पर्यावरण शिक्षण का पाठ्यक्रम,सूत्र एवं सिद्धांत (NCF 2005 के अनुसार) | CTET ENVIRONMENT PEDAGOGY

दोस्तों अगर आप CTET परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो CTET में 50% प्रश्न तो सम्मिलित विषय के शिक्षणशास्त्र से ही पूछे जाते हैं। आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com आपके लिए पर्यावरण विषय के शिक्षणशास्त्र से सम्बंधित प्रमुख टॉपिक की श्रृंखला लेकर आई है। हमारा आज का टॉपिक पर्यावरण शिक्षण का पाठ्यक्रम,सूत्र एवं सिद्धांत (NCF 2005 के अनुसार) | CTET ENVIRONMENT PEDAGOGY है।

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पर्यावरण शिक्षण का पाठ्यक्रम,सूत्र एवं सिद्धांत (NCF 2005 के अनुसार) | CTET ENVIRONMENT PEDAGOGY

पर्यावरण शिक्षण का पाठ्यक्रम,सूत्र एवं सिद्धांत (NCF 2005 के अनुसार) | CTET ENVIRONMENT PEDAGOGY
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CTET ENVIRONMENT PEDAGOGY | पर्यावरण शिक्षण का पाठ्यक्रम एवं सिद्धांत (NCF 2005 के अनुसार )

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पर्यावरण शिक्षण की विषय-वस्तु या पाठ्यक्रम

पर्यावरण अध्ययन के अन्तर्गत हम विज्ञान, सामाजिक अध्ययन एवं पर्यावरण से जुड़ी अवधारणओं और मुद्दों को अलग-अलग न देख कर एक समेकित नजरिए से देखते हैं, क्योंकि इन अवधारणाओं और मुद्दों के बीच एक अंतःसंबद्धता होती है। जैसे भोजन हमें पर्यावरण से प्राप्त होता है,अलग-अलग समाज/परिवेश के लोगों का भोजन भिन्न-भिन्न होता है और भोजन का पचना एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है। अतः प्राथमिक स्तर पर पर्यावरण अध्ययन की पुस्तकों की विषय-वस्तु ऐसी होनी चाहिए, जिसमें उपरोक्त अवधारणाओं एवं मुद्दों का समावेश हो।

प्राथमिक स्तर पर पर्यावरण अध्ययन की विषय-वस्तु का निर्धारण करते समय हमें निम्नलिखित विशेषताओं को ध्यान में रखना चाहिए:
(1) विषय-वस्तु बाल केन्द्रित होनी चाहिए।
(2) विषय-वस्तु शिक्षार्थियों को प्राकृतिक एवं सामाजिक-सांस्कृतिक पर्यावरण से जोड़े और उनको एकीकृत तरीके से जोड़े।
(3) विषय-वस्तु शिक्षार्थियों के मानसिक स्तर के अनुकूल हो।
(4) विषय-वस्तु शिक्षार्थियों में पर्यावरण के प्रति सरोकार उत्पन्न करे।
(5) विषय-वस्तु शिक्षार्थियों को उन पद्धतियों और प्रक्रियाओं से अवगत कराये जो या ज्ञान उत्पन्न करने में मदद करती हैं।
(6) विषय-वस्तु शिक्षार्थियों को प्रश्न पूछने और खोजने का मौका दे
(7) विषय-वस्तु शिक्षार्थियों में रट कर सीखने की प्रवृत्ति को हतोत्साहित करे।
(8) यह शिक्षार्थियों के वैविध्यपूर्ण परिवेश/पृष्ठभूमि की जरूरतों को पूरा करे।
(9) यह परिभाषाओं, शब्दावलियों एवं अमूर्त अवधारणाओं की व्याख्या न करे।
(10) यह हस्तपरक क्रियाकलापों को बढ़ावा दे और सामूहिक क्रिया-कलापों को भी।

(11) यह केवल पाठ्य पुस्तकों और शिक्षकों को ज्ञान का एकमात्र स्रोत के रूप में प्रस्तुत न करे।
(12) शिक्षार्थियों को परिवार, समुदाय या अन्य माध्यमों जैसे समाचार पत्रों से ज्ञान अर्जित करने के लिए बढ़ावा दे।
(13) इसमें वास्तविक घटनाओं एवं दैनिक जीवन की समस्याओं का समावेश हो।
(14) इसमें किससे-कहानियाँ, कविताओं एवं पहेलियों का समावेश हो ताकि विषय-वस्तु की एकरसता में बदलाव हो और शिक्षार्थियों में आमोद-प्रमोद के संग कल्पनाशीलता और सृजनात्मकता का विकास हो तथा स्थानीय एवं वैश्विक स्तर पर संसार की प्रकृति को खोजने का मौका मिले।
(15) यह शिक्षार्थियों को भय एवं पूर्वाग्रहों से मुक्त करे ।
(16) विषय-वस्तु की भाषा शिक्षार्थियों की बोल-चाल की भाषा हो।

NCF 2005 के अनुसार पर्यावरण अध्ययन का पाठ्यक्रम

एन.सी.एफ.-2005, कक्षा एक और दो के लिए पर्यावरण अध्ययन की पुस्तक की अनुशंसा नहीं करती है क्योंकि इस स्तर के शिक्षार्थी अपने परिवेश/समुदाय से सन्दर्भगत अधिगम प्राप्त करते हैं। एन.सी.एफ-2005, कक्षा तीन-पाँच तक के पर्यावरण अध्ययन को छ: थीमों (विषय-वस्तु/पाठ्यक्रम) में विभाजित करती है। ये निम्नलिखित हैं:

(1) परिवार एवं मित्र , आपसी संबंध , काम और खेल , जानवर और पौधे – इस थीम में परिवार क्या होता है, परिवार से हम क्या सीखते हैं, परिवार का महत्व क्या है , कौन-कोन लांग क्या-क्या काम करते हैं, तब क्या होगा जब लोग अपने-अपने काम का नहीं करेंगे,खेल कौन-कौन से होते हैं, जानवरों और पौधों की विशेषताएँ एवं उनका उपयोग आदि विषयों पर चर्चा की गई है।

2. भोजन – इस थीम में भोजन के स्वाद, उसके पाचन, विभिन्न प्रकार के भोजन, कुछ फल-सब्जियाँ जो बाहर से आई, भोजन पकाने के तरीके एवं संरक्षण आदि विषयों पर चर्चा की गई है।

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3. पानी/जल – इस थीम के अन्तर्गत पानी के महत्व, पानी की कमी और प्रदूषण से होने वाली समस्याओं, पानी के स्त्रोतों एवं उनका संरक्षण और जल जनित रोगों के विषय में चर्चा की गई है।

4. आवास – इस थीम के अन्तर्गत विभिन्न क्षेत्रों के आवास, लोगों का रहन-सहन, उनका पहनावा, प्राकृतिक आपदाओं और मानव निर्मित आपदाओं से उत्पन्न समस्याओं के विषय में चर्चा की गई है।

5. यात्रा – इस धीम के अंतर्गत विभिन्न यात्रियों के अनुभवों, पुरानी ऐतिहासिक इमारतों के डिजाइन, धातुओं के प्रयोग आदि विषयों पर चर्चा की गई है।

6. हम चीजें कैसे बनाते हैं? – इस थीम के अन्तर्गत विभिन्न अवधारणाओं में प्रयुक्त तकनीक या प्रक्रियाएँ, प्रयोगों आदि पर चर्चा की गई है।

उपरोक्त थीमों के साथ-साथ, एन.सी.एफ.-2005 उपरोक्त लिखित पर्यावरण अध्ययन विषय-वस्तु की विशेषताओं की भी संतुति करती है।

पर्यावरण शिक्षण के सिद्धांत

शिक्षण के प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित हैं:–

(1) क्रियाशीलता का सिद्धान्त – इस सिद्धान्त का मुख्य उद्देश्य है-‘करके सीखना’। शिक्षार्थी जब ‘करके सीखता है’ तब उसका ज्ञान स्थाई हो जाता है। यह सिद्धान्त शिक्षार्थियों में वास्तविक अवलोकन को बढ़ावा देता है। इस सिद्धान्त से शिक्षार्थियों में आलोचनात्मक चिंतन और समस्या समाधान के लिए क्षमता का विकास होता है। शिक्षार्थी जितना ज्यादा क्रिया-कलापों में लिप्त होगा उसका ज्ञान उतना ही बढ़ेगा।

शिक्षार्थियों को कई तरह की गतिविधियों के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। जैसे किसी पौधे के विषय में जानकारी देना है या उसके भागों के बारे में बताना है तब उस से कहा जा सकता है कि वह ज्यादा-से-ज्यादा पौधों और उनके भागों का अवलोकन करे। यह सिद्धान्त शिक्षार्थियों को प्रत्यक्ष हस्तपरक अनुभव कराता है। इस से अधिगम सक्रिय एवं सार्थक होता है। इससे शिक्षार्थियों में स्वयं सीखने/स्व-अध्याय और अवलोकन कौशलों का विकास होता है। अत: पर्यावरण की कक्षा गतिविधि आधारित होनी चाहिए।

(2) रुचि का सिद्धान्त – इस सिद्धान्त का मुख्य उद्देश्य शिक्षार्थियों में अधिगम के प्रति रूचि पैदा करना, उनमें जिज्ञासा उत्पन्न करना है। अतः पर्यावरण विषय-वस्तु ऐसी होनी चाहिए जिससे शिक्षार्थी उसमें रुचि ले। किस्से-कहानियाँ,कविताएँ, पहेलियाँ आदि को पर्यावरण अध्ययन में शामिल करने का उद्देश्य भी विषय-वस्तु को रोचक बनाना है। इससे शिक्षार्थियों का आमोद-प्रमोद होता है और उनमें कल्पनाशीलता और सृजनात्मकता का विकास होता है।

(3) प्रेरणा/अभिप्रेरणा का सिद्धान्त – प्रेरणा/अभिप्रेरणा किसी भी शिक्षण का मुख्य केन्द्र होता/केन्द्र बिन्दु होता है। अभिप्रेरणा वह सिद्धान्त है जो शिक्षण को लक्ष्य निर्देशित बनाता है। अभिप्रेरणा शिक्षार्थी को आन्तरिक बल प्रदान करती है जिससे वह निरंतर क्रियाशील बना रहता है, उसमें अधिगम के प्रति रुचि उत्पन्न होती है और उसमें नैतिक,चारित्रिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों का विकास होता है।

(4) नियोजन का सिद्धान्त – इस सिद्धान्त के अन्तर्गत शिक्षण को एक योजना बनानी चाहिए तत्पश्चात् शिक्षार्थियों को अधिगम कराना चाहिए। इस सिद्धान्त के अन्तर्गत शिक्षार्थियों के क्षमताओं, योग्यताओं आदि का ध्यान रखना चाहिए। इस सिद्धान्त में निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए:
1• कार्य विश्लेषण;
2• शिक्षण उद्देश्यों की पहचान, और
3• अधिगम उद्देश्यों का निर्धारण।

इस सिद्धान्त के अन्तर्गत लक्ष्य निर्धारित अधिगम कराया जाता है। जब शिक्षार्थी को यह पता होता है कि उसके अधिगम का लक्ष्य क्या है तब वह रुचि के साथ अधिगम करता है।

(6) वैयक्तिक भिन्नताओं का सिद्धान्त – प्रत्येक शिक्षार्थी की सीखने की क्षमता, स्तर एक जैसा नहीं होता है। उसके सीखने की क्षमता, स्तर को जन्मजात और वातावरणीय कारक प्रभावित करते हैं। कोई शिक्षार्थी रट कर सीख लेता है तो कोई  हस्तपरक गतिविधि करकें। कोई शिक्षार्थी जल्दी सीखता है तो कोई देर से अर्थात् शिक्षार्थी बहुबुद्धि वाले होते हैं।

(7) आवृत्ति का सिद्धान्त – अधिगम के स्थाई एवं सार्थक बनाने में इस सिद्धान्त का अति महत्व है। विषय-वस्तु की एक निश्चित अंतराल पर आवृत्ति होने से शिक्षार्थी उसके सम्पर्क में रहता है और उसका ज्ञान बढ़ता है।

(8) लोकतान्त्रिक/प्रजातान्त्रिक मूल्यों का सिद्धान्त – पाठ्यक्रम इस प्रकार होना चाहिए जिससे शिक्षार्थियों में प्रजातान्त्रिक मूल्यों का विकास हो। उनमें सामाजिक मूल्यों का विकास हो। शिक्षार्थी समूह में रह कर कार्य करें, एक-दूसरे से विचार-विमर्श करें, एक-दूसरे के विचारों को समझें आदि जैसी भावनाओं का विकास हो।

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पर्यावरण शिक्षण के सूत्र

अधिगम को प्रभावी एवं सफल बनाने के लिए शिक्षण सिद्धान्तों के साथ-साथ, एक शिक्षक को शिक्षण-सूत्रों का भी प्रयोग करना चाहिए। ये शिक्षण सूत्र निम्नलिखित हैं:

(1) ज्ञात से अज्ञात की ओर – शिक्षार्थियों को अधिगम कराने से पूर्व, उस विषय-वस्तु से सम्बन्धित पूर्व ज्ञान जो शिक्षार्थी जानता है, से पाठ का आरम्भ करना चाहिए। पूर्व ज्ञान को आधार बना कर शिक्षार्थियों को नवीन ज्ञान प्रदान करना चाहिए। जैसे पाचन को, भोजन के पूर्व नहीं पढ़ाया जा सकता है। पाचन का अधिगम तभी प्रभावी और सफल होगा जब शिक्षार्थियों को भोजन के विषय में पता होगा।

(2) मूर्त से अमूर्त की ओर – शिक्षार्थियों को आरम्भ में ऐसी बातों का ज्ञान कराना चाहिए जिसे वे छू सकें, देख सके तत्पश्चात् उनको कल्पनाशीलता (अमूर्त) का ज्ञान कराना चाहिए।जैसे – शिक्षार्थियों को एक उड़ने वाला पक्षी और एक घोड़ा दिखाया गया, तत्पश्चात् उनसे कहा/गया कि वे सोचें कि उड़ने वाला घोड़ा कैसा होगा? तब वे कल्पना करेंगे कि उड़ने वाले घोड़े के भी पंख होंगे तभी वह उड़ता होगा।

(3) सरल से जटिल की ओर – शिक्षार्थियों के अधिगम की शुरूआत सरल बातों से करनी चाहिए तत्पश्चात् उनको जटिल अवधारणाएँ और तथ्य बताना चाहिए। जैसे विभिन्न आवासों के विषय में बताने से पहले शिक्षार्थियों से प्रश्न करना चाहिए कि वे किस प्रकार के आवासों में रहते हैं तत्पश्चात् उन्हें बताना चाहिए कि विभिन्न क्षेत्रों के आवासों में भिन्नता का कारण क्या है?

(4) पूर्ण से अंश की ओर – अधिगम कराये जाने से पहले पाठ का सारांश प्रस्तुत करना चाहिए उसके बाद विभिन्न अंशों का। जैसे यातायात के साधनों के विषय में पढ़ाने से पहले उन्हें यातायात के साधनों के विषय में बतान चाहिए और उसके उपरान्त एक-एक यातायात के साधनों के फायदे और नुकसान के बारे में बताना चाहिए

(5) विशिष्ट से सामान्य की ओर – सर्वप्रथम शिक्षार्थियों को एक विशेष उदाहरण के द्वारा विषय के अर्थ को स्पष्ट करना चाहिए। उस उपरान्त अन्य उदाहरण देते हुए विषय का सामान्यीकरण करना चाहिए। जैसे- शिक्षार्थियों को यह बताना चाहिए कि भोजन हमारे लिए क्या है। उसके बाद अन्त में यह सामान्यीकरण प्रस्तुत करना चाहिए कि सभी जीवों को भोजन की आवश्यकता होती है। अन्य उदाहरणा द्वारा यह स्पष्ट करना चाहिए कि अन्य जीवों को भोजन की आवश्यकता क्यों होती है।

(6) विश्लेषण से संश्लेषण की ओर – पढ़ाई जाने वाली विषय-वस्तु के तथ्यों के विषय में व्यापक जानकारी देनी चाहिए और उसके उपरांत/उन तथ्यों को संयोजित कर सश्लेषण करना चाहिए अर्थात् किस विषय-वस्तु पर व्यापक रूप से चर्चा करके उसका सारांश प्रस्तुत करना चाहिए।  जैसे-जंगलों के दोहन (कटाई) से होने वाले नुकसान के विषय में व्यापक रूप से चर्चा करके यह सारांश प्रस्तुत किया जा सकता है कि जंगल पर्यावरण में सतुलन बनाये रखने के लिए अति आवश्यक है।

(7) अनुभव से तर्क की ओर – शिक्षार्थी अपने आस-पास के वातावरण का अवलोकन करते हैं और उनके अवलोकन से उनके अनुभव जुड़े होते हैं और इस अनुभव के उनके अपने-अपने तर्क होते हैं। जैसे- कोई बालक यह कहता है कि हल्दी लगाने से उसकी चोट ठीक हो जाती है वहीं दूसरा बालक यह कहता है कि लौंग से उसके दाँत का दर्द ठीक हो जाता है और दवाई की जरूरत पड़ती। दोनों का तर्क है कि वे बिना दवाई खाये सही हो जाते हैं। उनको यह बताया जा सकता है कि कुछ मसालों को दवाई के रूप भी प्रयोग किया जाता है। बच्चों का अनुभव उन्हें संसार से जोड़ने, विमर्श करने और सीखने की प्रक्रिया को बढ़ाता है।

(8) प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष की ओर – शिक्षार्थियों को पहले प्रत्यक्ष ज्ञान देना चाहिए तत्पश्चात् अप्रत्यक्ष प्रत्यक्ष ज्ञान में शिक्षार्थी जो देखता है उसे सरलता से ग्रहण कर लेता है जबकि अप्रत्यक्ष ज्ञान को ग्रहण करने में उसे कठिनाई होती है। जैसे ग्रहों, उपग्रहों के विषय में पढ़ाने से पहले शिक्षार्थियों को तारों, सूर्य और चन्द्रमा के विषय में पढ़ना चाहिए क्योंकि तारे, सूर्य और चन्द्रमा को शिक्षार्थी देखता है।

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(9) अनिश्चित से निश्चित की ओर – बालक को ज्ञान होता पर अनिश्चित और अस्पष्ट। उसके ज्ञान को शुरूआत मान कर उसे निश्चित ज्ञान की ओर अग्रसर करना चाहिए।

महत्वपूर्ण प्रश्न ( खुद को जाँचिए )

1. पर्यावरण अध्ययन के अन्तर्गत निम्नलिखित विषयों से जुड़ी अवधारणाओं एवं मुद्दों को पढ़ाया जाता है
(a) विज्ञान
(b) सामाजिक अध्ययन
(c) पर्यावरण
(d) सभी

2. प्राथमिक स्तर पर पर्यावरण अध्ययन की विषय-वस्तु का निर्धारण करते समय, निम्नलिखित विशेषताओं का ध्यान रखना चाहिए, सिवाय

(a) यह प्राकृतिक एवं सामाजिक-सांस्कृतिक पर्यावरण को एकीकृत तरीके से जोड़े ।
(b) यह पर्यावरण के प्रति सरोकार उत्पन्न करे
(c) यह शिक्षार्थियों को ज्यादा प्रश्न पूछने का मौका न दे
(d) यह रट कर सीखने की प्रवृत्ति को हत्साहित करे

3. प्राथमिक स्तर पर पर्यावरण अध्ययन की विषय-वस्तु में से निम्नलिखित में से कौन-सा असत्य है?
(a) यह पाठ्य-पुस्तकों और शिक्षकों के अलावा शिक्षार्थी को परिवार, समुदाय या अन्य माध्यमों से ज्ञान अर्जन को बढ़ावा दे
(b) यह परिभाषाओं, शब्दावलियों एवं अमूर्त अवधारणाओं की व्याख्या करें
(c) यह शिक्षार्थियों को भय एवं पूर्वाग्रहों से मुक्त करे
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं

4. एन.सी.एफ 2005 ने कक्षा तीन पाँच तक के पर्यावरण अध्ययन को कितनी थीमों या पाठ्यक्रम में बाँटा है?
(a) 4          (b) 5
(c) 6          (d) 8

5. एन.सी.एफ. 2005 ने कक्षा तीन पाँच तक के पर्यावरण अध्ययन को विभिन्न थीम में बाँटा है। उनमें एक थीम में ऐतिहासिक इमारतों के डिजाइन, धातुओं के प्रयोग गई है। यह किस थीम के अन्तर्गत आता है?

आदि विषयों पर चर्चा की

(a) यात्रा
(b) आवास
(c) हम चीजे कैसे बनाते हैं?
(d) इनमें से कोई

6. निम्न में से किस शिक्षण सिद्धान्त के अन्तर्गत शिक्षार्थियों को प्रत्यक्ष हस्तपरक अनुभव की प्राप्ति होती है, जिससे उनका अधिगम सक्रिय एवं सार्थक होता है?

(a) रुचि का सिद्धान्त
(b) क्रियाशीलता का सिद्धांत
(c) प्रेरणा का सिद्धान्त
(d) नियोजन का सिद्धांत

7. कक्षा IV का पर्यावरण अध्ययन का शिक्षक सचिन दास अधिगम को सार्थक बनाने हेतु भिन्न-भिन्न पद्धतियों, क्रियाकलापों और विभिन्न शिक्षण सामग्रियों का प्रयोग करता है। ऐसा करके वह किस शिक्षण सिद्धान्त का अनुसरण करता है?
(a) क्रियाशीलता का सिद्धान्त
(b) निश्चित उद्देश्य का सिद्धान्त
(c) वैयक्तिक भिन्नताओं का सिद्धान्त
(d) आवृत्ति का सिद्धान्त

8. अधिगम को प्रभावी एवं सफल बनाने के लिए एक शिक्षक को निम्न लिखित शिक्षण सूत्रों में किस का प्रयोग नहीं करना चाहिए?
(a) ज्ञात से अज्ञात की ओर
(b) सरल से जटिल की ओर
(c) अंश से पूर्ण की ओर
(d) मूर्त से अमूर्त की ओर

9. कक्षा V की पर्यावरण अध्ययन की शिक्षिका पुहुमि मेहता ग्रहों, उपग्रहों के विषय में पढ़ाने पहले शिक्षार्थियों को तारों, सूर्य और चन्द्रमा के विषय में पढ़ाती है। वह किस शिक्षण सूत्र का प्रयोग कर रही है?
(a) प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष की ओर
(b) अनुभव से तर्क की ओर
(c) अनिश्चित से निश्चित की ओर
(d) विशिष्ट से सामान्य की ओर

उत्तरमाला – 1(d)   2(c)    3(b)   4(c)    5(a)    6(b)    7(c)    8(c)   9(a) 

                                 ◆◆◆ निवेदन ◆◆◆

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