शैक्षिक नवाचार का अर्थ एवं परिभाषा | शैक्षिक नवाचार की आवश्यकता,विशेषताएं एवं क्षेत्र

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शैक्षिक नवाचार का अर्थ एवं परिभाषा | meaning and definition of educational innovation in hindi

शैक्षिक नवाचार का अर्थ एवं परिभाषा | शैक्षिक नवाचार की आवश्यकता,विशेषताएं एवं क्षेत्र
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शैक्षिक नवाचार का अर्थ

नवाचार शब्द अंग्रेजी भाषा के Innovation शब्द का हिंदी रूपांतरण है। innovation शब्द Innovate शब्द से बना है जिसका अर्थ (i) to introduce novelties (नवीनता लाना) (ii) to make changes (परिवर्तन लाना)। अत: Innovation का अर्थ हुआ-“वह परिवर्तन जो नवीनता’ लाये।”

“नवाचार वह परिवर्तन है जो पूर्व-स्थित विधियों और पदार्थों आदि में नवीनता का संचार करे।’

परिभाषाएँ-वर्तमान समय में शिक्षा के क्षेत्र में जो क्रान्ति उत्पन्न हुई है वह नवाचार शब्द की ही देन है। आज शिक्षण विधियों एवं शिक्षण प्रविधियों में अनेक प्रकार की नवीनता का समावेश हुआ है। वह शैक्षिक नवाचार को ही प्रदर्शित करता है।

शैक्षिक नवाचार की परिभाषाएँ

जगत में नवाचार को विद्वानों द्वारा निम्नलिखित रूप से परिभाषित किया गया है-

(1) ई. एम. रोजर्स के शब्दों में, “नवाचार वह विचार है जिसकी प्रतीति, व्यक्ति नवीन विचारों के रूप में करे।”

(2) एच. जी. वारनेट के शब्दों में, “नवाचार एक विचार है, व्यवहार है अथवा पदार्थ है जो नवीन है और वर्तमान स्वरूप से गुणात्मक दृष्टि से भिन्न है।”

नवाचार की विशेषताएँ

नवाचार की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(1) नवाचार का सम्बन्ध नवीन तकनीकी एवं नवीन ज्ञान से होता है जिसका प्रयोग शिक्षक द्वारा शिक्षण प्रक्रिया में किया जाता है।
(2) शैक्षिक नवाचारों में क्रियाशीलता एवं प्रायोगिकता की प्रवृत्ति विद्यमान होती है।
(3) शैक्षिक नवाचार का सम्बन्ध प्रमुख रूप से शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को प्रभावी एवं रुचिपूर्ण बनाने से होता है।
(4) नवाचार के द्वारा वर्तमान परिस्थितियों में सुधार लाने का प्रयल किया जाता है।
(5) शैक्षिक नवाचारों द्वारा नवीन शैक्षिक तकनीकी को विद्यालयों तक पहुँचाया जाता है।
(6) शैक्षिक नवाचारों में उन नवीन तकनीकी का प्रयोग होता है जो छात्रों के सर्वांगीण विकास का मार्ग प्रशस्त करती है।
(7) यह प्रयासपूर्ण किया जाने वाला कार्य है।

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निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि-
“नवाचार वह विचार है जिसके मानने या स्वीकार करने वाला उसे नवीन
विचार के रूप में देखता और अनुभव करता है।’

शिक्षा में नवाचार की आवश्यकता

देश में हो रहे राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तनों के कारण शिक्षा के क्षेत्र में परिवर्तन आवश्यक है। भारतीय परिप्रेक्ष्य एवं विश्व परिप्रेक्ष्य से शिक्षा में नवाचार एवं नूतन आयामों की आवश्यकता को निम्नांकित बिन्दुओं के अन्तर्गत व्यक्त किया जा सकता है-
(1) कल्याणकारी राज्य की स्थापना के लिए।
(2) तीव्र आर्थिक विकास हेतु।
(3) वैज्ञानिक एवं तकनीकी प्रगति के अनुरूप शिक्षा प्रणाली।
(4) जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्ति।
(5) मानव संसाधान का विकास करने हेतु।
(6) सामाजिक परिवर्तन के अनुसार शिक्षा।
(7) रोजगार के अवसरों में वृद्धि हेतु।
(8) पर्यावरण प्रदूषण जनित समस्याओं के समाधान हेतु।
(9) विशिष्टीकरण की वृद्धि एवं इससे उत्पन्न समस्याओं की पूर्ति हेतु।
(10) अन्य कारणों से आवश्यकता-शिक्षा में नूतन आयामों को अपनाने के अन्य महत्त्वपूर्ण कारक हैं; जैसे-(i) आर्थिक क्षेत्र में उदारीकरण एवं निजीकरण । (ii) स्वयंसेवी संगठनों (NGO) की बढ़ती भूमिका। (iii) वैश्वीकरण।

इन कारकों के कारण शिक्षा में नवीन प्रवृत्तियों तथा नूतन आयामों को अंगीकार किया जाने की महती आवश्यकता है।

शैक्षिक नवाचार के क्षेत्र

शैक्षिक नवाचार के अन्तर्गत विभिन्न व्यावहारिक गतिविधियों द्वारा गणित की शिक्षा, भाषा की शिक्षा, पर्यावरणीय शिक्षा, विज्ञान, सामाजिक अध्ययन की शिक्षा, जनसंख्या शिक्षा, शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े और विकलांग बच्चों की शिक्षा, लैंगिक समानता, अपवंचित वर्ग को शिक्षा नये तरीके से देना शैक्षिक नवाचार के अन्तर्गत आता है। इन बिन्दुओं को प्रारम्भिक कक्षाओं से ही पाठ्यक्रम में जोड़ना चाहिए। पर्यावरण शिक्षा, जनसंख्या शिक्षा, लिंग भेद का निवारण, संवेदीकरण, सामाजिक समानता के अवरोधों की समाप्ति आदि 21वीं शताब्दी की चुनौती का सामना करने के लिए आवश्यक है।

इन समस्याओं के प्रति छात्र-छात्राओं को प्रारम्भिक कक्षाओं से ही संवेदनशील बनाना अपेक्षित है जिसके लिए संकल्पना की पद्धतियों को अपनाना है। शिक्षा का क्षेत्र बहुत व्यापक है, जो जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित करता है,वास्तव में शिक्षा बालक को भावी जीवन के लिए तैयार करती है तथा बालक अपना बाल्येतर जीवनकाल सुख, शान्ति व सफलतापूर्वक जीकर मानव व राष्ट्र के लिए कुछ कर सके, इस अवधारणा को मजबूत करती है। बालक भविष्य के लिए तैयार होता है । इसलिए आवश्यक है कि भविष्य में आने वाली समस्याओं, विधाओं व आवश्यकताओं का ध्यान रखकर नवाचार का क्षेत्र निर्धारित किया जाए। कुछ प्रमुख क्षेत्र इस प्रकार चिन्हित किए गए हैं।

नवाचार का परिवर्तन,शिक्षण अधिगम एवं विद्यालय प्रबंधन से संबंध

परिवर्तन एवं नवाचार में सम्बन्ध (Relationship between Change and Innovation)

परिवर्तन और नवाचार दोनों ही शिक्षा पर प्रभाव डालते हैं और शिक्षा द्वारा प्रभावित होते हैं। इसे निम्न रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-

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नवाचार                           परिवर्तन
                     शिक्षा

इस सम्बन्ध में तीन बातें जानना आवश्यक है-
(i) सुधार की दृष्टि से शैक्षिक परिवर्तन की इच्छा।
(ii) उपयुक्त सन्दर्भ में नवाचार का चयन।
(iii) नवाचार को प्रयोग में लाने के लिए साधनों का आयोजन करना।
अत: नवाचार और परिवर्तन दोनों में घनिष्ठ सम्बन्ध है और शिक्षा में इनसे सुधार लाया जा सकता है।

परिवर्तन और नवाचार में सम्बन्ध

परिवर्तन सार्वभौमिक, सार्वकालिक एवं सर्वव्यापक होता है। परिवर्तन के कारण ही पृथ्वी का निर्माण हुआ। परिवर्तन के कारण ही प्रगति, विकास एवं विनाश का चक्र गतिमान है। परिवर्तन प्रत्येक बदलाव या विचलन को कहा जा सकता है, चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक, और अच्छा हो या बुरा। परिवर्तन और नवाचार को अधिकतर लोग समान अर्थ में प्रयुक्त करते हैं क्योंकि दोनों ही स्थापित परम्परा, प्रणाली वस्तु या विचार में बदलाव लाता है। हालांकि परिवर्तन एक व्यापक धारणा है जिसमें अच्छे या बुरे दोनों प्रकार के परिवर्तन सम्मिलित हैं जबकि नवाचार सदैव अच्छा, सकारात्मक, सुधारात्मक एवं रचनात्मक होता है और उसके फलस्वरूप शैक्षिक गुणवत्ता में सुधार आता है इसलिए परिवर्तन और नवाचार दोनों घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित होते हुए भी एक नहीं हैं।

शैक्षिक नवाचार एवं शिक्षण अधिगम में सम्बन्ध

शिक्षण-अधिगम शिक्षण कार्य किसी भी देश के विकास तथा उन्नति के लिए तकनीकी आधार है। शिक्षण के माध्यम से छात्रों में अपेक्षित व्यवहारगत परिवर्तन करने के लिए पृष्ठ पोषण के सम्प्रत्यय का ज्ञान प्राप्त कर विविध युक्तियों तथा विधियों का उपयोग किया जाता है। अध्यापक शिक्षा में अन्त:क्रिया विश्लेषण एक मुख्य तत्त्व है। वस्तुतः अध्यापन कार्य में अन्त:प्रक्रिया तथा उसका विश्लेषण अध्ययन के साथ-साथ चलता है। इसमें शिक्षण का आधार-उद्देश्य, स्तर, क्रियाएँ, शिक्षण एवं शासन व्यवस्था तथा शिक्षण के स्वरूप के अनुसार होता है।
शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में शिक्षकों के अन्दर बालकों के प्रति (बालक का अभिप्राय बालक व बालिका दोनों से है) एक पुरानी धारणा थी-बालक एक खाली घड़ा है, कोरी स्लेट है, बालक एक कच्ची मिट्टी का घड़ा है आदि।

इसका अभिप्राय यह था कि जब बालक विद्यालय में प्रथम बार नामांकन (पढ़ने) हेतु आता है तब वह कुछ नहीं जानता अर्थात् खाली घड़ा होता है। शिक्षक को उस खाली घड़े में ज्ञान भरना है। लेकिन अब यह अवधारणा खण्डित हो गयी है। विद्यालय में प्रथम बार नामांकन हेतु आया बालक खाली घड़ा या कोरी स्लेट नहीं है, वह अपने घर से बहुत कुछ सीख कर आता है, तथा बहुत कुछ जानता भी है। इसलिए अध्यापक से अब बच्चे के साथ खाली घड़ा जैसे व्यवहार करने की अपेक्षा नहीं की जा सकती है। बल्कि उसे नये प्रकार से बालकों के प्रति सोचना होगा और तद्नुसार शिक्षण प्रक्रिया को अपनाना होगा। यह बालकों के प्रति नवाचार सोच होगी, जिसे शिक्षा में लागू किया जा रहा है।परम्परागत पाठ्यक्रम में जो विषय या अवधारणा विद्यालयी पाठ्यक्रम में रखने से वर्जित रहा और उससे परहेज किया जाता था।

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जैसे जनसंख्या शिक्षा, यौन शिक्षा; इन अवधारणाओं को अब पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया जाता है, जिसके लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या में व्यापक चर्चा की गयी है तथा अनेक गैर-परम्परागत विषय पाठ्यक्रम में सम्मिलित किए जा रहे हैं। शिक्षा का संचालन शिक्षा विधाओं पर आधारित होता है। परम्परागत शिक्षण विधाओं में प्रवचन, लेक्चर, आदि आते हैं, जिसमें अध्यापक व पाठ्यक्रम मुख्य रहता है छात्र गौड़ हो जाता है।

लेकिन अब पुरानी शिक्षण विधाओं के स्थान पर ‘खेल पद्धति’, ‘गति विधि’, ‘करके सीखें’, ‘भ्रमण व प्रयोग’ पद्धतियों का नवाचारी प्रयोग किया जा रहा है, जिसमें छात्र अधिक सीखता है। इसमें अब शिक्षक की भूमिका ज्ञानी, विद्वान अभिभावक की न रहकर शिक्षक अब छात्रों का अनुभवी एवं वरिष्ठ मित्र, सलाहकार व सुविधादाता की भूमिका अदा करता है।


विद्यालय प्रबन्धन एवं नवाचार में सम्बन्ध

विद्यालय प्रबन्धन परम्परागत तरीके से विद्यालय के प्रबन्ध में शिक्षा विभाग के निर्देशों के अनुसार प्रधानाध्यापक का एकाधिकार व एकल दायित्व समझा जाता है; लेकिन नवाचार में अब प्रधानाध्यापक ही विद्यालय प्रबन्धन का एकाधिकारी नहीं है इसमें सामुदायिक सहभागिता व जनसहयोग का नवाचारी प्रयोग करके ‘ग्राम शिक्षा समिति’ को वैधानिक स्वरूप प्रदान करके उसे कार्याधिकार व दायित्व सौंपा गया है, जिससे विद्यालय भवन का निर्माण, विद्यालय में टाट-पट्टी, फर्नीचर उपस्कर के क्रम प्रबन्धन, मिड डे मील,छात्रवृत्ति, गणवेश आदि का वितरण तथा विद्यालय रख-रखाव में ग्राम शिक्षा समितियों का बाह्यकारी सहयोग लिया जा रहा है। विद्यालय प्रबन्धन द्वारा स्थानीय समुदाय की विभिन्न स्वरूपों में सहभागिता कराकर नवाचार किया जा रहा है।

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