विद्यालय प्रबंधन में शिक्षक की भूमिका / विद्यालय प्रबंधन हेतु शिक्षक के गुण एवं विशेषताएं

बीटीसी एवं सुपरटेट की परीक्षा में शामिल शिक्षण कौशल के विषय शैक्षिक प्रबंधन एवं प्रशासन में सम्मिलित चैप्टर विद्यालय प्रबंधन में शिक्षक की भूमिका / विद्यालय प्रबंधन हेतु शिक्षक के गुण एवं विशेषताएं आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com का टॉपिक हैं।

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विद्यालय प्रबंधन में शिक्षक की भूमिका / विद्यालय प्रबंधन हेतु शिक्षक के गुण एवं विशेषताएं

विद्यालय प्रबंधन में शिक्षक की भूमिका / विद्यालय प्रबंधन हेतु शिक्षक के गुण एवं विशेषताएं
विद्यालय प्रबंधन में शिक्षक की भूमिका / विद्यालय प्रबंधन हेतु शिक्षक के गुण एवं विशेषताएं


शिक्षक के गुण एवं विशेषताएं / विद्यालय प्रबंधन में शिक्षक की भूमिका

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विद्यालय प्रबन्धन में शिक्षक की भूमिका / Role of Teacher in School Management

विद्यालय तथा शिक्षा-पसति की वास्तविक, गत्यात्मक (Dynamic) तथा प्रशासनिक शक्ति शिक्षक ही है। निर्विवाद यह बात सत्य है कि विद्यालय भवन, पाठ्यक्रम-सहगमी क्रियाएं, निर्देशन कार्यक्रम, पाठ्य-पुस्तकें आदि सभी वस्तुएँ शैक्षिक कार्यक्रम में बहुत महत्त्वपूर्ण ध्यान रखती है लेकिन जब तक उनमें अच्छे शिक्षकों द्वारा जीवन-शक्ति प्रदान नहीं की जायेगी तब तक वे निरर्थक रहेंगी। शिक्षक ही वह शक्ति है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आने वाली सन्ततियों पर अपना प्रभाव डालती है। शिक्षक ही राष्ट्रीय एवं भौगोलिक सीमाओं को लाँधकर विश्व-व्यवस्था तथा मानव जाति को उन्नति के पथ पर अग्रसर करता है। अत: यह कहा जा सकता है कि मानव समाज का विकास एवं देश की उन्नति उत्तम शिक्षकों पर ही निर्भर है। शिक्षा प्रणाली में कुछ शिक्षाविदों के अनुसार, शिक्षक की स्थिति निम्नलिखित प्रकार से प्रस्तुत हैं –

(1) हुमायूँ कबीर का कथन है-“वे (शिक्षक) राष्ट्र के भाग्य-निर्णायक हैं। यह कथन प्रत्यक्ष रूप से सत्य प्रतीत होता है परन्तु अब इस बात पर अधिक बल देने की आवश्यकता है कि शिक्षक ही शिक्षा के पुनर्निर्माण की महत्त्वपूर्ण कुंजी है। यह शिक्षक वर्ग की योग्यता ही है जो कि निर्णायक है।”

(2) हुमायूँ कबीर का ही मत है-“शिक्षा पद्धति की सफलता शिक्षकों की योग्यता पर निर्भर है अच्छे शिक्षकों के अभाव में सर्वोत्तम शिक्षा पद्धति का भी असफल होना अवश्यम्भावी है। अच्छे शिक्षकों द्वारा शिक्षा पद्धति के दोषों को भी अधिकांशत: दूर किया जा सकता है।”

(3) माध्यमिक शिक्षा आयोग ने अपने प्रतिवेदन में लिखा है-“अपेक्षित शिक्षा के पुनर्निर्माण में सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व शिक्षक, उसके व्यक्तिगत गुण, उसकी शैक्षिक योग्यताएँ, उसका व्यावसायिक प्रशिक्षण और उसकी स्थिति जो वह विद्यालय तथा समाज में ग्रहण करता है, ही है। विद्यालय की प्रतिष्ठा तथा समाज के जीवन पर उसका प्रभाव नि:सन्देह रूप में उन शिक्षकों पर निर्भर है जो कि उस विद्यालय में कार्य कर रहे हैं।”

इस प्रकार से शिक्षक का महत्त्व समाज तथा शिक्षा पद्धति दोनों में ही स्पष्ट है। वस्तुत: शिक्षक उन भावी नागरिकों का निर्माण करता है, जिनके ऊपर राष्ट्र के उत्थान एवं पतन का भार है।

विद्यालय प्रबन्धन हेतु शिक्षक के गुण
Qualities of Teacher for School Management

आदर्श शिक्षक को मनुष्यों का निर्माता, राष्ट्र निर्माता, शिक्षा-पद्धति की आधारशिला तथा समाज को गति प्रदान करने वाला आदि सबकुछ माना गया है। साधारणत: शिक्षक में बालकों को समझने की शक्ति, उनके साथ उचित रूप में कार्य करने की क्षमता, शिक्षण-योग्यता, कार्य करने की इच्छा-शक्ति और सहकारिता आदि गुणों की अपेक्षा की जाती है। ऐसे गुण सामान्यतः न तो प्रत्येक शिक्षक में मिलते हैं और न शिक्षण प्रत्येक व्यक्ति का कार्य ही है। वस्तुत: यह कार्य वही व्यक्ति कर सकता है जिसमें कुछ विशिष्ट शारीरिक, बौद्धिक, सामाजिक, नैतिक एवं संवेगात्मक गुण हों। शिक्षण एक मानसिक प्रक्रिया है, जिसमें मस्तिष्क का मस्तिष्क से सम्बन्ध स्थापित किया जाता है। इस सम्बन्ध की उपयुक्तता एवं अनुपयुक्तता बहुत कुछ शिक्षक के व्यक्तित्व पर निर्भर होती है। इस सम्बन्ध में समय-समय पर अध्ययन भी किये गये हैं।

संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में डॉ.एफ. एल. क्लैप ने सन् 1993 में एक अध्ययन किया जिसके आधार पर उन्होंने अच्छे शिक्षक के व्यक्तित्व के दस गुणों का उल्लेख किया है-(1) सम्बोधन । (2) वैयक्तिक आकृति । (3) आशावादिता। (4) संयमा (5) उत्साह । (6) मानसिक निष्पक्षता।
(7) शुभचिन्तन । (8) सहानुभूति। (9) जीवन-शक्ति तथा (10) विद्वता। अमेरिका में बागले तथा कीथ के अध्ययन के फलस्वरूप उपर्युक्त गुणों में चातुर्य, नेतृत्व की क्षमता तथा अच्छा स्वर नामक गुण और जोड़े गये। इन गुणों की सूचियों को तैयार करने में विद्वानों ने विद्यालयों के प्रधानाचार्या, निरीक्षकों तथा अधीक्षकों की ही सम्मतियों ली थी इनके निर्माण में उन्होंने छात्रों की सम्मतियों का कोई भी उपयोग नहीं किया।

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बॉसिंग ने बालकों की राय को सूची में दो अन्य गुणों को भी सम्मिलित किया विनोदप्रियता तथा छात्रों के प्रति मैत्रीपूर्ण भी अपने अध्ययन का विषय बनाया और उसके आधार पर शिक्षक के व्यक्तित्व के गुणों की जो तुच्छ एव होन हों क्योंकि उसी पर समस्त छात्रों की दृष्टि लगी रहती है और शिक्षक स्वयं को रेमाण्ट (Raymont) का मत है कि “शिक्षक को उन सभी बातों का त्याग करना चाहिये सदैव उच्च आदशा एव विचारीको मन,वचन तथा कर्मसेव्यवहारमलाये जिनका बालकों पर अपने छात्रा पर अपना प्रभाव डालने से नहीं बचा सकता। इसलिये यह आवश्यक है कि वह सर्वोत्तम प्रभाव पड़ सके। राष्ट्रपिता गाँधीजी ने भीखेद के साथ कहा था कि शिक्षकों के आदर्श एवं व्यवहार में प्रायः सामंजस्य नहीं हो पाता वे कहते कुछ हैं और करते कुछ और हैं।”

उपर्युक्त विवेचन के आधार पर शिक्षक के प्रमुख गुणों का वर्णन निम्नलिखित प्रकार से किया जा रहा है।

1. शिक्षक के प्रशासनिक वैयक्तिक गुण
Administrative Personal Qualities of Teacher

एक अच्छे शिक्षक में निम्नलिखित प्रशासनिक वैयक्तिक गुण होने चाहिये–

1. उत्तम स्वास्थ्य एवं जीवन-शक्ति-शिक्षक का यह विशेष गुण है कि उसका स्वास्थ्य उत्तम हो । परीक्षणों के आधार पर यह देखा गया है कि स्वस्थ शरीर का स्वस्थ मस्तिष्क से उच्च प्रकार का सहसम्बन्ध होता है। हरबर्ट स्पेन्सर का मत है “जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिये अच्छा एवं स्वस्थ प्राणी होना आवश्यक है। यदि शिक्षक बीमार है तो वह भली प्रकार से अध्ययन-कार्य नहीं कर सकता क्योंकि शक्ति एवं स्फूर्ति ही शिक्षक के कार्य में आशावादिता,उत्साह एवं जीवन-शक्ति लाती है। शिक्षक का केवल शारीरिक रूप से हष्टपुष्ट होना ही आवश्यक नहीं है वरन् उसमें चेतनता का होना भी आवश्यक है।

आर्थर बी. मोलमैन का कथन है “एक सफल शिक्षक के लिये जीवन शक्ति का होना आवश्यक है। यह केवल इसलिये ही आवश्यक नहीं है कि इसका प्रभाव बालकों में प्रतिबिम्बात्मक रूप में पड़ेगा परन्तु थकान से उत्पन्न हुई बाधाओं को कम करने के लिये भी यह आवश्यक है।”

2. संवेगात्मक सन्तुलन-शिक्षक में संवेगात्मक सन्तुलन का होना परमावश्यक है। इसके अभाव में वह अपने छात्रों का भावात्मक विकास करने में असफल रहेगा। यदि शिक्षक स्वयं संवेगात्मक रूप में असन्तुलित है तो इससे छात्रों को हानि ही नहीं वरन् विद्यालय में बहुत- सी समस्याएँ भी उत्पन्न होंगी।

3. सामाजिक गुण-सामाजिक समझदारी मुख्यत: सामाजिक सम्बन्धों द्वारा अनुप्राणित विश्वास के माध्यम से प्राप्त की जाती है। इसलिये प्रत्येक व्यक्ति में सामाजिक गुणों का होना आवश्यक है क्योंकि असामाजिक व्यक्ति इस विश्वास-सामाजिक सम्बन्धों द्वारा अनुप्राणित का निर्माण करने में असफल रहता है। शिक्षक को उन सामाजिक गुणों को अवश्य ग्रहण करना चाहिये, जो उसे कक्षा-कक्ष तथा समुदाय दोनों में सहायता प्रदान करेंगे। इनमें से कुछ गुणों को वह सम्पर्क द्वारा कुछ को प्रशिक्षण द्वारा प्राप्त कर सकता है। उदाहरणार्थ सामाजिक चातुर्य, उत्तम यशक्ति, जीवन के प्रति आशावादी दृष्टिकोण, परिस्थितियों का सामना करने का साहस, अपनी कमियों को स्वीकार करने की तत्परता तथा मिलजुल कर कार्य करने की क्षमता आदि।

4. निर्मल चरित्र –एक राष्ट्र-निर्माता होने के नाते शिक्षक से अपेक्षा की जाती है कि आपका चरित्र निर्मल हो और उसमें मिशनरियों की भाँति अपने कार्य के लिये उत्साह हो। यदि शिक्षक मैं सच्चरित्रता का अभाव है तो वह अपने घों एवं समाज काठपयुक्त लग से पथ-प्रदर्शन नहीं कर सकता।

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5. नेतृत्व की सपना-शिक्षक में नेतृत्व की क्षमता होना भी आवश्यक है परन्तु शिक्षक को जिस प्रकार की नेतृत्व क्षमता की आवश्यकता है वह अन्य प्रकार के नेतृत्व से भित्र है। शिक्षक का नेतृत्व टाके चरित्र, शक्ति प्रभावकारिता तथा दूसरों से प्राप्त आदर पर निर्भर है, अर्थात् शिक्षक का नेतृत्व उसके व्यक्तित्व पर आधारित है। इस प्रकार का नेतृत्व पथ-प्रदर्शन करने, समूह के साथ कार्य करने तथा टो सहायता देने एवं समूह को शिक्षक के सामान्य ध्येय की प्राप्ति हेतु अग्रसर करने के लिये प्रोत्साहित करने की क्षमता पर निर्भर है परन्तु यहाँ ध्यान देने योग्य है कि अति दृढ़ व्यक्तित्व नेतृत्व के लिये उसी प्रकार की अयोग्यता है, जिस प्रकार कि निर्वल व्यक्तित्व।

इस तथ्य को बल देते हुए डॉ.बैलाई ने कहा है “भावी शिक्षक अपने छात्रों  पर अपने व्यक्तित्व का प्रभाव डालने से बहुत कम सम्बन्ध रखेगा। इसके विपरीत यह अपने छात्रों के व्यक्तित्व को समझने तथा प्रत्येक अत्र में उस दीप शिखा को खोजने का प्रयत्न करेगा जो कि उनके व्यक्तित्व को दैदीप्यमान बनाती है तथा उस शक्ति स्रोत को खोजेगा, जो उनको प्रेरित करती है।”

6. मित्रता एवं सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार-उपर्युक्त गुणों के अतिरिक्त शिश्चक में यह गुण भी होना चाहिये कि वह अपने छात्रों तथा सहयोगी शिक्षकों के साथ मैत्रीपूर्ण एवं सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करे। यदि शिक्षक इस प्रकार का व्यवक्षर अपने छात्रों के साथ करेगा तो वह उनके विश्वास को शीघ्र ही प्राप्त कर लेगा। इसके अतिरिक्त वह उनके चरित्र का निर्माण करने में भी समर्थ होगा। शिक्षक को अपने सहयोगियों के साथ भी सहृदयतापूर्ण व्यवहार करना चाहिये क्योंकि विद्यालय शिक्षण एक सहयोगी कार्य है इसको सफलतापूर्वक तभी किया जा सकता है जव समस्त शिक्षक शिक्षालय-व्यवस्था तथा शिक्षण के संचालन में परस्पर सहयोग के साथ कार्य करेंगे। अत: शिक्षक को सदैव अपने उच्चाधिकारियों, प्रधानाध्यापक, निरीक्षक आदि को मित्र तथा पथ-प्रदर्शक के रूप में देखना चाहिये।

2.शिक्षक के प्रशासनिक व्यावसायिक गुण
Administrative Professional Qualities of Teacher

शिक्षक के व्यावसायिक गुणों का विवरण निम्नलिखित प्रकार है-

1. विषय का पूर्ण ज्ञान-कोई भी व्यक्ति विषय के ज्ञान के अभाव में शिक्षक नहीं हो सकता। अत: शिक्षक के लिये यह अति आवश्यक है कि वह विद्यालय में जिस विषय का शिक्षण करे उसका उसे पूर्ण ज्ञान हो। यदि उसका विषय सम्बन्धी ज्ञान अपूर्ण होगा तो वह अपने छात्रों का विश्वासपात्र नहीं बन सकेगा। इस सम्बन्ध में एक विद्वान् का मत है “एक अयोग्य चिकित्सक रोगी के शारीरिक हित के लिये खतरनाक है परन्तु एक अयोग्य शिक्षक राष्ट्र के लिये इससे भी अधिक घातक है क्योंकि वह न केवल अपने छात्रों के मस्तिष्क को विकृत बनाता है तथा हानि पहुंचाता है वरन् उनके विकास को अवरुद्ध करता है तथा उनकी आत्मा को मोड़ देता है।”

के. जी. सैयदेन ने कहा है “बर्तन में से कोई वस्तु तब तक उड़ेलकर नहीं निकाल सकते जब तक कि आपने वह वस्तु उसमें रखनदी हो। यदि शिक्षक ज्ञान एवं बुद्धि की दृष्टि से हीन एवं खोखला है और यदि उसमें ज्योति प्रदान करने वाली शक्ति नहीं है तो वह अपने बालकों के मस्तिष्क को प्रखर या उनकी भावनाओं को मानवीय रूप प्रदान नहीं कर सकता। यदि वह स्वयं प्रदीप्त दीप नहीं है तो वह दूसरों में ज्ञान के प्रकाश को प्रसारित करने में सदैव असमर्थ रहेगा।”

2. व्यावसायिक प्रशिक्षण-शिक्षक के लिये यही आवश्यक नहीं कि वह यह जाने कि उसे क्या पढ़ाना है वरन् उनको यह भी जानना है कि, “किस प्रकार पढ़ाना है तथा किसको पढ़ाना है। इन प्रश्नों का उत्तर जानने के लिये उसको व्यावसायिक प्रशिक्षण (Professional raining) प्राप्त करना अति आवश्यक है। आज विश्व की कोई भी शिक्षा पद्धति ऐसी नहीं है जो विद्यालयों के लिये प्रशिक्षित अध्यापकों की आवश्यकता का अनुभव न करती हो। अत: प्रत्येक शिक्षा पद्धति में प्रशिक्षण विद्यालयों को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है। यहाँ तैयार होने वाले शिक्षकों को बालक की प्रकृति को समझने तथा शिक्षण प्रदान करने के ढंगों से परिचित कराया जाता है।

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इन प्रशिक्षण विद्यालयों के पाठ्यक्रमों में मनोविज्ञान, विद्यालय प्रशासन एवं संगठन, स्वास्थ्य शिक्षा, शिक्षण सिद्धान्त आदि विषयों को स्थान दिया जाता है। इसके अतिरिक्त छात्राध्यापकों को व्यावहारिक प्रशिक्षण भी प्रदान किया जाता है। साथ ही जब वे शिक्षक का पद ग्रहण कर लेते हैं तो उनके व्यावसायिक ज्ञान को नवीन बनाये रखने के लिये विभिन्न गोष्ठियों, विचार-सम्मेलनों, अभिनव कोसौं, सेमीनारों आदि का आयोजन किया जाता है। अत: प्रशिक्षित होना और शिक्षा सम्बन्धी गोष्ठियों आदि में भाग लेते रहना शिक्षक का आवश्यक गुण है।

3.व्यावसायिक निष्ठा-शिक्षक को अपने विषय तथा व्यवसाय में निष्ठारखना आवश्यक है क्योंकि निष्ठा ही उसे कार्य करने के लिये प्रोत्साहित करती है। यदि उसे अपने विषय तथा व्यवसाय में निष्ठा नहीं होगी तो वह अपना तथा अपने छात्रों का विकास अवरुद्ध कर देगा। इस सम्बन्ध में मार्क पैप्सिन का कथन है-“एक अच्छे शिक्षक का प्रथम गुण यह है कि वह एक अध्यापक हो और कुछ नहीं तथा उसको एक शिक्षक के रूप में ही प्रशिक्षित किया जाये।” उसे यह ध्यान रखना चाहिये कि जब उसने इस व्यवसाय को ग्रहण किया है तो उसे इसमें पूर्ण निष्ठा के साथ कार्य करना है।

4. पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं में रुचि-आजकल शिक्षण-कार्य कक्षा-कक्ष में दिये जाने वाले निर्देशा तक ही सीमित नहीं वरन् इससे कहीं अधिक माना जाता है। आधुनिक विद्यालय शिक्षकों से इस बात की अपेक्षा करते हैं कि वे विषयों का ज्ञान प्रदान करने के अतिरिक्त कक्षा-कक्ष के बाहर की क्रियाओं के संगठन एवं संचालन का भी कार्य करें। जब खेलकूद, स्काउटिंग, नाटक, वाद-विवाद, भ्रमण, रेडक्रॉस, छात्र-संघ, संगीत-क्लब आदि क्रियाओं को पाठ्यक्रम तथा विद्यालय के नियमित कार्य से सम्बन्धित कर दिया गया है तब यह आवश्यक हो जाता है कि शिक्षक इन क्रियाओं में भाग लेने के लिये स्वयं को तत्पर बनाये।

5. प्रयोग एवं अनुसन्धान में रुचि-आधुनिक युग शिक्षकों से यह भी माँग करता है कि उनको अपने कार्यक्षेत्र में अनुसन्धानकर्ता होना चाहिये। शिक्षा में अनुसन्धान का महत्त्व प्रतिदिन अपना आधार निर्मित करता जा रहा है। शिक्षकों को कक्षा-कक्ष समस्याओं के निराकरण के लिये वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग करके शिक्षा की प्रगति में सहयोग देना चाहिये। छात्रों को क्या पढ़ाना है?, क्यों पढ़ाना है? किस प्रकार पढ़ाना है? आदि मूलभूत शैक्षिक समस्याओं का समाधान करने के लिये उसे अनुसन्धान एवं प्रयोग करने चाहिये।

जिन गुणों का ऊपर विवेचन किया जा चुका है, उनके बहुत-से गुणों को शिक्षक प्रकृति से प्राप्त करता है इसलिये यह कहा जाता है कि अच्छे शिक्षक पैदा होते हैं बनाये नहीं जाते परन्तु प्रशिक्षण एवं अनुभव की भी उनके निर्माण में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। प्रशिक्षण विद्यालयों के पाठ्यक्रम का भी उद्देश्य अनुभवहीन शिक्षक को शिक्षा के विषय में चिन्तन करने के लिये सहायता देना तथा उनसे कुशल व्यक्तियों की देखरेख में कुछ समय के लिये शिक्षण कार्य कराना है। इन विद्यालयों में नवयुवक शिक्षक के समक्ष शिक्षण के उत्तम ढंगों एवं साधनों को प्रस्तुत किया जाता है जो उसकी कक्षा कक्ष में सहायता कर सकं परन्तु ये ढंग अन्तिम ढंगों एवं साधनों के रूप में प्रदान नहीं किये जाते, वरन् उन भानदण्डों के रूप में दिये जाते हैं, जिनके द्वारा वह अपने प्रयासों का मूल्यांकन कर सके।

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