[ NCF 2009 ] राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना 2009 के उद्देश्य / NCF 2009 के उद्देश्य / Aims of NCF 2009 in hindi

बीटीसी एवं सुपरटेट की परीक्षा में शामिल शिक्षण कौशल के विषय प्रारंभिक शिक्षा के नवीन प्रयास में सम्मिलित चैप्टर राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना 2009 के उद्देश्य / NCF 2009 के उद्देश्य / Aims of NCF 2009 in hindi आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com का टॉपिक हैं।

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राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना 2009 के उद्देश्य / NCF 2009 के उद्देश्य / Aims of NCF 2009 in hindi

[ NCF 2009 ] राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना 2009 के उद्देश्य / NCF 2009 के उद्देश्य / Aims of NCF 2009 in hindi
[ NCF 2009 ] राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना 2009 के उद्देश्य / NCF 2009 के उद्देश्य / Aims of NCF 2009 in hindi

Aims of NCF 2009 in hindi / राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना 2009 के उद्देश्य / NCF 2009 के उद्देश्य

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राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना शिक्षक शिक्षा 2009 के उद्देश्य
Aims of National Curriculum Framework Teacher Education 2009

राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना शिक्षक शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य ऐसे शिक्षकों का निर्माण करना है जो कि राष्ट्र की प्रगति के लिये उपयोगी सिद्ध हो सकें तथा समाज के लिये अनुकरणीय आदर्श प्रस्तुत कर सकें। इसके लिये राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना शिक्षक शिक्षा दो प्रकार के उद्देश्यों का निर्धारण करती है जो कि प्रत्यक्ष उद्देश्य एवं अप्रत्यक्ष उद्देश्यों के अन्तर्गत आते हैं।
इनका वर्णन निम्नलिखित रूप में किया जा सकता है-

(अ) राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना शिक्षक शिक्षा 2009 के प्रत्यक्ष उद्देश्य / Direct Aims of National Curriculum Framework
Teacher Education 2009

राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना शिक्षक शिक्षा के प्रत्यक्ष उद्देश्यों का सम्बन्ध शिक्षक के प्रत्यक्ष कार्य एवं व्यवहार से होता है जिसमें इसके माध्यम से छात्रों के कार्य एवं व्यवहार में पर्याप्त सुधार किया गया है। इन प्रत्यक्ष उद्देश्यों का वर्णन अग्रलिखित रूप में किया जा सकता है-

1. शिक्षक शिक्षा के लिये उचित पाठ्यक्रम का निर्माण

वर्तमान समय में शिक्षक से की जाने वाली अपेक्षाएँ व्यापक रूप से देखी जा सकती हैं। आज शिक्षक का दायित्व व्यापक हो गया है। इसलिये राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना शिक्षक शिक्षा 2009 शिक्षण प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले छात्राध्यापकों के लिये एक ऐसे पाठ्यक्रम का निर्माण करता है जो कि छात्राध्यापकों में आदर्श गुणों का विकास कर सके। इसलिये शिक्षक शिक्षा पाठ्यक्रम में छात्र, शिक्षक एवं समाज से सम्बन्धित जानकारी का समावेश किया गया है। विभिन्न प्रकार की दार्शनिक विचारधाराओं का समावेश भी किया गया है।

2. शिक्षक शिक्षा के लिये उचित समयावधि का निर्धारण

शिक्षक शिक्षा के लिये उचित समयावधि का निर्धारण भी इस पाठ्यक्रम संरचना का प्रमुख उद्देश्य है। इसमें डी.एड. की समयावधि 2
वर्ष निर्धारित की गयी है, यह एक डिप्लोमा कोर्स होगा। डिग्री कोर्स के रूप में बी.एड. का पाठ्यक्रम एक वर्ष का होगा। डिप्लोमा कोर्स के लिये योग्यता इण्टरमीडिएट तथा बी.एड. के लिये योग्यता स्नातक होगी। इसके साथ-साथ इस समयावधि में भी पृथक्-पृथक् समय
विभाजन की व्यवस्था का उल्लेख किया गया है।

3. शिक्षकों के लिये व्यावसायिक वृद्धि की उपलब्धता

राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना शिक्षक शिक्षा 2009 का प्रमुख उद्देश्य शिक्षकों तथा छात्राध्यापकों के लिये व्यावसायिक अभिवृद्धि का मार्ग प्रशस्त करना है।
इसके लिये पाठ्यक्रम संरचना में सेवारत प्रशिक्षण की व्यवस्था की गयी है जो कि डाइट एवं बी.आर.सी. के माध्यम से सम्पन्न की जाती है। इसमें शिक्षकों को विविध प्रकार की नवीन जानकारियों एवं शिक्षण विधियों का ज्ञान प्रदान किया जाता है, जिससे शिक्षण अधिगम
प्रक्रिया प्रभावी रूप से सम्पन्न होती है तथा शिक्षकों की व्यावसायिक वृद्धि सम्भव होती है। इससे शिक्षकों की शिक्षण कला में निखार सम्भव होता है।

4. शिक्षकों की योग्यता एवं गुणों का विकास करना

शिक्षकों की योग्यता एवं गुणों के विकास के लिये भी राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना शिक्षक शिक्षा 2009 में पूर्ण व्यवस्था है। इसमें शिक्षकों में प्रस्तुतीकरण की योग्यता, शिक्षण अधिगम वातावरण के सृजन की योग्यता एवं छात्रों की मनोदशा को समझने की योग्यता आदि के विकास की पूर्ण व्यवस्था को गयी है। इसके लिये पाठ्यक्रम में
मनोविज्ञान के सिद्धान्तों का समावेश किया है जिससे छात्राध्यापक इन सिद्धान्तों का ज्ञान प्राप्त करके छात्रों की मनोदशा समझ सकें तथा उसके अनुरूप वातावरण सृजित करके छात्रों के अधिगम
स्तर में वृद्धि कर सकें। इस प्रकार शिक्षकों में योग्यता एवं गुणों का विकास सम्भव होता है। यही पाठ्यक्रम संरचना का प्रमुख उद्देश्य है।

5. शिक्षक शिक्षा का क्रमबद्ध प्रस्तुतीकरण .

राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना शिक्षक शिक्षा 2009 में शिक्षक शिक्षा कार्यक्रम को व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत किया गया है जिससे भावी शिक्षकों को आदर्श शिक्षकों के रूप में तैयार किया जा सके। इसमें पाठ्यक्रम को तीन भागों में विभक्त किया गया है। प्रथम भाग
में शिक्षा के आधार, द्वितीय भाग में शिक्षाशास्त्र एवं पाठ्यक्रम को सम्मिलित किया गया है तथा तृतीय भाग में प्रयोगात्मक कार्य एवं इण्टर्नशिप को सम्मिलित किया गया। इस प्रकार पाठ्यक्रम
को क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित रूप प्रदान कर सिद्धान्त एवं प्रयोगदोनों में समन्वय स्थापित किया गया है।

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6. शिक्षक का विकास एक सुगमकर्ता के रूप में

राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना शिक्षक शिक्षा 2009 का प्रमुख उद्देश्य शिक्षक की भूमिका को एक सुगमकर्ता के रूप में प्रस्तुत करना है। शिक्षक को सुगमकर्ता बनाने के लिये पाठ्यक्रम में शिक्षकों के व्यवहार को छात्रों के प्रति सकारात्मक बनाने पर चर्चा की गयी है।
शिक्षक द्वारा बालकों के सीखने की प्रक्रिया को सरल एवं सुगम बनाने के व्यापक उपाय बताये गये हैं; जैसे-छात्र कहानियों के श्रवण में रुचि रखते हैं तो शिक्षक द्वारा छात्रों को विविध प्रकार की शिक्षाप्रद कहानी सुनाने की योग्यता प्राप्त होनी चाहिये जिससे छात्रों के कठिन ज्ञान सम्बन्धी मार्ग को सरल बनाने का कार्य कर सकें। इस प्रकार शिक्षक का दायित्व छात्र के शैक्षिक एवं व्यक्तिगत क्षेत्र के कार्यों को सरल एवं सुलभ बनाना है।

7. शिक्षक का विकास एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में

राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना शिक्षक शिक्षा 2009 का प्रमुख उद्देश्य शिक्षक का विकास एक कुशल सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में करना है। सामान्य रूप से प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षक को सामुदायिक सहयोग प्राप्त करने की कला आनी चाहिये। समाज से सहयोग प्राप्त करने के लिये शिक्षक को समाज के कार्यक्रमों में भाग लेना चाहिये
तथा समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों को विद्यालय में आमन्त्रित करना चाहिये। इस प्रकार समाज एवं विद्यालय एक-दूसरे के समीप आते हैं। समाज एवं विद्यालय की समीपता या समाज एवं विद्यालय की दूरी को समाप्त करने में शिक्षक की कुशल भूमिका मानी जाती है। इस कुशलता का विकास करना भी राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना शिक्षक शिक्षा 2009 का प्रमुख लक्ष्य है।

8. शिक्षक का विकास एक मनोवैज्ञानिक के रूप में

सामान्यत: शिक्षक कक्षा में जाकर पाठ्य-पुस्तक के पाठ को पढ़ाकर चले आते हैं। उनका यह कार्य उनको शिक्षक कहलाने से वंचित करता है क्योंकि शिक्षक द्वारा सर्वप्रथम बालक की मनोदशा को समझना चाहिये। इसके आधार पर उसको किसी पाठ विशेष के लिये तैयार करना चाहिये। इसके बाद जब शिक्षक पूर्ण आश्वस्त । जाये कि छात्र
उस प्रकरण के बारे में जिज्ञासा के साथ जानना चाहता है तब शिक्षक को छात्र के समक्ष उसे प्रस्तुत करना चाहिये। इस प्रकार की स्थिति के सृजन के लिये शिक्षक को मनोविज्ञान के सभी सिद्धान्तों का ज्ञान होना चाहिये। इस प्रकार शिक्षक का विकास एक मनोवैज्ञानिक के रूप में
राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना शिक्षक शिक्षा 2009 में मनोविज्ञान का पूर्ण ज्ञान कराते किया गया है।

9.शिक्षक का विकास एक विचारक के रूप में

शिक्षक का समाज में बहुत अधिक सम्मान होता है। शिक्षक को छात्र द्वारा आदर्श माना जाता है। इसलिये शिक्षक में एक दार्शनिक एवं विचारक की योग्यता विकसित करने के लिये विभिन्न दर्शनों का समावेश राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना शिक्षक शिक्षा 2009 में किया गया
है। इनके पठन के बाद एक शिक्षक द्वारा छात्रों के लिये एवं समाज के लिये एक विचारक की भूमिका का निर्वहन किया जाता है जिससे समाज एवं छात्र की कठिन परिस्थितियों में शिक्षक द्वारा आदर्श एवं उपयोगी विचार प्रस्तुत किये जाते हैं।

10.शिक्षक का विकास एक ज्ञान स्रोत के रूप में

शिक्षक शिक्षा का विकास एक ज्ञान स्रोत के रूप में होना चाहिये क्योंकि शिक्षक समाज एवं राष्ट्र दोनों का निर्माता है। इसलिये राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना शिक्षक शिक्षा 2009 में यह व्यवस्था की गयी है कि शिक्षक को सामाजिक व्यवस्था, मनोविज्ञान, बाल विकास, सामाजिक विकास, पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाएँ एवं अनेक प्रकार की दार्शनिक विचारधाराओं का ज्ञान व्यापक रूप से प्रदान किया जाय जिससे शिक्षक छात्रों की प्रत्येक समस्या का समाधान प्रस्तुत कर सके। इस प्रकार की स्थिति शिक्षक का विकास एक ज्ञान स्रोत के रूप में करती है जिसका उपयोग छात्र एवं समाज के सर्वांगीण विकास के लिये किया जा सकता है।

11. शिक्षक का विकास एक निर्देशनकर्ता एवं परामर्शदाता के रूप में

वर्तमान समय में छात्रों के समक्ष अनेक विकल्प विषय एवं व्यवसाय के सन्दर्भ में उपलब्ध हैं। इन विकल्पों का चुनाव करने में शिक्षक की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है क्योंकि छात्रों की योग्यता एवं क्षमता को प्रभावी रूप में विकसित करने तथा उसके अनुसार विषयों का चुनाव करने में छात्रों की सहायता करना उसका प्रमुख दायित्व है। इसलिये राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना शिक्षक शिक्षा में छात्राध्यापकों के लिये
निर्देशन एवं परामर्श का पूर्ण ज्ञान प्रदान किया जाता है जिससे छात्राध्यापक का विकास एक कुशल निर्देशनकर्ता एवं परामर्शदाता के रूप में हो सके तथा छात्रों को समय एवं आवश्यकता के अनुसार निर्देशन एवं परामर्श प्राप्त हो सके।

12. शिक्षक की व्यावसायिक उन्नति का उद्देश्य

राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना शिक्षक शिक्षा 2009 में शिक्षकों की व्यावसायिक उन्नति की व्यवस्था भी की गयी है जिससे शिक्षक एक बार प्रशिक्षण करने के बाद नवीन ज्ञान से वंचित न हो जाय। सामान्य रूप से शिक्षक द्वारा एक ही शिक्षा विधि एवं परम्परागत उपायों
का प्रयोग किया जाता है तो उसकी कार्य क्षमता पर उसका विपरीत प्रभाव पड़ता है। जब शिक्षक द्वारा विभिन्न प्रकार की शिक्षण विधियों एवं अनुसन्धानों के निष्कर्ष का प्रयोग किया जाता है तो उसकी शिक्षण कला में उपयोगी सुधार आता है। इसके लिये पाठ्यक्रम में सेवारत
प्रशिक्षण की व्यवस्था डाइट, ब्लॉक संसाधन केन्द्र एवं न्याय पंचायत संसाधन केन्द्रों पर की है जिसमें सभी शिक्षक एक-दूसरे से मिलते हैं तथा अपनी शैक्षिक समस्याओं का समाधान प्राप्त करते हैं। इससे व्यावसायिक उन्नति की सम्भावना होती है।

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(ब) राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना शिक्षक शिक्षा 2009 के अप्रत्यक्ष उद्देश्य / Indirect Aims of National Curriculum Framework Teacher Education 2009

इन उद्देश्यों का सम्बन्ध उस विकास प्रक्रिया से होगा जब शिक्षक द्वारा अपने दायित्वों का पालन उचित रूप में किया जा सकेगा; जैसे–एक शिक्षक छात्रों की छिपी हुई प्रतिभाओं को निखारने का प्रयास करता है। इससे छात्र एक कुशल संगीतकार या गीतकार बन जाता है।
इसके विपरीत जब शिक्षक अपने दायित्व का पालन नहीं करता तो छात्रों को अपने विकास का उचित अवसर नहीं मिल पाता। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि प्रत्यक्ष उद्देश्यों द्वारा शिक्षक का
विकास होता है तो शिक्षक द्वारा किये जाने वाले कार्यों के परिणामों का सम्बन्ध अप्रत्यक्ष उद्देश्यों से होता है। अप्रत्यक्ष उद्देश्यों का वर्णन अग्रलिखित रूप में किया जा सकता है-

1. छात्रों के सर्वांगीण विकास का उद्देश्य)

राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना 2009 में स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि एक प्रशिक्षित छात्राध्यापक की योग्यता उस स्थिति में ही पूर्ण मानी जाती है, जबकि वह छात्रों का सर्वांगीण विकास करने में सक्षम हो क्योंकि इस पाठ्यक्रम द्वारा छात्राध्यापक को उन सभी दक्षताओं एवं
कुशलताओं से अवगत करा दिया जाता है जिनकी आवश्यकता छात्रों के सर्वांगीण विकास में होती है।

2. शिक्षण अधिगम प्रक्रिया की प्रभावशीलता का उद्देश्य

शिक्षण अधिगम प्रक्रिया की प्रभावशीलता के उद्देश्य को ध्यान में रखकर ही राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना शिक्षक शिक्षा 2009 में प्रत्येक छात्राध्यापक को शिक्षण विधियों के उचित प्रयोग, शिक्षण अधिगम सामग्री के निर्माण एवं प्रयोग, छात्रों की सहभागिता प्राप्त करने के उपाय एवं छात्रों के लिये अधिगम वातावरण सृजन करने की योग्यता
आदि से परिचित कराया जाता है जिससे छात्र अपने विद्यालय के छात्रों के समक्ष प्रकरण का प्रभावी प्रस्तुतीकरण कर सकें तथा शिक्षण अधिगम प्रक्रिया प्रभावी रूप से सम्पन्न हो सके।

3. सामाजिक अपेक्षाओं की पूर्ति का उद्देश्य

राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना शिक्षक शिक्षा 2009 में शिक्षकों में सामाजिक कौशलों का विकास किया गया है। पाठ्यक्रम में अनेक प्रकार की ऐसी गतिविधियाँ निश्चित की गयी हैं जिनमें समाज एवं विद्यालय एक-दूसरे के समीप आते हैं। समाज में होने वाली विविध गतिविधियों में शिक्षक को भाग लेना चाहिये तथा विद्यालय की गतिविधियों में शिक्षक द्वारा समाज को आमन्त्रित करना चाहिये। इससे शिक्षक एवं समाज एक-दूसरे की अपेक्षाओं पर खरे उतरते हैं तथा एक-दूसरे का सहयोग करते हैं। राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना
शिक्षक शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य यही है।

4. बाल केन्द्रित शिक्षा का उद्देश्य (

विद्यालयी शिक्षा के शिक्षक केन्द्रित स्वरूप को परिवर्तित कर बाल केन्द्रित शिक्षा के रूप में स्थापित करना राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना शिक्षक शिक्षा 2009 का प्रमुख उद्देश्य है। पाठ्यक्रम में शिक्षक की भूमिका को एक सहयोगी एवं सुलभकर्ता के रूप में प्रस्तुत किया गया है जो कि अधिगम सम्बन्धी गतिविधियों की देखभाल करेगा तथा छात्रों का सहयोग करेगा। विविध प्रकार की गतिविधियों से छात्र करके सीखता है तथा शिक्षक उसका सहयोग करता है। इससे बाल केन्द्रित शिक्षा की अवधारणा पूर्ण होती है।

5. मूल्य केन्द्रित शिक्षा का उद्देश्य

राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना शिक्षक शिक्षा 2009 में मूल्य केन्द्रित शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था की गयी है। वर्तमान समय में मानव अपने स्वार्थ में पूर्णत: अन्धा हो चुका है। वह शिक्षित होने के बाद भी अनेक प्रकार के दानवों जैसे कार्य करता है। इसलिये पाठ्यक्रम में शिक्षकों के लिये अनेक प्रकार के नैतिक, पर्यावरणीय, वैज्ञानिक एवं नैतिक मूल्यों से सम्बन्धित प्रकरणों का समावेश किया गया है जिससे प्रशिक्षणार्थी छात्राध्यापक अपने भावी जीवन में अपने छात्रों को विभिन्न प्रकार के मूल्यों से युक्त शिक्षा प्रदान करके मूल्य केन्द्रित शिक्षा की अवधारणा को साकार कर सकें।

6.पोषणीय विकास का उद्देश्य (

पोषणीय विकास को वर्तमान समय की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता माना जाता है। राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना शिक्षक शिक्षा 2009 में स्पष्ट रूप से वर्णित किया गया है कि छात्राध्यापकों को पोषणीय विकास की अवधारणा का ज्ञान कराया जाय जिससे वे अपने शिक्षण काल में छात्रों को पोषणीय विकास का अर्थ समझाते हुए सभी प्राकृतिक संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग करना सिखायें तथा संसाधनों के संरक्षण एवं पोषण के उपायों के बारे में भी जानकारी प्रदान करें। इससे सामाजिक, आर्थिक एवं पर्यावरणीय क्षेत्र आदि में पोषणीय विकास सम्भव हो सकेगा।

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7. उचित मूल्यांकल का उद्देश्य

छात्रों की प्रतिभाओं का एवं योग्यताओं का जब उचित मूल्यांकन शिक्षक द्वारा नहीं किया जाता तो ऐसी स्थिति में उसकी छिपी हुई प्रतिभाओं का विकास सही रूप में नहीं हो पाता। राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना शिक्षक शिक्षा में छात्रों का उचित मूल्यांकन करने के लिये अनेक उपाय बताये गये हैं, जिससे छात्राध्यापक मूल्यांकन के नवीन एवं उपयोगी विधियों का प्रयोग करना सीख जाता है तथा छात्रों
की छिपी हुई प्रतिभाओं का मूल्यांकन कर उनका उचित विकास करता है।

8. गतिविधि आधारित शिक्षा का उद्देश्य

छात्र किसी कार्य को करके सरलता से सीखता है। इसलिये राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना शिक्षक शिक्षा 2009 में छात्राध्यापकों को प्रशिक्षित करने में विविध प्रकार की गतिविधियों के प्रयोग एवं सृजन की योग्यता सिखायी जाती है जिससे छात्राध्यापक अपने भावी जीवन में छात्रों को
गतिविधियों के माध्यम से अधिगम करा सकें। इससे एक ओर छात्रों का अधिगम स्तर उच्च होगा तथा द्वितीय रूप में गतिविधि आधारित शिक्षा का उद्देश्य पूर्ण होगा।

9. तर्क एवं चिन्तन के विकास का उद्देश्य

छात्रों में तर्क एवं चिन्तन के विकास के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना शिक्षक शिक्षा 2009 में विभिन्न दार्शनिकों की विचारधाराओं को स्थान दिया गया है जिससे सभी छात्राध्यापक इन दार्शनिक विचारों का व्यापक रूप से अध्ययन कर सकें। छात्राध्यापकों में दार्शनिक विचारों का अध्ययन करने के बाद तार्किक चिन्तन की योग्यता का विकास सम्भव होगा। परिणामस्वरूप वह अपने छात्रों में भी इस योग्यता का विकास सरल रूप में कर सकेंगे।

10. प्रभावी शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का उद्देश्य

प्रभावी शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का उद्देश्य राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना
शिक्षक शिक्षा 2009 का प्रमुख उद्देश्य है। पाठ्यक्रम में प्रभावी शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के लिये अनेक व्यवस्थाओं का प्रावधान है; जैसे-छात्रों की मनोदशा का ज्ञान करना, छात्रों को कहानी सुनाना, गीतों के माध्यम से शिक्षण करना एवं कविताओं के माध्यम से शिक्षण करना
आदि। इसके साथ-साथ खेलों के माध्यम से शिक्षण कार्य करने की व्यवस्था इस पाठ्यक्रम में है। इस प्रकार की गतिविधियों के माध्यम से प्रभावी शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का उद्देश्य पूर्ण होता है।

11. अधिगम वातावरण के सृजन का उद्देश्य

छात्रों के अधिगम स्तर को उच्च बनाने के लिये एक कुशल शिक्षक द्वारा अधिगम वातावरण का सृजन किया जाता है। राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना शिक्षक शिक्षा 2009 में शिक्षण अधिगम सामग्री के प्रयोग, प्रस्तावना प्रश्नों का प्रयोग, गीत एवं कविताओं के प्रयोग की योग्यता प्रत्येक छात्राध्यापक में विकसित करने का प्रावधान है जिससे छात्राध्यापक इस कुशलता के आधार पर अपने भावी जीवन में अपनी कक्षा के छात्रों के लिये अधिगम वातावरण का सृजन
कर सकेंगे तथा अधिगम वातावरण के सृजन के उद्देश्य को प्राप्त कर सकेंगे।

12. पर्यावरणीय मूल्यों के विकास का उद्देश्य

वर्तमान समय में पर्यावरणीय असन्तुलन एवं पर्यावरणीय प्रदूषण
एक गम्भीर समस्या है। इसके समाधान के लिये राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना शिक्षक शिक्षा 2009 में व्यापक प्रावधान प्रस्तुत किये गये। पर्यावरणीय ज्ञान को छात्राध्यापकों के लिये अनिवार्य बताया गया है जिससे छात्राध्यापक स्वयं में पर्यावरणीय मूल्यों को विकसित कर
सकें तथा इसके साथ-साथ अपने भावी जीवन में छात्रों को पर्यावरणीय मूल्य सिखा सकें। उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना शिक्षक शिक्षा 2009 के उद्देश्य शिक्षक, शिक्षार्थी एवं पाठ्यक्रम से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं। जिस प्रकार
शिक्षक शिक्षा एवं शिक्षक दायित्व का क्षेत्र व्यापक है ठीक उसी प्रकार राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना शिक्षक शिक्षा 2009 के उद्देश्य भी पूर्णत: व्यापक हैं जो कि मानव के सम्पूर्ण जीवन से सम्बन्धित होते हैं।



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