सामाजिक अध्ययन शिक्षण में परीक्षाएं एवं प्रश्नों के प्रकार | CTET SOCIAL STUDIES PEDAGOGY

दोस्तों अगर आप CTET परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो CTET में 50% प्रश्न तो सम्मिलित विषय के शिक्षणशास्त्र से ही पूछे जाते हैं। आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com आपके लिए सामाजिक विज्ञान विषय के शिक्षणशास्त्र से सम्बंधित प्रमुख टॉपिक की श्रृंखला लेकर आई है। हमारा आज का टॉपिक सामाजिक अध्ययन शिक्षण में परीक्षाएं एवं प्रश्नों के प्रकार | CTET SOCIAL STUDIES PEDAGOGY है।

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सामाजिक अध्ययन शिक्षण में परीक्षाएं एवं प्रश्नों के प्रकार | CTET SOCIAL STUDIES PEDAGOGY

सामाजिक अध्ययन शिक्षण में परीक्षाएं एवं प्रश्नों के प्रकार | CTET SOCIAL STUDIES PEDAGOGY
सामाजिक अध्ययन शिक्षण में परीक्षाएं एवं प्रश्नों के प्रकार | CTET SOCIAL STUDIES PEDAGOGY

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सामाजिक अध्ययन की परीक्षाएं

सामाजिक अध्ययन विषय में लिखित परीक्षाओं के प्रश्न-पत्रों में जिन प्रश्नों की रचना की जाती है उनके सामान्यतया तीन रूप देखने को मिलते हैं और इसी आधार पर लिखित परीक्षाओं के तीन प्रकार माने जाते हैं-
1. निबंधात्मक परीक्षाएं (Essay Type Examinations)
2. लघु उत्तरात्मक परीक्षाए (Short Answer Examinations)
3. वस्तुनिष्ठ या वस्तुगत परीक्षाएं (Objective Type Examinations)

निबन्धात्मक परीक्षाएं

इन परीक्षाओं का अर्थ ऐसी परीक्षा प्रणाली से है जिसके अन्तर्गत छात्र पाठ्यक्रम के कई प्रश्न के उत्तर निश्चित समय के अन्दर निबन्ध रूप में लिखकर देते हैं। इनमें प्रश्नों के उत्तर अधिकतर लम्बे होते हैं। इस प्रकार की परीक्षाएं लिखित परीक्षाओं के पुराने और परंपरागत रूप को प्रदर्शित करती हैं।

निबन्धात्मक परीक्षाओं के गुण

1• सभी विषयों के लिए उपयुक्त
2• भाषा तथा शैली में सुधार
3• प्रश्न-पत्र बनाने में सुविधा
4• तर्कपूर्ण ढंग से उत्तर देने की पूर्ण स्वतन्त्रता
5• लेखन प्रशिक्षण पर बल देती हैं।

उदाहरण
1. प्राकृतिक संसाधनों या स्त्रोतों से आप क्या समझते हैं? भारत में उपलब्ध प्राकृतिक साधनों का विस्तार से उल्लेख कीजिए।

2. सन् 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के प्रमुख कारणों, घटनाओं तथा असफलताओं पर प्रकाश डालिए।

निबन्धात्मक परीक्षाओं के दोष

1• रटने की प्रवृत्ति पर बल देती हैं।
2• मूल्यांकन करना परीक्षकों के लिए टेढ़ी खीर सिद्ध होता है।
3• परिणामों में विश्वनीयता एवं वैधता की कमी।
4• निदानात्मक एवं उपचारात्मक शिक्षा के लिए प्रयोग में कठिनाई
5• योग्यता मापन हेतु स्पष्ट उद्देश्य की कमी।

लघु-उत्तरात्मक परीक्षाएं

इस प्रकार की परीक्षाओं में ऐसे प्रश्न पूछे जाते हैं जिनसे उत्तर निबंधात्मक परीक्षाओं की तुलना में काफी लघु यानी छोटे होते हैं। उत्तर कितने छोटे लिखे जाएं इसके लिए प्रश्न में ही निर्देश दे दिए जाते हैं जैसे-ध्यान रहे आपका उत्तर 100-150 शब्दों में या 15-20 पंक्तियों से अधिक न हो। सकारात्मक शब्दावली में जैसे-“निम्न प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर दीजिए। ‘इस प्रकार का निर्देश दिया जाना उचित रहता है।

उदाहरण:
1. सूर्य ग्रहण कैसे और क्यों होता है?
2. राष्ट्रपति का चुनाव हमारे देश में कैसे होता है?

लघु उत्तरात्मक परीक्षाओं के गुण

1• इस प्रकार के प्रश्नों द्वारा छात्रों से तर्कसम्मत, सटीक एवं संक्षिप्त उत्तर की अपेक्षा की जाती है।
2• इन प्रश्नों के उत्तर अनियंत्रित एवं स्वच्छन्द नहीं बल्कि काफी सीमाबद्ध एवं लक्ष्यबद्ध होते हैं।
3• लघु उत्तरात्मक परीक्षाएं में अधिक विश्वसनीयता, वैधता तथा वस्तुनिष्ठता पाई जाती है।
4• निदानात्मकता की दृष्टि से लघु-उत्तरात्मक परीक्षाएं काफी सही सिद्ध होती हैं।
5• लघु-उत्तरात्मक परीक्षाओं में काफी सीमा तक व्यापकता या समुचितवरणता (Comprehensiveness) का गुण पाया जाता है।

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वस्तुनिष्ठ परीक्षाएं

इस प्रकार की परीक्षाओं में जो प्रश्न-पत्र बनाया जाता है उसका आकार तथा लंबाई निबंधात्मक परीक्षा या लघु-उत्तरात्मक परीक्षाओं के लिए बनाए गए प्रश्न-पत्र से काफी अधिक होती है। प्रश्नों की रचना इस प्रकार की जाती है कि उनके द्वारा बहुत ही सीमित शब्दों जैसे ‘हां’ या ‘नहीं’, रिक्त स्थान पूर्ति या किसी एक दो-शब्दों, अक्षरों या क्रमसंख्या आदि के लिखने से ही अपेक्षित उत्तर दिया जा सके। विविधता की दृष्टि से भी इनमें कई तरह की प्रश्न शैलियों को अपनाकर विद्यार्थियों के मानसिक विकास, सूझ-बूझ तथा ज्ञान और कौशल संबंधी उपलब्धियों के मूल्यांकन में काफी सहायता मिल सकती है।

वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं में प्रयुक्त वस्तुगत प्रश्नों के प्रकार

(1) साधारण प्रत्यास्मरण या स्मृति वाले प्रश्न

इस प्रकार के प्रश्न बहुत ही स्पष्ट होते हैं और उनका एक ही उत्तर होता है जो किसी एक शब्द जैसे नाम, तिथि आदि के द्वारा दिया जाता है जैसे-
(i) भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम किस वर्ष लड़ा गया? ( )
(ii) भारत में सबसे अधिक तांबा किस राज्य में मिलता है? ( )

(2) रिक्त स्थान पूरक प्रश्न

इस प्रकार के वस्तुगत प्रश्नों में कुछ कथन दिए होते हैं जिसे जानबूझकर रिक्त स्थान छोड़ दिए जाते हैं और विद्यार्थियों से अपेक्षा की जाती है कि वे सामाजिक विज्ञान में प्राप्त अपने ज्ञान का पुनःस्मरण कर इन रिक्त स्थानों की पूर्ति करें।
जैसै-
(i) भारत में सबसे अधिक वर्षा………नामक स्थान पर होती है।
(ii) इस समय भारतीय संघ में कुल……….राज्य तथा…………… केंद्र शासित प्रदेश हैं।

(3) सत्य और असत्य का निर्णय करने वाले प्रश्न

इस प्रकार के प्रश्नों में जो कथन दिए जाते हैं उनमें से कुछ कथन सत्य होते हैं तथा कुछ असत्य। विद्यार्थियों को यह कहा जाता है कि वे पढ़े हुए तथ्यों की अपनी पहचान करने की योग्यता के आधार पर यह निर्णय करें कि इनमें से कौन से कथन सत्य हैं और कौन से असत्य।
जैसे-
(i) मंगल पांडे को 29 मार्च, 1857 ई. को फांसी दी गई। (सत्य/असत्य)
(ii) भारत विश्व में मैंगनीज का सबसे प्रमुख उत्पादक देश है। (सत्य/असत्य)

(4) बहु-विकल्पीय प्रश्न

इस प्रकार के प्रश्नों में एक ही प्रश्न के कई उत्तर या विकल्प दिए जाते हैं जिनमें कोई एक ही ठीक होता है, शेष गलत। विद्यार्थी को ठीक उत्तर का पता लगाना होता है।
जैसे-

(i) केरल की राजधानी कौन-सी है?
(अ) विशाखापट्टनम
(ब) त्रिवेंद्रम
(स) एर्नाकुलम
(द) रामेश्वरम
(ii) भाखड़ा नांगल बांध……….प्रदेश में स्थित है।
(अ) हरियाणा
(ब) उत्तर प्रदेश
(स) पंजाब
(द) हिमाचल

(5) मिलान करने वाले प्रश्न

इस प्रकार के प्रश्नों में दो खाने बना लिए जाते हैं। एक खाने में कुछ प्रश्न होते हैं तथा दूसरे खाने में उत्तर विद्यार्थियों को दिए हुए प्रश्नों से उनके ठीक उत्तर का मिलान करके प्रश्न के सामने ठीक उत्तर लिखने के लिए कहा जाता है।
जैसे-

खनिज                         सबसे अधिक उत्पादक प्रांत

A पेट्रोलियम                          I झारखंड
B लोहा                               II महाराष्ट्र
C मैंगनीज                          III उड़ीसा
D सोना                             IV राजस्थान
E तांबा                              V गुजरात

(6) समय ज्ञान संबंधी प्रश्न

इस प्रकार के प्रश्नों में कुछ घटनाएं दी जाती हैं। ये घटनाएं समय की दृष्टि से किस क्रम से घटित हुई, विद्यार्थियों को इनका कालक्रम बताना होता है। जैसे-
नीचे कुछ ऐतिहासिक घटनाएं दी गई हैं। इन्हें काल-क्रम के अनुसार 1, 2, 3, 4 नं. देकर व्यवस्थित कीजिए-
1. सम्राट अशोक की कलिंग विजय
2. हल्दीघाटी का युद्ध
3. प्लासी का युद्ध
4. संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना
5. सिकंदर का भारत पर आक्रमण

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वस्तुनिष्ठ परीक्षा के गुण

1• वस्तुनिष्ठ परीक्षाएं सम्पूर्ण विषय क्षेत्र का मापन करती हैं।
2• वस्तुनिष्ठ परीक्षाएं बालकों के तथ्यात्मक ज्ञान की जांच करती हैं।
3• इन परीक्षाओं के अंकन में कम समय लगता है।
4• इन परीक्षाओं के लेने में कम सम लगता है जिस कारण बालक तथा शिक्षक दोनों ही पसन्द करते हैं।
5• बालकों के लेख, शैली, विवेचन, व्याख्या तथा तर्क आदि शक्तियों पर इन परीक्षाओं का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

वस्तुनिष्ठ परीक्षा के दोष

1• वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं के प्रश्नों का निर्माण केवल योग्य, अनुभवी तथा कुशल व्यक्ति ही कर सकते हैं। इसलिए प्रश्नपत्रों का निर्माण बहुत कठिन होता है। 2• वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं द्वारा मानसिक योग्यताओं का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता।
3• वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं में वैयक्तिक विभिन्नता के सिद्धान्त की अवहेलना होती है जिसके परिणामस्वरूप मानसिक क्रिया यान्त्रिक बन जाती है।
4• प्रश्नों के उत्तर छोटे होने के कारण न तो बालक अपने विचार क्रमिक रूप में संगठित कर पाते हैं और न ही उनमें कल्पना तथा मौलिक चिन्तन का विकास होता है।

सामाजिक विज्ञान में एक आदर्श जांचपत्र की विशेषताएं

सामाजिक विज्ञान के शिक्षण में मूल्यांकन के लिए जिस तकनीक, परीक्षण अथवा जांचपत्र का प्रयोग किया जाए, उसमें क्या विशेष गुण अथवा विशेषताएं होनी चाहिए ताकि उसे विषय के उपयुक्त मूल्यांकन के लिए उचित ठहराया जा सके। इस दृष्टि से अगर विचार किया जाए तो एक अच्छे जांचपत्र या मूल्यांकन तकनीक में निम्न गुणों एवं विशेषताओं का पाया जाना ठीक रहता है-

1. यथार्थताः मूल्यांकन के लिए काम आने वाली तकनीक या प्रश्न-पत्र आदि की यथार्थता का अर्थ है कि उसके द्वारा वही जांचा या मापा जाए जिसे जांचने या मापने के लिए उसे प्रयुक्त किया जा रहा है। जांचपत्र को यथार्थ तभी कहा जाएगा जबकि उसके द्वारा हम सामाजिक विज्ञान विषय से संबंधित ज्ञान, समझ, कौशल, रुचि तथा अधिवृत्तियों आदि का मूल्यांकन करें, किसी अन्य विषय जैसे-भाषा संबंधी योग्यता, ड्राइंग संबंधी कुशलता एवं सामान्य वृद्धि आदि का नहीं।

2. विश्वसनीयताः विश्वसनीयता का अर्थ हमारे विश्वास से है जो हम किसी भी मूल्यांकन या परीक्षण में रखते हैं। यह विश्वास तभी हो सकता है जबकि मूल्यांकन तथा परीक्षण के परिणामों में एकरूपता रहे। विद्यार्थी की योग्यता और गुणों का जो भी प्रयुक्त तकनीक द्वारा एक बार मूल्यांकन कर दिया जाये उसमें किसी अन्य परीक्षक द्वारा मूल्यांकन करने से परिणाम में अंतर न आ तभी उस मूल्यांकन तकनीक को विश्वसनीय कहा जा सकता है।

3. वस्तुनिष्ठता: एक अच्छे जांच पत्र या मूल्यांकन तकनीक का वस्तुनिष्ठ होना बहुत जरूरी है। अगर किसी परीक्षा या मूल्यांकन में विद्यार्थी की रुचि-अभिरुचि, पसंद-नापसंद, भावनाओं तथा व्यक्तिगत दृष्टिकोण का प्रभाव उसके उत्तर देने या अपनी उपलब्धि का मूल्यांकन करने में न पड़े और इसी तरह परीक्षक की रुचि, दृष्टिकोण, भावनाओं, मानसिक अवस्था तथा व्यक्तिगत द्वेष, पक्षपात आदि का प्रभाव विद्यार्थियों को अंक देने, उनका मूल्यांकन करने पर न पड़े तो वह मूल्यांकन वस्तुनिष्ठ कहलाता है।

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4. समुचितवरण: एक अच्छे प्रश्न-पत्र के मूल्यांकन में यह गुण होना चाहिए कि वह जिस विषय के उद्देश्यों की प्राप्ति की जांच कर रहा है उन सभी प्रकार के उद्देश्यों की जांच उसके द्वारा भली भांति हो सके। सामाजिक विज्ञान में जितने पाठ-प्रकरण पढ़ाए जा चुके हैं, जितने अधिगम अनुभव प्रदान किए जा चुके हैं तथा परिणामस्वरूप जिस-जिस प्रकार के ज्ञान, अवबोध कौशल, रुचि तथा गुण आदि के विकास की विद्यार्थियों से आशा की जाती है। उन सबके
मूल्यांकन को ही प्रयुक्त मूल्यांकन तकनीक तथा जांच प्रक्रिया में पूरा-पूरा स्थान मिलना चाहिए।

5. निदानात्मकताः एक अच्छे मूल्यांकन या जांच-पत्र में निदानात्मकता का गुण भी पाया जाता है। इसके परिणामों की सहायता से यह निदान करने में आसानी होती है कि विद्यार्थियों को सामाजिक विज्ञान की किस विषय-वस्तु या अधिगम अनुभवों को ग्रहण करने में क्या कठिनाई है तथा उनमें अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन लाने की दिशा में क्या-क्या अड़चनें हैं? इस प्रकार का निदान उपचारात्मक शिक्षण के उपायों की तलाश में काफी सहायक सिद्ध हो सकता है ताकि विद्यार्थियों के सामाजिक विज्ञान शिक्षण में आने वाली कठिनाइयों का व्यक्तिगत तथा सामूहिक रूप से निराकरण कर उन्हें विषय शिक्षण के उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायता की जा सके।

6. व्यावहारिकता-एक अच्छा मूल्यांकन या जांच-पत्र प्रयोग और उपयोग की दृष्टि से पूरी तरह व्यवहार में लाने योग्य और सुविधाजनक होता है। व्यावहारिकता के इस गुण में निम्न बातें आती हैं-
(i) निर्माण में आसानी
(ii) प्रयोग करने में आसानी
(iii) अंक लगाने तथा परिणाम निकालने में आसानी

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अभ्यास प्रश्न (बहुविकल्पीय प्रश्न ) –

1. सामाजिक अध्ययन परीक्षण को विशेषताएं हैं
(a) वस्तुनिष्ठता
(b) विश्वसनीयता
(c) व्यवहारिकता
(d) उपरोक्त सभी

2. निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा कथन सामाजिक अध्ययन शिक्षण की निबन्धात्मक परीक्षाओं की विशेषता से सम्बन्धित नहीं है।

(a) निबन्धात्मक परीक्षाओं के द्वारा विद्यार्थी को तर्कपूर्ण ढंग से उत्तर देने की पूर्ण स्वतन्त्रता रहती है।
(b) निबन्धात्मक परीक्षाओं द्वारा विद्यार्थी को अपनी भाषा एवं शैली को सुधारने के उचित अवसर प्राप्त होते हैं।
(c) निबन्धात्मक परीक्षायें सभी विषयों के लिए उपयुक्त हैं।
(d) निबन्धात्मक परीक्षाएं रटने की प्रवृत्ति पर बल देती है जिससे शिक्षकों को सुविधा रहती है।

3. मुक्त उत्तर वाले प्रश्न शिक्षार्थियों में
(a) विषय को समझने में रुचि उत्पन्न नहीं करते हैं।
(b) आलोचनात्मक चिन्तन का विकास करते हैं।
(c) रटने की प्रवृति पर बल देते हैं।
(d) उपरोक्त सभी कथन सत्य हैं।

उत्तरमाला –1. (d)       2. (d)          3. (b)   

                             ◆◆◆ निवेदन ◆◆◆

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