बीआरसी और एनपीआरसी के कार्य / बीएसए और एबीएसए के कार्य

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बीआरसी और एनपीआरसी के कार्य / बीएसए और एबीएसए के कार्य

बीआरसी और एनपीआरसी के कार्य / बीएसए और एबीएसए के कार्य
बीआरसी और एनपीआरसी के कार्य / बीएसए और एबीएसए के कार्य


एनपीआरसी और बीआरसी के कार्य / बीएसए और एबीएसए के कार्य

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विद्यालय प्रबन्धन में पर्यवेक्षण तन्त्र की भूमिका

विद्यालय प्रबन्धन का पर्यवेक्षण करने के लिये समय-समय पर अधिकारियों का भ्रमण होता है। इस भ्रमण के समय अधिकारी विद्यालयों के शैक्षणिक प्रबन्धन, भौतिक संसाधनों के प्रबन्धन तथा मानवीय संसाधनों के प्रबन्धन का पर्यवेक्षण करते हैं। इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को पर्यवेक्षण के नाम से जाना जाता है। इस प्रकार का पर्यवेक्षण करने वाले अधिकारियों के समूह को पर्यवेक्षण तन्त्र के नाम से जाना जाता है। पर्यवेक्षण तन्त्र में निम्नलिखित पर्यवेक्षण अधिकारी पाये जाते हैं-
(1) ब्लॉक संसाधन केन्द्र समन्वयक। (2) न्याय पंचायत केन्द्र के समन्वयक। (3) सहायक बेसिक शिक्षा अधिकारी। (4) प्रति उप विद्यालय निरीक्षक। (5) जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान। (6) जिला समन्वयक। (7) उप बेसिक शिक्षा अधिकारी। (8) जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी। (9) उच्च अधिकारी।

1. ब्लॉक संसाधन केन्द्र समन्वयक की विद्यालय प्रबन्धन में भूमिका

ब्लॉक संसाधन केन्द्र के समन्वयक उस ब्लॉक के सम्पूर्ण विद्यालयों का पर्यवेक्षण करने का अधिकार रखते हैं। ब्लॉक समन्वयक द्वारा विद्यालय में निरीक्षण तथा पर्यवेक्षण करके विद्यालय प्रबन्धन के बारे में अपने विचारों से विद्यालय के प्रधानाध्यापक तथा उच्च अधिकारियों को अवगत कराया जाता है। ब्लॉक संसाधन केन्द्र के समन्वयक की विद्यालय प्रबन्धन में भूमिका को निम्नलिखित रूप में स्पष्ट किया जा सकता है-

(1) ब्लॉक समन्वयक द्वारा विद्यालय का पर्यवेक्षण करके विद्यालय में उपलब्ध संसाधनों की उपयोगिता को ज्ञात किया जाता है तथा उनके सुधार के निर्देश दिये जाते हैं। (2) ब्लॉक समन्वयक द्वारा विद्यालय प्रधानाध्यापक की प्रबन्धन सम्बन्धी समस्याओं को सुना जाता है तथा उनका समाधान किया जाता है। (3) ब्लॉक समन्वयक द्वारा विद्यालय भवन सम्बन्धी समस्याओं को ज्ञात करके उनके समाधान हेतु धन उपलब्ध कराया जाता है जिससे समस्या का समाधान हो सके।(4) ब्लॉक समन्वयक द्वारा आये धन के उपयोग के बारे में पर्यवेक्षण किया जाता है कि विद्यालय में जिस पद के लिये धन आया है उस मद में खर्च हो रहा है या नहीं।

(5) ब्लॉक समन्वयक द्वारा विद्यालय में अध्यापकों की उपस्थिति पर भी ध्यान दिया जाता है। अधिक छात्र संख्या वाले विद्यालयों में अध्यापकों की संख्या अधिक करने के लिये उच्च अधिकारियों को प्रस्ताव भेजा जाता है। (6) ब्लॉक समन्वयक द्वारा पर्यवेक्षण के समय विद्यालय प्रबन्धन के लिये जिन साधनों का अभाव देखा जाता है, उनकी व्यवस्था के प्रयत्न किये जाते हैं। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि ब्लॉक समन्वयक, भौतिक संसाधनों एवं मानवीय संसाधनों के विद्यालयी प्रबन्धन में समय-समय पर पर्यवेक्षण करके महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है क्योंकि विद्यालय प्रबन्धन के लिये आवश्यक साधनों की सूचना उच्च अधिकारियों को ब्लॉक समन्वयक द्वारा ही दी जाती है।

2. न्याय पंचायत केन्द्र समन्वयक की विद्यालय प्रबन्धन में भूमिका

न्याय पंचायत केन्द्र समन्वयक के पर्यवेक्षण अधिकार क्षेत्र में एक न्याय पंचायत के सभी विद्यालय आते हैं। ब्लॉक का क्षेत्र विस्तृत होने के कारण ब्लॉक समन्वयक की सहायता हेतु न्याय पंचायत समन्वयकों की नियुक्ति न्याय पंचायत स्तर पर की जाती है। यह अपने विद्यालय पर्यवेक्षण के समय विद्यालय प्रबन्धन सम्बन्धी समस्याओं पर ध्यान देते हैं तथा उनके समाधान हेतु विचार प्रस्तुत करते है। न्याय पंचायत समन्वयकों के विद्यालय प्रबन्धन सम्बन्धी कार्य निम्नलिखित प्रकार है-

(1) न्याय पंचायत समन्वयक प्रत्येक विद्यालय का माह में एक या दो बार पर्यवेक्षण करके प्रबन्धन सम्बन्धी समस्याओं को जात करते हैं तथा समाधान के लिये उच्च अधिकारियों के लिये प्रेषित करते है। (2) न्याय पंचायत समन्वयक शैक्षिक प्रबन्धन हेतु अध्यापकों को नवीन शिक्षण विधियों का प्रदर्शन करते हुए ज्ञान कराते हैं जिससे शिक्षण अधिगम प्रक्रिया रुचिपूर्ण बन सके। (3) न्याय पंचायत समन्वयक विद्यालय भवन की स्थिति एवं उसके लिये अनुमानित धन की आवश्यकता की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को देते हैं।

(4)न्याय पंचायत स्तर पर शिक्षकों के अस्थायी प्रबन्धन की व्यवस्था भी न्याय पंचायत समन्वयक द्वारा की जाती है जैसे किसी एकल विद्यालय में अधिक छात्र संख्या होने पर दूसरे विद्यालय में अधिक शिक्षक होने पर एक शिक्षक एकल विद्यालय में भेजने का अधिकार न्याय पंचायत समन्वयक को होता है। (5) न्याय पंचायत समन्वयक द्वारा प्रधानाध्यापक की विद्यालय प्रबन्धन सम्बन्धी समस्याओं को माह में एक या दो बार बैठक करके ज्ञात किया जाता है तथा उनके समाधान हेतु उच्च अधिकारियों के समक्ष प्रेषित किया जाता है।

3.सहायक बेसिक शिक्षा अधिकारी की विद्यालय प्रबन्धन में भूमिका

सहायक बेसिक शिक्षा अधिकारी की नियुक्ति ब्लॉक स्तर पर की जाती है। ब्लॉक के विद्यालयों की प्रबन्धन व्यवस्था का उत्तरदायित सहायक बेसिक शिक्षा अधिकारी पर होता है जिसे वह स्वयं तथा अपने अधीनस्थों की सहायता से पूर्ण करता है। सहायक बेसिक शिक्षा अधिकारी द्वारा समय-समय पर विद्यालयों के प्रबन्धन का पर्यवेक्षण किया जाता है तथा प्रबन्धन सम्बन्धी समस्याओं का समाधान किया जाता है। जिस समस्याओं का समाधान वह स्वयं कर सकता है उनका समाधान स्वयं करता है तथा जिन समस्याओं का समाधान वह स्वयं नहीं कर सकता उन्हें वह अपने उच्च अधिकारियों को प्रेषित कर देता है। सहायक बेसिक शिक्षा अधिकारी के विद्यालय प्रबन्धन सम्बन्धी कार्य निम्नलिखित प्रकार हैं-

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(1) सहायक बेसिक शिक्षा अधिकारी द्वारा विद्यालयों के भवन में होने वाली टूट-फूद्ध कैलिये सूचना भेतकर उच्च अधिकारियों के माध्यम से धन उपलब्ध कराया जाता है। (2) सहायक बेसिक शिक्षा अधिकारी द्वारा नवीन विद्यालयों के लिये भवन निर्माण की स्वीकृति देते हुए उच्च अधिकारियों को प्रस्ताव भेजा जाता है जिससे कि देश के सभी बालक-बालिकाओं के लिये प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध करायी जा सके। (3) सहायक बेसिक शिक्षा अधिकारी द्वारा सम्पूर्ण विद्यालयों का पर्यवेक्षण करके प्रबन्धन हेतु सामुदायिक संसाधनों की सहायता प्राप्त करने के लिये प्रधानाध्यापकों को प्रेरित किया जाता है।

(4) सहायक बेसिक शिक्षा अधिकारी द्वारा सम्पूर्ण विद्यालयों के शैक्षिक प्रबन्धन की दृष्टि से शिक्षकों के समायोजन का कार्य किया जाता है जिससे सभी विद्यालयों के छात्रों को शिक्षा प्रदान की जा सके। (5) सहायक बेसिक शिक्षा अधिकारी द्वारा विद्यालय के भौतिक संसाधन प्रबन्धन के अन्तर्गत विद्यालय भवनों तथा अन्य संसाधनों का पर्यवेक्षण किया जाता है तथा उससे सम्बन्धित समस्याओं का समाधान किया जाता है। (6) सहायक बेसिक शिक्षा अधिकारी द्वारा शिक्षकों की नियमित और समय से उपस्थिति को निश्चित किया जाता है जिससे शिक्षण व्यवस्था सुचारु रूप से चल सके।

4. प्रति उप विद्यालय निरीक्षक की विद्यालय प्रबन्धन में भूमिका

सहायक बेसिक शिक्षा अधिकारी के कार्यों में सहायता पहुँचाने के जिये प्रति उप विद्यालय निरीक्षकों की नियुक्ति की जाती है जिससे कि विद्यालय प्रबन्धन सम्बन्धी कार्यों में गुणवत्ता उत्पन्न की जा सके। प्रति उप विद्यालय निरीक्षक को वित्तीय अधिकार नहीं होते हैं। विद्यालयों में पर्यवेक्षण करके विभिन्न प्रकार की प्रबन्धन सम्बन्धी सूचना देने का कार्य प्रति उप विद्यालय निरीक्षक का होता है। प्रति उप विद्यालय निरीक्षक के कार्यों को निम्नलिखित रूप में स्पष्ट किया जा सकता है-

(1) प्रति उप विद्यालय निरीक्षक द्वारा विद्यालयों का समय-समय पर पर्यवेक्षण किया जाता है तथा प्रधानाध्यापकों को विद्यालयी प्रबन्धन सम्बन्धी सुझाव प्रस्तुत किये जाते हैं। (2) प्रति उप विद्यालय निरीक्षक का प्रमुख कार्य सहायक बेसिक शिक्षा अधिकारी की सहायता करना तथा उसके निर्देशों का पालन करना होता है। (3) प्रति उप विद्यालय निरीक्षक सहायक बेसिक शिक्षा अधिकारी की अनुपस्थिति में विद्यालय प्रबन्धन सम्बन्धी कार्यों का निरीक्षण करता है। (4) प्रति उप विद्यालय निरीक्षक द्वारा शैक्षिक प्रबन्धन सम्बन्धी व्यवस्थाओं का विद्यालयों में पर्यवेक्षण किया जाता है तथा सम्बन्धित समस्याओं का समाधान किया जाता है। (5) प्रति उप विद्यालय निरीक्षण द्वारा विद्यालय भवनों सम्बन्धी निरीक्षण कार्य करके सहायक बेसिक शिक्षा अधिकारी को सूचना प्रदान करते हैं।

5.जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान की विद्यालय प्रबन्धन में भूमिका

जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान के कर्मचारियों द्वारा विद्यालय प्रबन्धन की दिशा में महत्त्वपूर्ण प्रयत्न किये जाते हैं। इसके प्रवक्ताओं द्वारा समय-समय पर विद्यालयों का पर्यवेक्षण किया जाता है तथा विद्यालयों की शिक्षण व्यवस्था के लिये सुझाव प्रस्तुत किये जाते हैं। जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान के कार्य निम्नलिखित प्रकार हैं-

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(1) डायट के कर्मचारियों द्वारा शिक्षा को गुणवत्तापूर्ण बनाने के लिये लक्ष्य निर्धारित किये जाते हैं तथा विद्यालयों को धन भी उपलब्ध कराया जाता है। (2) डायट द्वारा शिक्षकों की क्षमता में वृद्धि हेतु नवीन शिक्षण विधियों का ज्ञान कराने हेतु प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। यह प्रशिक्षण सेवारत प्रशिक्षण होता है। (3) डायट द्वारा अपने प्रवक्ताओं को ब्लॉक स्तर पर प्रभारी नियुक्त करके विद्यालयों की प्रबन्धन सम्बन्धी समस्याओं को ज्ञात किया जाता है तथा उनके समाधान हेतु प्रयास किया जाता है। (4) डायट के प्रवक्ताओं द्वारा शिक्षण अधिगम सामग्री के प्रयोग को सुनिश्चित किया जाता है तथा इसके सर्वोत्तम प्रयोग पर विचार किया जाता है। (5) डायट द्वारा विभिन्न प्रकार की विद्यालय प्रबन्धन सम्बन्धी योजनाओं का स्वरूप तैयार किया जाता है तथा उनके क्रियान्वयन की व्यवस्था की जाती है। इसमें अन्य शिक्षा अधिकारियों का सहयोग किया जाता है।

6.जिला समन्वयक की विद्यालय प्रबन्धन में भूमिका

जिला समन्वयक की भूमिका भी विद्यालय प्रबन्धन में महत्त्वपूर्ण होती है। जिला समन्वयक जिले कि किसी भी विद्यालय का पर्यवेक्षण करके विद्यालय व्यवस्था के उत्थान हेतु अपने सुझाव प्रस्तुत कर सकता है। जिला समन्वयक के सहयोग के लिये ब्लॉक समन्वयकों की नियुक्ति की जाती है। जिला समन्वयक के विद्यालय प्रबन्धन सम्बन्धी कार्यों को निम्नलिखित रूप में स्पष्ट किया जाता है-

(1) जिला समन्वयक द्वारा ब्लॉक समन्वयकों द्वारा प्रस्तुत प्रबन्धकीय प्रस्तावों पर विचार किया जाता है तथा उचित प्रस्तावों को स्वीकृत करते हुए उच्च अधिकारियों को प्रेषित किया जाता है। (2) जिला समन्वयक द्वारा शिक्षा की दृष्टि से पिछड़े तथा दुर्गम स्थानों के विद्यालयों में प्रबन्धन हेतु पर्यवेक्षण करके सुझाव प्रस्तुत किये जाते हैं। (3) जिला समन्वयक द्वारा ब्लॉक संसाधन केन्द्रों का निरीक्षण किया जाता है तथ अनसे विद्यालय प्रबन्ध सम्बन्धी आँकड़े एकत्रित कर लिये जाते हैं। (4) जिला समन्वयक द्वारा विद्यालयों के जिला स्तरीय प्रबन्धन की योजनाओं में अपनी सहभागिता का प्रदर्शन किया जाता है क्योंकि विद्यालयों की प्रबन्धन सम्बन्धी समस्याओं के आँकड़े उसके पास उपलब्ध होते हैं। (5) जिला समन्वयक द्वारा ब्लॉक संसाधन समन्वयकों की बैठक बुलायी जाती है जिसमें विद्यालयों में प्रबन्धन सम्बन्धी समस्याओं के समाधान पर विचार किया जाता है तथा शिक्षा को उच्चस्तरीय बनाने के उपायों पर चर्चा की जाती है।

7. उप बेसिक शिक्षा अधिकारी की विद्यालय प्रबन्धन में भूमिका

उप बेसिक शिक्षा अधिकारियों की नियुक्ति बेसिक शिक्षा अधिकारियों की सहायता हेतु की जाती है। उप बेसिक शिक्षा अधिकारियों द्वारा भी समय-समय पर विद्यालयों का पर्यवेक्षण किया जाता है तथा विद्यालयी व्यवस्था का मूल्यांकन कर आवश्यक सुझाव प्रस्तुत किये जाते हैं।
उप बेसिक शिक्षा अधिकारी द्वारा विद्यालय प्रबन्धन सम्बन्धी निम्नलिखित कार्य किये जाते हैं-

(1) उप बेसिक शिक्षा अधिकारी द्वारा विद्यालयों का भ्रमण नियमित न होकर आवश्यकता के अनुसार किया जाता है तथा विद्यालयी व्यवस्थाओं की सूचना बेसिक शिक्षा अधिकारी को प्रदान की जाती है।(2) बेसिक शिक्षा अधिकारी की अनुपस्थिति में उप बेसिक शिक्षा अधिकारी द्वारा जिले के समस्त विद्यालयों की प्रबन्धन व्यवस्था का पर्यवेक्षण किया जाता है। (3) उप बेसिक शिक्षा अधिकारी द्वारा भवन निर्माण सम्बन्धी कार्यों का निरीक्षण उस अवस्था में किया जाता है तब उस विद्यालय की प्रबन्धकीय अनियमितताओं की सूचनाएँ प्राप्त होती हैं। (4) उप बेसिक शिक्षा अधिकारी द्वारा वित्तीय प्रबन्धन सम्बन्धी कार्यों का भी सम्पादन किया जाता है। (5) बेसिक शिक्षा अधिकारी द्वारा बेसिक शिक्षा अधिकारी के निर्देशों का पालन किया जाता है तथा उसको सम्पूर्ण जिले की प्रबन्धकीय व्यवस्थाओं से अवगत कराया जाता है।

8.जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी की प्रबन्धन में भूमिका

जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी जिले की बेसिक शिक्षा का प्रमुख अधिकारी होता है। इसके निर्णय को ही प्रायः अन्तिम मानकर योजनाएँ तैयार की जाती है। यदि इसके निर्णय में कहीं त्रुटियाँ दृष्टिगोचर होती हैं तो इसमें उच्च अधिकारियों द्वारा संशोधन कर दिया जाता है। जिले के समस्त प्राथमिक विद्यालयों की प्रबन्धकीय व्यवस्था का उत्तरदायित्व बेसिक शिक्षा अधिकारी पर होता है। बेसिक शिक्षा अधिकारी द्वारा निम्नलिखित प्रबन्धकीय कार्य सम्पत्र किये जाते हैं-

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(1) जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी द्वारा जिले के समस्त विद्यालयों में छात्रों के अनुपात के आधार पर शिक्षकों की व्यवस्था की जाती है जिससे शिक्षण व्यवस्था सुचारु रूप से चलती रहे। (2) जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी द्वारा पर्यवेक्षण एवं आँकड़ों के आधार पर अध्यापकों के अतिरिक्त पद सृजन करने हेतु शासन को संस्तुति भेजी जाती है। (3) बेसिक शिक्षा अधिकारी द्वारा नवीन प्राथमिक विद्यालयों एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों को खोलने की स्वीकृति प्रदान करके प्रस्ताव भेजा जाता है। धन उपलब्ध होने पर विद्यालय का निर्माण किया जाता है। (4) बेसिक शिक्षा अधिकारी द्वारा विद्यालय भवनों के निर्माण की गुणवत्ता की जाँच की जाती है क्योंकि अनेक बार मानकों के अनुसार भवनों का निर्माण नहीं होता है। (5) बेसिक शिक्षा अधिकारी द्वारा समय-समय पर पर्यवेक्षण कार्य करके विद्यालय में शिक्षण प्रबन्धन एवं भौतिक संसाधनों की उपलब्धता पर विचार किया जाता है तथा प्रबन्धन सम्बन्धी समस्याओं का समाधान किया जाता है।

9.उच्च अधिकारियों की विद्यालय प्रबन्धन में भूमिका

उच्च अधिकारियों के अन्तर्गत शिक्षा विभाग के अधिकारी एवं प्रशासनिक अधिकारियों को सम्मिलित किया जाता है।इन अधिकारियों का पर्यवेक्षण विशेष परिस्थितियों में या शिकायत की परिस्थिति में होता है। इन अधिकारियों द्वारा भी विद्यालय प्रबन्धन में अप्रत्यक्ष रूप से भूमिका का निर्वाह किया जाता है जैसे,किसी प्रशासनिक अधिकारीद्वारा किसी अध्यापक के अनुपस्थित होने पर दण्ड स्वरूप उसको निलम्बित करने की संस्तुति करता है परन्तु उसका क्रियान्वयन बेसिक शिक्षा अधिकारी के द्वारा होता है। इसी प्रकार अनेक प्रकार के प्रबन्धकीय कार्य प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से उच्च अधिकारियों द्वारा सम्पन्न किये जाते हैं। उच्च अधिकारियों द्वारा विद्यालय प्रबन्ध से सम्बन्धित निम्नलिखित कार्य किये जाते हैं-

(1) प्रशासनिक अधिकारी किसी कार्यवश ग्रामीण क्षेत्रों का भ्रमण करते हैं तो विद्यालयों का पर्यवेक्षण अवश्य करते हैं। पर्यवेक्षण के समय पायी जाने वाली त्रुटियों को सुधारने के लिये चेतावनी देकर आते हैं। (2) विशेष प्रकार के दर्जा प्राप्त ग्रामों) जैसे-अम्बेडकर ग्राम का उच्च अधिकारियों द्वारा पर्यवेक्षण किया जाता है तो इस क्षेत्र में आने वाले प्राथमिक विद्यालयों तथा उच्च प्राथमिक विद्यालयों के प्रबन्धन का कार्य भी इनके द्वारा देखा जाता है तथा उपयुक्त सुझाव प्रस्तुत किये जाते हैं। (3) ग्रामीण विकास कार्यों की समीक्षा करने के लिये जाते समय यह आवश्यक हो जाता है कि उच्च अधिकारी वहाँ के प्राथमिक विद्यालयों का भी पर्यवेक्षण करें तथा उनकी उचित व्यवस्था हेतु सुझाव प्रस्तुत करें।

(4) उच्च अधिकारियों को विशेष कार्यक्रमों पर भी विद्यालयों में आमन्त्रित किया जाता है तथा प्रधानाध्यापक द्वारा विद्यालय की
प्रबन्धकीय समस्याओं से उच्चाधिकारियों को अवगत कराया जाता है तथा यह अपेक्षा की जाती है कि वे विद्यालय की इन समस्याओं का समाधान करेंगे। (5) उच्च अधिकारियों द्वारा विद्यालय विशेष की शिकायत पर भी पर्यवेक्षण किया जाता है जिसमें वह विद्यालय की उन समस्त अनियमितताओं को दूर करने का प्रयास करता है। जो विद्यालय व्यवस्था से सम्बन्धित होती हैं। उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि विद्यालय प्रबन्धन के क्षेत्र में पर्यवेक्षण करने बाले सभी अधिकारियों की भूमिका प्रशंसनीय होती है। प्रत्येक अधिकारी का यह प्रयत्न होता है कि विद्यालय में उपलब्ध संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग हो तथा शिक्षण अधिगम व्यवस्था किसी भी रूप में बाधित न हो। वर्तमान प्राथमिक विद्यालयों का विकसित एवं परिमार्जित स्वरूप पर्यवेक्षण तन्त्र की ही देन है।

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