विज्ञान शिक्षण की निर्धारित दक्षताएं (प्राथमिक, उच्च प्राथमिक एवं माध्यमिक स्तर पर) | CTET SCIENCE PEDAGOGY

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विज्ञान शिक्षण की निर्धारित दक्षताएं (प्राथमिक, उच्च प्राथमिक एवं माध्यमिक स्तर पर) | CTET SCIENCE PEDAGOGY

विज्ञान शिक्षण की निर्धारित दक्षताएं (प्राथमिक, उच्च प्राथमिक एवं माध्यमिक स्तर पर) | CTET SCIENCE PEDAGOGY
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विज्ञान शिक्षण हेतु प्राथमिक स्तर पर निर्धारित दक्षताएँ

तारादेवी रिपोर्ट (1956) माध्यमिक शिक्षा आयोग ने विज्ञान शिक्षण के प्रति जो चेतना पैदा की, उसी के परिणामस्वरूप 1956 में “ऑल इण्डिया सेमीनार ऑफ टीचिंग इन सैकेण्डरी स्कूल” आयोजित की गयी। इसमें विज्ञान शिक्षण सम्मेलन,शिमला के सुझावों के अनुसार विभिन्न स्तरों पर विज्ञान शिक्षण के उद्देश्यों को 1956 में शिक्षा मन्त्रालय ने प्रकाशित किया, जो निम्न प्रकार हैं-
(1) प्रकृति के प्रति भौतिक एवं सामाजिक वातावरण के प्रति रुचि उत्पन्न करना व उसे बनाये रखना।
(2) प्रकृति के प्रति प्रेम जाग्रत करना तथा प्रकृति तथा उसके साधनों को सुरक्षित रखने की आदत का विकास करना ।
(3) निरीक्षण, ज्ञान, वृद्धि, वर्गीकरण व विधिवत् चिन्तन की आदतों को विकसित करना ।
(4) बालकों की प्रयोगात्मक, रचनात्मक तथा आविष्कारक शक्तियों का विकास करना ।
(5) साफ और संयत आदतों का विकास करना ।
(6) स्वस्थ जीवनयापन की आदतों का निर्माण करना ।

कोठारी आयोग (1964-66)- भारतीय शिक्षा आयोग (1964-66) ने शिक्षा के विभिन्न स्तरों के लिए विज्ञान के निम्नलिखित उद्देश्यों का सुझाव दिया-

(1) निम्न प्राइमरी स्तर-

(i) निम्न प्राइमरी स्तर पर बालक के सामाजिक, भौतिक तथा जीव विज्ञान सम्बंन्धी वातावरण पर ही विशेष ध्यान देना चाहिए ।
(ii) पहली और दूसरी कक्षाओं में स्वच्छता और स्वस्थ आदतों पर बल देना चाहिए।
(iii) निरीक्षण करने की शक्ति का विकास करना चाहिए ।
(iv) तीसरी और चौथी कक्षाओं में अध्ययन के अन्तर्गत व्यक्तिगत स्वास्थ्य-रक्षा तथा स्वच्छता को सम्मिलित करना चाहिए।
(v) चौथी श्रेणी में बालकों को रोमन अक्षरमाला का ज्ञान कराना चाहिए। यह आवश्यक है क्योंकि विश्व द्वारा स्वीकृत वैज्ञानिक नाप-तौल की इकाइयों के प्रतीक तथा रासायनिक तत्वों तथा यौगिकों के संकेतों को रोमन अक्षरों में लिखा जाता है।
(vi) निरीक्षण शक्ति का विकास करना।
(vii) घटना के कारण का अवलोकन कर समस्या सुलझाने की क्षमता बढ़ाना ।

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(2) उच्चतर प्राइमरी स्तर-

(i) इस स्तर पर ज्ञान प्राप्ति, तर्कपूर्ण चिन्तन, निष्कर्ष निकालना तथा उच्चस्तरीय निर्णय लेने व तार्किक चिन्तन पर विशेष बल देना ।
(ii) विज्ञान को भौतिक, रसायन, जीव-विज्ञान, भू-विज्ञान, नक्षत्र विज्ञान आदि विषयों के रूप में पढ़ाना चाहिए। सामान्य विज्ञान के स्थान पर विज्ञान के अलग-अलग विषयों को पढ़ाना बालकों को आवश्यक वैज्ञानिक आधार प्रदान करने की दृष्टि से अधिक प्रभावशाली होगा ।

ईश्वरभाई पटेल कमेटी

वर्तमान पाठ्यकम शहरीकृत किताबी तथा पूर्णरूपेण हस्त क्रियाकलापों से दूर है। सुविधाओं की दृष्टि से समाज के निर्धन व कमजोर वर्ग के लिए पक्षपाती है। अतः कमेटी ने गाँधी जी की बुनियादी शिक्षा व कोठारी आयोग की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए कार्य-प्रधान शिक्षा पर बल दिया और शिक्षा के अग्रलिखित उद्देश्यों को सुझाया-

(i) साक्षरता, अंकीय ज्ञान, हस्त कौशलों के उपकरणों का औपचारिक ज्ञान ।
(ii) निरीक्षण के द्वारा ज्ञान प्राप्त करना, सामाजिक एवं प्राकृतिक विज्ञान के क्षेत्र में अध्ययन व प्रयोग करना ।
(iii) खेलकूद के द्वारा शारीरिक शक्ति तथा दलगत भावना का विकास करना ।
(iv) समाजोत्पादक उपयोगी कार्यों की योजना तथा क्रियान्वयन का कौशल, शिक्षा को कार्य आधारित बनाने के विचार से विकसित करना ।
(v) सोद्देश्य निरीक्षण करने के कौशल का विकास करना ।
(vi) सहयोगी व्यवहार की आदत का विकास करना ।
(vii) प्रकृति के निरीक्षण व कलात्मक क्रियाकलापों से सौन्दर्यानुभूति तथा रचनात्मकता का विकास करना ।
(viii) दूसरे धर्मों व देशों के निवासियों की संस्कृति व जीवन-शैली के प्रति प्रशंसा के भाव रखने की आदत का विकास करते हुए सामाजिक उत्तरदायित्व उत्पन्न करना ।
(ix) समाज हित लिए समाजोत्पादक क्रियाकलापों में भाग लेने की इच्छा व्यक्त करना ।

प्राथमिक स्तर पर विज्ञान शिक्षण के उद्देश्य

(1) विज्ञान शिक्षण रोचक होना चाहिए। (2) बच्चे में परिवेश के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न करना और इसे खोजी एवं हाथ से करने वाले कार्यकलाप में संलग्न होने हेतु प्रोत्साहित करना चाहिए।
(3) बच्चे में मूलभूत संज्ञानात्मक और मनःप्रेरक कुशलताएँ- भाषा, अवलोकन, रिकार्डिंग, वर्गीकरण,भेदीकरण, निष्कर्ष निकालना, चित्रांकन, व्याख्या, डिजाइन, निर्माण अनुमान लगाना एवं मापनविकसित करना।
(4) बच्चे में नैतिक मूल्य सफाई, ईमानदारी, सहयोग, जीवन और परिवेश के प्रति गंभीर रुख विकसित करना।
(5) बच्चे में भाषा का विकास करना एवं मातृभाषा पर जोर देना चाहिए परन्तु इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे पर विज्ञान के उन शब्दों का बोझ न पड़े जिन्हें वह समझ ही न पाएँ।
(6) बच्चे के लिए महत्वपूर्ण अर्थपूर्ण और उसके अभिरुचि की विषयवस्तु होनी चाहिए।

(7) शिक्षण मुख्यतः कार्यकलाप आधारित होना चाहिए। कक्षा के बाहर और भीतर दोनों ही जगह पढ़ाया जाना चाहिए।
(8) कहानियों, कविताओं, नाटकों और अन्य सामूहिक गतिविधियों का सहारा लेना चाहिए।
(9) बच्चों को बिना किसी निर्देश के अन्वेषण करने पैटनों को देखने तुलनाएँ करने और संबंधों के जाल को समझने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
(10) पर्यावरण और इससे जुड़े मूल्यों के प्रति दायत्वबोध उत्पन्न करने और उसे फलित पोषित करने वाले कार्यकलाप में उन्हें सीधे संलग्न करना चाहिए जैसे बीज बोना, पेड़ लगाना, पेड़ों की रक्षा करना, पानी को बर्बाद नहीं करना आदि।
(11) कक्षा का वातावरण ऐस होना चाहिए जो बच्चे को अपनी गति से बढ़ने का मौका दे।
(12) बच्चों में आपस में और बच्चों और शिक्षकों के बीच खुले संवाद की छूट होनी चाहिए।

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उच्च प्राथमिक स्तर पर विज्ञान शिक्षण के उद्देश्य

(1) इस स्तर पर विज्ञान शिक्षण, विज्ञान और प्रौद्योगिकी की दो शाखाओं में बँट जाना चाहिए।
(2) ईमानदारी, सत्यनिष्ठा एवं सहयोग के मूल्यों को आत्मसात् कराना।
(3) वैज्ञानिक अवधारणाएँ बच्चों के अनुभव जगत से सम्बन्धित होनी चाहिए।
(4) जहाँ तक हो सके, प्रयोगों/कार्यकलापों के माध्यम से हो वैज्ञानिक धारणाएँ/सिद्धान्त बच्चों के सामने प्रस्तुत करने चाहिए।
(5) प्रौद्योगिकी के तहत सरल मॉडल की डिजाइनिंग और निर्माण, सामान्य यात्रिक व वैद्युत उत्पादो एवं स्थानीय प्रौद्योगिकी का व्यावहारिक ज्ञान आदि पढ़ना सिखाना चाहिए।

(6) बच्चों को (खासतौर से समूह में) उन समस्याओं के अर्थपूर्ण या सोद्देश्य अनुसंधान में लगाना चाहिए जिन्हें वे सार्थक एवं महत्वपूर्ण समझते हैं क्योंकि इस अवस्था में बच्चों को सीखने से जोड़े रखना एक जरूरी शिक्षा शास्त्रीय व्यवहार है।
(7) प्रश्न और जाँच पड़ताल कौशलों का अर्जन करना।
(8) अनुसंधान हेतु कार्यकलापों के लिए बच्चों को प्रेरित करना चाहिए कि वे शिक्षक व साथियों से बातचीत करके, समाचार पत्रों जानकार लोगों से सूचनाएँ इकट्ठा करें। वे आसानी से उपलब्ध आँकड़े संग्रहित करें और साधारण अन्वेषण करें।
(9) बच्चों को ज्यादा से ज्यादा भागीदारी के लिए प्रदर्शन, स्क्रिप्ट्स व नाटकों का आयोजन करना चाहिए।
(10) वैज्ञानिकों और अन्वेषकों की जीवनियाँ बतानी चाहिए।
(11) इस स्तर पर पूरी अवधि में प्रक्रिया- कौशलों पर ही जोर डालना चाहिए ताकि बच्चा खुद ही पहलकदमी से अपने स्तर पर ही कैसे सीख पाता है, यह सीख सके।

माध्यमिक स्तर पर विज्ञान शिक्षण के उद्देश्य

(1) इस स्तर पर विज्ञान के नियम पढ़ाये जाने चाहिए।
(2) इस स्तर पर भी बल सीखने पर होना चाहिए सिर्फ परिभाषाएँ रटाये जाने पर नहीं।
(3) इस स्तर पर वे सिद्धांत सिखाये जाने चाहिए जो सहज सीधे अनुभव जगत से नहीं जुड़े हों।
(4) इस स्तर पर अनुमान और व्याख्याओं से जुड़े कथनो/निष्कर्षों की तर्कपूर्ण विवेचना करनी चाहिए।
(5) इस स्तर पर बच्चे में वैज्ञानिक तथ्यों की ज्ञान-मीमासीय परख कर सकने की क्षमता विकसित करनी चाहिए।
(6) इस स्तर पर सैद्धांतिक अवधारणाओं को जानने या उनकी सत्यता की जाँच करने के लिए प्रयोग पाठ्यचर्या का अहम हिस्सा होना चाहिए।
(7) सह पाठ्यचर्यात्मक कार्यकलापों में भागीदारी को महत्वपूर्ण और एकसमान अनिवार्यता मिलनी चाहिए।

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उच्च माध्यमिक स्तर पर विज्ञान शिक्षण के उद्देश्य

(1) इस स्तर पर विद्यार्थी को अपनी रूचि के अनुसार विषय चुनने की स्वतंत्रता होनी चाहिए।
(2) स्थानीय मुद्दों का विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्यम से खोजने के लिए विद्यार्थियों को प्रेरित करना।
(3) विज्ञान मेलों में शिक्षार्थियों की भागीदारी सुनिश्चित करना।
(4) विद्यार्थियों को विज्ञान, तकनीकी और समाज से अंतसंबंधित मुद्दों पर बहस एवं वाद विवाद के लिए प्रोत्साहित करना ।


अभ्यास प्रश्न ( परीक्षा उपयोगी प्रश्न )

1. किस स्तर पर बच्चे में संज्ञानात्मक और मनःप्रेरक कुशलताएँ विकसित की जानी चाहिए?
(a) प्राथमिक
(b) उच्च प्राथमिक
(c) माध्यमिक
(d) उच्च माध्यमिक

उत्तर – (a)

2. उच्च प्राथमिक स्तर पर पूरी अवधि में प्रक्रिया-कौशलों पर ही जोर डालना चाहिए ताकि बच्चा खुद ही पहलकदमी से,………… स्तर पर ही कैसे सीख पाता है, यह सीख सके।
(a) कक्षा
(b) स्कूल
(c) अपने
(d) पारिवारिक

उत्तर – (c)

3. निम्न में से कौन सा उद्देश्य माध्यमिक स्तर पर विज्ञान शिक्षण का उद्देश्य नहीं है?
(a) इस स्तर पर विज्ञान के नियम पढ़ाये जाने चाहिए।
(b) इस स्तर पर परिभाषाएँ रटाये जाने पर जोर देना चाहिए।
(c) इस स्तर पर वे सिद्धान्त सिखाये जाने चाहिए जो सहज सीधे अनुभव जगत न जुड़े हों।
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं

उत्तर – (b)

4. निम्न में से किस आयोग ने यह सुझाव दिया कि विज्ञान को माध्यमिक स्कूलों में एक अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाया जाना चाहिए?
(a) विश्व विद्यालय शिक्षा आयोग
(b) माध्यमिक शिक्षा आयोग
(c) कोठारी आयोग
(d) सेडलर आयोग

उत्तर – (b)

5. “शिक्षा से मेरा अभिप्राय है बालक के शरीर मन व आत्मा का पूर्ण विकास।” उपरोक्त कथन है
(a) स्वामी विवेकानन्द का
(b) जॉन ड्यूवी का
(c) महात्मा गाँधी का
(d) प्रो. बागले का

उत्तर – (c)

                                ◆◆◆ निवेदन ◆◆◆

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