सामाजिक अध्ययन शिक्षण में उपचारात्मक शिक्षण का संगठन | CTET SOCIAL STUDIES PEDAGOGY

दोस्तों अगर आप CTET परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो CTET में 50% प्रश्न तो सम्मिलित विषय के शिक्षणशास्त्र से ही पूछे जाते हैं। आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com आपके लिए सामाजिक विज्ञान विषय के शिक्षणशास्त्र से सम्बंधित प्रमुख टॉपिक की श्रृंखला लेकर आई है। हमारा आज का टॉपिक सामाजिक अध्ययन शिक्षण में उपचारात्मक शिक्षण का संगठन | CTET SOCIAL STUDIES PEDAGOGY है।

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सामाजिक अध्ययन शिक्षण में उपचारात्मक शिक्षण का संगठन | CTET SOCIAL STUDIES PEDAGOGY

सामाजिक अध्ययन शिक्षण में उपचारात्मक शिक्षण का संगठन | CTET SOCIAL STUDIES PEDAGOGY
सामाजिक अध्ययन शिक्षण में उपचारात्मक शिक्षण का संगठन | CTET SOCIAL STUDIES PEDAGOGY

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सामाजिक विज्ञान में उपचारात्मक शिक्षण का संगठन

सामाजिक विज्ञान विषय हेतु विद्यालयों में उपचारात्मक शिक्षण का संगठन प्रायः निम्न विविध रूपों में संपन्न किया जा सकता है-
1. कक्षा शिक्षण (Class Teaching)
2. समूहगत ट्यूटोरियल शिक्षण (Group Tutorial Teaching)
3. वैयक्तिक ट्यूटोरियल शिक्षण (Individual Tutorial Teaching )
4. पर्यवेक्षित ट्यूटोरियल शिक्षण (Supervised Turorial Teaching)
5. स्व-अनुदेशित शिक्षण (Auto Instructional Teaching)
6. अनौपचारिक शिक्षण (Informal Teaching)

1. कक्षा-शिक्षण (Class Teaching)

इस प्रकार की औपचारिक व्यवस्था में कक्षा के वर्तमान स्वरूप और संरचना में कोई विशेष परिवर्तन नहीं किया जाता। अध्यापक विद्यार्थियों की विषय विशेष या शाखा प्रकरण संबंधी कठिनाई को जानकर पाठ को पुनः पढ़ाता है। ऐसे सभी प्रयत्न अपने शिक्षण के द्वारा करता है जिनसे कक्षा के सभी विद्यार्थियों को विषय विशेष में अनुभव की जाने वाली अधिगम कठिनाई तथापि परेशानी को दूर करने में पूरी-पूरी सहायता मिले। इस प्रकार का शिक्षण कक्षा के सभी विद्यार्थियों की साक्षी अधिगम कठिनाइयों को दूर करने में उपयुक्त भूमिका निभाता है।

2. अधिगम ट्यूटोरियल शिक्षण (Group Tutorial Teaching)

इस प्रकार की शिक्षण व्यवस्था में कक्षा के विद्यार्थियों को कुछ समूह विशेष में विभक्त करने की चेष्टा की जाती है। इस विभाजन का आधार इस बात को लेकर होता है कि एक समूह में शामिल विद्यार्थियों की लगभग विषय विशेष संबंधी एक जैसी अधिगम कठिनाइयां, कमजोरियां और समस्याएं हों। प्रत्येक ट्यूटोरियल समूह का इंचार्ज एक ट्यूटर होता है। अध्यापक या तो विद्यार्थियों में से ही किसी होशियार विद्यार्थी को यह कार्य सौंप देता है अथवा विषय अध्यापक ही प्रत्येक समूह के लिए अलग-अलग रूप से अपने समय का विभाजन कर लेता है। समूहगत ट्यूटोरियल शिक्षण कक्षा शिक्षण की तुलना में कई बातों को लेकर उपयोगी सिद्ध होता है। इसमें विद्यार्थियों को समूहों में बांटकर शिक्षण प्रदान किया जाता है तथा एक समूह में वे ही विद्यार्थी होते हैं जिनकी अधिगम संबंधी कठिनाईयां एक जैसी हों।

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3. वैयक्तिक ट्यूटोरियल शिक्षण (Individual Tutorial Teaching)

इस प्रकार की शिक्षण व्यवस्था में प्रत्येक विद्यार्थी को उसकी अपनी अधिगम कठिनाइयों और कमजोरियों के हिसाब से वैयक्तिक शिक्षण प्रदान किया जाता है। यहां सभी विद्यार्थी अपनी-अपनी अधिगम गति, योग्यता और क्षमताओं के हिसाब से जैसी वांछित सहायता, व्यक्तिगत ध्यान और पुनर्बलन की अपेक्षा करते हैं वह सभी उन्हें वैयक्तिगत रूप से भलीभांति प्रदान किया जाता है ताकि व्यक्तिगत कठिनाइयों का निवारण कर उन्हें अधिगम पथ पर भलीभांति अग्रसर किया जा सके।

4. पर्यवेक्षित ट्यूटोरियल शिक्षण (Supervised Tutorial Teaching)

इस प्रकार की उपचारात्मक शिक्षण व्यवस्था में विद्यार्थियों के ऊपर ही यह जिम्मेदारी डाल दी जाती है कि वे विषय विशेष में अनुभव की जाने वाली कठिनाइयों और कमजोरियों को अपने प्रयत्नों से दूर करने की कोशिश करें। ऐसा करते समय उन्हें अपने अध्यापकों का पर्याप्त मार्गदर्शन तथा आवश्यकतानुसार वांछित सहायता भी प्राप्त होती रहती है। इस प्रकार के उपचारात्मक शिक्षण में उपचार हेतु प्रयत्न तो विद्यार्थियों द्वारा स्वयं ही किए जाते हैं परंतु इन प्रयत्नों को उचित रूप से अध्यापक का मार्गदर्शन और पर्यवेक्षण भी प्राप्त होता रहता है।

5. स्व-अनुदेशित शिक्षण (Auto Instructional Teaching)

इस प्रकार की उपचारात्मक शिक्षण व्यवस्था में विद्यार्थियों को स्व-अनुदेशन द्वारा ही अपनी कमजोरियों और कठिनाइयों को दूर करने के लिए उपाय करने पड़ते हैं और उन्हें किसी प्रकार का अध्यापकीय पर्यवेक्षण या मार्गदर्शन प्राप्त नहीं होता। विद्यार्थीयों को सिर्फ उनकी विषयगत अधिगम कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए स्व-अनुदेशन ‘सामग्री, अभिक्रमित पैकेज के रूप में या कम्प्यूटर साफ्टवेयर प्रोग्राम के रूप में उपलब्ध करा दी जाती है और फिर वह उस अनुदेशन सामग्री का उपयोग करते हुए स्वयं ही उससे उचित अनुदेशन ग्रहण करते हुए अपनी अधिगम कठिनाइयों तथा कमजोरियों के निवारण के प्रयत्न करता है।

6. अनौपचारिक शिक्षण (Informal Teaching)

विषय विशेष संबंधी अनौपचारिक शिक्षण गतिविधियों को अगर औपचारिक शिक्षा के साथ भलीभांति जोड़ दिया जाए तो जिन विद्यार्थियों के लिए उपचारात्मक शिक्षण चाहिए उनकी बहुत कुछ अधिगम कठिनाइयों और कमजोरियों के निवारण में इस प्रकार का अनौपचारिक शिक्षण काफी लाभदायक सिद्ध हो सकता है। इस प्रकार की अनौपचारिक शिक्षण गतिविधियों के रूप में हम शैक्षिक भ्रमण, सामाजिक एवं सांस्कृतिक कार्यों में भाग लेना, इतिहास, भूगोल और सामाजिक विज्ञान संबंधी विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का संग्रह करना, सामूहिक चर्चा एवं वाद-विवाद में भाग लेना, सामुदायिक कार्यों में भाग लेना तथा अन्य विभिन्न प्रकार की ऐसी पाठ्य सहगामी क्रियाओं में भाग लेना जिससे सामाजिक विज्ञान के विभिन्न उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायता मिलती हो, आदि का नाम ले सकते हैं।

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सामाजिक अध्ययन में तार्किक चिन्तन का विकास

तर्क भी चिन्तन का एक प्रमुख पक्ष है। इस प्रक्रिया में अनुमान संलग्न है। तर्क, तर्कपूर्ण विचार व समस्या के समाधान में उपयोगी होता है।
यह उद्देश्यपूर्ण होता है और तथ्यों के आधार पर निष्कर्ष निकाले जाते हैं व निर्णय लिए जाते हैं। तर्क में हम पर्यावरण से प्राप्त जानकारी और मस्तिष्क में एकत्र सूचनाओं का कतिपय नियमों के अन्तर्गत प्रयोग करते हैं। तर्क दो प्रकार का होता है-
1. निगमन
2. आगमन
निगमन तर्क में हम पहले दिए गए कथन के आधार पर निष्कर्ष निकालने का प्रयास करते हैं जबकि आगमन तर्क में हम उपलब्ध प्रमाण से निष्कर्ष निकालना आरम्भ करते हैं।

छात्र आलोचनात्मक चिन्तन

छात्र आलोचनात्मक चिन्तन से तात्पर्य उस प्रविधि से है जिसमें छात्र स्वयं एक अर्थपूर्ण निर्णय लेने के लिए सक्षम हो। छात्रों में आलोचनात्मक चिन्तन का विकास कैसे किया जाए? छात्रों में सामाजिक गुणों के विकास द्वारा मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसमें सामाजिक गुणों का विकास होने के बाद वह यह समझने में सक्षम हो जाता है कि किसी कार्य या घटना का सम्भावित परिणाम क्या हो सकता है? प्रेम, सहकारिता, सहानुभूति, बन्धुता, सहिष्णुता आदि सामाजिक गुण कहे जाते हैं। इन गुणों का विकास बालक के सामाजिक विकास के लिए आवश्यक है ही, इसका प्रभाव बालक के सर्वांगीण विकास पर भी पड़ता है। छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास द्वारा-सामाजिक विज्ञान के अन्तर्गत छात्र विषय-वस्तु का क्रमबद्ध रूप में अध्ययन करता है। छात्र समाज की समस्याओं पर विचार करता है, समाधान खोजने का प्रयत्न करता और फिर उनको कार्यरूप में परिणत करने का प्रयास करता है।

इस प्रकार छात्र सामाजिक समस्याओं के एक निष्कर्ष पर पहुंच जाता है जिससे उसमें आलोचनात्मक चिन्तन का विकास होने लगता है। छात्रों में स्वतन्त्र चिन्तन शक्ति के विकास द्वारा-सामाजिक विज्ञान के अन्तर्गत छात्रों में ऐसे विवेक का विकास होता है जिससे वे विषम-से-विषम परिस्थितियों में भी स्वयं निर्णय ले सकें। यह विषय बालकों को स्वतन्त्र अभिव्यक्ति की अधिकतम स्वतन्त्रता प्रदान करता है तथा आलोचनात्मक चिन्तन हेतु छात्रों को प्रोत्साहित करता है।

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उचित अभिवृतियों एवं आदतों के विकास द्वारा सामाजिक विज्ञान विद्यार्थियों में विभिन्न घटनाओं, वस्तुओं, विचारों एवं व्यक्तियों के प्रति उचित दृष्टिकोण का विकास करता है। इसके अतिरिक्त यह विषय छात्रों में उचित आदतों का विकास करता है। यह विषय सबके प्रति दया-भाव रखना, नियम, कानून एवं रीति-रिवाजों के अनुसार व्यवहार, स्वच्छता, बड़ो का सम्मान आदि आदतों का विकास करता है।

छात्रों को तर्क एवं वाद-विवाद का अवसर प्रदान करके-वाद-विवाद के माध्यम से छात्रों में यथार्थ ज्ञान का संचार किया जा सकता है। इसके द्वारा छात्रों में स्वतन्त्र निर्णय लेने की क्षमता का विकास होता है तथा वे सामूहिक कार्यों को सुव्यवस्थित ढंग से करने लगते हैं। परिणामस्वरूप छात्रों में नवीन सोच के साथ-साथ आलोचनात्मक चिन्तन का विकास भी होता है। छात्रों को समस्या समाधान के अवसर उपलब्ध कराकर सामाजिक अध्ययन शिक्षण के दौरान शिक्षक छात्रों के समक्ष किसी समस्या को प्रस्तुत कर उन्हें इसके समाधान हेतु प्रेरित कर सकता है।

जिससे कि छात्रों तथ्यों का विश्लेषण तथा आलोचनात्मक चिन्तन का विकास हो सके। शिक्षण सहायक सामग्री के उपयोग द्वारा-कुछ शिक्षण सहायक सामग्री भी छात्रों में आलोचनात्मक चिन्तन के विकास में सहायक होते हैं। इस प्रकार की सामग्रियों में चार्ट, प्रतिरूप, ग्राफ, आरेख, मानचित्र आदि प्रमुख हैं। छात्रों को उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य सौंपकर-छात्रों को उनकी आयु अनुसार शिक्षक को समय-समय पर ऐसे कार्य सौंपने चाहिए जिससे कि उनमें उत्तरदायित्व की भावना का विकास हो सके। उन कार्यों का निर्वहन करते समय छात्रों में आलोचनात्मक चिन्तन का विकास होता है। छात्रों को अभिव्यक्ति का अवसर प्रदान करके-सामाजिक विज्ञान शिक्षण के दौरान शिक्षक छात्रों को अभिव्यक्ति का अवसर प्रदान करके उनमें आलोचनात्मक चिन्तन का विकास कर सकता है क्योंकि विचारों का आदान-प्रदान करने से उनमें चिन्तन के कौशल का विकास होता है।

उपयोगी लिंक – अभिप्रेरणा के सिद्धांत

                              ◆◆◆ निवेदन ◆◆◆

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