बालक का शारीरिक विकास physical development of child

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बालक का शारीरिक विकास physical development of child

शारीरिक विकास, physical development,विभिन्न अवस्थाओं में शारीरिक विकास दोस्तों आइये जानते है।बालक में मुख्य रूप से कितने विकास होते हैं।

बालक में कुल 6 प्रकार के विकास होते हैं। हम शिक्षा मनोविज्ञान में शारीरिक विकास,मानसिक विकास,सामाजिक विकास,भाषा विकास,नैतिक विकास,संवेगात्मक विकास आदि को मुख्य रूप से पढ़ते है।

तो आइये आज जानते है की शारीरिक विकास क्या है,शैशवावस्था में शारीरिक विकास,बाल्यावस्था में शारीरिक विकास,किशोरावस्था में शारीरिक विकास कैसे होता है।

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शारीरिक विकास का अर्थ meaning of physical development

मानव जीवन का प्रारंभ उसके पृथ्वी पर जन्म लेने से पहले ही प्रस्फुटित होने लगता है।

वर्तमान समय में गर्भधारण मानव जीवन का प्रारंभ माना जाता है।

मां के गर्भ में बच्चा 9 माह तक विकसित होकर परिपक्वावस्था प्राप्त करता है।

अत: शारीरिक दशा का विकास गर्भकाल से ही निश्चित किया जा सकता है।

विभिन्न अवस्थाओं में शारीरिक विकास || physical development in different stages

मानव की विभिन्न अवस्थाओं में शारीरिक विकास को निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-

भ्रूणावस्था में शारीरिकविकास (Physical development in embryo stage)

शुक्राणु तथा डिम्ब के संयोग से गर्भ स्थापित होता है।

भ्रूणावस्था में बालक का शारीरिक विकास तीन अवस्थाओं में विकसित होकर पूर्ण होता है।

(1) डिम्बावस्था

इस अवस्था में पहले डिम्ब उत्पादन होता है। इस समय अण्डे के आकार का विकास होता है। उत्पादन कोष में परिवर्तन होने लगते हैं।

इस अवस्था में अनेक रासायनिक क्रियाएँ उत्पन्न होती हैं। जिससे कोषों में विभाजन होना प्रारम्भ हो जाता है।

(2) भ्रूणीय अवस्था

इस अवस्था में डिम्ब का विकास प्राणी के रूप में होने लगता है।

इस समय डिम्ब की थैली में पानी हो जाता है।और उसे पानी की थैली की संज्ञा दी जाती है।

यह झिल्ली प्राणी को गर्भावस्था में विकसित होने में सहायता देती है।

जब दो माह व्यतीत हो जाते हैं तो सिर का निर्माण, फिर नाक, मुँह आदि का बनना प्रारम्भ होने लगता है।

इसके पश्चात शरीर का मध्य भाग एवं टाँगें और घुटने विकसित होने लगते हैं।

(3) भ्रूणावस्था

गर्भावस्था में द्वितीय माह से लेकर जन्म लेने तक की अवस्था को भ्रूणावस्था कहते हैं।

तृतीय चन्द्र माह के अन्त तक भ्रूण 3.5 इंच लम्बा, 3/4 ओंस भारी होता है।

दो माह के बाद 10 इंच लम्बा एवं भार 7 से 10 ओंस हो जाता है। आठवे माह तक लंबाई 16-18 इंच ,भार 4 से 5 पौण्ड हो जाता है।

जन्म के समय इसकी लम्बाई 20 इंच के लगभग तथा भार 7 या7.5 पौण्ड होता है।

विकास की इसी अवस्था में त्वचा, अंग आदि बन जाते हैं। और बच्चे की धड़कन आसानी से सुनी जा सकती है।

शैशवावस्था में शारीरिक विकास (Physical Development in Infancy)

बालक का शैशवकाल जन्म से 6 वर्ष तक का माना जाता है।

इस समय वह अपने माता- पिता एवं सम्बन्धियों पर पूर्ण रूप से निर्भर होता है। उसका सम्पूर्ण व्यवहार मूल प्रवृत्यात्मक होता है।

उसके शारीरिक विकास का निर्धारण वंशानुक्रमीय एवं पर्यावरणीय तत्त्वों पर निर्भर होता है।

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अत: शैशवावस्था में शारीरिक विकास निम्नलिखित प्रकार से होता है-

(1) भार (Weight)

विभिन्न तथ्यों से स्पष्ट हो चुका है कि जन्म के समय लड़की का भार लड़कों से अधिक होता है।

जन्म के समय लड़के की लम्बाई लड़की से अधिक होती है। जन्म के समय शिशु का भार 5 से 8 पौंड तक होता है।

4 माह में 14 पौंड, 8 माह में 18 पौंड, 12 माह में 21 पौड तथा शैशवावस्था की समाप्ति पर 40 पौंड भार विकसित हो जाता है।

(2) लम्बाई (length)

जन्म के समय शिशु की लम्बाई लगभग 20 इंच होती है।

एक वर्ष में 27 से 28 इंच तक,दो वर्ष में 31 इंच एवं शैशवावस्था की समाप्ति तक 40 से 42 इंच तक लम्बाई विकसित होती है।

(3) हड्डियाँ (Bones)

जन्म के समय शिश की हड्डियाँ मुलायम एवं लचीली होती
हैं।

इन छोटी-छोटी हड्रियों की कुल संख्या 270 होती है।

जब शिशु को फॉस्फोरस, कैल्सियम एवं खनिज पदार्थों से युक्त भोजन दिया जाता है। तब ये हड्डियाँ मजबूत एवं सशक्त होती जाती हैं।

और शिशु का धीरे-धीरे अंगों पर नियन्त्रण बढ़ता जाता है। बालिकाओं की अपेक्षा बालकों की होड्डियों में तीव्र विकास होता है।

(4) सिर एवं मस्तिष्क (Head and mind)

नवजात शिशु के सिर का अनुपात शरीर की लम्बाई की अपेक्षा चौथाई होता है।

जन्म के समय मस्तिष्क का भार 350 ग्राम होता है। यह भार दो वर्ष में दोगुना और 6 वर्ष में 1260 ग्राम होता है।

(5) अन्य अंग (Ofher parts)

शिशु के जन्म से 5 या 6 वें माह में नीचे की ओर अस्थायी दाँत निकलते हैं।

एक वर्ष में लगभग आठ दाँत एवं 4 वर्ष तक अस्थायी सभी दाँत निकल आते हैं।

शिशु की माँसपेंशियों का भार शरीर के भार का 23% होता है। शिशु की की धड़कन एक मिनट में 140 बार होती हैं।

शैशवावस्था के अन्त तक हृदय की धड़कन की संख्या 100 रह जाती है।

शिशु की टाँगों एवं भुजाओं का विकास बहुत ही तीव्र गति से होता है।

इस अवस्था में यौनांगों का विकास बहुत ही मन्द गति से होता है।

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बाल्यावस्था में शारीरिक विकास (Physical Development in Childhood)

बाल्यावस्था में होने वाले शारीरिक विकास को निम्न चरणों में समझते हैं।

(1) भार (Weight )

इस अवस्था में बालिकाओं एवं बालकों के भार में उतार-चढ़ाव रहता है।

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9 या 10 वर्ष की आयु तक बालक का भार बालिकाओं से अधिक रहता है।

जबकि इसके पश्चात् बालिकाएँ शारीरिक भार में अधिक होती जाती हैं। बाल्यावस्था के अन्तर तक इनका भार 80 से 95 पौंड तक हो जाता है।

(2) लम्बाई (length)

इस अवस्था में लम्बाई 2 से लेकर 3 इंच तक ही बढ़ती है।

(2) हड्डियाँ एवं दाँत (Bones and teeths)

इस अवस्था में हड्डियों में मजबूती एवं दृढ़ता आती है। इनकी संख्या 350 तक बढ़ जाती है।

दाँतों में स्थायित्व आना आरम्भ हो जाता है। दाँतों की संख्या 32 होती है। बालकों की अपेक्षा बालिकाओं के दाँतों का स्थायीकरण शीघ्र होता है।

(3) सिर एवं मस्तिष्क (Head and mind)

बाल्यावस्था में सिर एवं मस्तिष्क में परिवर्तन होता रहता है।

5 वर्ष की आयु में बालक के मस्तिष्क का भार शरीर के भार का 95% होता है। इसी प्रकार 9 वर्ष की आयु में बालक के मस्तिष्क का भार शरीर के भार का 90% होता है।

(4) अन्य अंग (Other parts)

बालक की माँसपेशियों का विकास बहुत ही धीरे-धीरे
होता है। हृदय की धड़कन में कमी होती है।

चिकित्सकों ने एक मिनट में 85 बार धड़कन को मापा है।

बालक एवं बालिकाओं की शारीरिक बनावट में अन्तर स्पष्ट होना प्रारम्भ हो जाता हैं। आयु के 11 एवं 12वें वर्ष में यौनांगों का तीव्रता के साथ विकास होता है।

किशोरावस्था में शारीरिक विकास (Physical Development in Adolescence)

विभिन्न मनोवैज्ञानिकों एवं शरीरशास्त्रियों ने किशोरावस्था को सबसे जटिल अवस्था माना है।

किशोरावस्था में शारीरिक विकास को निम्न प्रकार से समझ सकते हैं-

(1) भार (Weight)

किशोरावस्था में बालक एवं बालिकाओं के भार एवं लम्बाई में तीव्रता के साथ वृद्धि होती है।

18 वर्ष के अन्त तक लड़कों का भार लड़कियों के भार से लगभग 25 पौंड अधिक हो जाता है।

(2) लम्बाई (length)

लड़कियों की लम्बाई 16 वर्ष तक परिपक्व हो जाती हैं।जबकि लड़कों की लम्बाई 18 वर्ष तक परिपक्व हो पाती है।

(3) हड्डियाँ एवं दाँत (Boncs and teeths)

किशारोवस्था में सम्पूर्ण शरीर में हड्डियों का ढाँचा पूर्ण हो जाता है।

हड्डियों में मजबूती आ जाती है और छोटी-छोटी हड्डियाँ भी एक-दूसरी से जुड़ जाती हैं।

इस अवस्था में दाँतों का स्थायीकरण हो जाता है। लड़के एवं लड़कियों में अक्ल के दाँत निकलने आरम्भ होते हैं। ये दाँत इस अवस्था के अन्तिम दिनों में निकलते हैं।

(4) सिर एवं मस्तिष्क (Head and mind)

किशोरावस्था में सिर एवं मस्तिष्क का विकास निरन्तर जारी रहता है। सिर का पूर्ण विकास मध्य किशोरावस्था में ही हो जाता है।

विद्वानों ने इसकी आयु लगभग 15 से 17 वर्ष के बीच मानी है। इस समय मस्तिध्क का भार 1200 ले लेकर 1400 ग्राम के बीच में होता है।

(5) अन्य भाग (Other parts)

इस अवस्था में मांसपेशियों में सुडौलता एवं सुदृढता आनी प्रारम्भ हो जाती है ।

12 वर्ष की आयु में मॉसपेशियों का भार शरीर के कुल भार का 33% और 16 वर्ष की आयु में लगभग 44% होता है।

इस अवस्था में हृदय की धड़कन में पूर्ण कमी आनी प्रारम्भ हो जाती है।

और यह एक मिनट में 72 बार होती हैं। लड़कों में पुरुषत्व एवं लड़कियों में स्त्रीत्व की पूर्ण विशेषताएँ प्रकट होने लगती हैं।

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शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक || Fractors Effecting to the physical Development

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(1) वातावरण

शारीरिक विकास पर वातावरण का सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है।

यदि बालक के आसपास का वातावरण स्वच्छ एवं रोचक नहीं है तो बालक के शारीरिक विकास में बाधा आएगी।

जो बालक गंदे स्थानों,कस्बों या दूषित वातावरण में रहते है। वो अक्सर बीमार रहते हैं,जिससे उनका शारीरिक विकास और बालकों की तुलना कम होता है।

(2) वंशानुक्रम

बालक के शारीरिक विकास पर वंशानुक्रम का सबसे अधिक प्रभाव होता है।

यदि किसी के मम्मी पापा स्वस्थ हैं। तो उनका बालक भी स्वस्थ होता है। उसका शारीरिक विकास उसी प्रकार से होता है।

(3) सही गुणवत्तापूर्ण भोजन / पौष्टिक भोजन

मनुष्य का जीवन भोजन पर ही आश्रित है। भोजन से ही वह सभी प्रकार की ऊर्जा प्राप्त करता है।

इस शरीर में होने वाले समस्त विकास भी भोजन पर ही निर्भर है।

पौष्टिक भोजन से शारीरिक विकास अधिक होता है। यदि बालक सही गुणवत्ता का भोजन ग्रहण करेगा तो उसका शारीरिक विकास अधिक होगा।

(4) प्रतिदिन की दिनचर्या

शारीरिक विकास को प्रतिदिन की दिनचर्या भी प्रभावित करती है।

यदि बालक की प्रतिदिन की दिनचर्या सही नहीं है। अर्थात उसके खाने का, सोने का, आराम करने का, सुबह उठने का समय निश्चित नहीं है। तो उसका शारीरिक विकास प्रभावित होगा।

(5) व्यायाम

शारीरिक विकास में वृद्धि के लिए व्यायाम बहुत आवश्यक है।

यदि कोई बालक सुबह उठकर व्यायाम करता है। तो उसका शरीर स्वस्थ होता है। और शारीरिक विकास में किसी प्रकार की बाधा नहीं आती।

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