समय समय पर हमें छोटी कक्षाओं में या बड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं में निबंध लिखने को दिए जाते हैं। निबंध हमारे जीवन के विचारों एवं क्रियाकलापों से जुड़े होते है। आज hindiamrit.com आपको निबंध की श्रृंखला में आधुनिक शिक्षा प्रणाली पर निबंध | शिक्षा प्रणाली के दोष पर निबंध | essay on education system in hindi प्रस्तुत करता है।
Contents
आधुनिक शिक्षा प्रणाली पर निबंध | शिक्षा प्रणाली के दोष पर निबंध | essay on education system in hindi
इस निबंध के अन्य शीर्षक / नाम
(1) वर्तमान शिक्षा प्रणाली पर निबंध
(2) हमारी शिक्षा कैसी हो पर निबंध
(3) नई शिक्षा प्रणाली पर निबंध
(4) नई शिक्षा प्रणाली के दोष पर निबंध
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आधुनिक शिक्षा प्रणाली पर निबंध | शिक्षा प्रणाली के दोष पर निबंध | essay on education system in hindi
पहले जान लेते है आधुनिक शिक्षा प्रणाली पर निबंध | शिक्षा प्रणाली के दोष पर निबंध | essay on education system in hindi की रूपरेखा ।
निबंध की रूपरेखा
(1) प्रस्तावना
(2) आधुनिक शिक्षा प्रणाली के दोष
(क) कर्तव्य बुद्धि का अभाव
(ख) निरर्थक विषयो का समावेश
(ग) उद्देश्यहीनता
(घ) चरित्र की उपेक्षा
(ङ) समय का दुरुपयोग
(च) समाजीकरण का अभाव
(3) आधुनिक शिक्षा प्रणाली में सुधार
(4) उपसंहार
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आधुनिक शिक्षा प्रणाली पर निबंध | शिक्षा प्रणाली के दोष पर निबंध | essay on education system in hindi
प्रस्तावना
शिक्षा समाज की आधारशिला है। शिक्षा के द्वारा ही योग्य नागरिकों का निर्माण होता है। ऐसे नागरिक कि जो समाज अथवा राष्ट्र का उत्थान और सुरक्षा कर सकते हैं।
शिक्षा के बिना व्यक्तित्व का विकास नहीं होता और व्यक्तित्व के विकास के बिना समाज का उत्थान सम्भव नहीं; अतः किसी समाज अथवा राष्ट्र के सर्वतोन्मुखी विकास के लिए उत्तम शिक्षा का होना आवश्यक है और उत्तम शिक्षा तब हों सकती है जब शिक्षा प्रणाली उत्तम हो।
परन्तु यह खेद का विषय है कि हमारी शिक्षा प्रणाली अति दृषित हैं। यही कारण है कि हमारे देश के विकास में पग-पग पर बाधाएं आ खड़ी होती हैं।
“होता है निर्माण देश का पाकर उतम् शिक्षा
करें देश के सफल नागरिक ‘निज कर्तव्य समीक्षा
क्या विस्मय यदि घिरी हुई हैं घोर धटाएँ काली
जबकि देश में शिक्षा की दूषित हो गयी प्रणाली ॥”
आधुनिक शिक्षा प्रणाली के दोष
(क) कर्तव्य बुद्धि का अभाव
आधुनिक शिक्षा प्रणाली में गुरु और शिष्य दोनों में कर्तव्यपालन की भावना नहीं है। दोनो अपने अधिकारों के पीछे हैं। यही कारण है कि शिष्य का सम्बन्ध टूटता जा रहा है।
न शिष्य को गुरु में श्रद्धा, विश्वास तथा भक्तिभावना है, न गुरु शिष्य से प्रेम-भाव। गुरु केवल धनार्जन के लिए शिक्षा देता है और शिष्य पैसे से शिक्षा मोल लेना चाहता है।
अतः दोनों में आत्मीयता का अभाव है। ऐसी दशा में विद्या जैसी पवित्र वस्तु का आदान-प्रदान असम्भव है। सोना, चाँदी या कागज के ट्रकड़ों के बदले में ज्ञान खरीदा या बेचा नहीं जाता है।
श्रद्धा और प्रेम के द्वारा जब तक हृदय से हृदय का मिलन न हो तब तक विद्या का आदान-प्रदान नहीं हो सकता है।
(ख) निरर्थक विषयों का समावेश
आधुनिक शिक्षा प्रणाली का ढाँचा पराधीनता के बातावरण में
तैयार हुआ था।
यह वही शिक्षा प्रणाली है, जिसका सूत्रपात लार्ड मैकाले ने अँग्रेजी शासन को चलाने के उद्देश्य से किया था जिसका लक्ष्य सभ्य तथा उत्तम नागरिक बनाना नहीं, बल्कि क्लर्क अथवा शासन तन्त्र के पूर्जे तैयार करना था।
उसमें ऐसे निकम्मे और निरर्थक विषयों का समावेश है कि जो विद्यार्थियों के मस्तिष्क पर केवल बोझ है, जिनमें विद्यार्थियों की रुचि नहीं, न ही जीवन में उनकी उपयोगिता है।
(ग) उद्देश्यहीनता
आधुनिक शिक्षा का कोई उद्देश्य नहीं। उद्देश्यहीन शिक्षा उस नाविकहीन नौका के समान है जो तरंगों के थपेड़े खाती हुई या तो किसी भँवर में फंसकर पाताल में उतर जाये अथवा धारा में
भटकती हुई किसी किनारे से जा टकराये ।
आज अधिकतर विद्यार्थी नौकरी पाने के उद्देश्य से पढ़ रहे हैं, माता-पिता भी उन्हें इसी उद्देश्य से पढ़ाते है। विद्यार्थी जब कालेज से निकलकर समाज में प्रवेश करता है,वह इतना निकम्मा और फैशनपरस्त होकर आता है कि उसके लिए जीवन भार हो जाता है।
वह सनदो और उपाधियों के बण्डल लेकर नौकरी की तलाश में भटकता है। उसकी विलास और फैशन की आवश्यकताएँ तो अनन्त हो जाती हैं किन्तु जीविका का साधन उसके पांस कुछ नहीं होता। स्वयं कुछ भी करने में असमर्थ वह दूसरों का मुँह ताकता है। इस प्रकार की निरुद्देश्य शिक्षा अंधेरे में छलांग लगाने के समान है।
(घ) चरित्र की उपेक्षा
महात्मा गांधी ने कहा था-“सच्ची शिक्षा का अंर्थ है-चरित्र निर्माण। यदि कोई शिक्षर चरित्र-निर्माण नहीं निर्माण पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। यह शिक्षा केवल पुस्तकीय ज्ञान तक ही अपने को सीमित रखती है।
बहुत- से छात्र-छात्राएँ चरित्रहीन हो जाते हैं। इस शिक्षा प्रणाली में नैतिक तथा धार्मिक शिक्षा के लिए कोई स्थान नही जिससे चरित्र का निर्माण होता है।
छात्र भयंकर व्यसनों के शिकार हो जाते हैं। राष्ट्र की भावी पीढ़ी उच्च मानवीय मूल्यों से सर्वथा अनभिज्ञ होतीं जा रही है। ये शिक्षित नवयुवक ही देश के भाबी कर्णधार होंगे।
(ङ) समय का दुरुपयोग
आधुनिक शिक्षा प्रणाली में छात्रों के समय का दुरुपयोग होता है। स्कूल या कालेज में चार-पाँच घण्टे पढ़ने के बाद उन्हें और कोई काम नहीं।
किसी ऐसी कला, हस्तकौशल अथवा उद्योग की शिक्षा उन्हें दी नहीं जाती जिसमें वे अपने फालतू समय का सदुपयोग कर सकें और आत्मनिर्भर बनना सीखें । शिक्षा प्रणाली के इस दोष के कारण ही अनुशासनहीनता की भारी समस्या पैदा हो गयी है।
‘खाली दिमाग शैतान का घर है। जब विद्यार्थी के सामने कोई काम नहीं होगा तो उसका मस्तिष्क तोड़-फोड़, हल्लड़बाजी, सिनेमा देखना, प्रेमपत्र लिखना आदि कुक़मों में ही लगेगा । आखिर मस्तिष्क को तो कुछ न कुछ करना ही है।
उपसंहार
वास्तव में आधुनिक शिक्षा प्रणाली दूषित और निकम्मी है, इसमें आमूल परिवर्तन की आवश्यकता है। हमारी शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जिसमें गुरु और शिष्य के प्राचीन सम्बन्ध स्थापित हों, शिक्षा में नीति और धर्म का पर्याप्त समावेश हो।
राजनीतिज्ञ शिक्षा तन्त्र को अपने प्रचार तन्त्र के रूप में प्रयुक्त करते हैं । यह घोड़े के आगे गाड़ी लगाने वाली बात है। वास्तव में शिक्षा को पूर्ण स्वतन्त्र हीना चाहिए। शिक्षा प्रणाली ऐसी होनी चाहिए कि छात्रों का अधिक समय ज्ञान प्राप्ति, शक्ति-साधना तथा जीविकोपार्जन में बीते।
जब इस प्रकार की शिक्षा प्रणाली नहीं होगी तब तक उत्तम शिक्षा नहीं होगा और उत्तग शिक्षा के अभाव मे।सकती तो मैं उसे कुशिक्षा ही कहूँगा।” किन्तु आधुनिक शिक्षा प्रणाली में चरित्र व्यक्ति, राष्ट्र तथा समाज का कल्याण सम्भव नहीं।
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