दोस्तों अगर आप CTET परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो CTET में 50% प्रश्न तो सम्मिलित विषय के शिक्षणशास्त्र से ही पूछे जाते हैं। आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com आपके लिए हिंदी विषय के शिक्षणशास्त्र से सम्बंधित प्रमुख टॉपिक की श्रृंखला लेकर आई है। हमारा आज का टॉपिक बालक में श्रवण,वाचन,पठन एवं लेखन दक्षता के विकास हेतु क्रियाकलाप | CTET HINDI PEDAGOGY है।
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बालक में श्रवण,वाचन,पठन एवं लेखन दक्षता के विकास हेतु क्रियाकलाप | CTET HINDI PEDAGOGY
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बालक में श्रवण दक्षता हेतु विविध क्रियाकलाप
सुनने की दक्षता विकसित करने के लिये निम्नलिखित शिक्षण गतिविधियाँ की जा सकती हैं एवं शिक्षण अधिगम सामग्री का प्रयोग भी किया जा सकता है-
(1) हिन्दी शिक्षक बालगीतों, सरल कविताओं को उचित लय, आवाज के उतार-चढ़ाव, हावभाव एवं शुद्ध उच्चारण के साथ कक्षा में दो-तीन बार सुनायें। याद करने के लिये उनका सामूहिक अभ्यास करायें। फिर उन पर आधारित छोटे-छोटे प्रश्न पूछें और शिक्षार्थियों से उनके उत्तर निकलवायें। ऐसे प्रश्न शिक्षार्थियों में ध्यान से सुनने, सीखने और समझने की दक्षताओं का विकास करने में सहायक होते हैं।
(2) हिन्दी शिक्षक छोटी-छोटी रोचक कहानियाँ, सम्वाद और घटनाएँ हावभाव के साथ सुनायें ताकि शिक्षार्थी धैर्य के साथ ही रुचि लेकर उन्हें सुनें और उनमें सुनने की दक्षता का विकास हो सके। यदि सम्भव हो तो इन्हें सरल, रोचक और स्पष्ट भाषा में टेपरिकॉर्डर पर टेप करके सुनायें।
(3) विभिन्न स्थितियों में सुनाये गये सम्वादों और वार्तालाप पर हिन्दी-शिक्षक प्रश्न पूछें ताकि यह पता चल सके कि शिक्षार्थियों ने उन्हें सुनकर समझा है या नहीं। दो विद्यार्थियों को कोई परिचित विषय देकर भी वार्तालाप करा सकते हैं; जैसे-चिकित्सक से वार्तालाप तथा फल-सब्जी वाले से वार्तालाप आदि। ऐसे वार्तालाप को टेप करके भी सुनाया जा सकता है।
(4) कक्षा में अथवा कक्षा से बाहर प्राय: शिक्षार्थियों को हम कोई न कोई आदेश निर्देश देते रहते हैं। निर्देशों को सुनकर समझने की दक्षता विकसित करने के लिये हम विभिन्न क्रियाकलापों से सम्बन्धित निर्देशों को पहले से ही तैयार करेंगे। उदाहरणार्थ- खेलकूद प्रतियोगिता से सम्बन्धित निर्देशन तैयार करके उन्हें उत्तरानुसार सुनायें और देखें कि उन्होंने इन निर्देशों को समझा है या नहीं।
नोट – हिन्दी – शिक्षक किसी कहानी पर बनी फिल्म दिखा सकते हैं और उस पर आधारित प्रश्न पूछकर उनके उत्तर भी निकलवा सकते हैं।
2. बोलना या वाचन किसे कहते हैं
अपने भावों और विचारों को शुद्ध एवं स्पष्ट उच्चारण के साथ ही सार्थक शब्दों में प्रकट करना ‘बोलना’ कहलाता है। इसमें वक्ता और श्रोता दोनों का होना आवश्यक है। भाषा विकास में बोलना एक महत्त्वपूर्ण कौशल है। मानक भाषा बोलते समय बालक की अपनी बोली सबसे बड़ी बाधा पैदा करती है। हिन्दी-शिक्षक भी प्रायः भाषा पढ़ाते समय स्थानीय बोली का प्रयोग करते हैं। फलतः शिक्षार्थियों में भाषा बोलने का विकास नहीं हो पाता ।
बालक में वाचन दक्षता हेतु विविध क्रियाकलाप
बोलने की देक्षता के विकास हेतु अधोलिखित भाषा शिक्षण अधिगम सामग्री एवं गतिविधियों का प्रयोग हिन्दी-शिक्षक द्वारा किया जा सकता है-
1. चित्र वर्णन – हिन्दी-शिक्षक परिचित वस्तुओं, कहानियों तथा घटनाओं के चित्र दिखाकर शिक्षार्थियों से कहें कि उनके विषय को अपनी भाषा में वर्णन करें आप स्वयं भी चित्र पर आधारित प्रश्न पूछकर उनसे उत्तर निकलवायें।
2. मौखिक वर्णन – हिन्दी-शिक्षक शिक्षार्थियों से परिचित तथा अपरिचित वस्तुओं के रोचक अनुभवों तथा घटनाओं, परिस्थितियों में पढ़ी और सुनी कहानियों को सरल तथा छोटे-छोटे वाक्यों में वर्णन करने को कहें। मौखिक वर्णन के कुछ विषय इस प्रकार हो सकते हैं; जैसे-पालतू पशु/पक्षी, मेरा विद्यालय, कोई त्यौहार, मेला, क्रिकेट का मैच, वर्षा का एक दिन एवं बस-स्कूल की टक्कर (दुर्घटना) आदि ।
3. वार्तालाप एवं सम्वाद – हिन्दी – शिक्षक कक्षा में सुनाये गये वार्तालाप के आधार पर दो-तीन शिक्षार्थियों को अलग-अलग पात्रों की भूमिकाएँ बाँट दें और उन्हें अपने-अपने सम्वाद बोलकर कक्षा में प्रस्तुत करने को कहें। टेपरिकॉर्डर पर भी टेप वार्तालाप सुनाया जा सकता है। अतः सुनाने के पश्चात् दो-तीन शिक्षार्थियों के मध्य सम्वाद करायें। हिन्दी – शिक्षक किसी विषय (टॉपिक) को देकर उस पर वार्तालाप करने को भी कह सकते हैं।
4. भाषण तथा वाद-विवाद प्रतियोगिता – हिन्दी – शिक्षक शिक्षार्थियों की साप्ताहिक बैठक, वार्षिक समारोह एवं बाल सभा आदि के अवसर पर किसी उपयोग या रोचक विषय पर भाषण तथा वाद-विवाद प्रतियोगिताओं का आयोजन कर सकते हैं, उन्हें उसमें भाग लेने हेतु प्रोत्साहित कर सकते हैं।
5. अभिनय – हिन्दी शिक्षक पाठ्य पुस्तक में आये किसी एक नाटक/एकांकी को चुनें और कक्षा में विभिन्न शिक्षार्थियों द्वारा एकांकी के पात्रों की भूमिका का अभिनय करायें।
6. कविता का सस्वर पठन- हिन्दी-शिक्षक शिक्षार्थियों से कविताएँ शुद्ध उच्चारण, हावभाव और भावों के अनुसार सुनने को कहें। कविताओं का सामूहिक रूप से सस्वर पाठ भी करा सकते हैं।
7. हिन्दी शिक्षक पढ़ायी गयी कविता, कहानी एवं निबन्ध आदि पर प्रश्न पूछें। उत्तर देते समय शिक्षार्थी को उच्चारण सम्बन्धी त्रुटियों को नोट करें तथा बाद में उनका उच्चारण अभ्यास करायें। स्वयं शुद्ध उच्चारण करें और शिक्षार्थियों से वैसा बोलने को कहें। ऐसे शब्दों के जोड़े बनायें, जिनकी ध्वनियों में बालक प्रायः त्रुटि करते हैं; जैसे-बन-वन, हंस-हँस, साखा-शाखा, घोर-घोड़ा, और-ओर एवं सड़क-सरक आदि । इस प्रकार के शब्दों को बोलने का अभ्यास करा सकते हैं।
नोट- किसी नाटक/एकांकी पर बनी फिल्म दिखाकर हिन्दी – शिक्षक बालकों से अभिनय करायें।
3. पढ़ना या पठन किसे कहते हैं
हिन्दी – शिक्षक पढ़ना भाषा शिक्षण का व्यावहारिक रूप है। लिपि चिह्नों को पहचानना और उन्हें अर्थ में परिवर्तित कर लेना ‘पढ़ना’ है। पढ़ने की कला का उद्देश्य है कि किसी सामग्री को बोध के साथ पढ़ना, जब हम ‘बोध’ शब्द का प्रयोग करते हैं तो इसका अर्थ है पठन सामग्री में प्रस्तुत शब्दावली पर न केवल पूरा नियन्त्रण अपितु समस्त पठन-सामग्री के अर्थ और भाव को समझ लेना ।
बालक में पठन दक्षता हेतु विविध क्रियाकलाप
पढ़ने में दक्षता के विकास हेतु हिन्दी – शिक्षक द्वारा अधोलिखित शिक्षण अधिगम सामग्री एवं गतिविधियों का प्रयोग किया जा सकता है-
1. आदर्श पठन-शिक्षार्थियों के पठन में सुधार लाने के लिये आदर्श पठन का विशेष महत्त्व है। निबन्ध पाठ और कविता पाठ करते समय शिक्षक स्वयं शुद्ध उच्चारण, प्रभावपूर्ण और उचित हावभाव के साथ पढ़ें। यह आदर्श पठन कहलायेगा।
2. अनुकरण पाठ – हिन्दी- शिक्षक आदर्श पठन के बाद तीन-चार शिक्षार्थियों से भी,यथा-विधि निबन्ध अथवा कविता पढ़वायें।
3. उच्चारण में संशोधन – हिन्दी – शिक्षक शिक्षार्थियों के सस्वर वाचन के समय होने वाली अशुद्धियों पर ध्यान रखें और फिर बाद में उनमें संशोधन कर दें। सामान्य रूप से पायी जाने वाली उच्चारण सम्बन्धी अशुद्धियों को वर्गीकृत करके ही उनकी अभ्यास सूचियाँ बनायें तथा उनका सामूहिक रूप से उच्चारण अभ्यास करायें। हिन्दी-शिक्षक अभ्यास कार्य में निरन्तरता बनाये रखें। हिन्दी-शिक्षक शुद्ध उच्चारण सम्बन्धी ‘भाषा शिक्षण’ पर बनी फिल्म का प्रयोग कर सकते हैं।
4. लिखना या लेखन किसे कहते हैं
किसी भी भाषा के सभी वर्गों के समूह को वर्णमाला कहते हैं। जिस रूप में इन वर्णों को लिखा जाता है, उसे लिपि कहते हैं। शुद्ध वर्तनी लिखना कौशल का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अंग है। वर्तनी अशुद्ध होने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-
(1) लिपि का उचित ज्ञान न होना। (2) मिलीजुली आकृति वाले वर्णों में विभेद न कर सकना (3) उच्चारण की अशुद्धता। (4) व्याकरणीय रूपों की अनभिज्ञता।
बालक में लेखन दक्षता हेतु विविध क्रियाकलाप
लेखन में दक्षता के विकास हेतु जिन शिक्षण अधिगम सामग्रियों एवं गतिविधियों का हिन्दी-शिक्षक द्वारा प्रयोग किया जा सकता है, वे इस प्रकार हैं-
(1) हिन्दी शिक्षक प्रारम्भिक स्थिति में शिक्षार्थियों को सीधी, आड़ी, तिरछी और गोलाकार रेखाएँ खींचने का अभ्यास करायें। हाथ और पेन्सिल पर अभ्यास होने की स्थिति में वर्ण, संयुक्ताक्षर एवं मात्रा लेखन का अभ्यास करायें।
(2) पहले वह मात्रा रहित शुद्ध शब्द श्यामपट्ट पर लिखें और उन्हें देखकर लिखने का अभ्यास करायें। फिर मात्रा वाले शब्दों तथा अन्त में संयुक्ताक्षर वाले शब्दों को श्यामपट्ट पर मोटे आकार में लिखायें। अन्त में वाक्यों को देखकर लिखने को कहें।
(3) हिन्दी शिक्षक वर्णों, मात्राओं और संयुक्ताक्षरों को लिखना सीख लेने के पश्चात् शिक्षार्थियों को सुलेख और श्रुतलेख का अभ्यास बार-बार करायें। सुलेख कराते समय वर्णों और शब्दों की आकृति की सुडौलता पर शिक्षार्थियों से पाँच-पाँच बार लिखवायें। अतः उन्हीं शब्दों की सहायता से छोटे-छोटे वाक्य भी बनवायें।
(4) हिन्दी शिक्षक वर्तनी सुधार हेतु कुछ अभ्यास करा सकते हैं। रोचकता एवं विविधता की दृष्टि से ये अनेक प्रकार के हो सकते हैं।
बालक में वर्तनी सुधार हेतु विविध क्रियाकलाप
वर्तनी सुधार हेतु अध्ययन के निम्नलिखित प्रकार हैं-
(1) हिन्दी शिक्षक श्रुतलेख के पश्चात् शिक्षार्थियों की त्रुटि का पता लगाकर उनके शुद्ध रूप को श्यामपट्ट पर लिखें। प्रत्येक शब्द का दो-तीन बार शुद्ध उच्चारण करवायें, उन त्रुटियों के कारणों पर चर्चा करें तथा उन्हें अपनी कॉपियों में शुद्ध रूप में लिखने को कहें।
(2) कक्षा को तीन-चार समूहों में बाँटकर श्रुतलेख लिखने का अभ्यास करायें। प्रत्येक समूह में शिक्षार्थी अपनी कॉपी बदलकर एक-दूसरे की त्रुटि सुधारें। श्यामपट्ट पर उन त्रुटियों के शुद्ध रूप लिखकर उन शब्दों का शुद्ध उच्चारण करायें और शुद्ध रूप लिखवायें। हिन्दी – शिक्षक वर्तनी शिक्षण की फिल्म भी बालकों को दिखा सकते हैं।
(3) स्वरों की मात्राएँ वर्णों के आगे-पीछे आदि जिन-जिन स्थितियों में लगती हैं, उनको बार-बार लिखवाकर अभ्यास
करायें; जैसे-काम, किस, शीश, फूल, कूल, कैसा एवं कौन आदि।
(4) सन्धि-विच्छेद या सन्धि करायें, जिसमें स्वर तथा व्यंजन के सभी प्रकार के अभ्यास हों; जैसे – अन + धिकार = अनाधिकार
(5) हिन्दी शिक्षक अधिक प्रयोग में आने वाले विराम चिह्नों से परिचित कराकर उनका प्रयोग करना सिखायें। श्रुतलेख के लिये पूर्ण विराम (1) अल्पविराम (,) तथा प्रश्नवाचक (?) विरामचिह्नों की जानकारी अवश्य करायें।
(6) हिन्दी शिक्षक अनुस्वर, चन्द्रबिन्दु, आनुनासिक एवं हलन्त आदि के प्रयोग सम्बन्धी अभ्यास विशेष रूप से करायें। यह वर्तनी की दृष्टि से अति आवश्यक है।
(7) वह बालकों के रचना कार्यों में पायी गयी त्रुटियों के नीचे रेखा खीचें और बालकों से स्वयं शुद्ध करने को कहें।
(8) हिन्दी शिक्षक निबन्ध, पत्र एवं अनुच्छेद आदि लिखवायें और उनमें पायी त्रुटियों का संशोधन करें। फिर संशोधित रूप की ओर उनका ध्यान दिलायें और उन्हें पुनः लिखने का अभ्यास करायें।
(9) हिन्दी शिक्षक के पास यदि शब्दकोष अथवा सहायक-सामग्री नहीं है तो शिक्षार्थियों से उनकी कॉपी में ही पृष्ठ के नीचे कुछ खाली स्थान छुड़वा दिया जाय। गलत शब्दों के ऊपर काटकर ‘सही’ ऊपर लिख दें और खाली स्थान में पाँच-पाँच बार शुद्ध शब्द लिखवायें। इससे व्यावहारिक व्याकरण के प्रयोग में वृद्धि होगी, स्वअधिगा भाषा भण्डार वृद्धि एवं भाषा का उचित प्रयोग करने की आदत का विकास होगा।
◆◆◆ निवेदन ◆◆◆
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