप में उसमें कोई परिवर्तन कठिनाई से ही हो पाता है। छात्रो के सर्वागीण बिकास के लिए खेल-कूद भी उतना ही आवश्यक हैं जितनी पुस्तकीय शिक्षा बौद्धिक विकास के साथ मानसिक और शारीरिक विकास भी महत्वपूर्ण है।



जीवन में खेलों का महत्त्व

कार्य के बाद मनोरंजन का होना जरूरी है। यद केवल काम ही काम के और कोई मनोरंजन न हो तो बहुत ही जल्दी मनुष्य अपने जीवन से ऊँब जाये।

उसका जीवन एक उदास कहानी बनकर रह जाये जीवन के सरस तथा जीवन-शक्ति से भरपूर बनाये रखने के लिए भी क्रीड़ा साधन का अमूल्य योगदान है।

दिनभर एकरस कार्य के बाद जब मनुष्य एक-डेढ़ घंदा मैदान में उतरकर जीवन के दुखों को पूर्णतया भुलाकर सेलकूद में भाग लेता है तो निश्चय ही वह अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाता है। उसमें मानसिक क्रिया-कलाप के बोझ समाप्त हो जाते हैं तथा उसमें पुनः कार्य करने की शक्ति उत्पन्न हो जाती है।

बाल्यकाल तथा छात्र जीवन में खेलकूद का और अधिक महत्त्व बढ़ जाता है। जो विद्यार्थी अथवा प्रौढ़ पुरुष खेलकूद से बचते हैं, वे अनेक रोगों के शिकार तो होते ही हैं, साथ ही वे अपने आपको ऊर्जा रहित एवं अशक्त अनुभव करते हैं।




अनुशासन की भावना

अपने जीवन का निर्माण स्वयं मनुष्य के हाथ में है। जीवन के निर्माण में संयम और अनुशासन का अमूल्य एवं अवर्णनीय स्थान है।

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बिना कुछ विशिष्ट नियमों के पालन के, बिना किसी विशिष्ट पथ का अवलम्बन किये, मनुष्य किसी भी उद्देश्य को प्राप्त करने में सफल नहीं हो सकता।

संयम और अनुशासन के पालन में मनुष्य को अपनी अनेक कामनाओं पर नियन्त्रण करना पड़ता है। इसलिए उसे संय्म
का पालन करने में कष्ट अनुभव होता है।

खेलकूद एवं अन्य व्यायाम हमें संयम और अनुशासन-का पाठ पढाते हैं। हम किसी खेल में भाग लेते हैं तो हमें उसके नियमोपनियमों का पालन करना पड़ता है।

इस प्रकार अनुशासन में रहना हमारा स्वभाव बन जाता है जो जीवन के अन्य सभी क्षेत्रों में हमारे लिए लाभदायक सिद्ध होता है।




सहयोग की भावना

खेलकूद अनुशासन के अतिरिक्त हमें सहयोग की भावना की शिक्षा भी देते है।

प्रत्येक खेल के भीतर हमें अपनी टीम के खिलाड़ियों के साथ मिलकर, अपितु एकात्मक होकर विजय का प्रयास करना पड़ता है।

इस प्रकार इससे सहयोग और संगठन भावना को बल मिलता है जो आगे चलकर राष्ट्रीय एकता एवं देशसेवा जैसी श्रेष्ठ भावनाओं के विकास में सहायक होती है।






साहस तथा कष्ट सहन करने की शक्ति का उदय

खिलाड़ी को केवल खेल की भावना तथा हार-जीत से तटस्थ रहकर श्रेष्ठ प्रदर्शन करने की ओर अपना ध्यान पड़ता है। बास्तव में मनुष्य का सारा जीवन एक क्रीड़ा जगत की भाँति है।

यदि कोई मनुष्य एक बार की पराजय से निराश होकर बैठ जाये तो बहु उन्नति नहीं कर सकता। खेलकूद में भाग लेने से मनुष्य में खिलाड़ी भावना का विकास होता है तथा वह हार से निराश होकर नहीं बैठ जाता, अपितु अपने खेल में सुधार करने के लिए प्रयत्नशील होता है।

इस प्रकार खेलकूद से हमें अपने जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी असफलता के साथ इसी प्रकार का व्यवहार करने की शिक्षा मिलती है।





स्पर्द्धा की भावना

आज के संसार में प्रत्येक क्षेत्र में भारी प्रतियोगिता दिखाई पड़ती है। मनुष्य को अपने जीवन में कुछ व्यक्तियों का सहयोग मिलता है किन्तु अपना स्थान पाने के लिए उसे कड़े संघर्ष से गुजरना पड़ता है।

उसे अपने आपको योग्य सिद्ध करना पड़ता है। खेलकूद में भी इसी प्रकार उसे प्रतियोगिता का सामना करना पड़ता है, उसे अपनी टीम के सदस्यों के साथ प्राण प्रण से सहयोग करना पड़ता है तथा विपक्षी टीम के साथ संघर्ष करके अपने को श्रेष्ठ सिद्ध करना पड़ता है।

कहना न होगा कि ये भावनाएँ उसके स्वभाव का अनिवार्य अंग बन जाती हैं और जीवन भर उसके सभी क्रिया-कलापों में उसकी सहायता करता है। ये जीवन को नये आशावादी दृष्टिकोण से देखने की योग्यता पैदा करती हैं।





अच्छे खेलों का चुनाव

खेलकूद विभिन्न प्रकार के होते हैं। मनुष्य को अपनी रुचि और क्षमता के अनुसार खेलों में भाग लेना चाहिए।

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खेल ऐसा होना चाहिए जो माँसपेशियों को पूर्ण रूप से सशक्त बनाय,हृदय को स्फूर्ति से भर दे तथा मस्तिष्क को ताजगी दे। इस दृष्टि से फुटबाल, बालीबाल, कबड्डी, दौड़,हाकी, टेनिस आदि अच्छे खेलों में गिने जा सकते हैं।

खेल आयु के अनुसार होना चाहिए। वृद्धावस्था में घूमना ही अच्छा खेल है या फिर शतरंज जैसे खेल हो सकते हैं, जिनमें बद्धि की कसरत होती है।

बचपन में दौड़ना तथा हुल्के-फुल्के खेल अच्छे रहते हैं। युवको के लिए हाकी, क्रिकेट, फुटबाल जैसे खेल उपयुक्त होता है।






उपसंहार

आजकल सरकार की ओर से खेलकूद की ओर काफी ध्यान दिया जा रहा है।

हर्ष का विषय है कि अभिभावकों का ध्यान भी अंब बालकों के खेलकूद की ओर जाने लगा है यदि सभी लोग खेलकूद में नियमित रूप से भाग लें तो निःसन्देह देश और समाज को सुदृढ़ और स्वस्थ नागरिक मिलेंगे तथा व्यक्तिगत,सामाजिक, आर्थिक, वैचारिक आदि सभी क्षेत्रों में अबाध प्रगति होगी; अतः श्रेष्ठ जीवन एवं स्वास्थ्य हेतु खेल परमावश्यक है-

“खेलो मिल सहयोग से, मिलती मुक्ति कुरोग से।
प्रेम भरा अनुशासन है, खेल सुसंयम शासन है। ”


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