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Contents
मानव विकास के कारक-
मानव का विकास अनेक कारकों द्वारा होता है इन कारकों में दो कारक प्रमुख है।
(1) जैविक कारक
(2) सामाजिक कारक
जैविक विकास का दायित्व माता-पिता पर होता है तथा सामाजिक विकास का दायित्व वातावरण पर आधारित होता है।
वंशानुक्रम का अर्थ (meaning of heredity)
माता-पिता जैसे होते हैं वैसे ही उनकी संतान होती है।
इसका अभिप्राय यह है कि बालक रंग रूप आकृति ज्ञान आदि में माता-पिता से मिलता जुलता है।
अर्थात उसे अपने माता-पिता के शारीरिक और मानसिक गुण प्राप्त होते हैं।
जैसे यदि माता-पिता विद्वान है तो बालक भी विद्वान होते हैं।
पर यहां यह भी देखा गया है कि विद्वान माता-पिता का पुत्र विद्वान नहीं होता है और अविद्वान माता पिता का पुत्र विद्वान होता है।
इसका यह कारण है कि बालक को न केवल अपने माता-पिता वरन उनसे पहले के पूर्वजों से भी अनेक शारीरिक और मानसिक गुण प्राप्त होते हैं।
इसी को हम वंशानुक्रम या वंश परंपरा या आनुवंशिकता या पैतृकता आदि नामों से पुकारते हैं।
आनुवंशिक गुणों के एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में संचालित होने की प्रक्रिया को आनुवंशिकता या वंशानुक्रम कहा जाता है।
आनुवंशिक लक्षणों के पीढ़ी दर पीढ़ी संचरण की विधियों और कारणों के अध्ययन को आनुवंशिकी कहा जाता है।
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(definition of heredity) वंशानुक्रम की परिभाषाएं
बी० एन० झाँ के अनुसार
“वंशानुक्रम व्यक्ति की जन्मजात विशेषताओं का पूर्ण योग है।”
वुडवर्थ के अनुसार
” वंशानुक्रम में वह सभी बातें आ जाती हैं ,जो जीवन का आरंभ करते समय जन्म के समय नहीं वरन गर्भधारण के समय जन्म से लगभग 9 माह पूर्व व्यक्ति में उपस्थित होती हैं।”
डगलस एवं हॉलैंड के अनुसार
” एक व्यक्ति के वंश क्रम में शारीरिक बनावट,शारीरिक विशेषताएं, शारीरिक क्रियाएं या क्षमताएं सम्मिलित रहती हैं, जिनको वह अपने माता-पिता या अन्य पूर्वजों या अन्य प्रजाति से प्राप्त करता है।”
जेम्स ड्रेवर के अनुसार
” माता-पिता की शारीरिक व मानसिक विशेषताओं का संतानों में स्थानांतरण ही वंशानुक्रम है।”
एच० ए० पीटरसन के अनुसार
” व्यक्ति को अपने माता-पिता से या पूर्वजों की जो विशेषताएं प्राप्त हैं, उसे वंशानुक्रम कहते हैं।”
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वंशानुक्रम का आधार (bases of heredity)
आनुवंशिकता या वंशानुक्रम का मूल आधार कोष (कोशिका) है।
जिस प्रकार ईटों को चुनकर इमारत बनती है,ठीक उसी प्रकार से कोसों के द्वारा मानव शरीर का निर्माण होता है।
शरीर का आरंभ केवल एक कोष से होता है।जिसे जाइगोट या संयुक्त कोष कहते हैं।
यह कोष 2,4,8, 16,32 और इसी क्रम में संख्या में आगे बढ़ते रहते हैं।
संयुक्त को दो उत्पादक कोशो का योग होता है।
जिसमें एक माता का जिसे मातृकोष तथा एक पिता का जिसे पितृकोष कहते हैं।
उत्पादक कोष भी संयुक्त कोष के समान बढ़ते रहते हैं।
गर्भधारण के समय मां के अंडाणु और पिता के शुक्राणु का कोषों में मिलन होता है ताकि यह एक नए कोष की रचना हो सके।
कोषो के केंद्रक के कणों को गुणसूत्र (क्रोमोसोम्स) कहते हैं। गुणसूत्रों का अस्तित्व युग्मों(जोड़ें) में होता है।
मानव कोष में 46 गुणसूत्र होते हैं जो 23 युग्मों में में व्यवस्थित होते हैं।
इस प्रकार मनुष्य में 23 जोड़ी गुणसूत्र पाए जाते हैं।
यह गुणसूत्र अनुवांशिकी सूचना को संचालित करते हैं प्रत्येक गुणसूत्र (क्रोमोसोम) में बहुत बड़ी संख्या में जीन होते हैं।
जो कि शारीरिक लक्षणों के वास्तविक वाहक है।
प्रत्येक गुणसूत्र में 3000 जींस पाए जाते हैं। जींस ही व्यक्ति की विभिन्न योग्यता एवं गुणों के निर्धारक होते हैं।
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वंशानुक्रम के नियम (rule or priciple of heredity)
मनोवैज्ञानिकों तथा जीव वैज्ञानिकों के वंशानुक्रम अत्यंत रहस्यमय एवं रोचक विषय है।
वंशानुक्रम जिस नियम पर आधारित है उसे वंशानुक्रम के नियम कहते हैं।
यह नियम निम्नलिखित हैं
(1) अर्जित गुणों के संक्रमण का नियम(Law of transmission of acquired traits)
(2) बीजकोष के निरंतरता का नियम (Law of continuity of germ plasm)
(3) समानता का नियम(Law of resemblance)
(4) विभिन्नता का नियम(Law of variation)
(5) प्रत्यागमन का नियम (Law of regression)
(6)मेण्डल का नियम(Mendel’s law)
(1) अर्जित गुणों के संक्रमण का नियम (Law of continuity of germ plasm)
इस नियम के अनुसार माता पिता द्वारा अपने जीवन काल में अर्जित किए जाने वाले गुण उनकी संतानों को प्राप्त नहीं होते हैं।
इस नियम को अस्वीकार करते हुए लैमार्क ने लिखा है कि व्यक्तियों द्वारा अपने जीवन में जो भी कुछ अर्जित किया जाता है। वह उनके द्वारा उत्पन्न किए जाने वाले व्यक्तियों को संक्रमित कर देता है।
इसका उदाहरण लैमार्क ने जीराफ़ पर प्रयोग करके दिया।
तथा इस कथन की पुष्टि मैकडूगल व पावलव ने चूहों पर तथा हैरिसन ने पतंगी कीड़ों पर करके किया।
(2) बीजकोष के निरंतरता का नियम (Law of continuity of germ plasm)
इस नियम के अनुसार बालक को जन्म देने वाला बीजकोष कभी नष्ट नहीं होता है। इस नियम के प्रतिपादक बीजमैन थे।
इनके अनुसार बीजकोष का कार्य केवल उत्पादक कोषो का निर्माण करना है। जो बीचकोष बालक को अपने माता-पिता से मिलता है।
उसे वह अगली पीढ़ी को स्थानांतरित कर देता है।
इस प्रकार बीज कोष पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है।
इस नियम को पूर्ण रूप से अस्वीकार कर दिया गया है और इसकी आलोचना करते हुए
बी एन झा ने लिखा है कि ― “माता-पिता बालक के जन्मदाता ना होकर केवल बीजकोष के संरक्षक है जिसे वह अपनी संतानों को देते हैं।”
बीजकोष एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को इस प्रकार स्थानांतरित किया जाता है।
कि मानो एक बैंक से निकाल कर दूसरे बैंक में रख दिया गया है। यह नियम ना तो वंशानुक्रम की संपूर्ण प्रक्रिया की व्याख्या करता है और ना तो संतोषजनक ही है।
(3) समानता का नियम(Law of resemblance)
इस नियम के अनुसार जैसे माता-पिता होते हैं वैसे उनकी संतान होती है।
इस नियम का स्पष्टीकरण सोरेनसन ने किया और लिखा कि बुद्धिमान माता-पिता के बालक बुद्धिमान,मंदबुद्धि माता पिता के बालक मंदबुद्धि व सामान्य माता पिता के पुत्र सामान्य बुद्धि वाले होते हैं।
(4) विभिन्नता का नियम(Law of variation)
इस नियम के अनुसार एक ही माता पिता से उत्पन्न बालक भिन्न-भिन्न हो सकते हैं ।
उनके रंग रूप,बुद्धि, ज्ञान ,समझ, योग्यता अलग अलग होती है।
(5) प्रत्यागमन का नियम (Law of regression)
प्रत्यागमन का नियम सोरेनसन ने दिया उन्होंने बताया कि माता पिता के विपरीत गुण भी बालक में उत्पन्न होते हैं।
अर्थात इसके अनुसार प्रतिभाशाली माता-पिता के बच्चों में कम प्रतिभा होने के की प्रवृत्ति और बहुत निम्न कोटि के माता-पिता के बच्चों में प्रतिभाशाली होने की प्रवृत्ति होती है और इसे ही प्रत्यागमन कहते है।
इस नियम के अनुसार बालक अपने माता-पिता के विशिष्ट गुणों को त्यागकर सामान्य गुणों को ग्रहण करते हैं।
यही कारण है कि महान व्यक्तियों के पुत्र साधारणतः उनके सामान महान नहीं होते है।
(6)मेण्डल का नियम(Mendel’s law)
यह नियम जोकोस्लाविया के मेण्डल नामक पादरी ने दिया है।
इस नियम के अनुसार वर्ण संकर, प्राणी या वस्तु में,अपने मौलिक या सामान्य रूप की ओर अग्रसर होते हैं।
मेंडल ने अपने प्रयोग दो चीजों पर किया-
(1)मटर के ऊपर
(2) चूहों के ऊपर
इन दो चीजों पर प्रयोग करके मेंडल ने एक सिद्धांत दिया जो मेंडलवाद के नाम से प्रसिद्ध है।
इस सिद्धांत के अनुसार यह बताया कि जो व्यक्ति में विशेष गुण होता है, वर्ण संकर उसी की ओर अग्रसर होता है।
इसकी व्याख्या बीएन झा ने की उन्होंने बताया कि वर्णसंकर स्वयं के पितृ या मातृ उत्पादक कोषो का निर्माण करते हैं।
तब वे प्रमुख गुणों से युक्त माता पिता के समान शुद्ध प्रकारों को जन्म देते है।
बालक पर वंशानुक्रम का प्रभाव(influence of heredity child)
(1) मूल शक्तियों पर प्रभाव-
थार्नडाइक का मानना है कि बालकों की मूल शक्तियों का प्रधान कारण वंशानुक्रम है।
(2) शारीरिक शक्तियों पर प्रभाव-
कार्ल पीयरसन के अनुसार माता-पिता की लंबाई कम या अधिक होती है तो उनके बच्चों की लंबाई भी कम या अधिक होती है।
इस प्रकार वंशानुक्रम का शारीरिक शक्तियों पर भी प्रभाव पड़ता है
(3) प्रजाति की श्रेष्ठता पर प्रभाव-
क्लीन बर्ग के अनुसार प्रजाति की श्रेष्ठता पर भी वंशानुक्रम का प्रभाव पड़ता है।
(4) व्यावसायिक योग्यता पर प्रभाव-
कैटल का मत है कि वंशानुक्रम का व्यवसाय की योग्यता पर भी प्रभाव पड़ता है।
(5) सामाजिक स्थिति पर प्रभाव-
विनशिप का मानना है कि सामाजिक स्थिति पर वंशानुक्रम प्रभाव डालता है।
जैसे गुणवान और प्रतिष्ठित माता पिता की संतान प्रतिष्ठा प्राप्त करते है।
(6) चरित्र पर प्रभाव-
डगडेल का मत है की वंशानुक्रम का प्रभाव चरित्र पर भी पड़ता है।
(7) महानता पर प्रभाव-
गॉल्टन के अनुसार वंशानुक्रम का प्रभाव महानता पर भी पड़ता है।
(8) बुद्धि का प्रभाव-
गोडार्ड का मत है की वंशानुक्रम का प्रभाव बुद्धि पर भी है इन्होंने यह मत कालीकाट नामक इंसान पर शोध करके दिया।
वातावरण का अर्थ (meaning of environment)
इसके लिए पर्यावरण शब्द का भी प्रयोग किया जाता है।
पर्यावरण दो शब्दों से बना है― परि + आवरण।
परि का अर्थ है ― चारों ओर तथा आवरण का अर्थ― ढका हुआ।
इस प्रकार पर्यावरण या वातावरण वह वस्तु है जो हमें चारों से ढके हुए है।
अतः हम कह सकते है कि व्यक्ति के चारो ओर जो कुछ भी है वह वातावरण है।
वातावरण मानव जीवन के विकास पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है।
मानव विकास में जितना योगदान आनुवंशिकता वंशानुक्रम का है उतना ही वातावरण का भी।
इसलिए कुछ मनोवैज्ञानिक वातावरण को सामाजिक वंशानुक्रम भी कहते हैं।
व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिकों ने वंशानुक्रम से अधिक वातावरण महत्व दिया है।
वातावरण की परिभाषायें (definition of environment)
बोरिंग,लैगफील्ड तथा वेल्ड के अनुसार-
“पैतृकों के अलावा व्यक्ति को प्रभावित करने वाली वस्तु वातावरण है।”
वुडवर्थ के अनुसार-
“वातावरण में वे सब बाह्य तत्व आ जाते हैं जिन्होंने व्यक्ति को जीवन आरंभ करने के समय से प्रभावित किया है।”
रॉस के अनुसार
“वातावरण वह बाहरी शक्ति है जो हमें प्रभावित करती है।”
जिस्बर्ट के अनुसार
“वातावरण वह हर वस्तु है जो किसी अन्य वस्तु को घेरे हुए है और सीधे उस पर अपना प्रभाव डालती है।”
मैकाइवर तथा पेज के अनुसार
“स्वयं प्राणी और उसके जीवन का ढांचा,बीते हुए जीवन एवं अतीत वातावरण का फल है। वातावरण जीवन के आरंभ से,यहां तक कि उत्पादक कोषों में भी निहित है।”
वातावरण के कारक (factors of environment)
(1) भौतिक कारक (physical factor)
(2) सामाजिक कारक (social factor)
(3) आर्थिक कारक (economic factor)
(4) सांस्कृतिक कारक (cultural factor)
(1) भौतिक कारक (physical factor)
इसके अंतर्गत प्राकृतिक एवं भौगोलिक परिस्थितियां आती हैं।
मनुष्य के विकास पर जलवायु का प्रभाव पड़ता है।
जहां अधिक सर्दी पड़ती है या जहां अधिक गर्मी पड़ती वहाँ मनुष्य का विकास एक जैसा नहीं होता है।
ठंडे प्रदेशों के व्यक्ति सुंदर, गोरे, स्वस्थ और बुद्धिमान तथा अधिक धैर्यवान होते है।
जबकि गर्म प्रदेश के व्यक्ति काले,चिड़चिड़े तथा आक्रामक स्वभाव के होते हैं।
(2) आर्थिक कारक (economic factor)
अर्थ अर्थात धन से केवल सुविधाएं नहीं प्राप्त होती हैं।
बल्कि इससे पौष्टिक चीजें भी खरीदी जा सकती हैं। जिससे मनुष्य का शरीर विकसित होता है।
धन हीन व्यक्ति में असुविधा के अभाव में हीन भावना विकसित हो जाती है,जो विकास के मार्ग में बाधक है।
आर्थिक वातावरण मनुष्य की बौद्धिक क्षमता को भी प्रभावित करता है सामाजिक विकास पर भी इसका प्रभाव पड़ता है।
व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी है इसलिए उस पर समाज का प्रभाव अधिक दिखाई देता है।
सामाजिक व्यवस्था, रहन-सहन ,परंपराएं, धार्मिक रीति- रिवाज, पारस्परिक अन्तः क्रिया,और संबंध आदि बहुत से तत्व है।
जो मनुष्य के शारीरिक मानसिक तथा भावात्मक एवं बौद्धिक विकास को किसी न किसी ढंग से अवश्य प्रभावित करते हैं।
(4) सांस्कृतिक कारक (cultural factor)
धर्म और संस्कृति मनुष्य के विकास को अत्यधिक प्रभावित करती है।
खाने का ढंग,रहन-सहन का ढंग, पूजा पाठ का ढंग, समारोह मनाने का ढंग, संस्कार का ढंग आदि हमारी संस्कृति है।
जिन संस्कृतियों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण समाहित है उनका विकास ठीक ढंग से होता है।
लेकिन जहाँ अंधविश्वास और रूढ़िवाद का समावेश है उस समाज का विकास संभव नहीं है।
बालक पर वातावरण का प्रभाव (Influence of environment on child)
पाश्चात्य मनोवैज्ञानिकों ने वातावरण के महत्व के संबंध में अनेक अध्ययन किए हैं।
इनके आधार पर उन्होंने यह सिद्ध किया है कि बालक के व्यक्तित्व के प्रत्येक पहलू पर भौगोलिक,सामाजिक और सांस्कृतिक वातावरण का व्यापक प्रभाव पड़ता है।
(1) शारीरिक अंतर पर प्रभाव
फ्रेंज बोन्स के अनुसार,
“विभिन्न प्रजातियों के अंतर का कारण वंशानुक्रम ना होकर वातावरण है।”
(2) मानसिक विकास का प्रभाव –
गार्डन के अनुसार,
“उचित सामाजिक व सांस्कृतिक वातावरण ना मिलने पर मानसिक विकास की गति मंद पड़ जाती है।”
(3) प्रजाति की श्रेष्ठता का प्रभाव
क्लार्क के अनुसार
“कुछ प्रजातियों की बौद्धिक श्रेष्ठता का कारण वंशानुक्रम ना होकर वातावरण है।”
(4) बुद्धि पर प्रभाव
कैंडोल के अनुसार
“बुद्धि के विकास में वंशानुक्रम की अपेक्षा वातावरण का प्रभाव कहीं अधिक पड़ता है।”
(5) व्यक्तित्व पर प्रभाव
कूले के अनुसार
“व्यक्तित्व के निर्माण में वंशानुक्रम की अपेक्षा वातावरण का अधिक प्रभाव पड़ता है।”
वंशानुक्रम व वातावरण का संबंध (relation between heredity and environment)
जन्म से संबंधित विकास को वंशानुक्रम तथा समाज से संबंधित विकास को वातावरण कहते हैं।
वातावरण को प्रकृति तथा पोषण भी कहा जाता है।
वंशानुक्रम तथा वातावरण एक दूसरे से पृथक नहीं है यह दूसरे के पूरक हैं।
जैसे बीज तथा खेत का संबंध होता है कि एक के बिना दूसरे की सार्थकता संभव नहीं है ।
उसी प्रकार वंशानुक्रम तथा वातावरण का भी संबंध है।
वंशानुक्रम और वातावरण में पारस्परिक निर्भरता है।
यह एक दूसरे के पूरक, सहायक और सहयोगी हैं ।
बालक को जो मूल प्रवृत्तियां वंशानुक्रम से प्राप्त होती हैं उनका विकास वातावरण में होता है ।
जैसे यदि बालक में बौद्धिक शक्ति नहीं है तो उत्तम से उत्तम वातावरण भी उसका मानसिक विकास नहीं कर सकता है ।
इसी प्रकार बौद्धिक शक्ति वाला बालक प्रतिकूल वातावरण में अपना मानसिक विकास नहीं कर सकता है।
हमें यह प्रश्न सुनने को मिलता है कि बालक की शिक्षा और विकास में वंशानुक्रम अधिक महत्वपूर्ण है या वातावरण ?
यह प्रश्न पूछना या पूछने के समान है कि मोटर कार के लिए इंजन अधिक महत्वपूर्ण है या पेट्रोल ।
जिस प्रकार मोटर कार के लिए इंजन और पेट्रोल का समान महत्व है। उसी प्रकार बालक के विकास के लिए वंशानुक्रम तथा वातावरण का समान महत्व है।
वंशानुक्रम और वातावरण इस प्रकार गूथे हुए हैं कि उनको अलग करना असंभव है।
कुछ मनोवैज्ञानिक वातावरण को सामाजिक वंशानुक्रम भी कहते हैं।
वंशानुक्रम तथा वातावरण का संबंध हम कुछ मनोवैज्ञानिकों के कथन से स्पष्ट करते हैं-
लैंडिस के अनुसार
“वंशानुक्रम हमें विकसित होने की क्षमताएं प्रदान करता है इन क्षमताओं के विकसित होने के अवसर हमें वातावरण प्रदान करता है।”
“वंशानुक्रम हमें कार्यशील पूंजी देता है और वातावरण हमें इसे निवेश करने के अवसर प्रदान करता है।”
वुडवर्थ के अनुसार
“व्यक्ति वंशानुक्रम अथवा वातावरण का योग नहीं गुणनफल है।”
क्रो एंड क्रो के अनुसार
“व्यक्ति का निर्माण न केवल वंशानुक्रम और ना केवल वातावरण से होता है।वास्तव में यह जैविकदाय और सामाजिकरण के विरासत के एकाकीकरण की उपज है।”
बाल विकास पर वंशानुक्रम व वातावरण के प्रभाव का शैक्षिक महत्व
(1) विकास की वर्तमान विचारधारा में प्रकृति और पालन-पोषण दोनों को महत्व दिया गया है।
(2) वंशानुक्रम की भूमिका को समझना बहुत महत्वपूर्ण है।
और इससे भी अधिक लाभकारी है कि हम समझे कि परिवेश में कैसे सुधार किया जा सकता है।
(3) वंशानुक्रम एवं वातावरण के बालक के विकास पर पड़ने वाले प्रभावों के ज्ञान के अनुरूप शिक्षक विद्यालय के वातावरण को बच्चों के लिए उपयुक्त बनाता है।
जिससे छात्रों के व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन किया जा सके एवं शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को अधिक प्रभावशाली बनाया जा सके।
(4) बालक क्या है, वह क्या कर सकता है,उसका पर्याप्त विकास क्यों नहीं हो रहा है आदि प्रश्नों का उत्तर वंशानुक्रम एवं वातावरण के प्रभाव में ही निहित है।
अतः इसकी जानकारी का प्रयोग कर शिक्षक बालक के सर्वागीण विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
(5) शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक सभी प्रकार के विकास में पर वंशानुक्रम एवं वातावरण का प्रभाव पड़ता है।
यही कारण है कि बालक की शिक्षा भी इससे प्रभावित होती है।
अतः बच्चे के बारे में इस प्रकार की जानकारियां उसकी समस्याओं के समाधान में शिक्षक की सहायता करती हैं।
उत्तर दीजिए –
(1) वंशानुक्रम के कौन से कारक है ?
(2) वातावरण को प्रभावित करने वाले कारक के नाम बताइए |
(3) वंशानुक्रम के कौन से नियम है , नाम लिखिए |
दोस्तों आपको यह आर्टिकल पढ़कर कैसा लगा।आप कमेंट करके हमे जरूर बताएं तथा इसे शेयर करें।
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