गणित की शिक्षण विधियां एवं पाठ योजना / गणित शिक्षक के गुण एवं शिक्षण गतिविधियां | CTET MATH PEDAGOGY

दोस्तों अगर आप CTET परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो CTET में 50% प्रश्न तो सम्मिलित विषय के शिक्षणशास्त्र से ही पूछे जाते हैं। आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com आपके लिए गणित विषय के शिक्षणशास्त्र से सम्बंधित प्रमुख टॉपिक की श्रृंखला लेकर आई है। हमारा आज का टॉपिक गणित की शिक्षण विधियां एवं पाठ योजना / गणित शिक्षक के गुण एवं शिक्षण गतिविधियां | CTET MATH PEDAGOGY है।

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गणित की शिक्षण विधियां एवं पाठ योजना / गणित शिक्षक के गुण एवं शिक्षण गतिविधियां | CTET MATH PEDAGOGY

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गणित की पाठ योजना किसे कहते हैं

किसी विषय को पढ़ाने हेतु, उस विषय से सम्बन्धित विषय-वस्तु की रूपरेखा तैयार करना, पाठ योजना कहलाता है। पाठ योजना शिक्षण से पहले की अवस्था होती है जिसके अन्तर्गत शिक्षक अपने शिक्षण कार्य की सार्थकता एवं विद्यार्थियों के हितों को ध्यान में रखकर कक्षा में पढ़ाई जाने वाली विषय-वस्तु को छोटी-छोटी इकाइयों में बांट लेता है एवं उन इकाइयों को एक निर्धारित अवधि में पढ़ाता है। पाठ योजना में पाठ के उद्देश्यों एवं लक्ष्यों और अध्यापक द्वारा प्रयोग की जाने वाली विधियों एवं प्रविधियों का भी उल्लेख होता है।

पाठ योजना से सम्बन्धित कुछ परिभाषाएँ

बिनिंग और बिनिंग के अनुसार,
“दैनिक पाठ-योजना में उद्देश् को परिभाषित करना, पाठ्य-वस्तु का चयन करना एवं उसको क्रमबद्ध) रूप से व्यवस्थित करना तथा विधियों एवं प्रक्रिया का निर्धारण करना सम्मिलित है। “

गुड्स के अनुसार,
“पाठ योजना किसी पाठ की महत्वपूर्ण बातों का खाका या बाहरी रूपरेखा को क्रमवार करना, जिस क्रम में उसे प्रस्तुत किया जाना है। इसमें पाठ के उद्देश्य, शिक्षा सामग्री का प्रयोग, विद्यार्थियों द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्न, पाठ की पुनरावृत्ति तथा घर का काम (गृहकार्य) देना आदि आते हैं। “

एन.एल. बॉसिंग के अनुसार,
“पाठ-योजना उन उद्देश्यों के कथनों और विशिष्ट माध्यमों को प्रदान किया गया एक शीर्षक है जिनके द्वारा क्रियाओं के परिणामस्वरूप उन्हें प्राप्त किया जाता है।”

पाठ योजना का महत्व

(1) इससे उद्देश्यों की स्पष्टता प्रकट होती है।
(2) इससे शिक्षक में आत्मविश्वास पैदा होता है।
(3) इससे शिक्षण क्रियाओं के चुनाव में आसानी होती है।
(4) इससे समय का उचित उपयोग होता है।
(5) इससे कठिन विषय-वस्तु को सरल बनाया जा सकता है।
(6) इससे शिक्षण सहायक सामग्री का चुनाव आसान हो जाता है एवं उनका प्रभावशाली ढंग से उपयोग किया जा सकता है।
(7) इससे बच्चों में विचार, तर्क, निर्णय एवं कल्पनाशक्ति का विकास होता है।

पाठ योजना से सम्बन्धित अध्यापक का ज्ञान

(1) अध्यापक को पाठ – वस्तु का ज्ञान होना चाहिए।
(2) अध्यापक को उद्देश्यों के निर्माण का ज्ञान होना चाहिए।
(3) अध्यापक को शिक्षण विधियों एवं प्रविधियों का ज्ञान होना चाहिए।
(4) अध्यापक को शिक्षण कौशलों का ज्ञान होना चाहिए।

पाठ योजना की प्रक्रियाएँ

पाठ योजना से सम्बन्धित निम्न प्रक्रियाएँ होती हैं
(1) उद्देश्यों एवं लक्ष्यों को परिभाषित करना
(2) विषय-वस्तु का चुनाव एवं संगठन करना
(3) शिक्षण विधियों, प्रविधियों एवं क्रियाकलापों का चुनाव करना
बच्चों का मूल्यांकन करना

गणित की पाठ योजना के चरण

पाठ योजना के चरण/सोपान निम्नलिखित हैं:

(i) तैयारी करना
पाठ से सम्बन्धित उपलब्ध पाठ्य सामग्री का शिक्षण के लिए योजना बनाना।
शिक्षण विधियाँ, सहायक सामग्री और क्रियाकलापों का निर्धारण करना।
(ii) प्रस्तुतीकरण
पाठ शिक्षण उद्देश्यों का निर्धारण करना, चाहे उद्देश्य सामान्य हों या विशेष
(iii) चॉक बोर्ड कार्य
चॉक बोर्ड का प्रयोग करना
(iv) पुनरावृत्ति
पाठ समाप्ति के पश्चात् बच्चों से प्रश्न पूछना।
इस चरण में शिक्षण की प्रभावशीलता का पता चलता है।
(v) गृह कार्य
पाठ से सम्बन्धित विभिन्न प्रकार के प्रश्नों को देना ताकि बच्चों का बौद्धिक एवं मानसिक विकास हो।

गणित शिक्षण की विधियाँ

किसी काम के करने के विशेष ढंग को विधि कहते हैं। विधियों के द्वारा भिन्न-भिन्न कार्य करके किसी लक्ष्य की पूर्ति होती है। शिक्षण विधियाँ तीन कारकों पर निर्भर करती हैं- वातावरण (पाठ्यक्रम), शिक्षक और शिक्षार्थी। शिक्षण विधियों का शिक्षा के उद्देश्यों से घनिष्ठ सम्बन्ध है। शिक्षण विधियों का उद्देश्य शिक्षक और शिक्षार्थी के आपसी सम्बन्ध में सजीवता लाना है। जो शिक्षण विधियाँ मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक दृष्टिकोण से उपयुक्त होती हैं वे ही शिक्षार्थियों का सर्वांगीण विकास करती हैं। इसीलिए गणित शिक्षण विधियों का चयन करते समय गणित शिक्षण के उद्देश्यों को ध्यान में रखना चाहिए। गणित शिक्षण में निम्नलिखित विधियों का प्रयोग किया जाता है:–

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(1) आगमन विधि

इसमें विशिष्ट उदाहरण प्रस्तुत कर सामान्य सिद्धान्तों की ओर लाया जाता है। इस विधि में निम्न सूत्रों का प्रयोग किया जाता है:
(i) विशिष्ट से सामान्य की ओर
(ii) स्थूल से सूक्ष्म की ओर
(iii) ज्ञात से अज्ञात की ओर

इस विधि के चार चरण हैं:
(i) उदाहरण प्रस्तुत करना
(ii) उदाहरणों का अवलोकन कर परिणाम निकालना
(iii) सिद्धान्तों का निर्माण करना
(iv) उदाहरणों द्वारा सिद्धान्तों की पुष्टि करना

आगमन विधि के लाभ
(i) विद्यार्थी स्वयं नियमों की खोज करता है जिससे उसका ज्ञान स्थायी बन जाता है।
(ii) विद्यार्थियों में आत्मनिर्भरता एवं आत्मविश्वास की वृद्धि होती है। विषय रुचिकर बन जाता है।
(iii) अनुसन्धान को बढ़ावा मिलता है।

आगमन विधि के दोष
(i) ज्ञानार्जन धीमी गति से होता है।
(ii) समय अधिक लगता है। पाठ्यक्रम पूरा नहीं होता।

आगमन विधि के उपयोग
(i) रेखागणित शिक्षण हेतु महत्वपूर्ण है।
(ii) आयत का परिमाप और क्षेत्रफल ज्ञात करने के लिए सूत्र की स्थापना करना ।
(iii) बीजगणित के सूत्र की स्थापना करना ।
(iv) साधारण ब्याज निकालने के सूत्र का निर्माण करना।
(v) रुढ़ संख्याओं का ज्ञान देना।
(vi) त्रिभुज के कोणों का योग ज्ञात करना ।

(2) निगमन विधि

इसमें पहले सामान्य नियम बताये जाते हैं, फिर उदाहरण दिये जाते हैं। निगमन विधि में निम्न सूत्रों का प्रयोग किया जाता है।
(i) सामान्य से विशिष्ट की ओर
(ii) सूक्ष्म से स्थूल की ओर
(iii) सिद्धान्त से उदाहरण की ओर

निगमन विधि के निम्न चरण हैं:
(i) सिद्धान्त का ज्ञान देना
(ii) विभिन्न उदाहरणों में सिद्धान्तों का प्रयोग करना सिद्धान्तों की सत्यता का परीक्षण करना
(iii) अन्य उदाहरणों के आधार पर सिद्धान्तों का पूर्ण सत्यापन करना

निगमन विधि के लाभ
(i) समय की बचत होती है।
(ii) विद्यार्थियों की स्मरण शक्ति का विकास होता है।

निगमन विधि के दोष
(i) छात्र की जिज्ञासा, तर्क, विचार और शक्ति का बौद्धिक विकास नहीं हो पाता।
(ii) रटने की प्रवृत्ति उत्पन्न होती है।
(iii) वैज्ञानिक दृष्टि का अभाव रहता है।

निगमन विधि के उपयोग

(i) यह विधि बीजगणित, रेखागणित एवं त्रिकोणमिति के शिक्षण में उपयोगी है।
(ii) सूत्रों की मदद से परिमाप क्षेत्रफल, व्यास, परिधि, ब्याज आदि ज्ञात करना।

(3) विश्लेषण विधि

(i) इस का प्रयोग प्राचीन काल से हो रहा है।
(ii) यह तर्क प्रधान विधि है।
(iii) इस विधि में किसी समस्या को छोटे-छोटे भागों में विभक्त किया जाता है। इस विधि का सूत्र है- अज्ञात से ज्ञात की ओर।

विश्लेषण विधि के निम्न चरण/सोपान हैं:
(i) समस्या की प्रस्तुति
(ii) समस्या की अनुभूति
(iii) समस्या का विश्लेषण

विश्लेषण विधि के लाभ
(i) यह तार्किक एवं वैज्ञानिक विधि है।
(ii) यह छात्रों में कल्पना, तर्क, चिन्तन आदि का विकास करती है।
(iii) इससे ज्ञान स्थायी बनता है।

विश्लेषण विधि के दोष
(i) प्राथमिक स्तर पर यह विधि उपयुक्त नहीं है।
(ii) यह एक लम्बी प्रक्रिया है।
(iii) गणित की सम्पूर्ण विषय-वस्तु नहीं पढ़ायी जा सकती है।

विश्लेषण विधि का उपयोग
(i) जब किसी साध्य (थ्योरम) को हल करना हो ।
(ii) जब रेखागणित में कोई रचना कार्य करना हो।
(iii) जब अंकगणित में किसी नवीन समस्या को हल करना हो।

(4) संश्लेषण विधि/ मनोवैज्ञानिक विधि

(i) यह विधि विश्लेषण के बिल्कुल विपरीत है।
(ii) इसमें छोटे-छोटे खण्डों को जोड़ा जाता है।
(iii) इसमें ‘ज्ञात से अज्ञात’ की ओर अग्रसर होते हैं।

संश्लेषण या मनोवैज्ञानिक विधि के निम्न चरण / सोपान हैं:
(i) समस्या के आधार का ज्ञान कराना
(ii) समस्या का ज्ञान कराना
(iii) समस्या का हल प्रस्तुत करना

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संश्लेषण या मनोवैज्ञानिक विधि के लाभ
(i) यह मनोवैज्ञानिक है।
(ii) इसमें समय एवं शक्ति की बचत होती है।
(iii) यह कमजोर छात्रों को भी लाभान्वित करती है।
(iv) यह व्यवस्थित विधि है।

संश्लेषण या मनोवैज्ञानिक विधि के दोष
(i) यह रटने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देती है।
(ii) इसमें छात्र निष्क्रिय रहते हैं।
(iii) इस विधि के द्वारा नवीन ज्ञान की खोज नहीं हो पाती।

नोट –  विश्लेषण-संश्लेषण, दोनों विधियाँ परस्पर विरोधी होते हुए भी अध्ययन और शिक्षण की दृष्टि से एक-दूसरे की पूरक हैं। विश्लेषण विधि में ज्ञात खोजों को संश्लेषण विधि द्वारा उपयोग करना चाहिए। विद्यार्थी जब संश्लेषण विधि से समस्याओं को हल करते हैं तब वे क्रिया के प्रत्येक पद के बारे में यह जानना चाहते हैं कि उसे क्यों किया जाए? उनकी इच्छा की पूर्ति विश्लेषण द्वारा ही हो सकती है। विश्लेषण करने से उनको अपने आप सोचने-विचारने और तर्क करने का मौका मिलता है, जिससे वे अपने आप प्रश्न हल करने में पूर्ण समर्थ हो जाते हैं। अतः किसी समस्या की खोज में दोनों विधियों का प्रयोग करते हुए ही हम उसका हल ज्ञात करने में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए गणित विषय में अधिकतर विश्लेषण-सश्लेषण विधियों का प्रयोग किया जाता है।

(5) समस्या समाधान विधि

(i) समस्या समाधान से तात्पर्य हमारे द्वारा किसी परिस्थिति में किए जाने वाले उन प्रयासों से है जब हमें यह नहीं मालूम कि हमें क्या करना चाहिए।
(ii) इसमें अध्यापक शिक्षार्थियों के सामने समस्याओं को रखता है तथा शिक्षार्थी सीखे हुए ज्ञान,नियमों तथा प्रत्ययों की सहायता से कक्षा में समस्या का समाधान ज्ञात करते हैं।

समस्या समाधान विधि के चरण
(i) समस्या में दिये गये तथ्यों एवं उनके सम्बन्धों को समझना
(ii) समस्या का विश्लेषण करना
(iii) सम्भावित हल खोजना
(iv) हल ज्ञात करने के लिए गणना करना
(v) समस्या का हल ज्ञात कर उत्तर की जांच करना
(vi) स्वीकृत समाधान का प्रयोग करना

समस्या समाधान विधि के लाभ
(i) यह विधि शिक्षार्थियों को अपने दैनिक जीवन की समस्याओं को हल करने के लिए तैयार व जागरूक बनाने में सहायक है।
(ii) इससे छात्रों में आत्मविश्वास व आत्मनिर्भरता का विकास होता है। इससे छात्रों में समस्या से लड़ने की प्रवृत्ति का विकास होता है।
(iii) यह छात्रों में सही चिन्तन व तर्कशक्ति का विकास करती है। (iv) इसमें छात्रों की व्यक्तिगत भिन्नताओं का ध्यान रखा जा सकता है।

समस्या समाधान विधि के दोष
(i) पाठ्यक्रम पूरा नहीं हो पाता।
(ii) इस विधि में समय ज्यादा लगता है।
(iii) यह विधि निम्न कक्षाओं के लिए उपयुक्त नहीं है।

(6) अनुसंधान विधि

(i) इस विधि के जन्मदाता एच. ई. आर्मस्ट्रॉंग थे।
(ii) यह अत्यन्त प्रभावशाली विधि है।
(iii) इसमें शिक्षक एक मार्ग दर्शक की तरह होता है।
(iv) छात्रों को स्वयं ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया जाता है।
(v) इस विधि का मुख्य उद्देश्य छात्रों को अनुसंधानकर्ता या खोजी बनाना है।

अनुसंधान विधि के लाभ

(i) यह मनोवैज्ञानिक है।
(ii) इससे छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होता है।
(iii) यह विधि छात्रों में रचनात्मकता को बढ़ावा देती है।
(iv) यह बच्चे को स्वयं कर के सीखने को प्रेरित करती है।
(v) यह गृह कार्य मुक्त होती है।

अनुसंधान विधि के दोष
(i) यह विधि छात्रों एवं अध्यापकों दोनों से ही अधिक परिश्रम, योग्यता और प्रवीणता की आशा रखती है।
(ii) इसमें अधिक समय लगता है।
(iii) पाठ्यक्रम समय पर समाप्त नहीं होता।
(iv) त्रुटिपूर्ण निर्णय की संभावना बनी रहती है।
(v) उपयुक्त सहायक सामग्री का अभाव
(vi) यह छोटे बच्चों के लिए उपयुक्त नहीं है।

गणित शिक्षक के गुण

गणित शिक्षक में निम्नलिखित गुण होने चाहिए:

(1) गणित अध्यापक को गणित शिक्षण में निहित कला और विज्ञान की समझ होनी चाहिए।
(2) अपने विषय में विशेषज्ञता हासिल होनी चाहिए।
(3) अपने विषय पर समुचित पकड़ होनी चाहिए।
(4) विद्यार्थियों को समझाने की समुचित योग्यता एवं कुशलता होनी चाहिए।
(5) शिक्षक को गणित विषय के नवीनतम ज्ञान व स्वरूप से परिचित होना चाहिए।
(6) गणित के क्षेत्र में होने वाले अनुसंधान तथा नवाचारों से अवगत होना चाहिए।
(7) शिक्षक का दृष्टिकोण सकारात्मक होना चाहिए।
(8) गणित की प्रयोगशाला, कम्प्यूटर तथा शैक्षिक तकनीकी लैब का ज्ञान होना चाहिए।
(9) गणित विषय का सह-संबंध छात्रों के दैनिक जीवन एवं अन्य विषयों से स्थापित करने का ज्ञान होना चाहिए।
(10) गणित के पाठ्यक्रम के उत्तरोत्तर विकास, गणित की पुस्तकों की समीक्षा एवं विकास, अधिगम में सूचना एंव सम्प्रेषण तकनीकी के उपयोग में सहायक होना चाहिए।

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गणित शिक्षण में शिक्षक द्वारा करायी जाने वाली गतिविधियाँ

(1) शिक्षक को ऐसी गतिविधियाँ करानी चाहिए जो छात्रों के वास्तविक जीवन को गणितीय अवधारणाओं के साथ जोड़ें।
(2) गतिविधियाँ ऐसी हों जो संख्या पैटर्न और आकृतियों के बीच संबंधों की पहचान कर सकें। (3) गतिविधियाँ ऐसी हों जो छात्रों को अधिक अभिव्यक्तशील एवं विचारशील बनाएं।
(4) गतिविधि ऐसी हों जो सम्प्रेषण करने वाली हो और खाली समय के दौरान कक्षा-कक्ष में गणितीय चर्चा को प्रोत्साहित करे।
(5) गतिविधियाँ ऐसी हों जो सामाजिक मूल्यों को विकसित करें।
ज्यामिति में अधिक-से-अधिक गतिविधियों का प्रयोग करना चाहिए।
गणना कौशल के विकास के लिए ड्रिल करवाना।

बहुविकल्पीय प्रश्न (खुद को जांचिए) –

1. एक ‘अच्छा’ गणितज्ञ होने के लिए जरूरी होता है।

(a) सवालों के उत्तर देने की तकनीक में निपुणता
(b) अधिकतर सूत्रों को याद करना
(c) बहुत जल्दी सवालों को हल करना
(d) सभी अवधारणाओं को समझना लागू करना और उनमें सम्बन्ध बनाना

2. कक्षा में गणित अध्यापक द्वारा विद्यार्थियों के साथ एक अच्छा सम्बन्ध विकसित करने के  लिए उसे चाहिए:

(a) सभी के साथ मित्रतापूर्ण व्यवहार करे
(b) अच्छे से बात करे
(c) बच्चों से प्यार करे
(d) व्यक्तिगत ध्यान दे

3. गणित शिक्षण की आगमन विधि का सिद्धान्त है:

(a) ज्ञात से अज्ञात की ओर
(b) अज्ञात से ज्ञात की ओर
(c) सामान्य से विशिष्ट की ओर
(d) विशिष्ट से सामान्य की ओर

4.नियम से उदाहरण की ओर किस शिक्षण विधि से सम्बन्धित है?

(a) आगमन विधि
(b) संश्लेषण विधि
(c) विश्लेषण विधि
(d) निगमन विधि

5. एक विद्यार्थी 8 मी लम्बे व 5 मी चौड़े आयत का परिमाप ज्ञात करने के लिए निम्न क्रिया की परिमाप 8+5+8+5 = 26 मी विद्यार्थी का हल किस शिक्षण विधि पर आधारित है?

(a) आगमन विधि
(b) निगमन विधि
(c) विश्लेषण विधि
(d) संश्लेषण विधि

6. बताए गए नियमों को उदाहरणों में प्रयोग कर उनकी पुष्टि करना किस शिक्षण विधि से सम्बन्धित है?

(a) निगमन विधि
(b) आगमन विधि
(c) संश्लेषण विधि
(d) विश्लेषण विधि

7. विद्यार्थी का हल किस शिक्षण विधि पर आधारित है?

(a) आगमन विधि
(b) निगमन विधि
(c) विश्लेषण
(d) संश्लेषण विधि

8. विकासशील मूल्यों में सफलता मुख्यतः निर्भर करती है:

(a) सरकार पर
(b) समाज पर
(c) परिवार पर
(d) शिक्षक पर

9. आपकी समझ से एक अध्यापक के लिए कौन सा कौशल अति आवश्यक होता है?

(a) बच्चों को ज्ञान की खोज के लिए प्रोत्साहित करना
(b) बच्चों से विषय-वस्तु का स्मरण कराने की योग्यता
(c) बच्चों से विषय-वस्तु का स्मरण कराने की योग्यता
(d) बच्चों को परीक्षा में अच्छे प्रदर्शन के योग्य बनाना

उत्तरमाला – 1. (d)     2. (d)      3. (c)      4. (d)      5. (a)
6. (d)      7. (b)      8. (d)      9. (a)



                          ◆◆◆ निवेदन ◆◆◆

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