पर्यावरण शिक्षण की विधियां | CTET ENVIRONMENT PEDAGOGY

दोस्तों अगर आप CTET परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो CTET में 50% प्रश्न तो सम्मिलित विषय के शिक्षणशास्त्र से ही पूछे जाते हैं। आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com आपके लिए पर्यावरण विषय के शिक्षणशास्त्र से सम्बंधित प्रमुख टॉपिक की श्रृंखला लेकर आई है। हमारा आज का टॉपिक पर्यावरण शिक्षण की विधियां | CTET ENVIRONMENT PEDAGOGY है।

Contents

पर्यावरण शिक्षण की विधियां | CTET ENVIRONMENT PEDAGOGY

पर्यावरण शिक्षण की विधियां | CTET ENVIRONMENT PEDAGOGY
पर्यावरण शिक्षण की विधियां | CTET ENVIRONMENT PEDAGOGY

CTET ENVIRONMENT PEDAGOGY

Tags – ctet environment pedagogy,पर्यावरण शिक्षण की विधियाँ,ctet environment pedagogy notes in hindi pdf,ctet environment pedagogy in hindi,ctet pedagogy,pedagogy of environment in hindi,पर्यावरण शिक्षण की विधियां | CTET ENVIRONMENT PEDAGOGY


पर्यावरण शिक्षण की गतिविधियों से लाभ

जीन पियाजे और एल.एन. वाइगॉत्सकी ने बच्चों के सीखने के तरीकों पर सबसे पहले अध्ययन किया। किसी भी पाठ्यक्रम के शिक्षण में उसकी शिक्षण विधियाँ महत्वपूर्ण होती हैं। शिक्षण विधियाँ अपनाते समय एक शिक्षक को शिक्षार्थियों की वैयक्तिक विभिन्नताओं को ध्यान में रखना चाहिए। जहाँ तक हो सके पर्यावरण शिक्षक को गतिविधि आधारित विधियाँ अपनानी चाहिए क्योंकि गतिविधियाँ:
(1) शिक्षार्थियों में आलोचनात्मक चिंतन और समस्या समाधान के लिए क्षमता का विकास करती हैं।
(2) शिक्षार्थियों के व्यक्तित्व का पोषण करती हैं।
(3) पाठ्य-वस्तुओं और संदर्भों की बहुलता को बढ़ावा देती हैं।
(4) शिक्षार्थियों को कर के सीखने का मौका देती है।
(5) शिक्षार्थियों को खोज करने के लिए पर्याप्त स्थान देती हैं।
(6) शिक्षार्थियों को प्रत्यक्ष हस्तपरक अनुभव उपलब्ध कराती हैं।
(7) शिक्षार्थियों के सृजनात्मकता का विकास करती हैं।
(8)  शिक्षार्थियों को स्वयं सीखने योग्य बनाती हैं।

पर्यावरण शिक्षण की विधियाँ

पर्यावरण शिक्षण की विधियाँ निम्नलिखित हैं:

(1) किण्डरगार्टन विधि/बालोद्यान शिक्षण पद्धति

(1) इसके जन्मदाता एफ. ए. फ्रोबेल है।
(2) इसमें खेल आनन्द और स्वतन्त्रता का वातावरण होता है।
(3) इसमें किसी पुस्तक का प्रावधान नहीं है।
(4) शिक्षार्थी को डॉटा, फटकारा नहीं जाता है।
(5) शिक्षार्थी स्वतः क्रिया द्वारा सीखता है।
(6) शिक्षार्थी गीतों, उपहारों और क्रियाओं द्वारा सीखता है।

नोट – प्ले स्कूल इसी विधि पर आधारित है।

(2) मॉण्टेसरी विधि

(1) यह विधि डॉ. मारिया मॉण्टेसरी द्वारा शुरू की गई।
(2) यह 3 – 7 वर्ष के आयु वर्ग के शिक्षार्थियों के विशेष प्रकार की शिक्षा देने पर देने पर बल देती है।
(3) इस विधि में बालक स्वतन्त्र रहता है और स्वयं करके सीखता है।
(4) इस विधि में बालक की ज्ञानेन्द्रियों और माँसपेशियों को प्रशिक्षित किया जाता है।

(3) प्रोजेक्ट विधि/परियोजना विधि

(1) इस विधि के जन्मदाता है-डब्लयू.एच. किलपैट्रिक
(2) इस विधि में बालक को कोई कार्य सम्पन्न करने के लिए कहा जाता है।
(3) इस विधि के द्वारा शिक्षार्थी में योजना बनाना, उसको क्रियान्वित करना, उसका मूल्यांकन करना आदि कौशलों का विकास होता है।
परियोजना व्यक्तिगत या समूह में किया जाता है।
(4) विभिन्न विषय-वस्तुओं पर परियोजना बनाई जा सकती हैं, जैसे-विभिन्न क्षेत्रों के भोजन पर,कलाओं पर, यातायात के साधनों पर, पहनावे पर, फसलों पर, मिट्टी पर,प्रदूषण पर, ऐतिहासिक इमारतों पर आदि।

(4) कहानी विधि

(1) पर्यावरण शिक्षण के अधिगम में यह विधि बड़ी उपयोगी होती है।
(2) इस विधि के द्वारा कोई ज्ञान बड़ी आसानी से शिक्षार्थियों को दिया जा सकता है।
(3) इस विधि के द्वारा किसी भी नीरस और उबाऊ विषय-वस्तु को रोचक ढंग से पढ़ाया जा सकता है।
(4) यह विधि अधिगम के लिए सन्दर्भगत वातावरण प्रदान करती है। इस विधि के द्वारा अनेक विषय- क्षेत्रों को आसानी से पढ़ाया जा सकता है।
(5) कहानियों में व्यक्तियों के अनुभव शामिल होते हैं।
(6) इस विधि के द्वारा बच्चों के परिवेश का समृद्ध चित्रण किया जा सकता है।
(7) इस विधि के द्वारा बच्चों में सृजनात्मकता एवं सौन्दर्यबोध का विकास किया जा सकता है।
(8) यह बच्चों में रुचि और जिज्ञासा का विकास करती है।
(9) इस विधि के द्वारा बच्चों में ज्ञान प्राप्ति के साथ-साथ मनोरंजन भी होता है।

ये भी पढ़ें-  विज्ञान की प्रकृति,लाभ,उद्देश्य एवं आवश्यकता | CTET SCIENCE PEDAGOGY

(5) क्रियात्मक विधि

(1) यह विधि ‘करके सीखना’ के सिद्धान्त पर आधारित है।
(2) अगर पर्यावरण की कक्षा गतिविधि आधारित होगी तो शिक्षार्थी का ज्ञान स्थाई और सार्थक होगा ।
(3) इस विधि में शिक्षार्थी सदैव क्रियाशील रहता है और स्वयं कार्य करके ज्ञान अर्जित करता है,उसमें परस्पर क्रिया, अवलोकन और सहयोग जैसे कौशलों का विकास होता है।
(4) इस विधि में शिक्षार्थी को उसकी रुचि के अनुसार कार्य करने का अवसर मिलता है।
(5) इस विधि में शिक्षक एक मार्गदर्शक के रूप में रहता है।
(6) इस विधि से शिक्षार्थियों से कई सारी गतिविधियाँ कराई जा सकती हैं, जैसे: –

(i) किसी चीज का मॉडल (प्रतिरूप) बनाना, जैसे-विभिन्न क्षेत्रों के आवासों का मॉडल बनाया जा सकता है।
(ii) किसी चीज का चार्ट बनाना, जैसे-भोजन के विभिन्न स्रोतों का, परन्तु प्राथमिक स्तर पर पोषण/भोजन के विषय में पढ़ाने का सबसे उचित तरीका शिक्षार्थियों के टिफिन बॉक्स में लाए गए भोजन के विषय में व्याख्या करना है।
(iii) किसी चीज का मानचित्र बनाना, जैसे-घर से स्कूल तक के रास्ते का, रेलवे सफर का आदि।
(iv) किसी चीज का चित्र बनाना जैसे बीज के अंकुरण के विभिन्न चरणों का अवलोकन कर उसका चित्र बनाना, पौधों का अवलोकन कर के विभिन्न भागों का चित्र बनाना।
(v) किस चीज पर वित्त चित्र दिखाना जैसे विभिन्न प्रकार के प्रदूषण पर, पक्षियों के घोसलों पर आदि।
(vi) शिक्षार्थियों के अधिकतम भागीदारिता हेतु विभिन्न गतिविधियाँ कराना, जैसे- अलग-अलग दिनों में अलग-अलग खेल खिलाना।

(6) सहयोगात्मक अध्ययन विधि/समुदाय विधि

(1) पर्यावरण अध्ययन में समुदाय/समूह अधिगम के लिए एक महत्वपूर्ण अंग है क्योंकि ये वास्तविक स्थितियों में सीखने के अवसर उपलब्ध कराती हैं।
(2) सामूहिक गतिविधि/परियोजना शिक्षार्थियों में सहपाठी/सहयोगात्मक अधिगम को बढ़ावा देती है तथा सामाजिक अधिगम को बेहतर बनाती है।
(3) इस विधि के द्वारा शिक्षार्थियों में उत्तरदायित्व की भावना का विकास होता है। शिक्षार्थियों में निर्णय करने की शक्ति का विकास होता है।
(4) शिक्षार्थियों में प्रजातान्त्रिक/लोकतान्त्रिक भावना का विकास होता है।
(5) समूह चर्चा, समूह परियोजना आदि इस विधि की गतिविधियाँ हैं।
(6) शिक्षार्थी समूह में रह कर जानकारी इकट्ठा करते हैं और विश्लेषण के पश्चात् निष्कर्ष निकालते हैं।
(7) सामाजिक असामनताओं, सामाजिक कुरीतियों, प्रदूषण की समस्या, ग्रामीण और शहरी जीवन आदि पर समूह चर्चा का आयोजन किया जा सकता है या समूह परियोजना दी जा सकती है।

(7) अन्वेषण/खोज विधि

(1) इस विधि के जन्मदाता थे-प्रो. आर्मस्ट्रांग
(2) यह विधि ‘स्वयं करके सीखना’ पर आधारित है।
(3) इस विधि में शिक्षार्थी स्वयं सूचना तथा सिद्धान्तों की खोज के लिए अनेक प्रयोग करता है।
(4) इस विधि से शिक्षार्थी में वैज्ञानिक प्रवृत्ति का विकास होता है।
(5) इस विधि में शिक्षक मार्गदर्शक के रूप में होता है।
(6) इस विधि से शिक्षार्थी आत्मविश्वासी, चिन्तनशील और आत्मनिर्भर बनता है।
(7) इस विधि के द्वारा क्या डूबा, क्या तैरा, हवा चीजों को कैसे गर्म या ठण्डा करती है, शीशा धुंधला कैसे हो जाता है, परछाई कैसे बनती है, आदि विषय-वस्तुओं का अधिगम कराया जा सकता है।

ये भी पढ़ें-  गणित विषय की शिक्षण सामग्री एवं प्रयोगशाला | CTET MATH PEDAGOGY

(8) भ्रमण विधि

(1) इस विधि में शिक्षार्थी भ्रमण करके ज्ञान अर्जित करता है।
(2) यह विधि कक्षा-कक्षीय अभिगम को वास्तविक जीवन की परिस्थितियों के साथ जोड़ती है।
(3) यह विधि शिक्षार्थियों को सक्रिय/प्रत्यक्ष अभिगम अनुभव उपलब्ध कराती है और शिक्षार्थियों का अनुभव उनकी ज्ञान रचना का आधार होता है।
(4) इस विधि के द्वारा शिक्षार्थी प्रकृति के प्रति आकर्षित होते हैं।
(5) इस विधि में शिक्षार्थियों को विषय-वस्तु का ध्यान से अवलोकन करना चाहिए, टिप्पणियाँ दर्ज करनी चाहिए और उसे अपने सहपाठियों और शिक्षक के साथ बाँटना चाहिए।

भ्रमण पर जाते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए:

(1) शिक्षार्थियों को अपने साथ पूरा वस्ता नहीं ले कर जाना चाहिए।
(2) शिक्षार्थियों को अपने साथ नोट बुक/ड्राइंग कॉपी साथ ले जाना चाहिए ताकि वे जो देखें उसको नोट कर ले या चित्र बना लें।
(3) अगर चिड़ियाघर जा रहे हैं तो जानवरों के लिए भोजन कदापि न ले कर जायें।
(4) भ्रमण पर जाने से पहले वहाँ किये जाने वाले क्रिया-कलापों के विषय में शिक्षक और शिक्षार्थियों के बीच चर्चा होनी चाहिए।
(5) इस विधि से पौधों, जानवरों, प्रकृति, पहाड़ों, खाद्य श्रृंखलाओं, ऐतिहासिक इमारतों, फसलों आदि के विषय में सार्थक अधिगम कराया जा सकता है।

(9) प्रश्नोत्तर विधि

(1) इस विधि में प्रश्न पूछकर पाठ का ज्ञान कराया जाता है।
(2) इस विधि में शिक्षक और शिक्षार्थी दोनों प्रश्न पूछते हैं।
(3) पर्यावरण अध्ययन तभी सार्थक होगा अगर ज्यादा से ज्यादा प्रश्न पूछे जाएँ क्योंकि प्रश्न शिक्षार्थियों में रुचि और उत्सुकता जगाते हैं।
प्रश्नों से शिक्षार्थियों का चिन्तन उद्दीप्त होता है। प्रश्न प्रकरण को सन्दर्भपरक बनाने में मदद करते हैं। प्रश्न पूछने से अध्रिपेरित शिक्षण का संकेत मिलता है। जैसे – अगर पेट्रोल/तेल खत्म हो जाए? वनों का विनाश हो जाए? जल की कमी हो जाए? आदि जैसे प्रश्न शिक्षार्थियों को संवेदनशील बनाते हैं और उनमें चिन्तन कौशलों का विकास करते हैं।
(4) प्रश्नों का मुख्य उद्देश्य शिक्षार्थियों को अपने विचार प्रकट करने का अवसर देना होना चाहिए उनकी जानकारी की जाँच करना नहीं।
अभ्यास या गतिविधियाँ या प्रश्न पाठ/प्रकरणों में अन्त:निर्मित होनी चाहिए ताकि शिक्षार्थियों का ज्ञान स्थाई बन सके।

(10) अधिन्यास दत्त/कार्य विधि

(1) इस विधि में पूरे पाठ्यक्रम को छोटे-छोटे भागों में विभाजित किया जाता है।
(2) इस विधि में शिक्षार्थियों को एक निश्चित समय में एक कार्य पूरा करने के लिए दिया जाता है।
(3) इस विधि में एक अधिन्यास पूर्ण होने पर ही दूसरा अधिन्यास दिया जाता है।
(4) इस विधि का मुख्य लक्ष्य अधिगम-विस्तार के अवसर उपलब्ध कराना है।
(5) इस विधि में शिक्षक प्रत्येक शिक्षार्थियों पर व्यक्तिगत ध्यान दे सकता है।

(11) आगमन विधि

(1) इस विधि में पहले कई सारे उदाहरण बताये जाते हैं और तत्पश्चात्, एक निष्कर्ष बताया जाता है।
(2) इस विधि के द्वारा ज्ञान को स्थाई रूप से ग्रहण किया जा सकता है।
(3) यह विधि विशिष्ट से सामान्य और मूर्त से अमूर्त शिक्षण सूत्रों का अनुसरण करती है।

ये भी पढ़ें-  वैज्ञानिक संबोधों की प्रक्रियाएं एवं महत्व | CTET SCIENCE PEDAGOGY

(12) निगमन विधि

(1) इस विधि में पहले कोई नियम बताया जाता है और उसके पश्चात् उदाहरणों द्वारा पुष्टि की जाती है।
(2) यह विधि सामान्य से विशिष्ट शिक्षण सूत्र के ऊपर आधारित है।
(3) इस विधि से शिक्षार्थियों में रटने की प्रवृत्ति बढ़ती है। (4) यह विधि बाल केन्द्रित नहीं है।

महत्वपूर्ण प्रश्न ( खुद को जाँचिए )

1. प्राथमिक स्तर पर पर्यावरण अध्ययन के कक्षा-कक्ष में गतिविधियाँ कराने से –
(a) शिक्षार्थियों को कर के सीखने का मौका मिलता है।
(b) शिक्षार्थियों को प्रत्यक्ष हस्तपरक अनुभव प्राप्त होता है।
(c) शिक्षार्थियों के व्यक्तित्व का ह्रास होता है।
(d) उपरोक्त कथनों में से कौन-सा कथन असत्य है ?

2. एन. सी. एफ-2005 के अनुसार, निम्नलिखित में से कौन-सी एक पर्यावरण अध्ययन की विषय-वस्तु नहीं है?
(a) भोजन
(b) परिवार एवं मित्र
(c) सौरमंडल
(d) आवास

3. निम्न में से किस शिक्षण विधि में शिक्षार्थियों में योजना बनाने, उनको क्रियान्वित करने और उसका मूल्यांकन करने आदि कौशलों का विकास होता है?
(a) किण्डरगार्टन
(b) मॉण्टेसरी
(c) प्रोजेक्ट
(d) आवास

4. कक्षा V का पर्यावरण अध्ययन का शिक्षक नवीन कौशिक अपने शिक्षार्थियों को सामाजिक असामानताओं, सामाजिक कुरीतियों, प्रदूषण आदि विषय पर पढ़ाना चाहता है। निम्न में से कौन-सी विधि सबसे ज्यादा उपयुक्त होगी?
(a) सहयोगात्मक अध्ययन विधि
(b) अन्वेषण विधि
(c) क्रियात्मक विधि
(d) भ्रमण विधि

5. भ्रमण विधि की विशेषताएँ हैं:
(a) यह कक्षा-कक्षीय अधिगम को वास्तविक जीवन की परिस्थितियों के साथ जोड़ती है।
(b) यह विधि शिक्षार्थी को प्रकृति के प्रति आकर्षित करती है।
(c) उपरोक्त दोनों
(d) दोनों में से कोई नहीं

6. प्रश्नोत्तर विधि का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए:
(a) विषय-वस्तु का ध्यान से अवलोकन करना
(b) शिक्षार्थियों को अपने विचार प्रकट करने का अवसर प्रदान करना
(c) अधिगम-विस्तार के अवसर उपलब्ध कराना
(d) शिक्षार्थियों में सहयोग की भावना का विकास करना

7. निम्न में से कौन-सी विधि शिक्षार्थियों में रटने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देती है?
(a) अधिन्यास
(b) आगमन
(c) खोज
(d) निगमन

8. “शिक्षकों को अपने शिक्षण में उन मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों का प्रयोग करने के लिए तैयार रहना चाहिए जो सफल शिक्षण और प्रभावशाली अधिगम के लिए अनिवार्य है।” यह कथन किसका है?
(a) एलिस क्रो
(b) स्किनर
(c) बण्डुरा
(d) इनमें से कोई नहीं

9. पर्यावरण के शिक्षक ने शिक्षार्थियों को जरायुज और अण्डज जानवरों के बीच समानता और असमानता लिखने को कहा यह किस प्रकार का प्रश्न है?
(a) अभिसारी
(b) अपसारी
(c) तथ्यात्मक
(d) मूल्यांकन वाला

उत्तरमाला – 1(c)    2(c)    3(c)     4(a)     5(c)     6(b)    7(d)     8(a)     9(d)

                               ◆◆◆ निवेदन ◆◆◆

आपको विज्ञान के शिक्षणशास्त्र का यह टॉपिक कैसा लगा। हमे कॉमेंट करके जरूर बताएं । आप इस टॉपिक पर्यावरण शिक्षण की विधियां | CTET ENVIRONMENT PEDAGOGY को अपने प्रतियोगी मित्रों के साथ शेयर भी करें।

Tags – ctet environment pedagogy,पर्यावरण शिक्षण की विधियाँ,ctet environment pedagogy notes in hindi pdf,ctet environment pedagogy in hindi,ctet pedagogy,pedagogy of environment in hindi,पर्यावरण शिक्षण की विधियां | CTET ENVIRONMENT PEDAGOGY

Leave a Comment