बीटीसी एवं सुपरटेट की परीक्षा में शामिल शिक्षण कौशल के विषय आरंभिक स्तर पर भाषा का पठन लेख एवं गणितीय क्षमता का विकास में सम्मिलित चैप्टर पठन के उद्देश्य / पठन शिक्षण के उद्देश्य आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com का टॉपिक हैं।
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पठन के उद्देश्य / पठन शिक्षण के उद्देश्य
Pathan ke uddeshya / पठन शिक्षण के उद्देश्य
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पठन के उद्देश्य / पठन शिक्षण के उद्देश्य
पठन के उद्देश्यों के अन्तर्गत तथ्यों का समावेश किया जाता है जो कि भाषायों दक्षता से सम्बन्धित होते हैं। एक शिक्षक से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपने छात्रों को पठन के उद्देश्यों का ज्ञान प्रदान करते हुए उनमें पढ़ने की कुशलता का विकास करे। इसलिये प्रशिक्षण काल में ही शिक्षकों को छात्राध्यापक के रूप में पठन कौशल का ज्ञान प्रदान किया जाता है।
इस प्रकार एक छात्राध्यापक शिक्षक बनने के उपरान्त दो प्रकार से समाज एवं राष्ट्र का भला कर सकेगा। प्रथम वह अपने विद्यालय के छात्र-छात्राओं में समसामयिक विषयों के समझने एवं अपनी भूमिका सम्बन्धी कुशलता विकसित कर सकेगा। द्वितीय वह प्रमुख समाचार पत्र एवं पत्रिकाओ में समसामयिक विषयों एवं समस्याओं पर पठन एवं लेखन करके तथा सुझाव प्रस्तुत करके समाज एवं राष्ट्र का विकास कर सकेगा। इस प्रकार छात्राध्यापक को प्रशिक्षण काल में ही पठन उद्देश्योंबसे सम्बद्ध करने का प्रयास किया गया है। पठन के प्रमुख उद्देश्यों को निम्नलिखित रूप में स्पष्ट किया जा सकता है-
1. लेखन कौशल का विकास-पठन का प्रमुख उद्देश्य लेखन कौशल का विकास करना है। इसका उद्देश्य अन्य शैक्षिक विषयों में पठन एवं लेखन के साथ साथ समसामयिक विषयों पर पठन की कुशलता विकसित करना है। पठन का उद्देश्य व्यापक होता है। इसलिये पठन का क्षेत्र मात्र शैक्षिक विषयों तक सीमित नहीं होना चाहिये वरन् उन सभी विषयों पर पठन करना चाहिये जो कि समसामयिक मुद्दों एवं समस्याओं से सम्बद्ध होते हैं। इन विषयों पर पठन की योग्यता छात्राध्यापकों में प्रशिक्षण काल में ही विकसित कर देनी चाहिये जिससे वे भावी जीवन में इस योग्यता का लाभ उठा सके तथा सर्वोत्तम लेखक एवं पाठक बन सकें।
2. पठन कौशल का विकास-पठन का द्वितीय उद्देश्य पठन कौशल का विकास करना है। अत्राध्यापक द्वारा जब समूह में किसी पत्रिका या पत्र में प्रकाशित अनुच्छेद का पठन किया जायेगा तो उसको पठन करने की विधि समूह के छात्रों से अच्छी भी हो सकती है तथा निम्नस्तरीय भी हो सकती है। समूह में एक दूसरे के द्वारा पठन की विधियों की समीक्षा की जाती है। इससे एक सारगर्भित पठन विधि या तकनीक की खोज होती है। इसी प्रकार प्रत्येक छात्राध्यापक में पठन की सर्वोत्तम योग्यता विकसित होती है। इस योग्यता के माध्यम से वह समसामयिक विषयों के सार तत्त्व को समझकर उन पर अपने मौखिक एवं लिखित विचार प्रस्तुत करने में सक्षम बन जाता है।
3. समसामयिक विषयों का ज्ञान-पठन का प्रमुख उद्देश्य समसामयिक विषयों का ज्ञान प्राप्त करना है। एक छात्राध्यापक को अपनी परिवेशीय एवं समसामयिक घटनाओं की व्यापक समझ होनी चाहिये तब ही वह अपने दायित्वों को पूर्ण कर सकता है, जैसे-एक छात्राध्यापक शिक्षण कला में पूर्ण निपुण है परन्तु उसको इस विधि का ज्ञान नहीं है कि विद्यालय में शत प्रतिशत नामांकन किस प्रकार होगा। इस स्थिति में विद्यालय में जब छात्र ही नहीं होंगे तो वह किसका शिक्षण करेगा। अतः छात्राध्यापकों को सम सामयिक विषयों का ज्ञान प्रदान करने के लिये ही पठन से जोड़ा गया है।
4. सामाजिक विषयों का ज्ञान-छात्रों को पठन कौशल से सम्बद्ध करने के मूल में प्रमुख उद्देश्य उनको सामाजिक विषयों का ज्ञान प्रदान करना है क्योंकि उन्हें अपने भावी जीवन पें सामाजिक अपेक्षाओं को पूर्ण करने वाली भूमिका का निर्वहन करना पड़ता है। विद्यालय में अभिभावक अपने बालकों को इसलिये भेजते हैं कि वे समसामयिक विषयों का ज्ञान प्राप्त कर सकें तथा सामाजिक कुशलता प्राप्त कर सके। इस कार्य को दी शिक्षक पार सकता है जिसने अपने प्रशिक्षण काल में पठन से सम्बद्ध होकर समसायिक विषयों के माध्यम से
सामाजिक विषयों का ज्ञान प्राप्त किया हो। इस प्रकार शिक्षकों एवं छात्रों को सामाजिक विषयों का ज्ञान प्रदान करना पठन का प्रमुख उद्देश्य है।
5. सिद्धान्त एवं व्यवहार का समन्वयन-पठन के माध्यम से छात्रों में सैद्धान्तिक ज्ञान को व्यवहार में प्रयोग करने की क्षमता विकासत होती है तथा विविध कौशलों का ज्ञान प्राप्त होता है; जैसे-लेखन कौशल, पठन कौशल, जीवन कौशल एवं शिक्षण कौशल आदि। जब छात्र विविध विषयों पर पठन करता है तो जो भी ज्ञान उसके पास सिद्धान्त रूप में है उसका लाभ सम्पूर्ण समाज को प्राप्त होता है। इस प्रकार छात्रों को सैद्धान्तिक ज्ञान को व्यावहारिक रूप में प्रयोग करना इसके माध्यम से सिखाया जाता है जिससे वह अपने भावी जीवन में पठन का उपयोग सर्वोत्तम रूप में कर सके।
6. पर्यावरणीय सन्तुलन का ज्ञान-वर्तमान समय की प्रमुख समस्या पर्यावरणीय असन्तुलन है जिसका प्रमुख कारण मानवीय त्रुटियाँ एवं औद्योगिक विकास है। यह एक समसामयिक विषय भी है जिस पर पत्र एवं पत्रिकाओं में प्रकाशन होता रहता है। शिक्षक एवं छात्रों को इस विषय के पठन से सम्बद्ध करके पर्यावरणीय सन्तुलन की स्थिति उत्पन्न की जा सकती है। प्रथम शिक्षक द्वारा अपने छात्रों को पर्यावरणीय संरक्षण एवं सन्तुलन के बारे में सिखाया जाता है। द्वितीय लेखों एवं अनुच्छेदों के माध्यम से समाज में पर्यावरणीय सन्तुलन के प्रति जागरूकता उत्पन्न की जाती है। इसमेश्य को ध्यान में रखकर ही छात्राध्यापकों एवं छात्रों को पठन से सम्बद्ध किया जाता है।
7.सृजनात्मकता का विकास-छात्र द्वारा जब पत्रिकाओं एवं पत्रों में विविध समसामयिक विषयों से सम्बन्धित समस्याओं एवं स्थितियों के बारे में पढ़ा जाता है तो यह उन समस्याओं के समाधान हेतु विविध प्रकार वो सुझाव उस पत्र या पत्रिका के माध्यम से प्रस्तुत करता है। वह उन उपार्यों एवं परिकल्पनाओं की रचना करता है जिनसे विविध समसामयिक समस्याओं का समाधान हो सकता है। इस प्रकार पठन का उद्देश्य छात्रों में सृजनात्मकता का विकास करना है।
8. चिन्तन शक्ति का विकास-छात्रों द्वारा पत्र एवं पत्रिकाओं में प्रकाशित विविध प्रकार की समसामयिक घटनाओं के बारे में अध्ययन किया जाता है तथा लेखन कार्य किया जाता है तो उनम स्वाभाविक रूप से सृजनात्मक चिन्तन शक्ति का विकास सम्भव होता है, जैसे-एक छात्र समूह ने शत-प्रतिशत नामांकन पर एक लेख पढ़ा। छात्रों ने पृथक्-पृथक् रूप में इस लेख को पढ़कर अपने अपने विचार प्रस्तुत किये। एक दूसरे के विचार से सहमति एवं असहमति व्यक्त करते हुए एक सारगर्भित निष्कर्ष को प्राप्त किया गया।
9. अनुसन्धानात्मक प्रवृत्ति का विकास-पत्र-पत्रिकाओं के पठन के माध्यम से जब पत्रों को अनेक प्रकार की समसामयिक समस्याओं का ज्ञान प्राप्त होता है तो वे अपनी बुद्धिमत्ता का उपयोग करके उस समस्या का समाधान सरल एवं स्वाभाविक रूप में करना चाहते हैं। इसके लिये वह विविध प्रकार के प्रयोग करते हैं तथा सार्थक परिणाम प्राप्त होने पर उनको प्रस्तुत करते हैं। इसी क्रम में वे अनेक अनुसन्धानों के परिणामों का अध्ययन भी करते जो कि उस विषय से सम्बन्धित होते है। इस प्रकार पठन से छात्रों में अनुसन्धानात्मक प्रवृत्ति का विकास सम्भव होता है।
10. सामाजिक विकास का उद्देश्य-छात्राध्यापकों द्वारा जब समसामयिक विषयों का अध्ययन पत्र एवं पत्रिकाओं के माध्यम से किया जाता है तो छात्राध्यापकों के समूह द्वारा सभी समसामयिक समस्याओं का समाधान किया जाता है। इससे छात्राध्यापकों में एक ओर समस्या समाधान की योग्यता विकसित होती है तो दूसरी ओर सामाजिक समस्या को समाधान सम्भव होता है। इस प्रकार छात्राध्यापक सामाजिक विकास में अपनी भूमिका का निर्वहन करते हैं।
11. सर्वागीण विकास का उद्देश्य-विविध प्रकार की पत्रिकाओं एवं पत्रों के पठन के माध्यम से छात्रों को विविध प्रकार के ऐसे क्षेत्रों का ज्ञान प्राप्त होता है जिन क्षेत्रों में कम विकास सम्भव होता है, जैसे-वर्तमान समय में शैक्षिक विकास चारों ओर हो रहा है परन्तु मानवता एवं नैतिकता का विकास कम हो रहा है जिससे संघर्ष एवं तनाव की समस्या उत्पन्न हो रही है तथा विकास के सर्वांगीणता के लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा रहा है। इस प्रकार के क्षेत्रों को विकसित करके छात्र का स्वयं का तथा समाज के प्रत्येक व्यक्ति का सर्वांगीण विकास होता है।
12. शैक्षिक विकास का उद्देश्य-समसामयिक विषयों के पठन का प्रमुख उद्देश्य शैक्षिक विकास को समझा जाता है। एक छात्र समूह द्वारा जब विविध प्रकार के शैक्षिक मुद्दों के बारे में ज्ञान प्राप्त किया जाता है तो इन शैक्षिक मुद्दों पर छात्रों द्वारा अपने विचार प्रकट किये जाते हैं। इसके साथ शैक्षिक समस्याओं का समाधान भी प्रस्तुत किया जाता है। इस प्रकार समाचार पत्र एवं पत्रिकाओं के समसामयिक विषयों के पठन द्वारा शैक्षिक विकास की प्रक्रिया का सम्पत्र किया जाता है। यह शैक्षिक विकास साधौमिक रूप में होता है।
पठन की उपयोगिता
पठन एक महत्त्वपूर्ण प्रवृत्ति है जिसके माध्यम से पढ़ने और पढ़कर समझने के कौशल का विकास होता है। पठन से आशय है अपनी रुचि के अनुसार अपनी इच्छा से पढ़ना। इसमें विद्यालयी पाठ्यक्रम की पाठ्य-पुस्तकों के अतिरिक्त अन्य साहित्यक रचनाओं एवं पत्र पत्रिकाओं के अध्ययन को सम्मिलित किया जाता है। स्वाध्याय के माध्यम से पठन क्षमता का विकास तो होता ही है, साथ में विभिन्न विषयों एवं तथ्यों के बारे में जानकारियाँ भी मिलती हैं।
इसलिये पठन की प्रवृत्ति को भाषायी कौशलों के विकास में बहुत उपयोगी माना जाता है। इसके माध्यम से शब्दों, वर्णो, मात्राओं, वाक्यों एवं व्याकरणिक विषयों का ज्ञान होता है जिससे भाषायी कौशलों में वृद्धि होती है। एक शिक्षक को सदैव अपने छात्रों में पठन को प्रवृत्ति के विकास के लिये प्रयास करने चाहिये। उसे विद्यालयी पाठ्य-पुस्तकों के अतिरिक्त छात्रों को अन्य साहित्यिक रचनाओं के अध्ययन की प्रेरणा प्रदान करनी चाहिये।
शिक्षक को स्वयं भी पतन की प्रवृत्ति को अपनाना चाहिये जिससे वह विभित्र विषयों के बारे में आवश्यक जानकारियाँ प्राप्त कर सके और इन जानकारियों को अपने छात्रों के लिये भी सम्प्रेषित कर सके। पठन के माध्यम से छात्र अपनी बहुत-सी समस्याओं को सुलझा लेते हैं। इस प्रकार पठन की प्रवृत्ति छात्र एवं अध्यापक दोनों के लिये उपयोगी है। जनसामान्य में भी पठन की प्रवृत्ति बहुत महत्वपूर्ण एवं उपयोगी स्थान रखती है। पठन के माध्यम से व्यक्ति अपने ज्ञान के भण्डार में वृद्धि करता है और भाषायी कौशलों में निपुण हो जाता है।
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