प्रतिभाशाली बालकों की पहचान,विशेषताएं,प्रकार / प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा एवं शिक्षण सामग्री

बीटीसी एवं सुपरटेट की परीक्षा में शामिल शिक्षण कौशल के विषय समावेशी शिक्षा में सम्मिलित चैप्टर प्रतिभाशाली बालकों की पहचान,विशेषताएं,प्रकार / प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा एवं शिक्षण सामग्री आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com का टॉपिक हैं।

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(Talented child) प्रतिभाशाली बालकों की पहचान,विशेषताएं,प्रकार

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प्रतिभाशाली बालक किसे कहते हैं

सामान्यतः औसत स्तर के बालकों से अधिक बुद्धिमान बालकों को प्रतिभाशाली बालक कहा जाता है। इनकी बुद्धि लब्धि औसत स्तर के बालकों से अधिक होती है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार 130 या इससे अधिक बुद्धि लब्धि वाले बालक प्रतिभाशाली बालक होते हैं। यह बालक किसी विषय वस्तु अथवा कार्य को सामान्य बालक की अपेक्षा में जल्दी सीख जाते हैं एवं सामान्य वालों को की अपेक्षा किसी कार्य को जल्दी कर लेते हैं।

प्रतिभाशाली बालक की परिभाषाएं

टरमैन एवं ओडेन के अनुसार,“ प्रतिभाशाली बालक शारीरिक गठन, समाजिक समायोजन, व्यक्तित्व के गुणों, विद्यालयी उपलब्धियों, खेल की सूचनाओं एवं रुचियों की विविधताओं में सामान्य बालकों से श्रेष्ठ होते हैं।”

क्रो एंड क्रो के अनुसार,“ प्रतिभाशाली बालक दो प्रकार के होते हैं प्रथम वे बालक जिनकी बुद्धि लब्धि 130 से अधिक होती तथा जो असाधारण बुद्धि वाले होते हैं। और द्वितीय वे बालक जो किसी विषय विशेष जैसे कला, गणित, संगीत, अभिनय आदि में से किसी एक अथवा एक अथवा अधिक में विशेष योग्यता रखते हैं।”

प्रतिभाशाली बालकों की शैक्षिक आवश्यकताएँ

प्रतिभाशाली बालकों की बुद्धि लब्धि 140 या उससे अधिक होती है। किसी भी राष्ट्र की उन्नति तथा विकास में उस राष्ट्र के प्रतिभावान बालक-बालिकाओं का योगदान रहता है। विशेष बालकों की शिक्षा के अन्तर्गत शारीरिक रूप से अक्षम, विकलांग, पिछड़े, मन्द बुद्धि तथा प्रतिभावान बालक आते हैं। प्रतिभावान बालक सभी वर्गों में हो सकते हैं। अत: प्रतिभावान बालकों की शिक्षण व्यवस्था पर उचित ध्यान दिया जाय तो निश्चित रूप से यह समाज हेतु उपयोगी सिद्ध होगा। सामान्य आवश्यकताओं या मूल आवश्यकताओं से हटकर प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षण व्यवस्था अलग से होनी चाहिये। ये बालक धनात्मक या सकारात्मक विशिष्टता लिये होते हैं। अतः विशिष्ट शिक्षण की व्यवस्था आवश्यक है। प्रतिभावान बालकों के शिक्षण हेतु राष्ट्रीय शिक्षा नीति सन् 1986 में निःशुल्क एवं गुणात्मक शिक्षा की व्यवस्था की गयी है।

राष्ट्रीय स्तर पर प्रत्येक जिले में एक नवोदय विद्यालय स्थापित हुआ है जिसमें ग्रामीण क्षेत्र के प्रतिभावान बालक-बालिकाएँ प्रवेश पाते हैं। यहाँ बालकों को नि:शुल्क शिक्षा, शिक्षण सामग्री, भोजन, आवास तथा गणवेश आदि उपलब्ध कराये जाते हैं। ये विद्यालय आवासी होने के कारण बालकों में सामाजिकता की भावना का विकास करने हेतु प्रयासरत हैं। इनके होते हुए भी प्रतिभावान बालक-बालिकाएँ समाज एवं राज्य से निम्नलिखित अपेक्षाएँ रखते हैं-

1. विशेष शिक्षण की अपेक्षा-प्रतिभावान बालक समाज एवं राज्य से यह अपेक्षा करते हैं कि उनके लिये विशेष शिक्षण की व्यवस्था की जाय क्योंकि उनकी मानसिक क्षमता एवं आवश्यकताएँ सामान्य बालकों से कहीं अधिक होती हैं। सामान्य कक्षाओं में अनेक बार इन प्रतिभावान बालकों को गलत समझा गया क्योंकि ऐसे बालक सामान्यकक्षा में कुछ विशेष ज्ञान प्राप्त नहीं कर पाते। इसलिये उनको अपनी प्रतिभा का अधिकतम विकास करने के लिये अलग शिक्षण व्यवस्था होनी चाहिये।

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2. विशेष पाठ्यक्रम की व्यवस्था की अपेक्षा-प्रतिभावान बालकों के लिये सामान्य बालकों की अपेक्षा विशेष पाठ्यक्रम की व्यवस्था होनी चाहिये क्योंकि ये सामान्य पाठ्यक्रम को शीघ्र ही समझ लेते हैं। फलत: इनके पाठ्यक्रम को समस्या केन्द्रित अथवा योजना केन्द्रित बनाया जाए।

3. पाठ्य सहगामी क्रियाओं के आयोजन की अपेक्षा-ऐसे बालकों के लिये पाठ्य-सहगामी क्रियाओं का अधिकाधिक आयोजन आवश्यक है ताकि उनकी अतिरिक्त ऊर्जा तथा क्षमता का पूरा उपयोग किया जा सके एवं उनका सर्वांगीण विकास हो सके।

4. सन्दर्भ पुस्तकों के पठन की अपेक्षा-ऐसे बालक-बालिकाओं के लियेनिर्धारित पाठ्य-पुस्तकों के अतिरिक्त अन्य सन्दर्भ ग्रन्थ विद्यालय के पुस्तकालय से या अन्यसंस्थाओं से उपलब्ध कराये जायें।

5. विशिष्ट शिक्षण विधियों के प्रयोग की अपेक्षा-ऐसे बालकों के लिये सामान्य या परम्परागत विधियों से हटकर आधुनिकतम विधियों-समस्या विधि,समाधान विधि, क्रियात्मक विधि एवं प्रायोजना विधि आदि का प्रयोग किया जाये।

6. उच्च आदर्शों का प्रदर्शन-प्रतिभावान बालकों की जिज्ञासा शान्त करने हेतु उनके समक्ष उच्च आदर्श रखे जायें।

7. वैयक्तिक विभिन्नता को महत्त्व देना-सभी स्तरों पर इनकी वैयक्तिक भिन्नता को समझकर इनको शिक्षण दिया जाय।

8. शिक्षक को समृद्धता–प्रतिभावान बालकों के पढ़ाने वाले शिक्षक सभी दृष्टि से योग्य एवं शैक्षिक रूप से समृद्ध होने चाहिये।

प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा (Education of Gifted Children)

प्रतिभावान बालकों को सामान्य बालकों की भाँति शिक्षा नहीं दी जानी चाहिये क्योंकि ऐसा करने से उसका व्यक्तित्व पूर्णरूप से विकसित नहीं हो पाता। इनके लिये शिक्षा व्यवस्था हेतु निम्नांकित प्रयास किये जा सकते हैं-

1. विस्तृत पाठ्यक्रम-प्रतिभावान बालकों के लिये विशेष और विस्तृत पाठ्यक्रम तैयार किया जाना चाहिये। इस प्रकार के पाठ्यक्रम में अधिक और कठिन विषय रखे जाने  चाहिये जिससे उनकी मौलिक योग्यता, तर्क चिन्तन, सामान्य मानसिक योग्यता तथा रचनात्मक शक्तियों आदि का विकास किया जा सके।

2. व्यक्तिगत शिक्षा-कुछ शिक्षाविदों की राय यह है कि ऐसे बालकों हेतु व्यक्तिगत शिक्षण प्रदान किया जाना चाहिये परन्तु यह बड़ी कक्षा में व्यावहारिक नहीं है।

3. विशेष विद्यालय और कक्षाएँ-प्रतिभावान बालकों को छाँटकर उनके लिये विशेष विद्यालय तथा कक्षाओं की व्यवस्था की जानी चाहिये।

4. सामान्य रूप से कक्षोन्नति-प्रतिभावान बालक विषय को अधिक शीघ्रता से समझ लेते हैं। अत: कुछ मनोवैज्ञानिकों के अनुसार उनको कक्षा में वर्ष में दो बार कक्षोन्नति दी जानी चाहिये।

5. विशिष्ट अध्यापन विधियों का प्रयोग-प्रतिभावान बालकों को पढ़ाने के लिये विशिष्ट शिक्षण विधियों (गतिवर्द्धन, पृथकीकरण तथा सम्पन्नीकरण) आदि को प्रयोग में ला सकते हैं। योजना विधि को भी प्रयोग में ला सकते हैं।

6. गतिवर्द्धन विधि का प्रयोग-गतिवर्द्धन का तात्पर्य है किसी बालक का एक अनुदेशन स्तर से दूसरे अनुदेशन स्तर की ओर सामान्य बालकों की अपेक्षाकृत कम समय में आना । जैसे-जब सामान्य बालक एक वर्ष में एक कक्षा उत्तीर्ण करता है, प्रतिभावान बालक दो या तीन कक्षाएँ उत्तीर्ण कर लेता है। यह तभी सम्भव है जब बालक प्रथम स्तर पर पूर्णत: कुशलता प्राप्त कर लेता है। गतिवर्द्धन तभी सम्भव है जब कक्षा में दिये जाने वाले अनुदेशन भिन्न हों अर्थात् प्रतिभावान बालक के अनुरूप हों। ऑटो (Otto) के अनुसार-“इस विधि को केवल व्यक्तिगत मामलों में प्रयोग करना चाहिये और तभी प्रयोग करना चाहिये जब शारीरिक,संवेगात्मक तथा सामाजिक विकास की ओर विशेष ध्यान दिया जासके।”

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7. पृथकीकरण विधि का प्रयोग-इस विधि का सर्वप्रथम प्रयोग न्यूजर्सी अमेरिका में किया गया। इस विधि में विद्यार्थियों के योग्यतानुसार विभिन्न समूह बना दिये जाते हैं और इन समूहों को पूर्ण रूप से विकास की छूट दी जाती है। क्वीवलेण्ड, ओहिबो तथा न्यूयार्क आदि में विशिष्ट कक्षाओं की उत्तम व्यवस्था है। यह विधि घमण्ड एवं कुसमायोजन उत्पन्न कर सकती है। साथ ही पृथक् कक्षा या विद्यालय बनाने के लिये धन की आवश्यकता पड़ती है। ऑटो के अनुसार-“बहुत कम विद्यालय ऐसे होंगे जहाँ अत्यधिक कमरे एवं जगह होगी, जहाँ पर प्रतिभावान बालकों को सामान्य बालकों से पृथक् करके पढ़ाया जा सके।”

8. सम्पन्नीकरण विधि-आधुनिक युग में विशिष्ट बालकों को पढ़ाने का प्रमुख तरीका सम्पन्नीकरण है। यह विधि अधिक प्रचलित है क्योंकि इसमें खर्च कम बैठता है। इस विधि में प्रतिभावान बालक उस पाठ्यक्रम का जिसे सामान्य बालक पढ़ता है, अधिक विस्तृत एवं गूढ़ रूप से अध्ययन करता है। यह विधि प्रभावकारी है। होरेस मन के अनुसार-“जो पृथकीकरण के पक्ष में हैं, उनका कहना है कि यह अधिक प्रजातान्त्रिक है, जबकि सम्पन्नीकरण के पक्षवालों का कहना है कि यह विधि अधिक जीवनदायक एवं प्रभावकारी है।”

9. पुस्तकालय एवं वाचनालय की सुविधा-ऐसे बालकों के लिये अच्छे पुस्तकालय एव वाचनालयों की व्यवस्था की जाये। इस प्रकार उन्हें विभिन्न प्रकार का ज्ञान अर्जित करने का अवसर मिलेगा।

10. सामूहिक कार्य को प्रोत्साहन-प्रतिभावान बालकों को सामूहिक कार्य करने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये। इससे उनकी क्षमता में वृद्धि होती है।

11. स्वतन्त्र कार्य का प्रबन्ध-ऐसे बालकों को स्वतन्त्र रूप से कार्य करने का अवसर प्रदान करना चाहिये। इससे उनमें आत्म-विश्वास उत्पन्न होता है।

12. संस्कृति की शिक्षा-ऐसे बालकों को अपनी संस्कृति के विकास की शिक्षा दी जानी चाहिये। इससे वे समाज में अपना उचित विकास कर सकते हैं।

13. भाषण एवं शैक्षिक पर्यटन-ऐसे बालकों के लिये भाषण तथा शैक्षिक पर्यटन का आयोजन समय-समय पर करते रहना चाहिये ताकि उनकी वाचन क्षमता (वाशक्ति) का विकास हो सके।

14. उचित मार्ग-दर्शन-इन बालकों को शैक्षिक एवं व्यावसायिक मार्ग-दर्शन सेवाओं का लाभ दिया जाना चाहिये।

15. पाठ्य-सहगामी क्रियाओं का आयोजन-ऐसे बालकों के लिये  पाठ्य-सहगामी क्रियाओं का आयोजन करना चाहिये ताकि उनकी विविध रुचियाँ विकसित हो सकें, उनकी पहचान हो सके। ऐसे बालकों की प्रतिभा के विकास के लिये विशेष पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं को आवश्यक माना गया है, क्योंकि इनमें अतिरिक्त शक्ति होती है फलत: वे इस शक्ति का प्रयोग इन पाठ्य-सहगामी क्रियाओं के माध्यम से सही दिशा में कर सकते हैं। ऐसे बालकों को विभिन्न प्रतियोगिताओं, गोष्ठियों, शैक्षिक भ्रमण (यात्राओं) तथा पुस्तकालय आदि के लिये ले जाया जाना चाहिये। साथ ही विशेष बौद्धिक खेलों, सहायक उपकरणों का निर्माण करवाने, विशेष उत्तरदायित्व सौंपने तथा विशेष कौशलों का विकास करने आदि की भी व्यवस्था की जा सकती है।

16. योग्य अनुभवी एवं प्रशिक्षित शिक्षकों द्वारा शिक्षण-ऐसे बालकों का शिक्षण योग्य, अनुभवी, समर्पित एवं प्रशिक्षित शिक्षकों द्वारा कराया जाना चाहिये ताकि वे बालकों की योग्यता, क्षमता और आवश्यकता के अनुसार शिक्षा दे सकें।

17. नेतृत्व गुणों का विकास-प्रतिभावान बालकों में सामाजिकता तथा नेतृत्व सम्बन्धी गुणों का पर्याप्त विकास किया जाना चाहिये।

18. विशेष अवकाशकालीन कक्षाओं की व्यवस्था-प्रतिभावान बालकों के लिये विशेष अवकाशकालीन (विशेषतः ग्रीष्मावकाश) कक्षाओं की व्यवस्था की जाये।

19. खेलों तथा अध्ययन के उपकरण- ऐसे बालकों के लिये समुचित विकास करने के उद्देश्य से खेलों तथा अध्ययन के उपकरणों की अधिक सुविधा दी जाय।

20. छात्रवृत्ति की सुविधा-ऐसे बालकों को छात्रवृत्ति की सुविधा दी जाये ताकि निर्धन परिवार का बालक भी आगे शिक्षा ग्रहण कर सके।

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प्रतिभाशाली बालकों के लिये शिक्षक की भूमिका / Role of Teacher for Gifted Children

प्रतिभाशाली बालकों को केवल शाब्दिक वर्णन करके ही सिखाया जा सकता है। इनके लिये पुनरावृत्ति की आवश्यकता नहीं होती। प्रतिपुष्टि के रूप में आवश्यकतानुरूप इन्हें गलत कार्य करने पर डाँटना या निन्दा करना आदि कार्य भी किये जासकते हैं। इनको आवश्यकतानुसार अधिकाधिक प्रयोगशाला उपकरण, पुस्तकें एवं अन्य सामग्री उपलब्ध करानी चाहिये जिससे ये अपनी पूरी शक्ति का उपयोग कर सकें। विशेष योग्यताधारी, विशेष शिक्षण विधि एवं तकनीक के ज्ञाता अध्यापकों द्वारा इनको शिक्षण देना अधिक उपयोगी रहेगा। प्रतिभावान एवं शोध प्रवृत्ति के शिक्षक ही ऐसे बालकों को उचित दिशा दे सकते हैं एवं उनको प्रगति की ओर ले जा सकते हैं।

अध्यापकों को यह बात भी ध्यान रखनी चाहिये कि ऐसे बालकों हेतु विशेष कक्षा की सुविधा देने से उनमें कोई अभिमान न आ जाये अथवा किसी बुरी आदत से वे ग्रसित न हो जायें। प्रतिभावान बालकों की विशिष्ट प्रतिभा का पूरा विकास हो और ऐसे बालकों को सर्वांगीण विकास हो सके, ऐसे शिक्षण की व्यवस्था करनी चाहिये। प्रतिभावान बालकों के सफल शिक्षण हेतु एक शिक्षक के निम्नलिखित दायित्व हैं-

(1) पृथक् कक्षाओं की व्यवस्था करना (2) सुनियाजित कार्यक्रमों की व्यवस्था करना जिसमें बालक व्यवस्थित रूप से कार्यरत रहें।(3) उनकी शंकाओं के निवारण हेतु कक्षा अध्ययन के निश्चित समय से अलग शिक्षा देना । (4) अधिक मात्रा में प्रश्न देना तथा कठिन प्रश्न देना ताकि बालक मस्तिष्क का पूरा प्रयोग कर सके।(5) कमजोर बालकों के मार्ग-दर्शन हेतु, प्रतिभाशाली बालकों की सहायता लेना । (6) शिक्षक द्वारा व्यक्तिगत रूप से ध्यान देना। (7)अधिक पुस्तकों को पढ़ने के प्रति रुचि जागृत करना तथा पुस्तकों की व्यवस्था करना । (8) अधिक गृह कार्य देना तथा साथियों के गृह कार्य में त्रुटियों को दूर करने का सुझाव देना (9) चुनौतीपूर्ण एवं रुचिकर प्रश्नों का समावेश करना। (10) प्रतिभावान छात्रों के लिये अन्त:शाला और अन्त:कक्षा प्रतियोगिताओं का आयोजन करना।

प्रतिभाशाली छात्रों के लिये शिक्षण अधिगम सामग्री

प्रतिभाशाली छात्रा के लिये शिक्षण अधिगम सामग्री का स्वरूप तकनीकी ज्ञान एवं उच्चस्तरीय व्यवस्था पर आधारित होनी चाहिये; जैसे-कम्प्यूटर एवं इण्टरनेट के माध्यम से छात्रों को विशिष्ट शिक्षण विषयवस्तु को समझाया जा सकता है,उनको जो भी गृह कार्य दिया जाय वह इण्टरनेट एवं कम्प्यूटर से सम्बन्धित दिया जाय। इसके साथ-साथ वीडियो कॉन्फ्रेन्स एवं उच्चस्तरीय वीडियो फिल्म दिखाकर उनकी शिक्षण अधिगम प्रक्रिया पूर्ण की जा सकती है।

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